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100 करोड़ वैक्सीन डोज़ : तस्वीर का दूसरा रुख़

एक अरब वैक्सीन की ख़ुराक पूरी करने पर मीडिया का उत्सव मनाना बचकाना तो है साथ ही गलत भी है। अब तक भारत की केवल 30 प्रतिशत आबादी को ही पूरी तरह से टीका लगाया गया है, और इस आबादी में से एक बड़ी संख्या ने वैक्सीन के लिए भुगतान भी किया है।
COVID

भारत ने इस सप्ताह एक अरब (यानी 100 करोड़) टीकाकरण के आँकड़े की पूरा कर लिया है या कहें कि एक मील का पत्थर पार कर लिया है। यह वास्तव में एक बड़ी खुशखबरी है, और भारत के दूरदराज़ के इलाकों में कम वेतन पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मी इस उपलब्धि के लिए सलामी के पात्र हैं। हालांकि, भारत सरकार चाहती है कि इस साल भारत के सभी 94.4 करोड़ वयस्कों को टीका लगाने का काम पूरा कर लिया जाए। 130 करोड़ लोगों के देश में लगभग तीन-चौथाई वयस्कों को ही अब तक सिर्फ एक ख़ुराक मिली है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, अब तक लगभग 30 प्रतिशत भारतीयों को ही पूरी तरह से टीका लगाया गया है।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश, उसके बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और मध्य प्रदेश ने सबसे अधिक खुराक दी हैं। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बाद जो अप्रैल और मई में आई थी और मामलों में भारी वृद्धि हुई थी, इतनी खुराक देने से भारत ने एक मील के पत्थर को पार कर लिया है। यह वह समय था जब देश में रोजाना 4,00,000 से अधिक कोरोना संक्रमण हो रहे थे और 4,000 मौतें हो रही थीं। अस्पताल में भर्ती होने के लिए बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं की तलाश करने वाले लोगों की संख्या ने देश के स्वास्थ्य ढांचे को हिला कर रख दिया था। अब, प्रति दिन 15,000 से कम संक्रमणों पाए जा रहे हैं, नए संक्रमणों में तेजी से गिरावट आई है, और बहुत बड़े स्तर पर आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो गई हैं। मुंबई, जहां दूसरी लहर में कोरोना मामले चरम पर थे, वहाँ हाल ही में पहली बार एक दिन ऐसा आया है जब कोई मौत नहीं हुई थी। 

भविष्य को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि आत्म-गौरव के जाल में न पड़ें और प्रासंगिक मुद्दों पर संदर्भ में विचार करें, क्योंकि सरकार की प्रशंसा करने वाला मीडिया राष्ट्र की ओर से इन मुद्दों को नहीं उठाएगा। 

पहली बात, लगभग 25 करोड़ वयस्क भारतीयों को वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं मिली है। और यह ज्यादातर आबादी, शहरी या ग्रामीण है, और आदिवासियों के सबसे हाशिए पर रहने वाले तबके हैं। उत्तर प्रदेश में, उदाहरण के लिए, 5 अक्टूबर तक, केवल 15 प्रतिशत आबादी को ही पूरी तरह से टीका लगा है जबकि केरल में यह आंकड़ा 43 प्रतिशत और बिहार में 17 प्रतिशत है।

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दूसरी बात, 100 करोड़ खुराक में दोनों खुराक शामिल हैं। सरकार खुद कहती है, केवल 30 प्रतिशत वयस्क आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया गया है या किसी भी उपलब्ध टीके की दो खुराक प्राप्त हुई हैं। इस पर गौर करें तो आज भी 70 करोड़ वयस्क भारतीयों का टीकाकरण नहीं हुआ है। तीसरी बात, भारत में बच्चों (18 वर्ष से कम) की संख्या लगभग 40 करोड़ है, लेकिन अभी तक उन्हे कोई खुराक नहीं मिली है। यह एक तथ्य है कि देश में शिक्षा आपातकाल की स्थिति में है, 20 अक्टूबर तक कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो अधिकतर जगहों पर शारीरिक कक्षाएं शुरू नहीं हुई हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि उपलब्ध आपूर्ति और अधूरी मांग को देखते हुए, बच्चों के टीकाकरण के लिए कोई घोषित रणनीति या नीति नहीं है यहां तक कि वयस्क आबादी के लिए भी यही स्थिति है।

चौथी बात, मीडिया का 100 करोड़ ख़ुराक का जश्न, और कहना कि शीर्ष दो देशों में 'सबसे तेज' में शामिल करना गलत है। केवल दो देशों की जनसंख्या 100 करोड़ या उससे अधिक है। चीन पहले ही 1 अरब ख़ुराक दे चुका है और अब वह 200 करोड़ का आंकड़ा हासिल करने वाला है, जिसे वह दिसंबर से पहले अपनी मौजूदा दर पर हासिल कर लेगा।

पांचवी बात, जो सबसे महत्वपूर्ण है कि भारत इस मील के पत्थर को बहुत पहले पार कर चुका होता अगर सरकार ने जनवरी 2021 के बजाय 2020 के अंत में ही टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया होता। यदि भारत ने वैक्सीन कूटनीति के लिए टीकों का निर्यात नहीं किया होता और नागरिकों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया होता तो आज चीजें अलग हो सकती थीं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोविशील्ड और कोवैक्सिन के उत्पादन में वित्तीय सहायता दी जाती और अन्य वैक्सीन-उत्पादक देशों को उत्पादन के लिए अग्रिम थोक आदेश दिए जाते, डब्ल्यूएचओ-अनुमोदित विदेशी वैक्सीन-निर्माताओं को 2020 में भारत आने की अनुमति दी जाती है, तो भारतीयों या भारत की स्थिति बहुत बेहतर होती। टीकाकरण के नियम और जिम्मेदारियां भी स्पष्ट नहीं थीं और कई बार उन्हे बदला भी गया, हालांकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत केंद्र को किसी भी संकट के दौरान पूरी जिम्मेदारी लेनी होती है।

छठी बात, बहुत से भारतीयों को, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, वैक्सीन की खुराक खरीदनी पड़ रही है, जिसकी कीमत उन्हें 300 रुपए लेकर 4000 रुपए तक अदा करनी पड़ रही है। दशकों से चले आ रहे अभियान के तहत पूरी आबादी को पोलियो के टीके मुफ्त में दिए जाते हैं और दिए जाते थे जबकि उस समय भारत बहुत गरीब था। लेकिन लोगों ने अपनी कोविड-19 ख़ुराक के लिए पैसे खर्च किए, और यह संख्या वयस्क आबादी की 20 प्रतिशत से भी अधिक है।

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सातवीं बात, टीकाकरण का काम 28 दिनों के अंतराल के साथ दो खुराक देने के साथ शुरू हुआ था जिसे बाद में बढ़ाकर 42 और अब 84 दिन कर दिया गया। यह मई 2021 तक की तैयारियों को स्पष्ट रूप से उजागर करता है। आधिकारिक तौर पर, दूसरी लहर में 1,00,000 से कुछ कम लोग मारे गए, लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय के कई अनुमान इसे 10 लाख से अधिक बताते हैं। अब जब वैक्सीन का उत्पादन बढ़ गया है, तो अब ख़ुराक का अंतराल वापस 28 से 35 दिनों के बीच क्यों नहीं लाया जा सकता है ताकि हम तेजी से टीकाकरण कर सकें? फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों को 28 दिनों के अंतराल में टीके से कोई गलत असर नहीं पड़ा है और न ही इसकी कोई सूचना मिली है।

आठवीं बात, 22 सितंबर को, एनडीटीवी.कॉम और अन्य मीडिया आउटलेट्स ने बताया कि कई लोगों को टीकाकरण प्रमाण पत्र तो मिल गया लेकिन उन्हें कभी टीका लगा ही नहीं था। उन्हें खासतौर पर इस दिन को चिह्नित करने के लिए और एक दिन में 2.5 करोड़ टीकों का रिकॉर्ड बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन (17 सितंबर) पर प्रमाण पत्र दिए गए। हालांकि, तब तक टीकाकरण की दैनिक औसत दर लगभग 70 लाख ख़ुराक थी। पर्यवेक्षकों ने सवाल किया है कि एक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा जो एक दिन में 70 लाख खुराक देता है, अचानक वह एक खास दिन में 2.5 करोड़ टीके कैसे दे सकता है। मध्य प्रदेश (आगर-मालवा जिला) में एक मामला तो ऐसा आया कि विद्या शर्मा जिनके नाम पर 17 सितंबर को टीकाकरण प्रमाण पत्र दिया गया उनकी मौत चार महीने पहले ही हो गई थी, जून में। कई रिपोर्टों में दर्ज़ किया गया है कि 13 से 14 साल के बच्चों को भी बिना किसी टीके के प्रमाण पत्र दे दिया गया था।

नौवीं बात, हाल ही में, भारत सरकार ने अक्टूबर 2021 में फिर से वैक्सीन निर्यात की शुरुआत की है, जबकि 70 प्रतिशत वयस्कों और 100 प्रतिशत बच्चों को अभी तक पूरी तरह से टीका नहीं लग पाया है। अभी तक भी, भारत पूरी आबादी को कवर करने और साथ ही साथ निर्यात सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। आगे चलकर यह एक और चुनौती हो सकती है।

दसवीं और आखिरी बात, हालांकि अब संक्रमण के नए मामले बहुत कम हैं, राज्य और केंद्र सरकारों को नवंबर के मध्य से दिवाली के बाद तक चलाने वाले त्योहारी सीजन के दौरान भारी भीड़ को रोकना होगा। कुंभ मेले और पांच राज्यों में चुनावों के बाद, हमें अप्रैल-मई 2021 के दूसरे उछाल से सबक सीखने की जरूरत है।

प्रत्येक जन हितैषी सफलता महत्वपूर्ण होती है और इसका आनंद भी उठाया जाना चाहिए, लेकिन कड़वे तथ्यों की कीमत पर नहीं, साथ ही एक और बड़े संकट में न पड़ें, इसके लिए अभी से बहुत अधिक और जरूरी सावधानी बरतनी होगी। 

(लेखक ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल के सचिव और कोलकाता स्थित एडमास यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

One Billion Vaccine Doses: Devil is in the Details

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