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बिहार: मनोज मंज़िल व अन्य को उम्रक़ैद की सज़ा का हो रहा व्यापक विरोध

भाकपा माले के नेता मनोज मंजिल व अन्य को हुई उम्र कैद की सजा का बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है। लोग इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बता रहे हैं।
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भाकपा माले के नेता मनोज मंजिल को हुई उम्र कैद की सजा का बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है। लोग इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बता रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी “निष्पक्ष न्याय व्यवस्था” के “राजनीतिक इस्तेमाल” का आरोप जो इन दिनों एक दल विशेष के ऊपर बार बार लगया जा रहा है, यूं ही नहीं है। क्योंकि वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी को गुजरात के स्थानीय कोर्ट द्वारा उनकी संसद सदस्यता रद्द किये जाने समेत कई ऐसी घटनाएं सामने आयीं हैं, जिसमें कोर्ट के फैसले को लेकर गंभीर कानूनी आपत्तियां जताई गयीं। इस कारण अब ये सवाल काफी जोर पकड़ता जा रहा है कि मौजूदा सत्ताधारी दल विपक्ष के ख़िलाफ़ अब न्याय-तंत्र का भी खुलकर दुरुपयोग कर रहा है जिससे “निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था” की भूमिका भी संदिग्ध होती जा रही है? इसकी ओर कई कानूनविदों ने तो इशारे भी किये हैं कि- कहीं तो अवश्य ही ऐसा कुछ अवांछित हो रहा अथवा किया जा रहा है कि न्याय-तंत्र सही और निष्पक्ष ढंग से काम नहीं कर पा रहा है।
 
इसकी ताज़ा मिसाल बिहार स्थित भोजपुर में तो खुलकर सामने भी आ गयी है। मामला ये है कि वर्ष 2015 के 20 अगस्त को भोजपुर जिले के चर्चित भाकपा माले युवा जन नेता सतीश यादव की हत्या सामंती ताकतों द्वारा घात लगाकर कर दी गयी। जिससे पूरे क्षेत्र में काफ़ी तनाव फ़ैल गया। उक्त नेता के शव को लेकर घंटों सड़क जामकर तीखा जनविरोध प्रदर्शित हुआ। पुलिस के आश्वासन के बाद सड़क-जाम हटा लिया गया।
 
घटना के कुछ दिनों बाद अगियांव क्षेत्र के बेरथ पुल के पास नहर किनारे एक आज्ञात शव होने की खबर फैली। मौके पर पहुंची पुलिस शव की सही शिनाख्त भी कर ली। पोस्टमार्टम के बाद चंदन कुमार नामक युवक दावा करता है कि यह उसके पिता जेपी सिंह की लाश है। इसके बाद पुलिस लाश को एफएसएल जांच के लिए पटना भेज देती है। जिसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आई है। तब भी 9 साल बाद जेपी सिंह के बेटे के बयान के आधार पर मनोज मंज़िल समेत 23 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाता है। किसी भी आरोपी को कोई चार्जशीट नहीं किया गया।
 
हैरानी की बात है कि इस कांड को लेकर दर्ज मुक़दमे की तो फास्ट-ट्रैक सुनवाई तुरंत शुरू कर दी गयी लेकिन वहीँ माले जन नेता सतीश यादव हत्या-कांड के नामज़द दोषियों की गिरफ़्तारी और उन्हें  सज़ा दिलाने को लेकर कहीं से कोई कानूनी सुगबुगाहट तक नहीं हुई है। सतीश यादव हत्या-कांड के नामज़द दोषियों की गिरफ़्तारी को लेकर दिखावे के लिए चंद रस्मअदायगी मात्र होती है और आज तक मात्र एक की ही गिरफ़्तारी बतायी गयी है।
 
लेकिन कतिपय सामंती पक्ष के उक्त सदस्य की हत्या में फर्जी तरीके से नामज़द बनाए गए मनोज मंजिल समेत सभी 23 लोगों की तत्काल गिरफ़्तारी हो जाती है।  

ताज़ा घटनाक्रम में गत 15 फरवरी को आरा जिला सेशन कोर्ट ने माले के युवा विधायक मनोज मंज़िल समेत सभी नामज़द 23 लोगों को संदिग्ध जेपी सिंह की हत्या का दोषी मानते हुए सभी को 25 हज़ार जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी।
 
कोर्ट द्वारा फैसला सुनाये जाने के तत्काल बाद ही विधायक मनोज मंज़िल समेत शेष सभी 23 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। दूसरे ही दिन बिहार विधानसभा से मनोज मंज़िल की विधान सभा सदस्यता समाप्त किये जाने की आनन फानन सूचना भी जारी हो गई।  
 
कोर्ट के फैसले पर मनोज मंज़िल के वकील ने कहा कि किसी भी आरोपी को चार्जशीट नहीं दिया गया और अचानक से सभी नामज़दों को सीधे उम्रकैद की सज़ा सुना दी गयी। कोई सुनवाई भी नहीं हुई।
 
सनद रहे कि क्षेत्र के दलित और  कमज़ोर-वंचितों पर होने वाले सामंती-दबंगों के शोषण-अत्याचार के ख़िलाफ़ मनोज मंज़िल लगातार मुखर रहे हैं। साथ ही सरकार-प्रशासन के भेदभाव के ख़िलाफ़ भी वे सड़कों पर आंदोलन करने के लिए चर्चित रहे हैं।  
 
विगत दिनों ग्रामीण गरीबों के बच्चों की पढ़ाई के लिए “सड़क पर स्कूल” चलाकर बिहार की सरकार और शिक्षा विभाग की कुम्भकर्णी नींद खोलने के लिए पूरे इलाके में वे काफ़ी चर्चा में रहे।
 
दलित समाज से आनेवाले मनोज मंज़िल छात्र-जीवन से आंदोलनरत रहे हैं। इस कारण सामंती-दबंग ताकतों के साथ साथ भ्रष्ट शासन तंत्र के भी निशाने पर रहे। क्षेत्र में इनकी जनलोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है कि 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव में इन्होंने 30,000 से भी अधिक मतों के अंतर से जदयू प्रत्याशी को हराकर पहली बार अगियांव विधान सभा क्षेत्र से जीत हासिल की और विधायक बने।
 
मनोज मंज़िल समेत सभी 23 लोगों को उम्र कैद की सज़ा सुनाए जाने के ख़िलाफ़ पूरे इलाके में काफी जनाक्रोश है। सवाल उठ रहा है कि जिस व्यक्ति की हत्या के आरोप में ये सज़ा सुनाई गयी है, आज तक पुलिस सत्यापित कर पुख्ता प्रमाण नहीं पेश कर सकी है कि घटना का आरोपी कौन है। यहां तक कि पाए गए शव की अभी तक एफ़एसएल जांच रिपोर्ट तक नहीं आई है।

अगियांव विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ पूरे भोजपुर जिला और बिहार में तीखा प्रतिवाद व प्रदर्शनों का सिलसिला निरंतर ज़ारी है। हर तरफ से यह आवाज़ उठ रही है कि- एक सुनियोजित राजनितिक साजिश के तहत मनोज मंजिल समेत सभी 23 माले कार्यकर्ताओं-समर्थकों को फंसाया गया है। जिनमें से एक व्यक्ति की उम्र तो 90 साल से भी अधिक है और वे सरपंच भी रह चुके हैं। मनोज मंज़िल माले के विधायक के साथ साथ इन्क़लाबी नौजवान सभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाकपा माले केंद्रीय कमिटी सदस्य रहे हैं।
 
भाकपा माले के इसे भाजपा द्वारा विपक्ष की आवाज़ बंद करने और भोजपुर जैसे आंदोलनकारी क्षेत्र में फिर से सामंती-सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ाने की कवायद करार दिया है। पार्टी ने यह भी कहा है कि ज़ल्द ही वह इस मामले में हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी।
 
माले ने भाजपा पर यह भी आरोप लगाया है कि इसी भोजपुर क्षेत्र के साथ साथ बिहार प्रदेश में उसके प्रत्यक्ष संरक्षण में सामंती ताकतों द्वारा आज तक दर्जनों जनसंहार करके सैकड़ों गरीबों-दलितों को मार डाला गया लेकिन आज तक किसी एक को भी कोर्ट ने सज़ा नहीं दी। लेकिन एक संदिग्ध मौत का फर्जी मुकदमा करके जिस तरीके से मनोज मंज़िल समेत 23 माले कार्यकर्ताओं को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है- यह न्याय का संहार है! जिसके ख़िलाफ़ बिहार की विधानसभा से लेकर पूरे भोजपुर और प्रदेश में सड़कों का जनांदोलन तेज़ किया जाएगा।

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