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कश्मीर: अगर दिल्ली दूर है, तो मन का मिलना भी अभी बाक़ी है!

कश्मीरी रोजाना खलनायकी और उपहास का कारण बनना नहीं चाहते हैं और न ही वे सिरसा या रैना जैसे राजनेताओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने की इच्छा रखते हैं।
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पीपुल्स अलायंस फॉर गुप्कर डिक्लेरेशन जो कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का एक समूह है, ने सोमवार को कहा कि वे 24 जून को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई सर्वदलीय बैठक के परिणाम से काफी निराश है।एक संयुक्त बयान में, नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और समूहों के अन्य नेताओं ने कहा कि भारत सरकार ने उनके प्रदेश और लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए वास्तविक रूप से संपर्क नहीं किया था। पीएजीडी ने मांग की है कि जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद ही विधानसभा चुनाव होने चाहिए। 

“पीएजीडी के सभी सदस्यों ने दिल्ली में हुई बैठक के परिणाम के प्रति निराशा व्यक्त की है, विशेष रूप से राजनीतिक और अन्य कैदियों को जेलों से रिहा करने और दमन के माहौल को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने जैसा कोई भी महत्वपूर्ण काम नहीं किया गया है, जिस माहौल ने 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर का गला घोंट दिया था।

बयान में कहा गया है कि, "इस बैठक के बाद जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ जुड़ाव की बेहद जरूरी प्रक्रिया को शुरू किया जा सकता था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के लोग ही इस समस्या से  सबसे अधिक पीड़ित हैं और जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े हितधारक भी हैं।"

कश्मीरी मुसलमानों का मजाक उड़ाना

जब प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में जम्मू-कश्मीर के 14 हाई-प्रोफाइल राजनीतिक नेताओं को बुलाया, तो यह धारणा व्यक्त की गई थी कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थानों को बहाल करने के मामले में गंभीर है।प्रधानमंत्री द्वारा "दिल्ली की दूरी-दिल से दूरी" यानि "दिल्ली और दिल की दूरी के बीच की दूरी" को हटाने के बारे में बात करने के कुछ दिनों बाद, जम्मू-कश्मीर के भाजपा प्रमुख रविंदर रैना ने कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।

संभवत: भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई को इस तरह के बयानों से परहेज करने के कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए गए थे। विडंबना यह है कि रैना खुद उस 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, जिसने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।भाजपा के जम्मू कार्यालय में सिखों को संबोधित करते हुए रैना ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि कश्मीर में सिख महिलाओं की मुसलमानों से जबरन शादी की जा रही है। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि ये शादियां एक गहरी साजिश का नतीज़ा हैं। हाल ही में एक अंतरधार्मिक विवाह के विवाद को उठाते हुए, उन्होंने आरोप लगाया कि 18 वर्षीय मनमीत कौर की शादी 60 वर्षीय कश्मीरी मुस्लिम कर दी गई। 

भाजपा नेता रैना का आरोप झूठा है, क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि मनमीत 19 साल की हैं और उन्होंने श्रीनगर के 29 वर्षीय शाहिद भट से शादी की है। उनकी पूरी बातचीत की वीडियो बना ली गई है और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। इसमें, वे यानि रैना साहब  खुद को मुसलमानों के खिलाफ और सिखों के उद्धारकर्ता के रूप में पेश कर रहे है।

उन्होने कहा, "... जब बंदूक की नोक पर धर्मांतरण करवाया जा रहा हो तो हम चुप नहीं बैठ  सकते हैं। 18 साल की लड़की की शादी 60 साल के शख्स से की गई है। यह एक साजिश है और हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। हम हमेशा आपके (सिख) साथ हैं। आप राष्ट्रवादी लोग हैं...यह सिर्फ सिखों के खिलाफ ही नहीं बल्कि पूरे देश के खिलाफ एक साजिश है। मुसलमानों से शादी की गई सभी लड़कियों को वापस देना होगा। उन्होंने कार्यक्रम स्थल पर सिख धार्मिक नारे भी लगाए।

तथ्य क्या हैं?

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कश्मीर में किसी सिख लड़की या महिला का जबरन वह भी "बंदूक की नोक पर" धर्म परिवर्तन किया गया हो। लगभग तीन वर्षों से, जम्मू और कश्मीर सीधे केंद्रीय शासन के अधीन है। अगर इस तरह के ऑपरेशन चलाने वाले "जबरन धर्मांतरण" और "मॉड्यूल" के उदाहरण होते, तो क्या अधिकारियों को इसके कुछ सबूत नहीं मिलते?

1990 के दशक के दौरान भी, जब कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था, तब भी हिंदू या सिख परिवारों को जबरन इस्लाम में परिवर्तित करने का कोई उदाहरण नहीं था । कश्मीरी मुसलमानों का मज़ाक उड़ाकर या उन्हे खलनायक बना कर भाजपा नेता जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर रही हैं। जो विशेष रूप से घाटी के सिख और मुस्लिम निवासियों के बीच बड़े अविश्वास का कारण बन सकता है।

सिखों के प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करने के बाद रैना ने पत्रकारों से बात की, जो पहले से ही भाजपा के जम्मू कार्यालय के बाहर उनका इंतजार कर रहे थे। रैना ने कहा कि कश्मीर में बंदूक की नोक पर जबरन धर्म परिवर्तन हो रहा है। उन्होंने दावा किया कि कश्मीर में पिछले कुछ महीनों में ग्यारह सिख महिलाओं को जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया है।

इसके अलावा, उन्होंने कहा, "... सिखों को कश्मीर से बाहर निकालने की बड़ी साजिश रची जा रही है। सिख राष्ट्रवादी लोग हैं। सिख युवाओं, पुरुषों और महिलाओं ने हमेशा राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान किया है और भारत माता के लिए खून बहाया है... यह भारत माता और हमारे राष्ट्रीय ध्वज के खिलाफ एक साजिश है। 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर निकाल दिया गया था, अब सिखों को बाहर निकालने की योजना है..हम इन साजिशों में शामिल लोगों को चेतावनी देते हैं कि वे रुक जाए अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 

सच तो यह है कि शाहिद के परिवार ने मनमीत से उनकी शादी का विरोध किया था। जब पुलिस ने लड़की को श्रीनगर में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया, तो उसने गवाही दी कि उसकी शादी शाहिद हो गई है। (उसके ऑडियो और वीडियो क्लिप इसके प्रमाण हैं)। हर इंसान इस बात समझने में नाकाम है कि बावजूद इसके लड़की को उसके पिता को कैसे सौंप दिया गया और शाहिद को अपहरण के आरोप में पुलिस हिरासत में क्यों लिया गया। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि मनमीत की शादी एक सिख शख्स से दोबारा कर दी गई, जबकि  उनका भी तलाक नहीं हुआ है।

घटनाओं का क्रम बताता है कि मनमीत और शाहिद प्यार में थे और उन्होने निकाह के माध्यम से शादी की थी। इस मुस्लिम धार्मिक समारोह में भाग लेने के लिए उसका मुस्लिम होना जरूरी है। आमतौर पर, अंतरधार्मिक विवाहों में, वह पुरुष ही होता है जो महिला साथी को धर्म परिवर्तन करवाता है। इसलिए, इस मामले के बारे में हर बात यह इशारा करती है कि यह केवल एक प्रेम विवाह था और भाजपा नेताओं ने इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।
 
कई कश्मीरी मुस्लिम महिलाओं ने गैर-मुसलमानों से भी शादी की है। उन उदाहरणों को कभी भी जबरन धर्मांतरण आदि के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है। सिख पुरुषों ने दिल्ली, चंडीगढ़ और अन्य जगहों पर हिंदू महिलाओं से शादी की है। या सिख पुरुषों ने हिंदू या जैन महिलाओं से शादी की है। लेकिन इन मामलों को कभी नहीं उठाया जाता है, लेकिन जब कोई कश्मीरी या मुस्लिम इस तरह के मसले में शामिल होता है, तो हर कोई-खासकर मीडिया का एक वर्ग- घटना से राजनीतिक लाभ उठाना या टीआरपी बढ़ाना चाहता है।

सिखों की सहानुभूति हासिल करने के लिए- उन्हें और कश्मीरी मुसलमानों को एक-दूसरे से अलग करके- रैना ने अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा के साथ मिलकर सांप्रदायिक राजनीति की, जिन्होंने इस शादी के मुद्दे को उठाने के लिए दिल्ली से श्रीनगर की यात्रा की थी।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीएमसी) के प्रमुख सिरसा ने आरोप लगाया है कि कश्मीर में पिछले चार महीनों में चार सिख लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग की है। मनमीत की दोबारा शादी के पीछे उनका हाथ है, जिसके बाद उन्हें दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया और उन्हें और उनके "नए पति" को गुरुद्वारा बंगला साहिब ले गए। यह सब आगामी दिल्ली गुरुद्वारा समिति के चुनावों के कारण राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए किया गया है। 

जो लोग धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास या भाषा के आधार पर विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं, उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। कश्मीर में, पुलिस ने हाल ही में गांदरबल में इस धारा के तहत नागरिक समाज के अभिनेता सज्जाद राशिद के खिलाफ मुक़दमा दर्ज़ किया है।

सज्जाद राशिद ने एक जनसभा के दौरान उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के सलाहकार बसीर अहमद खान से कहा था, ''मुझे आपसे उम्मीदें हैं क्योंकि आप कश्मीरी हैं और समझ सकते हैं. और मैं आपका कॉलर पकड़ सकता हूं और आपसे जवाब मांग सकता हूं, लेकिन मुझे ऐसे अधिकारियों से कोई उम्मीदें नहीं जो इस राज्य से ताल्लुक नहीं रखते हैं?"

स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट, 2014 बैच के आईएएस अधिकारी, उस वक़्त खान के साथ थे और उन्होंने भी वह टिप्पणी सुनी। जहां स्थानीय लोगों की मानसिकता को जानते हुए खान बिल्कुल भी नाराज नहीं हुए थे, लेकिन जिलाधिकारी नाराज होकर वहाँ से चले गए। जाने के बाद उन्होने  सज्जाद राशिद पर धारा 153-ए के तहत मुक़दमा दायर कर दिया था। 

जबकि दूसरी ओर, सिरसा या रैना के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिन्होंने कश्मीरी मुस्लिम भावनाओं को आहत किया और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। देश भर में एक झूठी कहानी बनाई जा रही है कि घाटी में कश्मीरी मुसलमान सिखों को जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर रहे हैं।

कश्मीरी रोजाना खलनायकी और उपहास का निशाना नहीं बनना चाहते हैं और न ही वे सिरसा या रैना जैसे राजनेताओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने की इच्छा रखते हैं। इस तरह के कुकृत्य से कश्मीर में शांति नहीं आएगी। न ही दिल्ली की दूरी को दिल की दूरी से मिटा पाएगी। 

(रज़ा मुजफ़्फ़र भट श्रीनगर के एक एक्टिविस्ट, स्तंभकार और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। वे एक्यूमेन इंडिया फेलो हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।यह लेख मूल रूप से द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।)

अंग्रेजी में इस लेख को इस लिंक के जरिये पढ़ा जा सकता है:

https://www.newsclick.in/Kashmir-Delhi-Far-Meeting-Minds-Farther-Still

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