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हरियाणा चुनाव: सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत

बीजेपी का पूरा चुनाव अभियान कश्मीर और पाकिस्तान पर केंद्रित है। लेकिन इन मज़दूरों को इस चुनाव में कश्मीर में घर नहीं हरियाणा में घर और रोजगार चाहिए।
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हरियाणा/जींद : हरियाणा की वर्तमान  सरकार द्वारा भले ही  बड़े बड़े दावे किये जा रहे हो कि उनकी 5 साल की सरकार में सभी लोगो को सरकारी योजना का लाभ सीधे बिना किसी लूट के मिल रहा है , लेकिन ज़मीन हकीकत इससे काफी दूर है ,हरियाणा के गाँवो की बड़ी आबादी सार्वजनिक वितरण प्रणाली , उज्ज्वला ,प्रधानमंत्री आवास योजना ,और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA) जैसे योजनाओ से बहार है।

जो इसमें शामिल भी है उन्हें भी इस योजना का पूरा लाभ नहीं मिल रहा हैं। कई योजना जैसे मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना में तो अनियमितता  और भ्र्ष्टाचार भी देखने को मिलता है।  

न्यूज़क्लिक ने अपने चुनावी यात्रा के दौरान जींद जिले के कई गाँवो का दौर किया और उनसे इस योजना के बारे में जाना। हम  मनरेगा मज़दूरों से मिले उन्होंने बताया  कि हरियाणा में मनरेगा में भारी भ्र्ष्टाचार है। मनरेगा  मज़दूर दलबीर जो जींद के जुलाना विधनसभा के दोहड़ा गाँवो के निवासी है,  वो कहते हैं कि हमें पुरे साल में 20 से 25 दिनों का ही काम ही दिया जाता है। ये शिकायत लगभग हर मनरेगा मज़दूर की है।वे काम तो चाहते हैं लेकिन उन्हें काम नहीं दिया जाता है। ऐसे में उन्हें दूसरे काम करने पड़ते हैं जैसे खेतो में मज़दूरी आदि जहाँ इनका भारी शोषण होता है। मालिक इन्हे यह कह कर ले जाता है कि उन्हें 300 रूपये देगा लेकिन काम करने के बाद 150 या 200 रुपये देता है।

मनरेगा मज़दूर काम नहीं मिलने से दुखी

 हमें कई ऐसे मज़दूर मिले जिनका मनरेगा के तहत जॉब कार्ड तो बन गया है लेकिन सालों से कभी काम नहीं मिला है। ऐसे ही एक मज़दूर आज़ाद हैं  जिनका 4 लोगो का परिवार है ,उनका लेबर कार्ड एक साल पहले बन गया लेकिन उन्हें काम आज तक नहीं मिला है।मज़दूर काम करना चाहता है लेकिन सरकार उन्हें काम नहीं दे रही है।

इन सभी बातों की पुष्टि सरकारी आकड़े भी करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 17.13 लाख लोगों ने मनरेगा में आपना नाम दर्ज करा रखा है जबकि सरकार केवल इस वित्तीय वर्ष 2019-20 में अभी तक 2.3 लाख लोगों को ही काम उपलब्ध करा पाई है।  इस तरह सरकार ने 2017 -18 में 3.96 लाख लोगों  को ही काम दिया था। जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में यह घटकर 3.26लाख रह गया था। यानी पिछले सालों में लगातार सरकार मज़दूरों को काम देने में नाकाम रही है।
 
सरकार का यह कहना सच है कि इस दौरान काम मांगने वाले मज़दूरों की संख्या में भी कमी आई है। अगर हम 2017-18 में काम मांगने वाले मज़दूरों की संख्या देखें  तो वो 4.94 लाख थी, जो 2018- 19 में घटकर मात्र 4.13 लाख  रह गई।  इस पर मज़दूरों का कहना  है कि बहुत सारे मज़दूर ने हार मानकर काम माँगना  बंद कर दिया क्योंकि उन्हें काम तो मिलता नहीं तो मांगना क्यों ? इसके अलावा अगर हम सरकार की प्राथमिकता देखे तो वो इस ओर नहीं है।  मनरेगा मज़दूरों ने  बताया कि सरकार ने मनरेगा मज़दूरों के काम को भी छीन लिया है। पहले गाँवों के नहरों की सफाई मनरेगा मज़दूरों से कराई जाती थी लेकिन अब उसे JCB मशीन से कराई जा रही है। अगर हम सरकार की प्राथमिकता भी देखें तो हरियाणा सरकार ने पिछले तीन सालो में मनरेगा के बजट में भी किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की है।
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मनरेगा कानून के मुताबिक हर परिवार को कम से कम 100 दिन का काम दिया जाएगा लेकिन हरियाणा में बहुत ही कम परिवार ऐसे हैं जिन्हें पूरे 100 दिन का काम मिला हो। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ हरियाणा में औसतन एक परिवार को इस वित्तीय वर्ष में अभी तक 23.94 दिनों का काम मिला है। जबकि 2018-19 में 33.73 दिनों का औसत था। कभी भी यह असौत 35 तक भी नहीं पहुंचा है।

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सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस साल पूरे हरियाणा में मात्र 495 परिवारों को ही 100 दिनों का काम मिला है जबकि साल 2018 - 19 में मात्र 3 हज़ार परिवारों को ही 100 दिनों का काम मिला था।  जो कि रोजगार  गारंटी कानून का उल्लंघन है।
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इसमें भी एक रोचक तथ्य निकलकर सामने आया, जब हम जुलाना विधानसभा के देव्रोर गाँव के मनरेगा मज़दूरों के हक़ के लिए लड़ने वाले 74 वर्षीय कार्यकर्ता  हवा सिंह से मिले, जो शिक्षा विभाग से रिटायर हैं उन्होंने बताया कि उनके गाँव में मनरेगा में भारी भ्र्ष्टाचार हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारे गाँवो में गरीब मज़दूर जो काम मांगते हैं, उन्हें तो काम नहीं मिला बल्कि गाँवो के धन्नासेठों को पूरे 100 दिनों का काम मिला है। जबकि नियमित मज़दूर जो काम करते हैं उन्होंने बताया वो कभी काम करने जाते ही नहीं है।

आगे वो बताते हैं कि इसमें भारी घोटाला है।  यह लोग मनरेगा अधिकारी की मिलीभगत से बिना काम किये ही पैसा लेते हैं। वो समझाते हैं कि जैसे कोई काम 50 मज़दूरों का है, वह काम 30 मज़दूरों से कराया जाता है और बचे 20 लोगों का पैसा धन्नासेठों  के खाते में डाल दिया जाता है। इसमें श्रम सहायक ,मनरेगा अधिकारी और सरपंच सभी शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि इसको लेकर कई बार शिकायत की है, कभी कोई करवाई नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि अब तक  74 से अधिक पत्र मुख्यमंत्री BDO, DC सभी को लिख चुके हैं और 5 बार CM विंडो पर जाकर भी शिकायत कर चुके हैं, लेकिन  कार्रवाई नहीं हुई है।
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लेकिन उन्होंने अभी  भी हार नहीं मानी है, वो कहते हैं कि इस मामले को हाई कोर्ट तक ले जाएंगे। यह सिर्फ इस गाँवो की शिकायत नहीं है, सभी गाँवों से हमें यह शिकायत मिली है। मज़दूरों से अधिक काम लिया जाता है और इस अधिक काम का पैसा घर बैठे अपने लोगो को सरपंच दिलाता है।

प्रधानमंत्री आवास योजना जमीन से गायब

इसी तरह हम जब जींद के गाँवो में घूम रहे थे तो कई ऐसे जर्जर मकान दिखे जो कभी भी गिर सकते है लेकिन उसमें लोग रह रहे थे। अधिकतर यह घर अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के थे। पंचायत  समिति सदस्य दिनेश ने बताया कि चुनाव से पहले सरकार ने सभी को घर की बात कही थी लेकिन अभी तक किसी को भी प्रधानमंत्री आवास के तहत घर नहीं मिले हैं। उन्होंने बताया कि सिर्फ जींद में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 7 हज़ार घर पास हुए हैं  लेकिन एक को भी माकन नहीं मिला है।
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लोगो ने बताय सरकार जो पैसा देती है उसमे घर बनाना न बहुत मुश्किल है लेकिन उससे कुछ मदद जरूर हो जाती है। कई लोगो जिनको इस योजन  के तहत पैसे मिले भी है उनकी आखिर किश्त नहीं आई है।

उज्ज्वला गैस योजना का भी हाल बुरा

प्रधानमंत्री की सबसे महत्वकाँक्षी योजना में से एक उज्ज्वला गैस योजना भी लोगो घरो में लकड़ी की चूल्हो में जलती मिली। अधिकतर ग्रमीण इलाकों में लोगो ने गैस  लिया तो लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं कर रहे है। बल्कि उसे घर में रख दिया है क्योंकि उसको भरने की कीमत बहुत लगती है। एक महिला से हमने पूछा गैस है तो उसका प्रयोग क्यों नहीं करते तो उन्होंने कहा करते जब आप जैसे लोगो आते हैं, तो चाय बना लेते है।
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इसी तरह जुलाना के एक गाँव कि महिला मीनू जिनके पति एक दिहाड़ी मज़दूर है उंन्होने बताया की उनका राशन कार्ड भी नहीं बना न ही आयुष्मान कार्ड और नहीं कोई अन्य सुविधा मिलती हैं वो जिस घर में रहती थी वो भी सड़क से चार फुट निचे दबा हुआ है।

सरकारों के दबाव एक तरफ जमनी हकीकत कुछ और ही है। लेकिन शायद इनका कोई फर्क सत्ताधारी दल पर नहीं पड़ता  है। इससे निपटने के लिए उसने राष्ट्रवाद और कश्मीर का सहारा  लिया है। बीजेपी का पूरा चुनाव अभियान कश्मीर और पाकिस्तान पर केंद्रित है। लेकिन इन मज़दूरों को इस चुनाव में कश्मीर में घर नहीं हरियाणा में घर और रोजगार चाहिए।

(सभी आंकड़े पीयूष शर्मा के सहयोग से) 

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