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गरीबों को आवास चाहिए, न कि पीएम का महल

‘इस परियोजना के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में स्वयं पीएम काम कर रहे हैं, जो एक वास्तु भविष्यवाणी के माध्यम से निर्देशित हो रहे हैं कि एक गोलाकार संसद भवन का अर्थ है कि वे सत्ता में अपनी वापसी नहीं कर सकते क्योंकि मौजूदा भवन के वृत्ताकार का अर्थ शून्य है।’
गरीबों को आवास चाहिए, न कि पीएम का महल
चित्र साभार: ट्विटर

“भारत को अस्पतालों की जरूरत है, न कि सेंट्रल विस्टा की, (इसे) गरीबों के लिए और घरों की जरूरत है न कि पीएम के लिए महल की।” ये वे कठोर शब्द थे जो शनिवार को नई दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में एक जन सभा में गुंजायमान हुए थे।

इस बैठक का आह्वान मुंबई की एक ‘सेंट्रल विस्टा विरोधी भारत’ नामक समूह द्वारा किया गया था। इसमें विभिन्न धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और ऐसे तमाम लोग शामिल हैं जो विभिन्न माध्यमों से आम लोगों के मुद्दों की पैरवी करते हैं।

इस बैठक से अभियान के दिल्ली अध्याय का शुभारंभ किया गया और यह फैसला लिया गया कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के अध्यायों को स्थापित किया जायेगा। इन अध्यायों के जरिये यह संदेश प्रसारित किया जायेगा कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कोविड-19 महामारी से होने वाले नुकसान को कम करने के बजाय सेंट्रल विस्टा जैसी फालतू परियोजनाओं में कहीं अधिक रूचि ले रही है। 

यह भी फैसला लिया गया कि 9 अगस्त को मुंबई में अगस्त क्रांति मैदान में बड़े पैमाने पर लोगों का जमावड़ा किया जाएगा – जहाँ से महात्मा गाँधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान दिया गया था। उसी दिन इसी प्रकार के प्रदर्शनों को देश के दूसरे हिस्सों में भी आयोजित किये जाने की उम्मीद है।

बैठक की शुरुआत एनसीपी की राज्यसभा सांसद वंदना चव्हाण द्वारा की गई, जिन्होंने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि देश भर में लोग इस “फालतू के खर्च” से आहत महसूस कर रहे हैं, दिल्ली में सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास का कार्य अबाध गति से जारी है। उनका आगे कहना था कि 19 जुलाई से संसद के आगामी मानसून सत्र के साथ, अन्य सांसदों के लिए भी उनकी चिंताओं को उठाने के लिए एक उपयुक्त दिन तय किया जायेगा।

इसकी स्थापना के समय, अन्या मल्होत्रा एवं सोहेल हाशमी ने जिन्होंने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें महामारी को देखते हुए आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धाराओं को लागू कर श्रमिकों की सुरक्षा को सुनश्चित करने के लिए अदालत से हस्तक्षेप किये जाने की मांग की गई थी। याचिका दायर करने के लिए अदालत द्वारा उनपर जुर्माना लगा दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि कैसे उनकी याचिका उन श्रमिकों की जिंदगियों की रक्षा करने के लिए थी जो कोरोनावायरस की दूसरी घातक लहर के दौरान “बंधुआ मजदूर के समान काम करने के लिए मजबूर कर दिए गए थे।”

सोहेल ने बताया कि योजना के मुताबिक यह “अस्पष्ट” बना हुआ था कि किस प्रकार से राष्ट्रीय संग्रहालय की कलाकृतियों को- जिनमें से कुछ तो 5,000 साल पुरानी हैं, को नार्थ और साउथ ब्लॉक्स में संग्रहित और प्रदर्शित किया जाने वाला है। उनका कहना था “या क्या वे इसे नष्ट करना चाहते हैं? ये सभी चीजें हमारी धरोहर हैं और हमारी उस विविध सभ्यता के बारे में बताती हैं जो हमें विरासत में हासिल हुई हैं।” उन्होंने बताया कि इस बात की आशंका बनी हुई है कि इस पक्रिया में संग्रहालय और अभिलेखागार में मौजूद सभी सामग्रियों को क्षतिग्रस्त होने दिया जाए, इसे सुनिश्चित करने के लिए “सघन प्रयास” किये जा रहे हैं।

एक पूर्व लेख में, इस लेखक ने इस परियोजना के पीछे की वजहों के बारे में कुछ तथ्य रखे थे: “इस कदम को उठाने के लिए प्रमुख कारणों में से एक मुख्य वजह, जिसका सरकार खुलकर उच्चारण नहीं करना चाहती है, लेकिन पूरी तरह से आश्वस्त है, कि मौजूदा संसद भवन शापित है, और इस वजह से तमाम प्रधानमंत्री एवं अन्य नेता लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते। इसलिए, एक नया भवन जो कि गोलाकार की बजाय त्रिकोणीय आकार का हो, को निर्मित किया जाना चाहिए।”

इस परियोजना के पीछे की प्रेरक शक्ति प्रधानमंत्री स्वंय हैं, जो एक वास्तु भविष्यवाणी से निर्देशित हो रहे हैं कि एक गोलाकार संसद भवन का अर्थ है कि वे दोबारा से सत्ता में लौटकर नहीं आ सकते, क्योंकि मौजूदा भवन के वृत्ताकार का अर्थ ही शून्य है। यह परियोजना आम लोगों की जगह को भी हड़पने जा रही है और बड़े पैमाने पर 16.5 लाख वर्ग मीटर भूमि क्षेत्र पर इसका निर्माण किया जाना है। इस परियोजना के पीछे एक पूर्व वैचारिकी भी है और यह है कि सरकार एक ऐसे ढांचे का निर्माण कराना चाहती है जहाँ यह आम लोगों से एक दूरी बनाकर रह सके, जिससे कि उसकी शक्ति का प्रदर्शन हो सके।

जवाहरलाल नेहरु और इंदिरा गाँधी से जुडी कोई भी चीज  इस सरकार की आँखों में खटकती रहती है, जो इसे बर्बाद होते देखना चाहती है। यही वजह है कि जवाहर लाल भवन, जिसमें विदेश मंत्रालय स्थित है, जिसे 2010 में ही 220 करोड़ रूपये से अधिक की लागत से निर्मित किया गया था, उसे भी जमींदोज किया जा रहा है।

पूर्व सीपीआई(एम) सांसद नीलोत्पल बासु ने कहा कि यह “आम लोगों की लड़ाई” है और उन्हें अपनी जगह को फिर से हासिल करने के लिए आगे आना होगा। उन्होंने आगे कहा कि सरकार बेमतलब की चीजो पर पैसे की बर्बादी करने में व्यस्त है, जबकि लोग बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं।

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. अशोक धवले ने इस बात की ओर इंगित किया कि भले ही इस आंदोलन की शुरुआत मुंबई से शुरू हुई हो, लेकिन सोशल मीडिया एवं अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हुए इसे देश के विभिन्न हिस्सों तक फैलाए जाने की सख्त आवश्यकता है, ताकि “इस सरकार को उसके पाखण्ड के लिए बेनकाब किया जा सके।” उनका कहना था कि 19 जुलाई के बाद जब संसद का सत्र आरंभ हो जाये तो जंतर मंतर पर एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन को आयोजित किया जाना चाहिए, और 9 अगस्त को देश भर से इस परियोजना को रद्द किये जाने की मांग उठाई जाए।   

राज्य सभा सांसद फौज़िया खान का कहना था कि यह प्रोजेक्ट सरकार की वृहत्तर विफलता से सम्बद्ध है। “लूट, झूठ और फूट की सरकार नहीं चलेगी।” उनके अनुसार भारत जिन मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध है यह परियोजना उसके विरुद्ध है।

गुजरात से कांग्रेस के नेता हार्दिक पटेल ने कहा कि प्रदेश के लोग पीएम मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ से पूरी तरह से वाकिफ हैं, जो “झूठ पर आधारित है, जो कॉर्पोरेट की खुशामद करने और लोगों के बीच में दरार पैदा करके खुद को ताकतवर बनाता है।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वे इस आंदोलन के गुजरात अध्याय की शुरुआत करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को पीएम मोदी की “चालबाजियों” से आगाह किये जाने की आवश्यकता है, जिसमें नए संसद भवन के निर्माण के साथ अगले आम चुनावों से पहले ही देश में परिसीमन की कवायद को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। उनका कहना था कि “असल में इसके माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण की तुलना में उत्तर में सीटों की संख्या को बढ़ाना चाहते हैं, और विशेषकर हिंदी भाषी राज्यों में। इसके जरिये मोदी उत्तर और दक्षिण के बीच में खाई पैदा करना चाहते हैं।”

सपा विधायक और मुंबई से इस अभियान के पीछे के लोगों में से एक मुख्य हस्ती अबु असीम आज़मी का इस विषय पर कहना था कि उनकी पार्टी इस अभियान को यूपी के विभिन्न हिस्सों में आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करेगी।

एआईएडब्ल्यूयू (अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ) के उपाध्यक्ष सुनीत चोपड़ा ने हिटलर के उदय के दौरान जर्मनी में विकास और भारत में संघ के मौजूदा उदय के बीच में एक तुलनात्मक खाका खींचा। उन्होंने बताया कि हिटलर खुद को इस रूप में प्रोजेक्ट किया था कि वह “राष्ट्र के लिए” अभियान चला रहा था और भारत में भी यही सब हो रहा है, जहाँ “वर्तमान शासन, उन लोगों के बीच में जो इस फैसले के समर्थन में हैं उन्हें ‘राष्ट्रवादी’ और जो इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें ‘राष्ट्रवाद-विरोधी’ के तौर पर द्विआधारी छवि को खड़ा कर रहा है।”

इस अभियान से जुड़े एक अन्य व्यक्ति, महाराष्ट्र के पूर्व एमएलसी विद्या चव्हाण ने इस बात की रूपरेखा पेश की कि यह अभियान की शुरुआत कैसे हुई और “मोदी शासन की जनविरोधी प्रकृति को पूरी तरह से बेनकाब करने के लिए” एक राष्ट्रव्यापी अभियान की जरूरत पर बल दिया।

अन्य प्रमुख वक्ताओं में आप पार्टी के विधायक विनय मिश्रा, एनएपीएम के नेता सुनीलम, लोक संघर्ष मोर्चा की नेता प्रतिभा शिंदे, ऐडवा की महासचिव मरियम धवले, एसएफआई संयुक्त सचिव दिनीत धिंता, डीवाईऍफ़आई दिल्ली की राज्य कोषाध्यक्ष अनुषा, हाल ही में यूएपीए हिरासत से रिहा हुए आसिफ इक़बाल तन्हा, डीएसएमएम महाराष्ट्र के संयोजक शैलेन्द्र कांबले, गुरमीत सिंह और अन्य शामिल थे।

निम्नलिखित प्रस्तावों के साथ बैठक संपन्न हुई।

1. दिल्ली और विभिन्न राज्यों में सेंट्रल विस्टा विरोधी भारत अध्याय को स्थापित करना।
2. संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह एक निश्चित तारीख पर विरोध प्रदर्शन करना, जिसे जल्द ही अंतिम रूप दिया जायेगा।
3. एक जन अभियान की शुरुआत करना जिससे कि इस सरकार के “सरासर झूठ” का पर्दाफाश किया जा सके।
4. 9 अगस्त को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के जरिये सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रद्द किये जाने की मांग को शामिल करना शामिल है।

लेखक शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

'Houses for Poor, Not Mansion for PM': Public Meeting against Central Vista Redevelopment Project

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