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नीतीश सरकार ने एससी-एसटी छात्रवृत्ति फंड का दुरूपयोग कियाः अरूण मिश्रा

सीपीआइएम की केंद्रीय समिति के सदस्य अरूण मिश्रा ने कहा है कि ये समाज भी चाहता है कि इनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें। इनके नाम के पैसे का नीतीश सरकार ने दुरूपयोग किया है। जो पैसा उनकी शिक्षा पर खर्च होना चाहिए था वह वहां खर्च न होकर दूसरी जगह खर्च किया गया है।
नीतीश सरकार ने एससी-एसटी छात्रवृत्ति फंड का दुरूपयोग कियाः अरूण मिश्रा
साभारःटेलीग्राफ

समाज के हाशिए पर मौजूद एससी/एसटी समाज के बच्चे जो आर्थिक रुप से कमजोर होने के चलते पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते ऐसे में उनको मिलने वाली छात्रवृत्ति के पैसों को डायवर्ट कर नीतीश सरकार ने सड़कतटबंदमेडिकल कॉलेज तथा सरकारी भवन बनाने में लगा दिया। 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-19 की कैग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। बिहार सरकार ने विभिन्न परियोजनाओं में एससी/एसटी के लिए विशेष रूप से बनाए गए फंड के 8,800 करोड़ रुपए का इस्तेमाल किया और स्कॉलरशिप के लिए पैसे की कमी का हवाला देकर करीब छह सालों के लिए कई छात्रों को छात्रवृत्ति देने से इनकार कर दिया था।

इसको लेकर कैग ने चिंता जाहिर करते हुए नीति आयोग को कहा है कि वो ये सुनिश्चित करे कि एससी/एसटी के विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं का पैसा किसी और क्षेत्रों खर्च न किया जाए।

एससी/एसटी के पैसों का नीतीश सरकार ने दुरूपयोग किया 

CPIM की केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण मिश्रा ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि नीतीश सरकार दलित विरोधी हैं और उनके फंड का दुरूपयोग किया है। उन्होंने कहा कि, "नीतीश कुमार की सरकार एससी/एटी के विकास के लिए बड़े जोड़-शोर से प्रचार करती रही है। उसने इस समाज के लिए बहुत सी बातें कीं लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट छपी है उसमें एससी/एसटी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। वहां पर बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। इससे पता चल गया कि उनका पैसा वहां न खर्च होकर दूसरी जगह खर्च हुआ।

दलित समाज के साथ ये बहुत बड़ा धोखाधड़ी है जो समाज के बिल्कुल हाशिए पर हैं। ये समाज भी चाहता है कि इनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें। इनके नाम के पैसे का नीतीश सरकार ने दुरूपयोग किया है। जो उनकी शिक्षा पर खर्च होना चाहिए था वह वहां खर्च न होकर दूसरी जगह खर्च किया गया है। सरकार कह रही है कि वो पदाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करेगी लेकिन पदाधिकारियों का मामला नहीं है। ये सरकारी स्तर पर गड़बड़ी हुई है और इसमें ये सरकार कटघरे में खड़ी है। इसकी पूरी निष्पक्षता से जांच हो और जो लोग भी दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। नीतीश कुमार ने दलितों का केवल राजनीतिक इस्तेमाल किया है। वे बातें बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन अब उनकी सारी बातें सामने आ गई हैं।

शिक्षास्वास्थ्यरोजगार की स्थिति बहुत ही खराब है। पलायन उसी तरीके से अभी जारी है। ये वही लोग पलायन करते हैं जिनकों यहां रोजगार नहीं मिल पाता है और जो बिल्कुल हाशिए पर हैंजिनके पास यहां कोई उपाय और संसाधन नहीं है। अब उनके लिए निर्धारित पैसों का जो बंदरबांट हो रहा वह भी उभर कर सामने आ रहा है।

इस छात्रवृत्ति का 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से दसवीं कक्षा से लेकर मास्टर्स तक के एजुकेशनल और प्रोफेशनल कोर्सों के लिए फंड किया जाता है। 

शेड्यूल कास्ट सब प्लान (एससीएसपीके तहत 2.5 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले एससी/एसटी छात्रों को पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप (पीएमएसदी जाती है।

ऐसा तत्कालीन योजना आयोग (अब नीति आयोगके प्रावधानों के बावजूद हुआ जिसमें कहा गया था कि एससीएसपी फंड 2.5 लाख रुपए से कम की वार्षिक आय वाले एससी/एसटी छात्रों को केंद्र प्रायोजित पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप (पीएमएसदेने के लिए है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार उसने 10 अगस्त को रिपोर्ट किया था कि बिहार सरकार ने नेशनल एप्लीकेशन पोर्टल में "तकनीकी समस्याका हवाला देते हुए 2018-19 से पीएमएस के लिए इनकार कर दिया था। बिहार एससी/एसटी छात्रों को छह साल यह स्कॉलरशिप नहीं दी गई थी। वर्ष 2016 में बिहार सरकार के एससी/एसटी कल्याण विभाग ने छात्रों पर वित्तीय बोझ को बढ़ाते हुए इसके तहत एक फीस कैप भी लगाया था।

कैग की रिपोर्ट के अनुसार इस छात्रवृत्ति फंड का इस्तेमाल निम्न क्षेत्रों में किया गया

राज्य ने बिजली विभाग को 2,076.99 करोड़ रुपये दिए और उसे 460.84 करोड़ रुपये का ऋण भी दिया।

इसने प्रमुख सड़क परियोजनाओं के लिए 3,081.34 करोड़ रुपये डायवर्ट किए।

तटबंध बनाने और बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं में 1,202.करोड़ रुपये खर्च किए।

मेडिकल कॉलेजों के लिए 1,222.94 करोड़ रुपये खर्च किए।

कृषि विभाग के कार्यालय और अन्य भवनों के निर्माण के लिए 776.06 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया गया।

फंड डायवर्ट होने के नतीजे में पिछले छह सालों में अधिकांश एससी/एसटी छात्रों को ये स्कॉलरशिप नहीं मिली और राज्य सरकार ने इस छात्रवृति को प्राप्त करने के लिए फीस की सीमा तय कर दी है जिसके चलते पात्र छात्रों की संख्या में काफी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में लगभग पांच लाख छात्र इस योजना के लाभार्थी होने चाहिए थे लेकिन साल 2016 में फीस नियम लागू करने से इनकी संख्या में लगातार गिरावट आ रही है।

छात्रवृत्ति के मामले में पटना हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि छात्रवृत्ति को रोके जाने की वजह पैसे की कमी थी। हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार से याचिकाकर्ता के वकील द्वारा जवाबी हलफनामे का जवाब देने को कहा है। इसमें पूछा गया है कि राज्य ने फंड की कमी का हवाला देते हुए एससी/एसटी फंड को कैसे डायवर्ट किया।

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