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राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।
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आत्मनिर्भर भारत में “हिंदू मुस्लिम बहस इंडस्ट्री” अपने चरम पर है। इस इंडस्ट्री में निवेश कर कर के एक पार्टी 2 सीटों से निकलकर दो बार देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी है। राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मामला 90 के दशक से शुरू होकर 2022 तक पहुँच चुका है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जब राम मंदिर पर फ़ैसला दिया तो लगा कि देश में अब हिंदू मुस्लिम मामलों में कुछ कमी आएगी। लेकिन इस फ़ैसले ने तो इन बहसों में छौंक लगा दिया। राम मंदिर बहस की रेलगाड़ी अब मथुरा और काशी के टूर पर पहुँच गई है।

अब मथुरा और काशी की कढ़ाही पर “बाबर-औरंगज़ेब-मंदिर-मस्जिद” डिश को गर्म किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि टीवी मीडिया और नेता राम मंदिर को भूल गए हैं। टीवी मीडिया हर दिन अपडेट देता है कि आज राम मंदिर में कितनी ईंटें लगीं, कितने मज़दूर ठेकेदार के नीचे काम कर रहे हैं, किसने आज छुट्टी ली और कौन काम पर आया। राम मंदिर की एचडी क्वॉलिटी की फ़ुटेज दर्शकों को दिखाई जा रही हैं। इस राष्ट्रवादी सिलेबस का एक चैप्टर ख़त्म नहीं होता तब तक दूसरा चैप्टर शुरू हो जाता है। इस सिलेबस को पढ़ते पढ़ते धर्म और नेता की भक्ति में लीन जनता अपने दुःख भूल जाती है। 

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