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हरियाणा : अविश्वास प्रस्ताव में किसानों को विधायकों से 'बेहतर विवेक' के इस्तेमाल की उम्मीद

किसान 9 मार्च को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा, जेजेपी और निर्दलीय विधायकों के घरों के सामने विरोध प्रदर्शन करेंगे।
किसान

अगर विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो अविश्वास प्रस्ताव पर मत के दौरान बेशक भाजपा-जेजेपी गठबंधन की सरकार सुरक्षित है-जिस अविश्वास प्रस्ताव को हरियाणा विधानसभा के आगामी बजट सत्र में सदन के पटल पर रखा जाएगा, किसान नेता उम्मीद कर रहे हैं कि विधायक मत डालते वक़्त व्यक्तिगत तौर पर "बेहतर विवेक" का इस्तेमाल करेंगे और "चुनने वालों के साथ खड़े होंगे"।

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के खिलाफ विपक्ष ने 10 मार्च यानि बुधवार के लिए अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में भाजपा की 40 सीटें और जननायक जनता पार्टी की 10 सीटें हैं और सरकार को पांच स्वतंत्र विधायकों का समर्थन हासिल है।

अविश्वास प्रस्ताव के पहले, भारतीय किसान यूनियन- हरियाणा के नेता गुरनाम सिंह चादुनी ने सोमवार को अपने समर्थकों से अपील की कि वे 9 मार्च, मंगलवार को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विधायकों के घरों के बाहर विरोध प्रदर्शन करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में भाजपा-जेजेपी सरकार अविश्वास प्रस्ताव में हार जाए।

उन्होंने कहा, "भाजपा, जेजेपी और निर्दलीय विधायकों के निवासों पर विरोध प्रदर्शन 9 मार्च को आयोजित किए जाएंगे और ज्ञापन सौंपे जाएंगे। हमें उनसे यह तय करने की मांग करनी चाहिए कि वे यह सुनिश्चित करें कि भाजपा-जेजेपी सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर हार जाए।"  

जब से भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने सितंबर माह में संसद में सुधार-उन्मुख कृषि-कानून पारित किए हैं, तब से हरियाणा की किसान यूनियनें इन क़ानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने में सबसे आगे रही हैं। इन क़ानूनों के माध्यम से भारतीय कृषि का निगमीकरण करने की आशंका पैदा हो गई है।"

किसानों का गुस्सा केंद्र सरकार के खिलाफ लक्षित है, जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके में विरोध शिविरों का जमघट लगा हुआ है और इसे चलते हुए पूरे 100 दिन हो गए हैं, ज़ाहिर कारणों की वजह से किसान आंदोलन ने राज्य सरकार को भी कठिनाई में डाल दिया है।

राज्य प्रशासन की ताकत का इस्तेमाल करने से लेकर पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने और हरियाणा में किसानों को आंदोलन में शामिल होने से रोकने के लिए उनका दमन करने में  मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, राज्य सरकार केंद्र सरकार के क़ानूनों को समर्थन देने में सबसे आगे है। 

इतना ही नहीं, यदि कानूनों को चुनौती नहीं दी गई तो जेजेपी ने उनका समर्थन भी नहीं किया है, जिनके मतदाता जाट हैं और उन्हे किसानों की प्रमुख कौम के रूप में जाना जाता है। परिणामस्वरूप, पहले से ही तनाव बहुत अधिक है क्योंकि उन्हे किसानों के गुस्से को झेलना पड़ रहा हैं।

 “हरियाणा के विधायकों को इस बात का पता चल जाना चाहिए कि जो इस तरह के महत्वपूर्ण मोड़ पर किसान आंदोलन के साथ नहीं खड़ा हैं, उसे आम जनता भविष्य में सबक सिखाएगी,” उक्त बातें संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की 6 मार्च की प्रेस विज्ञप्ति में कही गई जो किसानों का संयुक्त मोर्चा है मौजूदा आंदोलन को चला रहा है। 

एसकेएम के एक प्रमुख नेता चादुनी ने सोमवार को अपने समर्थकों से कहा कि वे अपने-अपने इलाकों में विधायकों को उनके "सामाजिक और चुनावी बहिष्कार" की "चेतावनी" दें, अगर वे कृषि-कानूनों के खिलाफ अपनी आवाज़ नहीं उठाते हैं।

किसानों के विरोध के मद्देनजर चरखी दादरी विधानसभा सीट से चुने गए विधायक सोमवीर सांगवान ने पिछले साल दिसंबर में भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, सांगवान, जो अपने समुदाय की खाप के प्रमुख भी हैं ने न्यूजक्लिक को बताया कि जो राजनीतिक नेता आंदोलन के दौरान “शांत” रहे उन्हे किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा है "हालांकि, वे अविश्वास प्रस्ताव पर राज्य सरकार की हार को सुनिश्चित करेंगे या नहीं यह सब उनके “बेहतर विवेक” पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा कि अतीत में भी जेजेपी के कई विधायकों ने किसानों के आंदोलन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है।

अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह ने कहा, “ये विचार जेजेपी नेताओं और निर्दलीय विधायकों पर दबाव बनाने के लिए है क्योंकि ये वे लोग हैं जिन्होंने भाजपा उम्मीदवारों को हरा कर चुनाव जीता था।"

"हम उनसे बहुत उम्मीद नहीं हैं, लेकिन फिर भी संदेश साफ और सरल है- कि ये नेता उन लोगों की आकांक्षाओं का सम्मान करें और उनके साथ खड़े हों जिन्होंने उन्हें चुना है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Haryana: Ahead of No-Trust Vote, Farmer Leaders Pin Hopes on ‘Good Conscience’ of MLAs

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