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हरियाणा: अविश्वास प्रस्ताव में मनोहर लाल सरकार पास, लेकिन किसानों के समर्थन में जेजेपी फेल!

किसानों की हितैषी होने का दावा करने वाली जननायक जनता पार्टी ने सदन में आज सरकार का साथ देते हुए किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस की ओर पेश किए अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट दिया है। हालांकि जेजेपी के अंदर कई विधायक इससे पहले सार्वजनिक तौर कई बार किसान आंदोलन का समर्थन कर चुके हैं।
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बीते कई महीनों से सड़कों पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) गठबंधन सरकार के ख़िलाफ़ आज यानी बुधवार, 10 मार्च को कांग्रेस ने विधानसभा सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव के पेश होने के बाद इस पर कई घंटे तीखी बहस हुई। पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार जारी रहा। इसके बाद मतदान हुआ और सरकार अपना बहुमत साबित करने में सफल रही।

अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही खटृर सरकार के पक्ष में 55 वोट पड़े तो वहीं विपक्ष में 32 वोट, जिसके बाद कांग्रेस का ये प्रस्ताव गिर गया। अब विपक्ष प्रस्ताव गिर जाने के बाद अगले 6 महीने तक दोबारा से अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं कर पाएगा।

किसने क्या कहा?

अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि यह सरकार बहुमत की नहीं, बल्कि जेजेपी पर निर्भर है, जिस पर लोगों को विश्वास नहीं है। सरकार जनता में अपना विश्वास खो चुकी है। आज सीएम का हेलीकॉप्टर कहीं लैंड नहीं हो पा रहा न ही वो कोई रैली कर पा रहे हैं। बीजेपी लगातार किसान आंदोलन को लेकर गलत बयानबाजी करती रही है, मंत्री किसानों को आतंकी-खालिस्तानी कह रहे हैं।

इसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सदन में बीजेपी विधायको को चुनौती दी कि वो अपने विधानसभा क्षेत्र में जाकर दिखाएं, जनता का क्या रुख रहता है। इसके साथ ही हुड्डा ने सदन में सीक्रेट वोटिंग की मांग की।

कांग्रेस के विधायक जसबीर मलिक ने कहा कि बीजेपी ने किसानों को कानून समझाने के कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाई। अब लोग ही बीजेपी को पाठ सिखाएंगे, बीजेपी को किसानों से मांफी मांगनी चाहिए।

इसके बाद बीजेपी और निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। जिसे लेकर वेल में हंगामा भी हुआ। सदन में कांग्रेस के लोगों को गद्दार कहने को लेकर विधायक असीम गोयल पर अमर्यादित भाषा इस्तेमाल करने का आरोप भी लगा।

असीम गोयल ने कहा कि मैं किसानों का सम्मान करता हूं, लेकिन कांग्रेस के लोग गद्दार हैं। जो लोग ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का नारे लगाते हैं…कांग्रेस उनके साथ मिल चुकी है।

हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हमारा बीजेपी के साथ गंठबंधन पूरे पांच साल मजबूती से चलेगा। कांग्रेस के लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं। कांग्रेस ने कभी किसानों के बारे में नहीं सोचा, हम किसानों के साथ हैं। हमने किसी तरह का बल प्रयोग नहीं किया। कानून व्यवस्था बनाए रखी। जो किसान बॉर्डर पर हैं, उन्हें हम मूलभूत सुविधाएं दे रहे हैं।

चर्चा के दौरान विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खटृर ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कांग्रेस का धन्यवाद। कांग्रेस की मृगतृष्णा पूरी नहीं होगी। कांग्रेस अभी भी मृगतृष्णा में जी रही है। कांग्रेस को हर वक्त अविश्वास होता है फिर वो सरकार हो या सर्जिकल स्ट्राइक।

आपको बता दें कि मनोहर लाल खट्टर सरकार के खिलाफ इस अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस कांग्रेस की ओर से तीन कृषि कानूनों के विरोध और किसान आंदोलन के मुद्दे पर दिया गया था। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा का कहना था कि किसान आंदोलन पर राज्य सरकार के रवैये से लोगों ने सरकार में विश्वास खो दिया है।

एक ओर इस अविश्वास प्रस्ताव के लिए तीनों ही पार्टियों ने अपना दम-खम दिखाते हुए अपने-अपने विधायकों को व्हिप जारी करके विधानसभा की कार्यवाही के दौरान उपस्थित रहने का निर्देश दिया था। तो वहीं दूसरी ओर किसान एकता मंच के नेताओं ने भी आम जनता से अपील की थी कि वह अपने क्षेत्र के विधायकों पर दबाव बनाएं कि वह अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट दें।

क्या सरकार के पक्ष में वोट करना जेजेपी के विधायकों की मजबूरी थी?

दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा के दौर से ही माना जा रहा था कि मनोहर लाल सरकार को बचाने का पूरा दारोमदार इस बार जेजेपी पर ही टिका था। इस वक्त जेजेपी अपने दस विधायकों के साथ सरकार का समर्थन कर रही है।

हालांकि जननायक जनता पार्टी खुद को बार-बार किसानों की बड़ी हितैषी भी करार देती रही है। उसे चुनावों में ग्रामीण क्षेत्रों, जोकि किसान बहुल हैं, वहां काफी अच्छा समर्थन भी मिला था। यही वजह थी कि जेजेपी के अंदर कई विधायक सार्वजनिक तौर पर किसानों के आंदोलन का समर्थन भी करते रहे हैं।

शायद इसी राजनीतिक संकट और असमंजस को देखते हुए दुष्यंत चौटाला ने अपने विधायकों को 'तीन लाइन' का व्हिप जारी किया था। इसमें कहा गया था कि सरकार के समर्थन में वोट करना होगा। ये तीन लाइन का व्हिप तब जारी किया जाता है जब पार्टी अपने विधायकों से पार्टी लाइन के मुताबिक़ वोट करने को कहती है। अगर कोई विधायक इस व्हिप का उल्लंघन कर दे तो पार्टी ऐसा करने वाले को अयोग्य ठहरा सकती है।

क्या है हरियाणा विधानसभा में वर्तमान सीटों का गणित?

साल 2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो राज्य में बीजेपी को सबसे ज्यादा 40 सीट मिली थी, वहीं कांग्रेस के खाते में 30 सीटें गई थी। इस चुनाव में जननायक जनता पार्टी ने दस और निर्दलियों ने सात सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं एक सीट पर लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा ने बाजी मारी थी।

आँकड़ों को देखें तो बीजेपी-जेजेपी के लिए ये प्रस्ताव कोई मुश्किल की बात नहीं थी। किसान आंदोलन के समर्थन में अभय सिंह चौटाला के इस्तीफ़े और कांग्रेस के विधायक प्रदीप चौधरी को एक आपराधिक मामले में हुई सज़ा के बाद 90 सीटों वाली विधानसभा में अब 88 विधायक रह गए हैं।

अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में बीजेपी-जेजेपी को 44 वोटों की ज़रूरत थी। इस वक़्त दोनों पार्टियों के पास मिला कर 50 विधायक हैं। इसके अलावा पाँच निर्दलीय विधायक बीजेपी के समर्थन में खड़े हैं। इनमें रनिया से विधायक रंजीत सिंह चौटाला, नीलोखेड़ी के विधायक धर्मपाल गोंडर, पंडरी से विधायक रणधीर सिंह, बादशाहपुर से विधायक राकेश दौलताबाद और पृथला से विधायक नयन पाल रावत शामिल हैं।

केवल दो निर्दलीय विधायक, चरखी-दादरी से सोमबीर सांगवान और मेहम से विधायक बलराम कुंडु सरकार के ख़िलाफ़ किसान आंदोलन पर राय रखते रहे हैं और कांग्रेस के साथ दिखते हैं। इसके अलावा दो जेजेपी विधायक जोगीराम सिहाग और देवेंद्र सिंह बबली किसान आंदोलन को अपना समर्थन दे चुके हैं। हालांकि इनका वोट अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में गया या समर्थन में इसकी कोई जानकारी नहीं है।

अभी कांग्रेस के अविश्वास मत के पक्ष में 32 विधायक हैं, जिनमें 30 ख़ुद कांग्रेस के हैं और दो निर्दलीय विधायक हैं। जबकि पार्टी की तरफ से दिए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर केवल 27 विधायकों ने ही हस्ताक्षर किए थे। जिन विधायकों ने नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं, वह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र्र सिंह हुड्डा के समर्थक माने जाते हैं। हुड्डा पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की फेहरिस्त में भी शामिल हैं।

बीजेपी का फायदा, जेजेपी की मजबूरी

गौरतलब है कि इस विश्वास प्रस्ताव को लेकर बीजेपी कोई ज्यादा चिंतित नहीं थी। जेजेपी के लिए मामला जरूर चुनौतीपूर्ण था लेकिन पार्टी की मजबूरी जगजाहिर थी। खुद कांग्रेस का कहना था कि इस अविश्वास प्रस्ताव का मकसद बीजेपी और जननायक जनता पार्टी को बेनकाब करना है। ऐसे में किसानों के बीच ग्रामीण क्षेत्रों जेजेपी आने वाले दिनों में कमज़ोर दिख सकती है। लेकन राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं है कि कहावत यहां भी लागू होती है। अब अविश्वास प्रस्ताव गिर जाने के बाद अगले 6 महीने तक विपक्ष दोबारा से अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं कर पाएगी लेकिन उसे इसका फायदा आगे आने वाले चुनावों में जरूर मिल सकता है।

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