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अमेरिका में वैक्सीन को लेकर जो ऊहापोह है,उसका इलाज आख़िर कैसे हो ?

महामारी तब तक ख़त्म नहीं होगी,जब तक कि हम अपने भीतर वैज्ञानिक इलाज को लेकर बैठे डर और नफ़रत को दूर नहीं कर लेते हैं और "हर्ड इम्युनिटी" को हासिल नहीं कर लेते हैं,लेकिन ऐसा बड़े पैमाने पर टीकाकरण के ज़रिये ही मुमकिन है,हाथ पर हाथ धरे रहने से नहीं होगा।।
कोरोना वायरस

हमें बताया जा रहा है कि इंतज़ार की घड़ियां जल्द ही ख़त्म होने वाली हैं। कोविड-19 के अनुमोदन और इसके व्यापक वितरण को लेकर बनाये जा रहे सुरक्षित और प्रभावी टीकों के रूप में समाधान मिल गया है। हर दवा कंपनी ने अपने हालिया कामयाब नैदानिक परीक्षण को लेकर जो प्रेस रिलीज जारी किया है,उसकी प्रतिक्रिया में शेयर बाज़ार में उछाल आ गया है। अमेरिका के लोग हमारे इतिहास के इस दर्दनाक अध्याय के ख़त्म होने और 2020 में इसके एक नये पृष्ठ के पलटने की उम्मीद कर रहे हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका प्रति व्यक्ति संक्रमण के हिसाब से दुनिया में अव्वल रहा है और यहां के लोग सुरक्षा से जुड़ी सावधानियों को लेकर गहरे संशय में रहे हैं,इस वजह से यहां सबसे ज़्यादा मौतें भी हुई हैं, क्या मास्क पहनने से इन्कार करने वाले उन्हीं लोगों से हम इस बात की उम्मीद नहीं कर रहे कि वे एक नये ब्रांड की वैक्सीन के एक नहीं,बल्कि दो-दो खुराक़ भी लेंगे। मुमकिन है कि हमारे पास भी जल्द ही सुरक्षित और प्रभावी टीके हों,लेकिन हमारे देश के ख़राब हो चुके मौजूदा राजनीतिक माहौल के एक बेरहम विडंबनापूर्ण मोड़ से गुज़र रहा समाज शायद ख़ुद को बचाने से इनकार कर दे।

अमेरिकी आबादी के कई अहम तबके में टीके को संदेह की नज़रों से देखे जाने की वजह अलग-अलग हैं। कोविड 19 के वैक्सीन को लेकर अश्वेत और सांवले समुदायों के बीच उनके मन के भीतर गहरे तौर पर जो अविश्वास बैठा हुआ है, वह सरकार की तरफ़ से अनुमोदित चिकित्सा दुरुपयोग की वजह से है और यह न्यायसंगत अविश्वास हाल में हुए चुनावों में भी परिलक्षित हुआ है। अमेरिका के वामपंथी को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य से मुनाफ़ा कमाने वाली बड़ी दवा कंपनियों के भीतर का अविश्वास भी वाजिब ही है,क्योंकि वामपंथी उन निजी निगमों के इरादों की आलोचना करते रहे हैं,जिनके पास करदाताओं के लगे हुए पैसों के ढेर हैं।

उदार कुलीनों के बीच "साफ़ खाना",”अच्छे स्वास्थ्य" की बढ़ती लोकप्रियता और महंगे आहार और सख़्त व्यायाम के ज़रिये स्वास्थ्य को लेकर उनकी निजी ज़िम्मेदारी ने एक ऐसे ख़तरनाक चलन का बीज बो दिया है,जो स्वस्थ रहने और स्वास्थ्य के उपाय के तौर पर शुचिता की चाल चलती है। इस चलन के एक हिस्से में रासायनिक उपचारों के ऊपर प्राकृतिक उपचारों की अहमियत देना शामिल हैं। हैरत की बात तो यह है कि इन उपचारों में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी शामिल हैं। इस चलन ने इस विचार को भी हवा मिली है कि टीके सहित इन दवाओं का इस्तेमाल हमारे शरीर के लिए इस हद तक "खत़रनाक" है कि ये शरीर को प्रदूषित कर देते है।

एंड्रयू वेकफ़ील्ड जैसे नीम हक़ीम, जेनी मैकार्थी जैसी मशहूर हस्तियों और रॉबर्ट केनेडी जूनियर जैसे राजनीतिक हस्तियों की वजह से वैक्सीन की सुरक्षा की विश्वसनीयता को लेकर गंभीर नुकसान पहुंचा है। महामारी से पहले सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच सबसे बड़ी आशंकाओं में से एक था-टीकाकरण की दर में आयी गिरावट  के चलते ख़सरे के मामले में फिर से होने वाली ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी।

जहां तक दक्षिणपंथियों का सवाल है,तो वहां भी उसी तरह का एक अविश्वास है,टीके को लेकर इसके कार्यकर्ता विरोधी के तौर पर सामने आये हैं और रूढ़ीवादी अदालतें भी इसके सहयोगियों के तौर पर एक अप्रत्याशित गठबंधन बनाते हैं। रिपब्लिकन सीनेटर,रॉन जॉनसन इस सिलसिले में हाल ही में एक सीनेट समिति के सामने सुबूत देने को लेकर एक टीका-विरोधी डॉक्टर को आमंत्रित करने की हद तक चले गये।

यह भी प्रचलित धारणा है कि "हर्ड इम्युनिटी"- जो कि सुरक्षा की पहल की व्याख्या करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक ऐसा शब्द है,जो तभी हासिल होती है,जब बीमारी की ज़द में ज़्यादतर लोग आ जाते हैं, और इस महारमारी से सुरक्षा भी तभी मिलेगी,जब टीके को पर्याप्त लोग ल सकेंगे। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस हल्के विचार की ज़ोरदार वक़ालत करने वालों में से एक रहे हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए कम से कम दो तिहाई आबादी को टीका लगाया जाना ज़रूरी है। अगस्त में आधी से कम आबादी वैक्सीन लेने के लिए तैयार थी,जो आम तौर पर टीकों को लेकर व्यापक अविश्वास को देखते हुए एक अविश्वसनीय संख्या थी। डेमोक्रेट्स के मुक़ाबले रिपब्लिकन ज़्यादा उलझन में हैं और ट्रंप को रिपब्लिकन पार्टी के ज़्यादातर मतदाताओं के समर्थन को देखते हुए यह अचरज भरी बात भी नहीं है,क्योंकि ट्रंप एक ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं,जिनका आधार लगातार बोलते झूठ और विज्ञान को लेकर निरंतर जताते संदेह रहा है। एक देश इतनी ग़लत-सलत सूचनाओं का शिकार है कि चार साल तक सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए इस देश के सामने इसी ऊहापोह वाले विचार को उभारा गया है।

कुछ लोग के डर इस अविश्वास से पैदा हुए हैं कि इतने कम समय में एक प्रभावी टीका आख़िर कैसे तैयार किया जा सकता है। दरअसल, प्रभावी टीकों के विकास में पिछले प्रयासों में कई साल लगे हैं। उस लिहाज़ से संघीय सरकार की वैक्सीन बनाने की परियोजना के "ऑपरेशन तेज़ रफ़्तार" ने भय को जन्म दिया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ के अध्यक्ष,डॉ एंथोनी फ़ॉसी का कहना है, "लोग इसे नहीं समझ पाते,क्योंकि जब वे 'ऑपरेशन तेज़ रफ़्तार' जैसे टर्म जैसे ही उनके कानों में जाता है, तो वे सोचने लगते हैं कि 'हे भगवान, तमाम चरणों को धता बताकर वे हमें जोखिम में डालने जा रहे हैं।'' लेकिन,सही में दशकों के अहम चिकित्सा अनुसंधान ने इसी बुनियाद पर फाइज़र और मॉडर्न जैसी कंपनियों ने mRNA प्रकार के टीके विकसित किये हैं, इस प्रकार,नैदानिक परीक्षणों वैज्ञानिकों की अपेक्षाओं को बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया है। फ़ॉसी ने बताया, “यह रफ़्तार उन कार्य-वर्षों को प्रतिबिंबित करती है,जो पहले से ही जारी रही है।”

टीकाकरण कार्यक्रम की राह में एक और बड़ी रुकावट है। हम स्वतंत्रतावादी आदर्शों से ओतप्रोत वाले देश में रहते हैं। सामान्य हितों की रक्षा के लिए सामूहिक कार्रवाई की अवधारणा "व्यक्तिगत स्वतंत्रता" के एकदम विपरीत है और उपन्यासकार आयन रैंड प्रेरित धारणा यह है कि हर अमेरिकी अपने-अपने ख़ुशी और हित को लेकर पूरी तरह ख़ुद ज़िम्मेदार है। यही विचार हमारे स्वास्थ्य सेवा प्रणाली या इसके अभाव में होने का आधार बनाता है।

कोरोनोवायरस महामारी ने संयुक्त राज्य अमेरिका को उस समय क़रारी चोट की है,जब हमारे पास कहने के लिए भी सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली नहीं है। अमेरिका के लोगों के लिए अमेरिकी सरकार का संदेश सही मायने में यही है कि जब तक आप ग़रीबी रेखा से नीचे नहीं आते हैं, विकलांग नहीं हो जाते हैं, या 65 वर्ष की उम्र पार नहीं कर जाते हैं, तबतक आप  अपने दम पर ही स्वास्थ्य बीमा और स्वास्थ्य सेवा पा सकते हैं। नोवल कोरोनोवायरस जैसे ही एक बार अमेरिकी परिदृश्य में सामने आया थी, वैसे ही इस असंतोषजनक, अव्यवस्थित, लाभ-आधारित और स्पष्ट रूप से क्रूर प्रणाली की खामियां उजागर होनी शुरू हो गयी थीं, इस तरह के हालत कभी हाल के सालों में रहे भी हैं,ऐसा तो नज़र नहीं आता है।

जिस समय बढ़ती तादाद में कोविड-19 से ग्रस्त लोग इलाज के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत है,ठीक उसी समय उसी दोषर्ण प्रणाली के ज़रिये अविश्वास जताती जनता के लिए सामूहिक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने की उम्मीद है।

सही मायने में हर्ड इम्युनिटी तभी हासिल हो सकती है,जब बहुत बड़ी आबादी को टीका लगायी गयी हो,ताकि आबादी के संवेदनशील हिस्से (शिशु, टीका एलर्जी वाले वयस्कों और बुज़ुर्गों) को सुरक्षित रखा जा सके। टीके महज़ उन लोगों को ही सुरक्षित नहीं करते,जो उन टीकों को लेते हैं,बल्कि ये टीके पूरे समाज को भी सामूहिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। जिस आबादी को अपने स्वास्थ्य को लेकर निजी तौर पर सोचने का आदी बनाया गया हो, उस आबादी के लिए इस तरह के विचार को पचा पाना मुश्किल है। हमारे आस-पास मौजूद उन लोगों के बारे में ज़रा सोचें,जो मास्क इस्तेमाल नहीं करने पर अड़े होते हैं।

बतौर पत्रकार,हर बार जब मैं अपने प्रसारण कार्यक्रम में टीके को लेकर फ़ैले अविश्वास को दूर करने की कोशिश करती हूं,तो मुझे ऐसे मेल लिखे जाते हैं,जिसमें हद दर्जे की नफ़रत होती है और जिसमें दावा किया जाता है कि मैं "बड़ी दवा कंपनियों" को फ़ायदा पहुंचाने के लिए काम करती हूं या फिर इसके पीछे की जो सचाई है,उसे नहीं देख पाने वाली कोई मूर्ख हूं।

लेकिन,हम इस मुद्दे पर ग़लत सूचना नहीं जाने देंगे, भय पैदा नहीं होने देंगे और इस तरह की रिपोर्टिंग को व्यक्तिवादी सोच की वजह से हतोत्साहित नहीं होने दे सकते। कुछ मायनों में तो टीके अपनी ही कामयाबी का शिकार हो गये हैं। चूंकि हम एक ऐसी दुनिया में (इस वर्ष तक) रह रहे हैं,जो बड़े पैमाने पर टीकाकरण के ज़रिये अपेक्षाकृत रोके जा सकने वाले चेचक और रूबेला जैसे भयानक रोगों से मुक्त रहे हैं, मगर तब भी कई अमेरिकी टीकाकरण के प्रयासों के ज़रिये जीवन की गुणवत्ता को संभव बनाये जाने को लेकर संदेह जता रहे हैं।

यह अच्छी बात है कि नये चुनावों में कोविड-19 के संक्रमणों और इससे होने वाली मौतों की विशाल दर के बीच टीकाकरण के बढ़ते समर्थन को देखा गया है। एक नये सर्वेक्षण के मुताबिक़ 63 प्रतिशत अमेरिकी अब टीकाकरण के लिए तैयार हैं,यह वह न्यूनतम संख्या के आस पास की तादाद है,जो इस महामारी के प्रसार को रोक सकती है। उन अश्वेत और लातीनी समुदायों के बीच टीकाकरण की स्वीकार्यता को लेकर प्रयास किये जा रहे हैं,जो इस बीमारी के लिहाज़ से सबसे कठिन दौर से गुज़र रहे हैं।

दुर्भाग्य से, हमारे बीच मौजूद वैक्सीन से इन्कार करने वाले लोग शायद बड़े पैमाने पर टीकाकरण कराने वाले समुदाय के बीच रहने से लाभान्वित होते रहेंगे।लेकिन ये लोग हर्ड इम्युनिटी तो बेतरह चाहते हैं,मगर इसमें योगदान देने से इनकार करते हैं।

सोनाली कोल्हटकर टेलीविजन और रेडियो शो,“राइज़िंग अप विद सोनाली” की संस्थापक,मेज़बान और कार्यकारी निर्माता हैं, यह शो फ़्री स्पीच टीवी और पैसिफ़िक स्टेशनों पर प्रसारित होता है।

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूशन की एक परियोजना,इकोनॉमी फ़ॉर ऑल की तरफ़ से प्रस्तुत किया गया था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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