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कार्टून क्लिक: शिक्षा-परीक्षा को सुधारिए, कोचिंग सेंटर ख़ुद बंद हो जाएंगे

अच्छा होता कि पहले स्कूल सुधारे जाते, शिक्षा और परीक्षा की व्यवस्था सुधारी जाती, रोज़गार की स्थिति और शर्तें सुधारी जातीं और फिर यह आदेश जारी किया जाता।
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हमारे देश में आजकल सबकुछ उल्टा-पुल्टा चल रहा है। पहले फ़ैसले ले लिए जाते हैं और फिर उसपर सोचा जाता है। जैसे पहले कृषि क़ानून लागू कर दिए गए और फिर उसपर किसानों से बातचीत की गई और फिर उन्हें वापस लिया गया। जैसे पहले हिट एंड रन क़ानून लागू करने का आदेश दे दिया गया और फिर ट्रक इत्यादि के ड्राइवर्स के साथ बातचीत का निर्णय लिया गया। इसी का एक और उदाहरण है शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार अब कोचिंग संस्थान 16 साल से कम उम्र के विद्यार्थियों का अपने यहां दाखिला नहीं लेंगे।

बेहतर होता कि पहले शिक्षा व्यवस्था सुधारी जाती। इसमें शिक्षा के स्तर के साथ परीक्षा प्रणाली और स्कूलों ख़ासकर सरकारी स्कूल का बुनियादी ढांचा सुधारा जाता और फिर यह आदेश जारी किया जाता। पहले यह विचार किया जाता कि हमारे देश में बच्चों को कोचिंग क्लास लेने की क्या ज़रूरत है, वे क्यों मोटी-मोटी फ़ीस देकर स्कूलों के अतिरिक्त कोचिंग क्लास में पढ़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

आपको मालूम है कि केंद्र सरकार ने गुरुवार को कोचिंग क्लासेज पर बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने निजी कोचिंग संस्थानों के लिए गाइडलाइन जारी की है, जिसके अनुसार 16 साल से कम उम्र के विद्यार्थी कोचिंग क्लास नहीं जा सकते। सरकार ने कहा है कि इस नियम का उल्लंघन करने वालों से एक लाख रुपये तक का जुर्माना वसूला जाएगा। साथ ही कोचिंग संस्थान का रजिस्ट्रेशन भी रद्द किया जा सकता है।

प्राइवेट कोचिंग, ट्यूशन का शायद ही कोई समर्थन करे। शायद ही कोई इस तरह अतिरिक्त पैसा ख़र्च करना चाहे। यह एक अच्छा फ़ैसला होता अगर पहले शिक्षा व्यवस्था सुधारी जाती। और हमारा मानना है कि 16 साल तो क्या किसी को भी प्राइवेट कोचिंग की ज़रूरत ही क्यों पड़े। लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था, उसकी परीक्षा प्रणाली, बेरोज़गारी का आलम और रोज़गार के लिए इतनी बेतुकी और गला-काट प्रतियोगिता है, ऐसे नियम-कायदे हैं कि अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे भी कोचिंग लेने को मजबूर हैं। यही नहीं अब तो कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए CUET के नाम पर ऐसी बेतुकी परीक्षा शुरू की गई है कि उसने कोचिंग सेंटरों का धंधा और बढ़ा दिया है।

और यहां बात केवल सरकारी स्कूलों के स्तर की भी नहीं है, बल्कि सच यह है कि बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले संपन्न परिवारों के बच्चे ही सबसे ज़्यादा कोचिंग लेते हैं। आज के समय में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मां-बाप शायद ही इतने संपन्न और सक्षम हों कि वे अपने बच्चों को प्राइवेट कोचिंग भी दिला सकें। लेकिन महंगे स्कूलों में पढ़ाने के बाद भी अगर बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन लेने की ज़रूरत पड़ रही है तो विचार किया जाना चाहिए कि ऐसा क्यों है। क्यों बच्चों पर इतना अधिक बोझ डाला जा रहा है। क्यों मां-बाप अपना पेट काटकर बच्चों को प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में भेजने को मजबूर हैं।

इसलिए समय की मांग है कि पूरे देश में सभी को एक समान बेहतर शिक्षा और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाएं।

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