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'कुकी समझौते' के ख़िलाफ़ थे सीएम, पूरा होने से पहले मणिपुर में भड़की हिंसा : रिपोर्ट

अगर 8 मई को कुकी समूहों के साथ समझौता हो जाता तो इससे मैतेई समुदाय में काफ़ी निराशा होने की संभावना थी। सीएम का संबंध इसी समुदाय से है।
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फ़ोटो : PTI

'द वायर' की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार 8 मई को कुकी विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते को अंतिम रूप देने की गृह मंत्रालय(MHA) की योजना 3 मई को मणिपुर में चुराचांदपुर-बिष्णुपुर सीमा के तोरबुंग क्षेत्र में हिंसा के कारण बाधित हो गई।

रिपोर्ट में गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि कुकी समुदाय के सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) समूहों के नेताओं को (2016 के वार्ताकार के जरिए) नरेंद्र मोदी के साथ चल रही शांति वार्ता के परिणामस्वरूप समझौते को औपचारिक रूप देने के लिए नई दिल्ली आने के लिए आमंत्रित किया जाना था।

इस दावे की कथित तौर पर एक सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SoO) नेता द्वारा पुष्टि की गई थी। उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया, “हां, हम लगभग एक समझौते पर पहुंच गए थे; उस समझौते के तौर-तरीके संविधान की छठी अनुसूची की तर्ज पर होने चाहिए जो हमारी मांग रही है। हमें यह आभास दिया गया था कि हमें छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद मिलेगी, जैसे असम के बोडो को मिली है, जो हमारे राजनीतिक आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण जीत होती। इम्फाल में राज्य सरकार से वित्तीय स्वतंत्रता के साथ, यह लगभग एक अलग राज्य होने जैसा होता।”

हालांकि, नेता ने कहा कि हिंसा के बाद एसओओ के रुख में बदलाव आया है। उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया,"यहां एक अलग राज्य की मजबूत सार्वजनिक मांग है, क्षेत्रीय परिषद की नहीं, और इसलिए, हमारा रुख भी बदल रहा है।"

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि जहां भाजपा 8 मई को कुकी SoO समूहों के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के पक्ष में थी, वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह "बेहद नाखुश" थे।

यह खुलासा कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों को छठी अनुसूची के दायरे में शामिल करने के प्रस्ताव पर कई मैतेई नागरिक समाज संगठनों द्वारा व्यक्त किए गए विरोध और इस डर के बाद हुआ है कि एक "अलग प्रशासन" राज्य की "क्षेत्रीय अखंडता" को प्रभावित करेगा।

यदि केंद्र सरकार ने 8 मई को कुकी समूहों के साथ समझौते को सफलतापूर्वक सील कर दिया होता, तो इससे मैतेई गुटों के बीच काफी निराशा पैदा होने की संभावना थी, जिससे संभावित रूप से विरोध की लहर भड़क सकती थी। द वायर द्वारा उद्धृत अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री सिंह, जो मैतेई समुदाय से आते हैं, को अपने ही समुदाय से प्रतिक्रिया मिलने की आशंका थी।

ऐसा इस बात के कारण था कि इस तरह के कदम का उनके राजनीतिक करियर पर सीधा असर पड़ सकता था। विशेष रूप से, सिंह अपनी पार्टी के भीतर चल रहे आंतरिक असंतोष से जूझ रहे हैं, जिसका नेतृत्व भाजपा के भीतर अन्य प्रमुख मैतेई शख्सियत कर रहे हैं। वास्तव में, पार्टी विधायकों के समूह ने हाल ही में अप्रैल में नेतृत्व परिवर्तन के लिए रैली करते हुए नई दिल्ली की यात्रा की थी। रिपोर्ट में नाम न छापने की शर्त पर एक कांग्रेस विधायक का भी हवाला दिया गया है, जिन्होंने हिंसा से जुड़ी घटनाओं में सीएम की भूमिका पर सवाल उठाया है, क्योंकि कुछ कुकी नेता सीएम पर उनके समुदाय के खिलाफ हिंसा का समर्थन करने का आरोप लगाते रहे हैं और इसे 'राज्य-प्रायोजित' हिंसा करार दिया है।

कांग्रेस विधायक को यह कहते हुए उद्धृत किया गया: “हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कुकी को छठी अनुसूची देकर 2024 के आम चुनावों के लिए मणिपुर बाहरी संसदीय सीट को सुरक्षित करने पर विचार कर रही होगी, लेकिन इसका सीधा असर बीरेन पर पड़ा होगा। इसका मतलब यह होता कि सिर्फ मैतेई जनता ही उनके खिलाफ नहीं उठती, बल्कि उन्हें हटाने के लिए उनकी पार्टी के भीतर विद्रोह और भी मजबूत हो जाता।”

उन्होंने आगे कहा, “इसके बाद गंभीर प्रश्न सामने आते हैं: चूंकि बीरेन के पास शांति समझौते पर अंदरूनी जानकारी थी; क्या उन्होंने अरामबाई तेंगगोल और मैतेई लीपुन जैसे कट्टरपंथी समूहों की मदद से अपने खिलाफ संभावित लहर को मोड़ने की कोशिश की, जो उनके समर्थक हैं? चूंकि उन समूहों पर इंफाल में कुकियों पर हिंसा करने का आरोप लगाया जा रहा है, इसलिए यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर‍ क्लिक क्ल्कि करें:

Manipur Violence Broke out Days Before Finalisation of Kuki Accord ‘Opposed’ by CM: Report

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