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सेंट्रल विस्टा में लगे पैसे से खोले जा सकते हैं 16 एम्स या 1.2 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र

भारत अब भी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, हम पर तीसरी लहर का ख़तरा बना हुआ है, लेकिन सरकार अब भी सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास कार्ययोजना में संसाधन लगा रही है। कहा जा रहा है कि यह संसाधन 2026 में संसद के संभावित विस्तार को नज़र में रखते हुए किए जा रहे हैं! लेकिन इसी पैसे का इस्तेमाल सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने पर किया जा सकता था।
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विशेषज्ञों और नागरिकों ने कोरोना महामारी के बीच भी केंद्र सरकार द्वारा सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास कार्ययोजना को आगे बढ़ाए जाने की आलोचना की है। सवाल उठ रहा है कि कि ऐसे दौर में जब जिंदगियां और आजीविका बचाने का ज़्यादा अहम काम हमारा ध्यान मांग रहा है, तब एक पुनर्विकास योजना पर 20,000 करोड़ रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैं?

एक दूसरी बात यह भी है कि इस कार्ययोजना में कई सारी खामियां बताई गई हैं, जहां जरूरी अनुमतियों को हासिल करने के क्रम में कानूनों के साथ छेड़छाड़ की गई है। लेकिन इस कार्ययोजना पर महामारी के दौरान भी काम नहीं रोका गया। 

प्रतिक्रिया में आवास और शहरी आवास मंत्रालय ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर जारी 'मिथकों' को ख़ारिज करने के लिए एक वक्तव्य जारी किया। एक गैरजरूरी काम पर इतनी बड़ी मात्रा में पैसे लगाने पर सरकार सिर्फ़ इतना कह पाई कि 20,000 करोड़ रुपये जैसी बड़ी रकम कई सालों में लगाई जाएगी। 

वक्तव्य में आगे कहा गया, "अगर संसद में सदस्यों की संख्या पर लगा 2016 तक का प्रबंध उठ जाता है, तो इस स्थिति में जरूरी हो जाता है कि सदन में बड़ी संख्या के लिए सुविधाएं उपलब्ध हो पाएं।"

हम यह आशा करते हैं कि काश इतनी चिंता सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने के लिए की गई होती, तो भारत को महामारी से लड़ने के क्रम में इतना कुछ नहीं सहना पड़ता। 

चलिए हम यह कोशिश करते हैं कि इस कार्ययोजना में लगाए जाने वाले संसाधनों का क्या-क्या दूसरा उपयोग हो सकता था।

नए AIIMS का निर्माण किया जा सकता था

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) की शुरुआत 2003 में हुई थी। इसके तहत एम्स की तरह के संस्थानों को स्थापित करना था, जिनका उद्देश्य किफ़ायती स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूद क्षेत्रीय असमानता को संतुलित करना था। इसके तहत 8 चरणों में 22 नए एम्स बनाने की घोषणा की गई।

लेकिन अब तक सिर्फ़ पहले चरण में घोषित किए गए सिर्फ़ 6 एम्स ही पूरी तरह सुचारू हो पाए हैं। 2009 से 2020 के बीच दूसरे चरणों में जिन एम्स की घोषणा हुई थी, वे अलग-अलग स्तर पर आंशिक तौर पर ही सुचारू हुए हैं। जैसे- रायबरेली का एम्स, जिसे कैबिनेट ने 2009 में बनाए जाने की अनुमति दे दी थी, वह अब तक 92 फ़ीसदी पूरा हो पाया है। 2016 में एम्स गोरखपुर को बनाए जाने की अनुमति दी गई थी। इसे अप्रैल 2020 तक पूरा होना था। लेकिन अब भी इसका 76 फ़ीसदी काम ही हुआ है। ज़्यादातर प्रस्तावित एम्स अपनी निर्माण समयसीमा पूरी कर चुके हैं।

अगर हम हाल में घोषित एम्स दरभंगा की अनुमानित कीमत लगाएं, तो यह 1,264 करोड़ रुपये है। इस एम्स को 2020 में कैबिनेट से मंजूरी मिली थी। इसे 2024 तक पूरा होना था। अगर सेंट्रल विस्टा के लिए आवंटित किए गए धन (20,000 करोड़ रुपये) को इस तरह की योजनाओं में लगाया जाता, तो अगले 3 से 4 साल में ऐसे 16 एम्स कैंपस बन सकते थे। एम्स दरभंगा में रोजाना 2000 OPD मरीज़ों और हर महीने 1000 IPD मरीज़ों के उपचार की व्यवस्था होगी।

अगर हम एक एम्स में आने वाली लोगों की यही संख्या मानें और मानें कि एक कैंपस साल में 250 दिन चालू रहता है, तो सेंट्रल विस्टा पर ख़र्च होने वाली कीमत में 16 एम्स लगभग मिलाकर एक साल में 80 लाख लोगों को उपचार मुहैया करा सकते हैं। 

उपकेंद्रों को स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में बदलना

केंद्र की प्रतिनिधि योजना आयुष्मान भारत में एक अहम तत्व स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (HWCs) की स्थापना है। योजना का लक्ष्य समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध कराने के लिए 1,50,000 HWCs की स्थापना करना है। यह केंद्र हर जगह स्थापित किए जाएंगे और पूरी तरह मुफ़्त होंगे। इनका उद्देश्य समुदाय के कल्याण और उन्हें ज़्यादा तरह की सेवाएं उपलब्ध कराने पर रहेगा। इन विस्तारित सेवाओं में HWCs सिर्फ़ मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं के परे जाते हैं। इसमें गैर-संचारी बीमारियां, उपशामिक और पुनर्वासित सेवा, मौखिक, नेत्र और ENT सेवा, मानसिक स्वास्थ्य और सदमे के चलेत उभरने वाली जटिलताओं को ठीक करने के लिए प्राथमिक सेवा के साथ जरूरी दवाइयां और जांच सेवा उपलब्ध करने का लक्ष्य है। 

इस साल मई में हुए एक हालिया अध्ययन के मूल्य अनुमान से पता चलता है कि एक स्वास्थ्य उपकेंद्र को HWC बनाने के लिए पहले साल में अनुमानित तौर पर 17।8 लाख रुपये का ख़र्च आएगा। फिर आने वाले सालों में HWC में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की कीमत 10 लाख रुपये होगी। चूंकि यह योजना केंद्र प्रायोजित है, तो राज्य और केंद्र के बीच ख़र्च में 60:40 का बंटवारा होगा। एक उपकेंद्र को अपग्रेड करने और अगले एक साल तक इसके संचालन की कुल कीमत अगर हम 28 लाख रुपये मानें, तो केंद्र की एक उपकेंद्र में होने वाले निवेश की हिस्सेदारी 16,80,000 रुपये बैठती है।

अगर हम इस कीमत को दिमाग में रखें, तो सेंट्रल विस्टा के लिए लगाए गए 20,000 करोड़ रुपयों में 1.2 लाख उपकेंद्रों को सुचारू बनाया जा सकता था। (इस दौरान हम राज्य की हिस्सेदारी उपलब्ध होने को सुनिश्चित मान रहे हैं।)

नियमों के हिसाब से मैदानी इलाकों में हर 5000 लोगों पर और पहाड़ी/जनजातीय/मरुस्थलीय इलाकों में हर 3000 लोगों पर एक स्वास्थ्य उपकेंद्र होना चाहिए। अगर हम मान लें कि एक उपकेंद्र में कुल रोजाना 50 लोग आते होंगे और साल में यह केंद्र 250 दिन चालू रहते होंगे, तो इसका मतलब हुआ कि सेंट्रल विस्टा में ख़र्च किए जा रहे संसाधनों में सालाना करीब़ 150 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सुविधा दी जा सकती थी। 

एक वृहद तस्वीर में सोचें, तो सेंट्रल विस्टा में लगाए जा रहे संसाधनों का जिस तरीके से वैक्लपिक उपयोग किया जा सकता था, वैसे में हमें प्राथमिकताएं चुनने में दिक्कत नहीं होती। एक तरफ लोगों की ज़िंदगियां बचाना है और स्वास्थ्य सुविधाओं का उनका बुनियादी अधिकार सुनिश्चित करना है, तो दूसरी तरफ एक ऐसी सरकार का पागलपन है, जो इस महामारी में जिंदगियां बचाने और लोगों को उनका अधिकार उपलब्ध कराने में नाकाम रही है। पहली दो लहरों के विकट अनुभव को देखते हुए सरकार को 2026 में संसद में संभावित तौर पर बढ़ने वाली संख्या के बारे में योजना बनाने के बजाए, आगे आने वाली लहरों या महामारियों के लिए तैयारी करनी चाहिए थी।

फिलहाल देश में नए कोरोना वैरिएंट के साथ तीसरी लहर का डर छाया हुआ है। समय की जरूरत है कि अब सारे संसाधनों और ऊर्जा को तीसरी लहर से पहले की तैयारियों में लगाया जाए, ताकि हम इस बार बिना तैयारी के चपेट में ना पाएं। अंतिम संस्कार का इंतज़ार करते शव, नदियों में बहती लाशें और अस्पतालों के दरवाजों पर ऑक्सीजन के लिए तरसते लोगों की तस्वीरें अब भी हमारे दिमाग में ताजा हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

16 AIIMS or 1.2 Lakh Health & Wellness Centres Can Come up from Central Vista Funds

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