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दुनिया भर की: मानव सभ्यता ने इससे गर्म महीना पहले कभी नहीं झेला

जुलाई का महीना अभी पूरा भी नहीं हुआ है, लेकिन हाल इतने खराब हैं कि वैज्ञानिकों ने अपने अनुमानों के अनुसार पहले ही इस बात का ऐलान कर दिया है कि जुलाई का महीना मौसम विज्ञान में दर्ज आंकड़ों के अनुसार दुनिया का सबसे गर्म महीना होगा।
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फ़ोटो साभार: रायटर्स

हम भारत के कई हिस्सों में अतिवृष्टि (भारी बारिश) से भले ही परेशान हैं लेकिन दुनियाभर में हाल कुछ अलग ही हैं। और, दरअसल, हमारा हाल भी बाकी दुनिया के हाल से कहीं न कहीं जुड़ा ही है। जुलाई का महीना अभी पूरा भी नहीं हुआ है, लेकिन हाल इतने खराब हैं कि वैज्ञानिकों ने अपने अनुमानों के अनुसार पहले ही इस बात का ऐलान कर दिया है कि जुलाई का महीना मौसम विज्ञान में दर्ज आंकड़ों के अनुसार दुनिया का सबसे गर्म महीना होगा। इस तपते महीने के कुछ दिन बाकी हैं लेकिन यह कह दिया गया है कि मानव सभ्यता ने इससे गर्म महीना नहीं देखा।

यह महीना वाक़ई अजीबोग़रीब रहा है। भारत में हम बारिश से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं लेकिन भारत में भी सभी जगह एक-सा हाल नहीं है। कई इलाक़ों में सामान्य से काफ़ी कम बारिश हुई है। उधर पूरा यूरोप, ख़ास तौर पर दक्षिणी यूरोप अझेल गर्मी से परेशान है। ऊपर से गर्मी के कारण कई देश दावानल से जूझ रहे हैं। अमेरिका में भी अटलांटिक महासागर से जुड़े इलाक़ों में यही हाल है। फ़्लोरिडा में तो समुद्र के पानी का तापमान इतना बढ़ गया है कि वह गर्म पानी के टब सरीखा लगने लगा है।

विश्व मौसम संगठन और यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने कल कहा कि जुलाई की गर्मी तो रिकॉर्डतोड़ से भी कुछ आगे ही है। इनका कहना था कि धरती का तापमान अस्थायी तौर पर गर्मी की निर्धारित सीमा से ऊपर ही चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग की यह सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रखने पर सहमति हुई है।

लेकिन हाल देखिए कि इस जुलाई महीने में अभी तक रिकॉर्ड 16 दिन ऐसे रहे जब दुनिया का औसत तापमान औद्योगिक-काल के पहले के स्तर से 1.5 डिग्री ज़्यादा रहा। जबकि पेरिस जलवायु समझौते में लक्ष्य रखा गया था कि अगले 20 या 30 साल में दुनिया के औसत तापमान में वृद्धि के औसत को 1.5 डिग्री तक सीमित रखा जाए। इस सीमा को अस्थायी तौर पर पार करने के वाक़ये तो पहले भी हुए हैं लेकिन जुलाई में, और वह भी इतने दिन तक, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अब अगर बचे तीन-चार दिन में कहीं किसी अनहोनी या चमत्कार से हिम-युग जैसी कोई परिघटना हो जाए तो ही यह जुलाई महीना इतिहास बनाने से चूक सकता है।

साभार: एपी

वैज्ञानिकों का कहना है कि जुलाई में तीन महाद्वीपों- उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया में ग्रीष्मलहर के कारण हाल इतना ख़राब था कि यह रिकॉर्ड तो बनना ही था। अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम, मध्य-पश्चिम और पूर्वी इलाक़े में गर्मी रुकने का नाम नहीं ले रही और लिहाज़ा इन इलाक़ों में क़रीब 12 करोड़ से ज़्यादा अमेरिकियों यानी अमेरिका की आधी आबादी को गर्मी को लेकर एडवाइज़री दी गई है। अमेरिका ने अभी जुलाई का अपना आँकड़ा तैयार नहीं किया है लेकिन वहाँ जून 2023 अब तक का सबसे गर्म महीना था- 1850 से अब तक। वह लगातार 47वां जून का महीना और कुल लगातार 532वां महीना था जब अमेरिका में तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से ज़्यादा रहा। पश्चिम अमेरिका के एरिज़ोना राज्य के फ़ीनिक्स में लगातार 28 दिन से तापमान 43.3 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा चल रहा है। हमने अपने देश में कभी इस तरह के हाल नहीं देखे। कैलिफोर्निया की डेथ वैली में तो इस महीने के मध्य में तापमान 56 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की खबर थी। रेगिस्तान में रातें तो ठंडी हो जाती हैं लेकिन इसी महीने डेथ वैली में धरती के इतिहास की सबसे गर्म रात रिकॉर्ड की गई।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह रिकॉर्डतोड़ गर्मी, जलवायु में कई बदलाव लाएगी। केवल तापमान बढ़ने पर ही बात नहीं रुकेगी। लगातार बढ़ती दावानल की घटनाएँ, अचानक आने वाली बाढ़- ये सभी उसी का संकेत हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतरेस का कहना है कि यह तो शुरुआत भर ही है, लेकिन लगता है कि हम तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) का दौर पीछे छोड़ चुके हैं, और अब तापमान उबलने (ग्लोबल बॉयलिंग) का दौर शुरू हो गया है। मानो मौसम पगला सा गया है।

अपनी बातों को स्पष्ट करने के लिए वैज्ञानिकों ने इस जुलाई के महीने को लेकर काफ़ी भीषण आँकड़े सामने रखे हैं। इससे पहले जुलाई 2019 को अब तक के सबसे गर्म महीने के तौर पर दर्ज किया गया था। इस जुलाई का औसत तापमान (पहले 23 दिन का) उस चार साल पहले की जुलाई के औसत तापमान से क़रीब एक-तिहाई डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है। जबकि आम तौर पर तापमान के नए रिकॉर्ड अमूमन डिग्री से सौवें हिस्से या बहुत हुआ तो दसवें हिस्से से बन जाते हैं। कॉपरनिकस की टीम ने पाया है कि इस जुलाई के पहले 23 दिन में से 21 दिन डाटाबेस में दर्ज पहले के किसी भी दिन की तुलना में ज़्यादा गर्म थे।

जर्मनी की लेपज़िग यूनिवर्सिटी के एक वैज्ञानिक ने अपना अलग शोध इसको लेकर किया था। उनका भी कहना है कि हम वार्मिंग के एक बिल्कुल अलग स्तर पर पहुँच गए हैं। कार्स्टन होस्तेन का कहना था कि हालाँकि हमारे पास रिकॉर्ड तो 19वीं सदी के मध्य के बाद से ही उपलब्ध हैं लेकिन पेड़ों के छल्लों, आइस कोर और बाक़ी चीजों के हिसाब से गणना करने के बाद उनका अपना अनुमान था कि जुलाई का महीना पिछले 120,000 सालों का सबसे गर्म महीना है।

अब कई लोग इस नए आँकड़े को हवा में उड़ा सकते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इसलिए खासी चिंता का मसला है क्योंकि हमारे सामने ऐसे गर्म तापमान में रहने की चुनौती है जिसे पहले कभी किसी ने नहीं बर्दाश्त किया। बढ़ता तापमान हमारी ढाँचागत व्यवस्था और बिजली ग्रिड पर तो दबाव डालेगा ही, इंसानी शरीरों पर भी डालेगा, जिन्हें इस तरह का तापमान सहने की आदत नहीं है। ब्रिटेन के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि 2022 में जो रिकॉर्ड तापमान का दौर वहां था, वह आने वाले दशकों में या अधिकतम 2060 तक वहां का औसत तापमान बन जाएगा। कल्पना कीजिए कि इंग्लैंड की गर्मियों का औसत अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया तो क्या होगा।

यह कोई संयोग नहीं कि इस जुलाई महीने में ही अमेरिका, मेक्सिको, चीन व दक्षिणी यूरोप में प्राणघातक ग्रीष्मलहरी रही, दमघोंटू दावानल चल रहे हैं और भीषण बाढ़ देखने को मिल रही है। यहां तक की धरती की सबसे ठंडी जगह अंटार्कटिका में भी गर्मी का असर दिख रहा है। दक्षिणी गोलार्ध की ठंड में भी समुद्री बर्फ अपने सबसे निचले स्तर पर है जबकि इस समय उसे तो अपने सबसे अधिकतम स्तर पर होना चाहिए। इन सबके बीच जापान, दक्षिण कोरिया, भारत व जापान के कई इलाकों में भीषण बाढ़ आ रही है। ये सारे संकेत बड़ी खतरनाक तस्वीर पेश कर रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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