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बाबा साहेब अंबेडकर: “शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो”

महापरिनिर्वाण दिवस विशेष : आज किसान-मज़दूरों ने, दलित-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों ने, महिलाओं ने जो भी आंदोलन खड़े किए हैं, संघर्ष तेज़ किए हैं, उनके पीछे कहीं न कहीं प्रेरणा और शक्ति बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के विचारों और संविधान की ही है।
बाबा साहेब अंबेडकर
Image courtesy: Social Media

जिस मजबूती से अपने खिलाफ बने तीन-तीन काले कानूनों को वापस कराने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखने के लिए, अपने हक़-अधिकारों की रक्षा के लिए, इस ठिठुराती ठंड में,  देश के विभिन्न राज्यों से आकर लाखों किसानों ने दिल्ली और केंद्र सरकार को घेर लिया है और केंद्र सरकार पर जो दबाब बनाया है – उस आंदोलन की शक्ति बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के तीन मूलमंत्रो में निहित है। वे हैं “शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो।”  शिक्षित होने से उनका मतलब सिर्फ पढ़ना-लिखना ही नहीं था बल्कि पढ़-लिख कर अपने हक़-अधिकारों के लिए जागरूक बनना था। जागरूक होने के बाद स्वयं को संगठित करना और फिर अपने उद्देश्य के लिए संघर्ष करना था।

बाबा साहेब ने पहले स्वयं इन मूलमंत्रों को अपने जीवन में लागू किया था। वे आला दर्जे के शिक्षित तो थे ही। उन्होंने लोगों को संगठित किया और वंचितों के अधिकारों के लिए आंदोलन किए। चाहे वह महाड़ चवदार तालाब से पानी लेने के लिए आंदोलन हो या कालाराम मंदिर में दलितों का प्रवेश।

आज बाबा साहेब के अनुयायी सफाई कर्मचारी समुदाय के लोग भी यह प्रश्न करने लगे हैं कि सफाई कर्मचारी के नाम से जितने भी राष्ट्रीय संगठन हैं उन सभी संगठनों के नेता सफाई कार्य में ठेका प्रथा का खात्मा करने के लिए मिलकर देशव्यापी आंदोलन की घोषणा क्यों नही करते? यह बाबा साहेब की विचारधारा का ही प्रभाव है।

बहुजन के नायक अंबेडकर

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मऊ मध्य प्रदेश में हुआ और 6 दिसम्बर 1956 को दिल्ली में निधन हो गया। पर इस 65 साल के जीवन में बाबा साहेब जो कर गए वह अद्भुत है। उन्होंने देखा और महसूस किया कि किस तरह कुछ जाति विशेष का मुट्ठीभर  वर्चस्वशाली वर्ग देश की विशाल आबादी पर मनमाने ढंग से शासन  कर रहा है। उनसे भेदभाव कर रहा है। उनका शोषण कर रहा है। बाबा साहेब ने ऐसे वर्चस्वशाली वर्ग की विचारधारा को ब्राह्मणवादी विचारधारा नाम दिया जिसे हम मनुवादी विचारधारा भी कहते हैं। उन्होंने देखा कि यहाँ की मूल निवासी विशाल आबादी को ब्राह्मणवादी विचारधारा ने शूद्र कहकर अपने अधीन कर रखा है। वे उन्हें गुलाम बनाकर उन पर अमानवीय जुल्म ढा रहे हैं। उन्हें जानवरों से भी निम्नस्तर का मान रहे हैं। ब्राह्मणों ने स्वयं को सर्वोच्च फिर क्षत्रियों और वैश्यों को उच्च-निम्न क्रम में रखा है। शूद्रों को सबसे नीचे रखा है। और उनका काम उपरोक्त तीनों वर्गों की सेवा करने का रखा है। इतना ही नहीं इसे जन्म आधारित कर दिया है ताकि शूद्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमेशा इनके गुलाम बने रहें और उनकी सेवा करते रहें।

ब्राह्मणों के धर्मग्रंथों जैसे मनुस्मृति के शूद्र आज के दलित-आदिवासी-और पिछड़े वर्ग के लोग हैं यानी बहुजन हैं। बाबा साहेब ने जब संविधान लिखा तब इनको अनुसूचित जाति, अनुसूचित  जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में विभाजित किया। इनके प्रतिनिधित्व के लिए संविधान में आरक्षण के विशेष प्रावधान किये। इनके उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष किया। यही कारण है कि आज वे बहुजन वर्ग के नायक हैं।

‘उनके’ खलनायक अंबेडकर

कहना न होगा कि जिस ब्राह्मणवाद के खिलाफ बाबा साहेब ने आवाज उठाई थी उनको यह अच्छा नहीं लगा। उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर को नायक से खलनायक सिद्ध करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। एक ब्राह्मणवादी पत्रकार ने तो उन्हें खलनायक बनाने के लिए पूरी किताब ही अंग्रेजी में  लिख डाली। नाम दिया – Worshipping of a False God. एक कुमार कवि ने तो यहाँ तक टिप्पणी कर डाली –“एक आदमी (भीमराव अंबेडकर) आया इस देश में और आंदोलन के नाम पर जाति की खाई खोद दी। फिर आरक्षण और जातिवाद से देश के अन्दर जहर घोलने का काम किया जो आज तक चल रहा है। जबकि उससे पहले जातीय ढांचा बहुत सही था। उसमे भेदभाव और ऊंच-नीच नहीं थी।”  धन्य हैं कुमार-सुकुमार जी आप! पांच हजार सालों से चल रहा जातिवाद और उसमे व्याप्त ऊंच-नीच, भेदभाव और शोषण आपको दिखाई नहीं देता। खैर आपको दिखाई भी कैसे देगा! आप खुद उस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषक हैं। जिस ‘आदमी’ ने इस अमानवीय जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी बुराई पर प्रहार किया वह हमारी नजर में भले नायक हो आपकी नजर में तो खलनायक ही होगा। आपके हीरो तो मनु महाराज हैं। जिनकी सोच पर महेंद्र मोहनवी ने ठीक ही लिखा है –

“मानवता के तन पर अब तक बेहोशी छाई

मनु तुम्हारा सोच हलाहल कितना घोल गया।

आज तुम्हारी नाराजी का  बस कारण इतना

सदियों से थे बंद किवाड़ें ‘कोई’ खोल गया।”

समाज सुधारक अंबेडकर

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारतीय सामाजिक इतिहास में एक बड़े दार्शनिक चिंतक और लोकतान्त्रिक आन्दोलनकर्मी के रूप में जाने जाते हैं। दलितो की मुक्ति के पर्याय के रूप में देश के कोने-कोने में मौजूद हैं। उन्होंने भारतीय समाज में दलित, वंचित एवं महिलाओं के लिए एक वैकल्पिक समाज की स्थापना का बीजारोपण किया। उनके व्यक्तित्व में एक अर्थशास्त्री, राजनेता, दार्शनिक, शिक्षाविद् कानूनविद् समाहित है। उनमें संविधान निर्माता के साथ-साथ सक्रिय आंदोलनकर्मी के भी गुण नजर आते हैं। उन्होंने भारतीय समाज में जड़ें जमाए शोषणकारी जाति व्यवस्था का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।                                                                                          

जाति विनाशक अंबेडकर

भारत में जाति प्रथा इंसानियत पर बहुत बड़ा कलंक है। बाबा साहेब इसका उन्मूलन चाहते थे। उनका कहना था कि –“किसी भी दिशा में मुड़ें जाति का राक्षस रास्ता रोके खड़ा मिलेगा। उसे मारे बिना न तो आर्थिक विकास संभव है और न ही सामाजिक विकास और न ही मानसिक विकास। उन्होंने “जाति का विनाश” नाम से पुस्तक भी लिखी। वे जाति विनाश के पक्षधर थे। हालाँकि जाति की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत हैं कि उसका उन्मूलन हो न सका और आज भी यह अस्तित्व में है।

आज हो रहे दलित आंदोलन बाबा साहेब से ही प्रेरणा पाकर दलितों के मानव अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

नारी की शक्ति अंबेडकर

बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था – “यदि किसी समाज की प्रगति देखनी हो तो यह देखो की उस समाज की महिलाओं ने कितनी प्रगति की है।” वे समाज के विकास का पैमाना महिलाओं के विकास को मानते थे। वे महिलाओं के शिक्षा के प्रबल हिमायती थे। उनका मानना था कि यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो सिर्फ एक पुरुष ही शिक्षित होता है किन्तु यदि एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए हिंदू कोड बिल को संसद में पास कराने का प्रयास किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि उन्होंने उस समय महिला सशक्तिकरण की आवाज उठाई जब महिलाओं के अधिकारों व विकास की बात करने वाला शायद ही कोई हो।

वे दलित, स्त्री एवं वंचित समुदाय के लिए शिक्षा को अनिवार्य और ताकतवर मानते थे। इसलिए उन्होंने एक बार कहा भी था - ‘शिक्षा शेरनी का दूध है।’

आज महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत आंदोलन बाबा साहेब की विचारधारा से ही  प्रेरित हैं।

बहुजन हितैषी अंबेडकर

1923 में उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य था वंचित समुदाय के लिए शिक्षा और आर्थिक सुधार। इसके लिए उन्होंने वंचित समुदाय से विभिन्न संस्थानों को अपने हाथों में लेने पर जोर दिया।  उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए समय समय पर “मूकनायक”, “जनता” और “बहिष्कृत भारत” जैसे समाचार पत्रिकाएं अपनी ही प्रेस से निकालीं।

1927-28 में उन्होंने सीधे दलितों के लिए आन्दोलन के नेतृत्व की शुरूआत की जिसे महाड़ आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। महाड़ में चवदार तालाब पर दलितों को पानी लेने की मनाही थी। जिसे सरकार ने एक कानून बनाकर उस तालाब को दलितों के पानी लेने के अधिकार को संरक्षित किया। कानून बनाने के बावजूद उच्च जाति के लोग चवदार तालाब से पानी नहीं लेने देते थे। इसी समय में बाबा साहेब ने दलितों के अन्य संस्थानों  में प्रवेश के लिए भी लड़ाई लड़ी।

आज दलित-आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्ग उनके विचारो से ऊर्जा लेकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

महानायक अंबेडकर

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश की बहुआयामी प्रगति के लिए काम किये। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक बहुत अच्छे अर्थशास्त्री थे। उन्होंने आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज का रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया उन्हीं के विचारों पर आधारित है।

उन्होंने देश के लिए नायाब संविधान दिया। जिसमें देश के हर नागरिक को समान मानवीय गरिमा प्रदान की गई है। सभी को समान मानव अधिकार दिए गए हैं।

भले ही बाबा साहेब अब हमारे बीच नहीं हैं पर आज उनकी महत्ता पूरी दुनिया ने स्वीकार की है। अमेरिका ने उनको ज्ञान का प्रतीक (Symbol of Knowledge) की उपाधि से सम्मानित किया है। भारत रत्न तो वे हैं ही।

संक्षेप में अगर कहा जाए तो बाबा साहब अम्बेडकर ही हैं जिन्होंने भारत के सबसे ज्यादा दमित और अन्याय सहने वाले दलित एवं स्त्री समुदाय के सम्मान की बात की। उनके लिए लड़ाइयां लड़ीं। आंदोलन किए। इसलिए वे बीसवीं सदी के महानायक के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं।  

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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