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इबोला,सार्वजनिक स्वास्थ सुविधा और खोखली पूंजीवादी व्यवस्था

8 अगस्त को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पश्चिमी अफ्रीका में इबोला महामारी के चलते इसे  ‘सार्जनिक स्वास्थ्य विषय को अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय' घोषित कर दिया। यह घोषणा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पश्चिम अफ्रीका के गुइनेया में  इबोला महामारी फैलने की सूचना देने के करीब चार महीने बाद आई। शौधकर्ताओ ने इस महामारी की पहचान 6 वर्षीय मृतक बच्चे से की जो 6 दिसम्बर 2013 को इस बिमारी के कारण मौत का शिकार हो गया था।यह माहमारी जो गुइनेआ में पैदा हुई थी, से चलकर तीन पड़ोसी मुल्कों – लाइबेरिया, सिएरा लियॉन और नाईजिरिया में फ़ैल गयी – और इन देशों में इस बिमारी से अबतक 2,240 लोग ग्रसित हो चुके हैं और 1,229 लोग मारे जा चुके हैं। ज्यादातर सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सहमत है कि आधिकारिक आंकड़ें वास्तिविक आंकड़ों से बेहद कम हैं और इस बिमारी द्वारा पहुंची क्षति के मुकाबले निम्न  है।  

जबकि गुइनेआ की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था का बड़ा हिस्सा अविकसित है, लिबेरिया और सिएरा लियॉन की स्वास्थ्य व्यवस्था तो लगभग ढह सी गयी है जिससे पूरी दुनिया में खलबली सी मच गयी है। जर्मनी में, एक 30 साल की महिला जोकि 8 दिन पहले ही नाईजीरिया से लौटी थी, को अलग वार्ड(आइसोलेशन वार्ड) में रखा और उनके साथ जो सैकड़ो लोग आये थे उनपर निगरानी रखी गयी। सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए बाद में पता चला कि महिला संभवत: इबोला संक्रमण से पीड़ित नहीं है। ऐसे भी मामले रौशनी में आये हैं कि एयरलाइन के पायलट इस रोग से संक्रमित देशों में विमान उड़ाने से मन कर दिया। केमरून की सरकार ने नाईजीरिया के साथ सीमा बंद कर दी है। पूरी दुनिया भर में सरकारें निगरानी रखने के विभिन्न उपाय खोज रही है ताकि उन मरीजों को अलग किया जा सके जो इस संकर्मन से पीड़ित हैं। ओलिम्पिक खेल आयोजको ने पश्चिमी अफ्रीका के उन देशों के नौजवान खिलाड़ियों को चीन में हो रहे युवा ओलिम्पिक खेलों में हिस्सा लेने से रोक लगा दी है जिनमे यह संकर्मन फ़ैल रहा है।

पिछले चार दशकों में इबोला महामारी

इबोला संकर्मन कोई नई बिमारी नहीं है ( या ई.वी.डी. – जिसे अब आधिकारिक तौर पर इबोला वायरस बिमारी कहा जाता है) और इसका बिमारी का पता 40 साल पहले चला था। जिसे कि पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार के नाम से जाना जाता था, एक ही साथ 1976 में इस बिमारी के फैलने की जानकारी सूडान और जनवादी गणराज्य कोंगों से मिली। शुरुवात में यह माहामारी कोंगों की इबोला नदी के किनारे के एक गाँव में फैली थी – और इसीलिए इस बिमारी का नाम इबोला पड़ा। इसकी कल्पना की जा सकती है कि इबोला संक्रमण की पहचान से पहले यह वायरस गावों के समुदायों में मौजूद था। 1976 के बाद से अफ्रीका के विभिन्न देशों में से समूहों में संक्रमण की 24 असतत रिपोर्ट मिली है। नीचे दर्शायी तालिका में मौजूदा महामारी से पहले सौ से ज्यादा लोगों को हुए संक्रमण के आधार पर विस्तार पूर्वक रिपोर्ट दी जा रही है।

इबोला वायरस की पांच अलग-अलग प्रजातियां हैं जिनका वजह से संक्रमण होता है, और इनके विषैलेपन/संक्रमण की क्षमता (यानी गंभीर लक्षण पैदा करने की क्षमता) सभी प्रजातियों पर अलग-अलग प्रभाव डालता है। जबकि मृत्यु दर के (यानी संक्रमित होने वाले मामले, और जो अंतत: मर जायेंगें) मामले ऐसी प्रजाति के 90% हो सकते हैं, दूसरी प्रजाति जिनकी वजह से चीन और फिलिपिन्स में लोगों को संक्रमित करती है वह वहां मौत का कारण नहीं बनती है। इबोला प्रजाति जोकि माहामारी और ज्यादा मारक क्षमता वाली है, जिनका कि मृत्यु प्रतिशत करीब 60% है।

इबोला कैसे फैलता है?

इबोला वायरस का मानव प्राथमिक लक्ष्य नहीं है। यह उन लोगों को प्रभावित करता है जो लोग संक्रमित जानवर के खून, रसाव, अंग या शारिक रसाव के संपर्क में आते है। अफ्रीका में मानव महामारी उन जानवरों जैसे चिम्पांजी, गोरिल्ला, चमगादड़, बदरों, जंगली हिरन और शल्यक के मरे या बीमार शरीर के संपर्क में आने या उनको संभालने की प्रक्रिया से आते है। ऐसा जाना जाता हैं कि वायरस चिम्पांजी और गोरिल्ला से प्रमुख महामारी का कारण बना है। ये सभी जानवर उष्णकटिबंधीय वर्षावन में पाए जाते हैं, और इनके आसपास के देश ईबोला माहामारी   के केन्द्रों बन गए हैं। यद्दपि कई जानवरों को वायरस से संक्रमित होने के लिए जाना जाता है, यह जानकारी अब हासिल हुई कि प्राथमिक तौर पर यह वायरस कुछ चमगादड़ों की प्रजातियों में पाया जाता है। जबकि अन्य जानवर इस वायरस से प्रभावित हो जाते हैं,चमगादड़ में इस बिमारी का कोई भी लक्षण नहीं मिलते हैं, इस प्रकार चमगादड़ इबोला  वायरस के लिए भंडार के रूप में कार्य करते हैं। यह एक रहस्य है कि चमगादड़ का प्राकृतिक निवास स्थान मध्य अफ्रीका में निहित है (जहाँ सभी माहामारी फैली थी), पश्चिमी अफ्रीका जहाँ अब यह माहामारी फैली है से सेंकडों किलोमीटर दूर। ऐसी भी धारणा बनायीं जा रही है कि चमगादड़ के निवास स्थान में एक बड़ा बदलाव आया हो सकता है, या यह संक्रमण किसी व्यक्ति के द्वारा इस क्षेत्र में लाया गया है।

चित्र सौजन्य: cdc.gov

मानव जब इस वायरस से संक्रमित होता है तो मानव से मानव संक्रमण एक दुसरे से सीधे संपर्क ( फटी खाल या बलग़म ), रक्त के जरिए, स्राव, अंगों या संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक रसाव और इस तरह के तरल पदार्थ के साथ दूषित वातावरण के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क से फैलता है। पारंपरिक दफन प्रथाओं, जहाँ लोग मरे व्यक्ति के प्रति अपना दुःख व्यक्त करने आते है, भी संक्रमण का एक स्रोत हो सकता है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता जोकि संक्रमित मरीजों के संपर्क में आते हैं( जिसमे दस्ताने, मास्क और पूरे शरीर को ठीक से न बचाना आदि शामिल है), वे ज्यादा ग्रसित होने की स्थिति में होते हैं। एक बार संक्रमित होने के बाद ठीक होने के बावजूद वह व्यक्ति किसी को भी यह वायरस 7 सप्ताह के बाद तक संक्रमित कर सकता है।

रोग के ऊष्मायन होने की अवधि – जब एक व्यक्ति संक्रमित होता है और उसके लक्षण पता चलने शुरू होते हैं के बीच का समय, 2-21 दिनों का हो सकता है। शुरुवाती लक्षण दुसरे अन्य लक्षणों की तरह ही हैं – तेज़ बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सूखता गला और सर दर्द। मरीज़ की हालत बहुत जल्दी खराब होती है और जिसकी वजह से उलटी, अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव, दस्त और चकत्ते पड़ने लगते हैं। जिगर और गुर्दे सबसे अधिक प्रभावित हैं। जो लोग इस बिमारी में नहीं मरते वे बाद में बिना किसी अन्य दुष्प्रभाव के पूरी तरह तंदरूस्त हो जाते हैं।

इस बिमारी के निदान के लिए कोई भी दवाई या वेक्सिन मौजूद नहीं है। जैसे-जैसे बिमारी बढ़ती है केवल जो चिकित्सा संभव है - वह है अक्सर नसों के द्वारा हाइड्रेशन, और स्वांस चलाने के लिए तकनीकी समर्थन।

एक महामारी के लिए एक आदर्श उम्मीदवार नहीं

इस रोग को कई विशिष्ट विशेषताएं परिभाषित करती हैं। इस बिमारी से मृत्यु दर ज्यादा होने की वजह से यह अन्य संक्रमित रोगों से अलग हैं जिनके जरिए महामारी फैलती है। उदहारण के लिए वर्तमान में इबोला महामारी में 60% मृत्यु दर या इससे भी ज्यादा है, जबकि 1918 में फैले श्‍लैष्मिक ज्‍वर के कारण दुनिया का एक तिहाई हिस्सा संक्रमित हो गया था और करीब 5 करोड़ लोग मारे गए थे की मृत्यु दर केवल 2.5-5% थी। आम श्‍लैष्मिक ज्‍वर में, आम तौर पर, मृत्यु दर एक प्रतिशत से भी कम होती है यानी हज़ारों संक्रमित लोगों में एक की मृत्यु। एक और विशेषता जो इबोला संक्रमण को दूसरों से अलग करता है  और जो महामारी फैलाती हैं, वह है संक्रमण करने की गति का धीमा होना। इबोला वायरस किसी इंसान के शरीर में तभी प्रवेश करेगा जब वह किसी संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक स्राव, फटी त्वचा या उसकी बलगम (यानी आखों की पलकें मुहं आदि) के संपर्क में आता है। तीसरी विशेषता जिससे कि मनुष्य के भीतर इस वायरस का प्रवाह होता है उन्हें पहचानना आसन नहीं है, वहीँ जो संक्रमित होते और ज्यादा बीमार होते हैं उनकी पहचान करना जल्द दिखने वालो लक्षणों के कारण आसान है।

बड़ी महामारी के लिए उपरी तीन विशेषताएं इबोला वायरस को आदर्श वायरस नहीं बनाती है। क्योंकि जो भी संक्रमित हुए वे सब बड़ी बिमारी के लक्षण बताते हैं, ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि उनका इलाज़ के लिए स्वास्थ्य सुविधा है। ऐसे मामले में जाने माने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा उपाय ही इसके आगे बढ़ने को रोक सकते हैं, क्योंकि इसके तेज़ी से बढ़ने के लिए सबसे बड़ा कारण संक्रमित व्यक्ति से संपर्क में आना जरूरी है।

महामारी क्यों

हम क्यों पश्चिम अफ्रीका के क्षेत्रों में इबोला महामारी का सामना कर रहे हैं? इसका जवाब रोग की पैथोलॉजी में नहीं बल्कि हमारे समाज और वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक संरचना के पैथोलॉजी में निहित है। यह एक दुर्घटना नहीं है कि वर्तमान में इबोला महामारी दुनिया के सबसे गरीब तीन देशों को प्रभावित किया है।लाइबेरिया, गुइनेआ और सिएरा लियॉन जोकि संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव विकास तालिका में 175वें, 179वें और 183वें स्थान पर है। मौजूदा महामारी को बेइंतहा गरीबी लायी है, जोकि नतीजा है उस पूंजीवादी व्यवस्था का किसके तहत बेतहाशा असमानता बड़ी है।

पूरी दुनिया की नज़र इन तीनों देशों पर है, यहाँ केवल इबोला ही नहीं है जो लोगों को मार रहा है। आइये सिएरा लियॉन का मामला लेते हैं। इबोला महामारी के शुरू होने के तुरंत बाद से 848 लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं और 365 लोग मारे जा चुके हैं। इन चार सालों में सिएरा लियॉन में 650 लोग दिमागी बुखार से, 670 टी.बी. से, 790 एच.आई.वी/एड्स  से, 845 दस्त से जुडी बीमारियों से, और 3000 से ज्यादा मलेरिया से मारे जा चुके हैं। ये मौते कई दशकों से हो रही है, ना कि पिछले चार महीनों से। फिर भी इन देशों पर विश्व का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ। ऐसा करने के लिए अमीर और ताकतवर पर दबाव बनाना होगा – वैश्विक नेता, पूंजीवादी प्रेस, पूंजीवाद के संस्थान, उद्योग के कैप्टन, संयुक्त राष्ट्र संथाएं – जो अफ्रीका की सच्चाई से दो-चार होंगी।

लाइबेरिया, गुइनेआ और सिएरा लियॉन अपनी मर्जी से गरीब नहीं हैं। उन्होंने कामकाजी स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण का बीड़ा नहीं उठाया। साम्राज्यवादी संस्थायें जैसे विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस स्थिति को अप्रसिद्ध ढांचागत समायोजन कार्यक्रम को लागू कर और बढ़ा दिया। उन्हें निर्देश दिया गया की वें सार्वजनिक सेवाओं और समाज कल्याण सार्वजनिक खर्चे न बढायें। विश्व व्यापार संगठन ने व्यापार के उदारीकरण के नाम पर चाँद देने का वायदा कर दिया, और उनकी अर्थव्यवस्था को ओर ज्यादा बर्बाद कर दिया। विकसित पूंजीवादी देशों ने अपने निगमों के माध्यम से दान के रूप में सहायता भिजवाई और तुरंत  अपने देश लौट आना। ये गरीब देश भी अमीर देशों की स्वास्थ्य प्रणाली को सब्सिडी देती है – ज्यादातर डोक्टर जो लाइबेरिया या सिएरा लियॉन में पैदा होते हैं वे बजाय अपने देश में काम करने के ओ.ई.सी.डी. देशों में काम करते हैं। चिकित्सा कार्यकर्ता पलायन – यह भी के ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत गरीब देश अमीर देशों को सब्सिडी मुहैया करती है – ये कुछ मुख्य कारण है की जिनकी वजह से पश्चिमी अफ्रीका के लिए एक विश्वसनीय स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण असंभव है।

हम इबोला वायरस के बारे में 40 वर्षों से जानते हैं, फिर भी कोई दवा या वैक्सीन(टिका) इस सम्बन्ध में इजाद नहीं किया गया। कोई भी दवा कम्पनी इस के लिए दवा विकसित करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि यह बिमारी गरीब मुल्कों और गरीब लोगों की है और वे इन ‘बड़ी दवा’ के मुकाबले “भारी-भरकम” दाम नहीं दे सकतें हैं। दिलचस्प है कि जिस प्रयोगात्मक दवा की चर्चा की जा रही है वह है (ZMapp), इस दवा को एक ऐसी कम्पनी ने विकसित किया जो  सार्वजनिक फंड से चल रही है। यह कहानी हर नज़रंदाज़ बिमारी की भी है जिनमे – काला अज़र, मलेरिया, टी.बी, बीमारियाँ भी शामिल है। वे रोग जो अनुसंधान उद्योग से उपेक्षित रहे हैं दवा निगमों की भूख को संतुष्ट नहीं कर सकती है।

व्यापार पूर्ण रूप सामान्य से?

जहाँ तक की मानवीय त्रासदी का सवाल है यह इबोला वायरस से संक्रमण तक ही सीमित नहीं है। स्वास्थ्य प्रणाली, सभी प्रभावित क्षेत्रों में ध्वस्त हो गयी है, इस प्रकार अन्य रोगों के प्रभाव को भी इसने बढा दिया। लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविआ में एक ही बार में सभे मुख्य पांच अस्पतालों को बंद कर दिया। कुछ को खोल दिया गया है लेकिन वे काम नहीं कर रहे हैं, स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपनी सुरक्षा को लेकर भयभीत हैं, और भाग गए हैं। उनके भयभीत होने का कारण है, सुचना के अनुसार दस्तानों, और साफ़ पानी की काफी किल्लत है। सिएरा लियॉन से एक रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल के फर्श पर खून, उलटी और पेशाब के नमूने बिखरे पड़े हैं। बिना किसी सुरक्षा के अस्पताल कर्मचारी केवल स्क्रब पहन कर काम कर रहे हैं। जब नर्स बीमार पड़ती हैं, अन्य हड़ताल पर चली जाती हैं, जिसकी वजह से अपने बिस्तरों से गिरे मरीजों को उठाने के लिए केवल कम ही कर्मचारी बचते हैं।

कुच्छ इलाकों में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो गयी है क्योंकि लोग बहार निकलने से डर रहे हैं। यह रिपोर्ट ढहती स्वास्थ्य प्रणाली पर लोगों के अविश्वास का ही प्रतीक है कि लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविया के वेस्ट पॉइंट स्लम के निवासी इबोला का इलाज़ कर रही एक स्वास्थ्य व्यवस्था पर ही हमला बोल दिया।

तो हमारे पास ऐसी महामारी है जहाँ कोई भी नहीं है। नियमित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों यहाँ नियमित नहीं हैं – वे के शाही सुविधा है जो तभी उपलब्ध होती है जब जिसे वैश्विक दान वाली संस्थाएं उपलब्ध कराती हैं। और पूरी दुनिया चिंतित है कि, कहीं ऐसा न हो कि संक्रमण उनके आरामदायक अस्तित्व को चकनाचूर करने के लिए उनके घर में घुस जाए। यह वैश्वीकृत दुनिया का नकारात्मक पक्ष है जिसके लिए वैश्विक पूंजी के लिए सौदेबाजी की कोई जगह नहीं थी। आप ऐसी स्थितियां बनाते हैं जहाँ संक्रमण तेज़ी से बढ़े, वे तुन्हें ढूँढने वापस आएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन जिसने हाल ही में - काफी धूमधाम के बीच – जिसके तहत एक वैश्विक आपातकाल की घोषणा उसकी पोल खोल देता है। अमेरिका में 1990 के दशक में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां जोकि  वित्तपोषण पर नाकेबंदी और धन की कमी से जूझ रही थी, यह अटकलें के परे कुछ नहीं कर सकती। प्रकोप और संकट से बचने के प्रयासों के लिए वैश्विक बजट सिर्फ $ 109,000,000 डॉलर है

सभी संभावना में महामारी, अपने प्रक्रिया के तहत मौत और विनाश का रास्ता छोड़ कर ख़त्म हो जाती है। ऐसा नहीं है कि एक वैश्विक समुदाय होने के नाते कुछ सही किया होता, एस कहा जाएगा की लेकिन क्योंकि वायरस की प्रकृति ही ऐसी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हमने  कुछ भी सीखा है? या फिर इसे वैसे ही बुला दिया जाएगा और हम अपने सामान्य कार्यों पर लग जायेंगें।

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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