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दिल्ली : “पुरानी पेंशन पाप है तो वो ख़ुद क्यों नही छोड़ते?”, कर्मचारियों का हल्लाबोल!

ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली के साथ ही विभागों में खाली पड़े पदों को भरने की मांग को लेकर देशभर में कर्मचारियों ने मंगलवार के दिन प्रदर्शन किया।
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देशभर के कर्मचारी एकबार फिर सड़कों पर उतरे। ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली के साथ ही विभागों में खाली पड़े पदों को भरने की मांग को लेकर देशभर में कर्मचारियों ने मंगलवार के दिन प्रदर्शन किया। 14 मार्च को संसद के पास जंतर-मंतर पर सामूहिक धरना प्रदर्शन किया गया। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में सभी कर्मचारियों ने जिला स्तर पर भी प्रदर्शन किया। साथ ही डीसी के ज़रिए केंद्र व राज्य सरकारों को अपना मांग पत्र सौंपा। दिल्ली में एक प्रतिनिधि मंडल वित्तीय सचिव से मिले और अपना मांग पत्र उन्हे सौंपा। यह धरना प्रदर्शन'ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एमप्लोयीज़ फेडरेशन' और 'कन्फर्मेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एमप्लोयीज़ एंड वर्कर्स' के संयुक्त राष्ट्रव्यापी आंदोलन के आह्वान पर किया गया।

पुरानी पेंशन बहाली, अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने और लगभग 50 लाख से ज़्यादा रिक्त पदों को भरने समेत सात सूत्री मांगों को लेकर केंद्र और राज्य कर्मचारियों ने सरकार के ख़िलाफ़ बिगुल बजा दिया है।

प्रदर्शन में शामिल कर्मचारी अलग-अलग राज्य और अलग-अलग विभागों के ज़रूर थे लेकिन सब की एक ही मांग थी कि सरकार पुरानी पेंशन को बहाल करे। ये सवाल कर्मचारियों के लिए अब आर-पार का मुद्दा बन चुका है।

आंदोलन में शामिल, इनकम टैक्स में काम करने वाले अशोक कनौजिया ने कहा कि ये सरकार का दोहरा चरित्र है जो वो पुरानी पेंशन का विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर इस साल हमारी पेंशन लागू नहीं हुई तो अगले साल सरकार भी नहीं रहेगी।

'कन्फर्मेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एमप्लोयीज़ एंड वर्कर्स'यूनियन के महासचिव सुभाष लांबा ने कहा, “देशभर के सरकारी कर्मचारी आज के दिन को विरोध दिवस के तौर पर मना रहे हैं। सांकेतिक तौर पर सभी राज्यों से कर्मचारी राजधानी पहुंचे हैं। जबकि देशभर में कर्मचारी जिलास्तर पर प्रदर्शन करके डीसी के माध्यम से कैबिनेट सचिव को अपना मांगपत्र भेज रहे हैं।”

लांबा ने कहा, "एनडीए सरकार ने 1 जनवरी, 2004 से केंद्र सरकार की सेवा में नई पेंशन प्रणाली की शुरुआत की। इसने बाज़ार अर्थव्यवस्था के साथ पेंशन फंडों को जोड़ दिया। उन्होंने योजना को बिना किसी सरकारी नियंत्रण या हस्तक्षेप के शेयर बाज़ार की लाभ और हानि पर निर्भर रहने के लिए मजबूर कर दिया।"

लांबा सरकार पर हमला बोलते हुए कहते हैं , "वो कहते हैं पुरानी पेंशन पाप है। हम उनसे पूछते हैं कि जब ये पाप है तो वो और उनके साथी मंत्री, सांसद और विधायक खुद ये पाप क्यों कर रहे है? वो क्यों नहीं पुरानी पेंशन छोड़ देते?”

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ये मोदी सरकार खुद तो पुरानी पेंशन बहाल कर नहीं रही और जो राज्य सरकारें, आंदोलन के दबाव में ऐसा कर रही हैं उन्हे भी डराने का काम कर रही है।

हाल ही में राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने एनपीएस को वापस लेने के लिए आदेश और अधिसूचना जारी की है। लेकिन आरोप है कि पीएफआरडीए अधिनियम का बहाना बनाकर केंद्र, एनपीएस में जमा उनके पैसे देने से इनकार कर रहा है। लांबा ने कहा कि सरकार इस एक्ट के ज़रिए राज्य को डरा रही है ताकि वो इसे लागू न करे।

कर्मचारियों ने कहा, "एनपीएस हमारे लिए एक विनाशकारी योजना है और उसके ख़िलाफ़ लड़ना केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों और शिक्षकों का कर्तव्य है। निरंतर संघर्षों के माध्यम से, हम केंद्र सरकार पर पीएफआरडीए अधिनियम को निरस्त करने का दबाव बना रहे हैं और सभी एनपीएस वाले कर्मचारियो को पुरानी पेंशन मिलें इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।"

निधि जो यूपी कर्मचारी महासंघ की नेता और पीडब्ल्यूडी विभाग की कर्मचारी हैं उन्होंने भी सभी मांगों को दोहराते हुए कहा कि सरकार चतुर्थ श्रेणी की भर्ती लंबे समय से नहीं निकाल रही है जिससे विभागों में काम का भारी दबाव है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, "केंद्रीय सिविल सेवा में इस समय दस लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। कई राज्यों में स्वीकृत पदों में से लगभग आधे पदों पर संविदा/आउटसोर्स/दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के ज़रिए भर्ती की गई। लास्ट-ग्रेड के पद पूरी तरह से गायब हो गए और उच्च पदों पर भी संविदा नियुक्तियां की जाने लगीं। भर्ती नीति के प्रति केंद्र सरकार और अधिकांश राज्य सरकारों का रवैया एक जैसा है। वे सरकारी सिस्टम को ज़्यादा से ज़्यादा सिकोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।"

इस प्रदर्शन में शामिल सूफिया बानो जो यूपी में अल्पसंख्यक विभाग की कर्मचारी हैं और आज़मगढ़ जिले में रहती हैं, ने कहा कि, "ये सरकार अपने ही लोगों की दुश्मन बन बैठी है। मदरसों को टारगेट किया जा रहा है लेकिन वहां सिर्फ मुस्लिम नहीं बल्कि 40% हिंदू बच्चे भी पढ़ रहे हैं। सरकार को काला चश्मा हटाकर काम करने की ज़रूरत है।"

दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी और दिल्ली सीटू के अध्यक्ष वीरेंद्र गौड़ ने कहा, "केंद्र सरकार और अधिकांश राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को देरी से डीए का बकाया आवंटित करती हैं, जोकि सरकारी कर्मचारियों जैसे निश्चित आय वाले लोगों के दैनिक जीवन को बड़े संकट में डाल देता है। दैनिक आवश्यकताओं की कीमतों में निरंतर वृद्धि और जीवनयापन की उच्च लागत जीवन को अस्त-व्यस्त कर रही है। समय पर जारी डीए कर्मचारियों को बढ़ती कीमतों और बढ़ती लागत के मुकाबले कम से कम थोड़ी बचत करने में मदद करता है। अधिकांश राज्यों में आवधिक वेतन संशोधन लागू नहीं किया जा रहा है।"

यूनियन नेताओं ने कहा, "हमारे देश में सार्वजनिक क्षेत्र एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था प्राप्त करने और देश को औद्योगिक आधार बनाने का एक साधन था। इसने संतुलित क्षेत्रीय विकास में एक आवश्यक भूमिका निभाई। सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म करने का मतलब है अपने राष्ट्रीय आर्थिक हितों, वित्तीय स्वतंत्रता, और संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के हितों और साम्राज्यवादी हितों के अधीन करना।"

इसके साथ ही उन्होंने सरकार से सभी पहलुओं पर विचार करते हुए आठवां वेतन आयोग नियुक्त करने की मांग करी। उन्होंने कहा कि राज्यों में वेतन की कोई समानता नहीं है। कुछ राज्यों में आवधिक वेतन संशोधन पांच साल में एक बार होता है। वित्तीय क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की तरह केंद्र सरकार को भी पांच साल में एक बार आवधिक वेतन संशोधन का पालन करना चाहिए। केंद्र-राज्य संबंधों को फिर से डिज़ाइन किया जाना चाहिए और केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को अपने कर्मचारियों के वेतन संशोधन के लिए पर्याप्त धन देना चाहिए।"

इन सभी मुद्दों के मद्देनज़र देशभर के केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों और शिक्षकों ने निम्नलिखित मांगों के लिए एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया :

* PFRDA अधिनियम और एनपीएस को रद्द करना

* सभी संविदा/आउटसोर्स/दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित किया जाए

* केंद्र/राज्य सरकार सार्वजनिक उपक्रमों में सभी रिक्तियों को तत्काल भरे

* पीएसयू का निजीकरण/निगमीकरण बंद किया जाए

* आठवें केंद्रीय वेतन आयोग का गठन किया जाए

* ज़ब्त बकाया सहित सभी डीए/डीआर जारी किया जाए

* अनुकंपा रोज़गार पर सभी बाधाओं और प्रतिबंधों को हटाया जाए

आज के विरोध प्रदर्शन में बैंक, बीमा, डिफेंस, रेलवे और केंद्रीय एवं राज्य सरकार के कर्मचारी संगठनों से जुड़े सैकड़ों कर्मचारियों ने भाग लिया। ये सिर्फ़ एक राज्य के कर्मचारियों की बात नहीं बल्कि सभी राज्यों में कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत हैं।

प्रदर्शन में पश्चिम बंगाल के कर्मचारियों द्वारा 32 प्रतिशत डीए बहाली और ठेका कर्मियों की नियमितता की मांग को लेकर 10 मार्च को की गई राज्यव्यापी हड़ताल के लिए बधाई दी गई। कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन बहाली आदि सात सूत्री मांगों को लेकर महाराष्ट्र कर्मचारियों द्वारा शुरू की जाने वाली अनिश्चितकालीन हड़ताल का पुरजोर समर्थन किया है। इसके साथ ही उन्होंने यूपी के बिजली कर्मचारियों की 16 मार्च से शुरू होने वाली हड़ताल का समर्थन किया। साथ ही यूनियन नेताओं ने सरकार को आगाह किया कि अगर सरकार ने हड़ताली कर्मियों के खिलाफ़ दमनात्मक कार्रवाई करी तो देशभर के कर्मचारी सड़कों पर उतरेंगे। इसके साथ ही सभी कर्मचारियों ने 5 अप्रैल को दिल्ली में होने वाली किसान मज़दूर रैली का समर्थन किया।

बता दें कि 5 अप्रैल 2023 को संसद के बजट सत्र के दौरान आंदोलनों की श्रृंखला के तहत, एक विशाल मज़दूर-किसान संघर्ष रैली का आह्वान किया गया है। मोदी सरकार के सामने इस अभूतपूर्व शक्ति प्रदर्शन की तैयारी अभी से चल रही है। कुल मिलाकर दावा है कि इस रैली में भारत के श्रमिक वर्गों की इतनी बड़ी लामबंदी होने जा रही है जो शायद ही पहले कभी देखी गई हो।

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