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पतंजलि के उत्पाद बेचने के लिए रामदेव के फ़र्ज़ी दावों और भाजपा के विज्ञानविरोधी राष्ट्रवाद की कॉकटेल

रामदेव और पतंजलि के लिए, हरेक विवाद कारोबार में मददगार है। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता है कि उनके गलत-सलत प्रचार से लोगों की जानें जा सकती हैं।
रामदेव

मार्केटिंग का पुराना सूत्र है, प्रचार कैसा भी हो, प्रचार अच्छा है। क्या इसीलिए रामदेव ने, अपने आस्था चैनल पर कोविड-19 के पीड़ितों के ऑक्सीजन के लिए तड़पने का मजाक उड़ाने के जरिये, विवाद न्यौता है? क्या इसीलिए, उन्होंने स्टुपिड साइंस या बुद्धिहीन विज्ञान कहकर एलोपैथिक चिकित्सा पर हमला किया है और यह झूठा दावा किया है कि टीके की दोनों खुराक लेने के बाद भी ‘‘10 हजार डॉक्टरों की मौत हो गयी है?’’

रामदेव विवाद इसलिए खड़े करते हैं कि इससे खुद उन्हें और वह जो कुछ भी बेच रहे हैं, उसे मुफ्त का प्रचार मिलता है। हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि रामदेव ‘ब्रांड’ के बल पर ही, उनके पतंजलि उत्पाद बिकते हैं, जिनमें नूडल्स से लेकर आयुर्वेदिक दवाएं तक शामिल हैं। यही है जिसने पतंजलि के कारोबारी साम्राज्य को देश के सबसे बड़े, तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता माल (एफएमसीजी) ग्रुपों में से एक बना दिया है।

रामदेव और पतंजलि के लिए, हरेक विवाद कारोबार में मददगार है। उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता है कि उनके गलत-सलत प्रचार से लोगों की जानें जा सकती हैं। ऐसा हो भी तो भी सरकार ज्यादा से ज्यादा रामदेव को हल्की सी चपत लगा सकती है, जैसा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में किया था। लेकिन, उनकी पीठ पर सरकार का हाथ है और सरकार पतंजलि के कारोबारी साम्राज्य की मददगार है।

रामदेव, बाबागीरी से अपना कारोबारी साम्राज्य खड़ा करने वाले, कोई पहले बाबा नहीं हैं। हमारे देश में धर्म का धंधा जमाने और चलाने वाले दूसरे भी कई बाबा रहे हैं, जिनमें पुट्टपर्थी साईंबाबा से  लेकर श्री श्री रविशंकर तक शामिल हैं। लेकिन, कहां श्री श्री हैं जो अपने कारोबार से 50 करोड़ रुपये सालाना का राजस्व बटोरता है और कहां रामदेव, जिनके पतंजलि ग्रुप के उत्पादों का 25,000 करोड़ रुपये सालाना का कारोबार है। इन आंकड़ों को सामने रखें तो हमें यह समझने में देर नहीं लगेगी कि रामदेव का मुख्य कारोबार, न तो धर्म का कारोबार है और न योग का कारोबार। उनका मुख्य धंधा तो ‘योगगुरु’ की अपनी छवि को सीढ़ी बनाकर, भारत का ताजातरीन अरबपति बनना है।

इस यात्रापथ पर तेजी से आगे बढ़ने में, पहले कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर जमीनें देकर उनकी मदद की थी और बाद में भाजपा ने, जिसने उन्हें और ज्यादा जमीनें तो दी ही हैं, सरकार के आयुष तथा अन्य मंत्रालयों के जरिए उनके विभिन्न कारोबारी उद्यमों की भी भरपूर मदद की। भाजपा की हरियाणा सरकार इस समय भी, जनता को समुचित स्वास्थ्य रक्षा सुविधाएं, दवाएं, टीका आदि मुहैया कराने के बजाय, राज्य की जनता के बीच बांटने के लिए, रामदेव के कोरोनिल किट खरीद रही है।

रामदेव ने अपना कारोबारी साम्राज्य सरकारों के संरक्षण, अपने योग शिविरों में पहुंचने वाले एक प्रकार से बंधुआ श्रोताओं के जरिए मुफ्त विज्ञापन और टीवी पर अपनी ‘प्रस्तुतियों’ के सहारे खड़ा किया है। इसके साथ ही सेलिब्रिटियों द्वारा अनुमोदन (एंडोर्समेंट) और जोड़ लीजिए, जिसका ताजातरीन उदाहरण दिल्ली में कांस्टीट्यूशन क्लब में 19 फरवरी को आयोजित एक कार्यक्रम में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री, नितिन गडकरी का कोरोनिल का अनुमोदन करने के लिए पहुंचना था।

हालांकि, पतंजलि ग्रुप का राजस्व अनेकानेक उत्पादों से आता है, जिनमें रंग गोरा करने की क्रीमों से लेकर नूडल्स तथा वनस्पति तेल तक शामिल हैं, फिर भी उनके कारोबारी साम्राज्य के आयुर्वेदिक घटक की भूमिका खास है। इससे बहुत भारी मुनाफा आता है, जिसके बल पर अन्य उत्पादों को अपेक्षाकृत सस्ते दाम पर बेचा जा सकता है। आयुर्वेदिक उत्पादों की कमाई से इस कंपनी के अन्य उपभोक्ता उत्पादनों को क्रास सब्सीडी दिया जाना ही, उसके वित्तीय साम्राज्य का असली आधार है। इसीलिए, इन उत्पादों को एलोपैथिक दवाओं से श्रेष्ठतर दवाओं के रूप में प्रचारित करना जरूरी है। अपने पूरे कारोबारी कैरियर में रामदेव, अनेकानेक बीमारियों के लिए इलाज के रूप में चमत्कारी दवाओं, जड़ी-बूटियों के उत्पादों के साथ योग को जोडक़र, उपचार के रूप में प्रचारित करते आए हैं। उन्होंने तो ऐसे तरीके बताने का भी विज्ञापन किया था जिनका अनुसरण करने से औरतें शर्तिया गोरे, पुत्रों को जन्म दे सकती हैं। ऐसा ही दावा, आरएसएस की शाखा, अरोग्य भारती, अपने फर्जी गर्भ-संस्कार कार्यक्रम के जरिए, कर दिखाने का करती है।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति तथा चिकित्सकीय ज्ञान के क्षेत्र में हो रही प्रगति पर रामदेव का हमला, सिर्फ उनके अपने उत्पाद बेचने का ही मामला नहीं है। यह अपने आप में खतरनाक है क्योंकि यह लोगों को टीकों के और उन दवाओं के खिलाफ करता है, जो उनकी मदद कर सकती हैं। ‘प्राचीन ज्ञान’ के नाम पर इस अगड़म-बगड़म के प्रचार और भोंडे हिंदू राष्ट्रवाद की दुहाई का योग ही है, जो रामदेव के कारोबारी साम्राज्य को, मिसाल के तौर पर रंग गोरा करने की क्रीम जैसे झूठे उत्पाद बेचने वाले अन्य कारोबारियों से, अलग करता है।

एलोपैथी बनाम होम्योपैथी की संज्ञा को पहले-पहले होम्योपैथी के संस्थापक, हहनेमान (Hahnemann) ने ही गढ़ा था। इसके पीछे विचार यह था कि जहां तब तक चल रही चिकित्सा प्रणाली, किसी भी बीमारी के उपचार के लिए उसके विपरीत या विरोधी--ग्रीक भाषा में एलोस- का उपयोग करती थी, होम्योपैथी, बीमारी या बीमार करने वाले तत्व की ही छोटी सी मात्रा का प्रयोग कर, रोग का उपचार कर सकती है। यह लुई पॉस्तर की जीवाणु थ्योरी से पहले की और चिकित्सा पद्धति की उस मंजिल से पहले की बात है, जहां सभी वर्तमान दवाएं किसी न किसी व्यावहारिक साक्ष्य पर आधारित होती हैं। उनके सिद्धांत--ह्यूमर्स, पित्त--रोग के कारण को समझते ही नहीं हैं। इसलिए आज, जब हम यह जानते हैं कि बीमारी को तथा विभिन्न प्रकार की बीमारियों को क्या चीज पैदा करती है, एलोपैथी तथा होम्योपैथी जैसी संज्ञाओं का प्रयोग करना ही निरर्थक है। इस परिभाषा के हिसाब से तो टीके होम्योपैथी के अंतर्गत आएंगे, जबकि एंटीबॉयोटिक्स, एलोपैथी के अंतर्गत!

जो लोग राष्ट्रवादी दवाओं की बात करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि टीकाकरण के पूर्व-रंग के रूप में वेरियोलेशन का भारत, चीन तथा अरब दुनिया में प्रयोग, टीकाकरण में काउपॉक्स का इस्तेमाल शुरू होने से काफी पहले से हो रहा था। वेरियोलेशन में, अल्प मात्रा में स्मॉल पॉक्स का वायरस, संबंधित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता था, जिससे उसे मामूली सा रोग हो और यह भविष्य में स्मॉल पाक्स के संक्रमण से उसे बचा सके। इसलिए, पश्चिमी एलोपैथिक दवा होने के लिए टीकों को ठुकराने के बजाय, हमें इसकी चर्चा करनी चाहिए कि टीका वास्तव में आ कहां से रहा है? आज लड़ाई इसकी है कि कौन टीका बनाता है। क्या हम भारत में स्थानीय रूप से टीके बनाएंगे या फिर हम कोरोनिल से चिपके रहेंगे और फाइजर, मॉडर्ना तथा एस्ट्राजेनेका को, दुनिया के टीका बाजार पर राज करने देंगे।

रामदेव की तथाकथित राष्ट्रवादी दुहाई का अर्थ यही है कि आधुनिक दवाओं के मलाईदार बाजार को बड़ी बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के हवाले कर दिया जाए और घरेलू दवाओं के बाजार पर वह अपना इजारा कायम कर ले। भारतीयों को चिकित्सकीय ऑक्सीजन की क्या जरूरत है--रामदेव से अनुलोम-विलोम सीखना ही काफी है। कोविड-19 का उपचार चाहिए? पतंजलि के बनाई कुछ जड़ी-बूटियों की गोलियों तथा तेलों के भरोसे रहो, जो उसी तरह से इस रोग से आप का उपचार करेंगे, जैसे अपनी क्रीम से लोगों को गोरा बनाते हैं या गर्भ के बच्चों का सुपर सुंदर, सुपुत्र होना सुनिश्चित करते हैं!

आइए, अब एक नजर कोविड-19 के सिलसिले में, रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बीच उठ खड़े हुए झगड़े पर डाल लेते हैं। एलोपैथिक दवाओं या आधुनिक चिकित्सा पर रामदेव का हमला, उन डाक्टरों तथा स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला है, जिन्होंने बहुत ही कठिन परिस्थितियों में इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और लंबे अर्से से यह लड़ाई लड़ रहे हैं। वे इन स्वास्थ्यकर्मियों और उनकी कुर्बानियों का मजाक उड़ाते हैं। इससे भी बुरा यह कि फेफड़ों के गंभीर से प्रभावित होने के चलते, हांफ-हांफ कर सांस लेने की कोशिश करते मरीजों की वह जिस तरह से नकल उतारते हैं, उसके मरीजों की पीड़ा को महसूस करने में भी असमर्थ होने को ही दिखाता है। अगर लोग वाकई रामदेव की इस बात पर विश्वास करेंगे कि कोविड-19 कोई खतरनाक चीज नहीं है और यह बीमारी तो सिर्फ इसलिए हो रही है कि हम सही तरीके से सांस लेना ही नहीं जानते हैं, तब तो इसके गंभीर रूप से संक्रमित रोगी तो मर ही जाएंगे। उन्हें ऑक्सीजन और अन्य जरूरी दवाओं की मदद हासिल होगी, तभी तो उनके शरीर इस बीमारी का मुकाबला कर पाएंगे। इसीलिए, रामदेव जो कर रहे हैं वह खतरनाक है।

रामदेव का यह कहना कि कोविड-19 तो कोई गंभीर समस्या नहीं है और उसके हर्बल किट से रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के जरिए इसे लोगों को रोग पकड़ने से रोका जा सकता है और रोग हो भी जाए तो उसकी दवा कोरोनिल के उपयोग से तथा ‘सही तरीके से’ सांस लेना सीखने के जरिए, रोगी का उपचार किया जा सकता है; सब अपने उत्पादों की मार्केटिंग का ही हिस्सा है। इसके जरिए वह अपने हर्बल उत्पादों, अपनी टेलीवीजनी योग कक्षाओं तथा योग शिविरों यानी उन सभी चीजों को बेचने में लगे हैं, जिनके बल पर पतंजलि का व्यापारिक साम्राज्य खड़ा हुआ है। और अगर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इससे नाराज होती है और इससे विवाद पैदा होता है, तो रामदेव को और भी प्रचार मिलेगा, जो बहुत भारी मुफ्त विज्ञापन का ही काम करेगा। और जहां तक भक्तों की दुनिया का सवाल है, उनके लिए तो जो कोई भी भारतीयता की दुहाई दे और किसी भी विदेशी चीज को गरिआए, ‘सच्चा’ भारतीय हो जाता है। भले ही उसके दावे कितने ही फर्जी क्यों नहीं हों!

अगर रामदेव के दावे सिर्फ उनके उत्पाद बेचने का ही काम कर रहे होते, तो हम उसे अनदेखा कर देते। लेकिन, दुर्भाग्य से उनके दावे बहुत भारी सहायक-क्षति कर रहे हैं। ये दावे हमारे उन फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल गिराते हैं, जो अपनी जिंदगियां दांव पर लगाकर काम कर रहे हैं और अनेकानेक मामलों में दिन में 15-16 घंटे तक की ड्यूटी कर के, अपने परिवारिक जीवन तक को दांव पर लगा रहे हैं। पतंजलि और रामदेव के विपरीत, वे जिंदगियां बचा रहे हैं और हमारे स्वजनों को रोगमुक्त कर, हमारे बीच वापस ला रहे हैं। केसों की भारी संख्या के बोझ से जब अस्पतालों की व्यवस्था बैठ जाती है, तभी मरने वालों की संख्या बढ़ती है। झूठे दावों और फर्जी तथ्यों से इन स्वास्थ्यकर्मियों की कोशिशों को नीचा दिखाने की कोशिश करना, घोर निंदा के काबिल है। लेकिन, इसकी सजा उनके रामदेव पर राजद्रोह का मुकदमा चलाना नहीं है बल्कि वहां चोट करना है जहां उन्हें सबसे ज्यादा दर्द होगा--उसके उत्पादों के बायकॉट का आह्वान किया जाए।

रामदेव एक और नुकसान यह कर रहे हैं कि वह टीकाविरोधी प्रचार की आग को हवा दे रहे हैं। टीके के सभी ट्रायलों ने यही दिखाया है कि टीके से, गंभीर संक्रमण से बचाव होता है और जिन लोगों को टीका लगा हो, उनके बीच गंभीर संक्रमण के मामले बहुत ही कम हो जाते हैं। इससे, कुल संक्रमणों की संख्या में भी उल्लेखनीय रूप से कमी होती है और इस तरह संक्रमण की शृंखला भी टूटती है। मानी हुई बात है कि कोई भी टीका 100 फीसद सुरक्षा तो नहीं दे सकता है, फिर भी टीका ही है जो हमें झुंड प्रतिरोधकता के करीब तक पहुंचा सकता है।

दोनों टीके लगने के बावजूद डाक्टरों की मौत के सरासर फर्जी आंकड़ों के साथ, टीकाविरोधी विचारों को आगे बढ़ाने के जरिए रामदेव, अपनी विज्ञानविरोधी भक्त मंडली को ही खुश करने में लगे हुए हैं। इस प्रक्रिया में वह भारत के उस छोटे से टीकाविरोधी खेमे की भी मदद कर रहे हैं, जो अपने ज्ञान के लिए व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के ही आसरे है। अगर हमारे देश में यह टीकाविरोधी सम्प्रदाय बढ़ता है, तो इस सम्प्रदाय से हमारे देश को भी वैसी ही चुनौती झेलनी पड़ेगी, जैसी चुनौती अमेरिका को झेलनी पड़ रही है। इसी का नतीजा है कि अमेरिका में मीज़ल्स की बीमारी की वापसी हो रही है और अमेरिकी आबादी का अच्छा-खासा हिस्सा है जो कोविड-19 का टीका लेने से कतरा रहा है। अगर ऐसा होता है तो कोविड-19 को रोग संक्रमण के इक्का-दुक्का छोटे द्वीपों में समेटे जाने की जगह पर, यह बीमारी हमेशा के लिए हमारे गले पड़ जाएगी। वायरस में बराबर म्यूटेशन होते रहेंगे और नये टीकों की जरूरत पैदा होती रहेगी।

हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, हर्षवर्धन ने रामदेव को बड़ी हल्की सी झिडक़ी दी है, रामदेव के पतंजलि साम्राज्य का सबसे बड़ा सहारा तो भाजपा की सरकार ही है। सरकार का आयुष मंत्रालय, ज्यादा से ज्यादा पतंजलि के मार्केटिंग के बाजू का विस्तार बनता जा रहा है। भाजपा सरकार ने पतंजलि को जमीनों की तथा बैंकिंग की मदद समेत, हर तरह की रियायतें दी हैं। जैसाकि हमने पहले भी दर्ज किया है, आत्मनिर्भरता की इस सरकार की कल्पना में, विज्ञान तथा ज्ञान के विकास की कोई जगह ही नहीं है। रामदेव के फर्जी दावों का समर्थन वैसे ही है जैसे तथाकथित गर्भ-संस्कार के लिए और प्राचीन काल में भारत में विमान उड़ने के दावों के लिए, भाजपा का समर्थन। कोविड के दौर में इस तरह का अगड़म-बगड़म विज्ञान, अपने बदतरीन रूप में सामने आ रहा है और पहले से कई गुना ज्यादा खतरनाक हो गया है।     

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

With his Bogus Claims, Ramdev is Pushing Patanjali Products and BJP’s Anti-Science Agenda

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