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कोरोना लॉकडाउन: लगातार दूसरे साल भी महामारी की मार झेल रहे किसान!

लॉकडाउन के चलते समस्या सिर्फ सब्जी और फल किसानों को ही नहीं हो रही बल्कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब-हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान अलग-अलग दूसरी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। कहीं मजदूरी की समस्या है तो कहीं खाद और पेस्टीसाइड नहीं मिल रही।
कोरोना लॉकडाउन: लगातार दूसरे साल भी महामारी की मार झेल रहे किसान!
'प्रतीकात्मक तस्वीर'

कोरोना महामारी की दूसरी लहर देशभर में जमकर कहर बरपा रही है। अब तक लाखों की जान जा चुकी है तो वहीं कई लाख लोग अस्पताल में संघर्ष कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए कई राज्यों में लॉकडाउन से कारोबार और आजीविका को तगड़ा झटका लगा है। कोरोना संकट के चलते फल, सब्ज़ियों, दुग्ध उत्पादक, पशुपालक, मुर्गीपालक, मछली-पालक किसानों को बहुत नुक़सान हुआ है। जल्द खराब होने वाली चीजें यानी पेरिशेबल आइटम को लेकर लगातार दूसरा साल है जब किसानों उनकी उपज के दाम नहीं मिल रहे हैं।

लॉकडाउन के चलते समस्या सिर्फ सब्जी और फल किसानों को ही नहीं है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब हरियाणा में किसान अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैं। कहीं मजदूरी की समस्या है तो कहीं खाद और पेस्टीसाइड नहीं मिल रही। कोरोना महामारी की वजह से किसानों को अपनी उपज बेचने में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं देश के अलग-अलग हिस्सों के किसान मंडी की मनमानी की खबरें भी सामने आ रही हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा कर रही केंद्र सरकार के पास फिलहाल महामारी की मार झेल रहे किसानों के राहत के लिए क्या रोडमैप है।

रेट गिरने से फल-फूल और सब्जियों की खेती में घाटा

आपको बता दें कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार भारत में क़रीब 58% जनता कृषि उद्योग पर निर्भर है। ऐसे में महामारी की घातक दूसरी लहर के बीच देश में गेहूं समेत कई अन्य रबी फसलों की कटाई अपने चरम पर है और लगभग 81 फीसदी से ज्यादा पूरी भी हो चुकी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस कटाई पर कोरोना का असर नहीं पड़ा है। हालांकि कोविड और लॉकडाउन  का असर सब्जी और फलों की फसलों पर जरूर देखने को मिल रहा है। रेट गिरने के कारण फल-फूल और सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को लगातार दूसरे साल भी घाटा उठाना पड़ रहा है।

कई राज्यों के किसानों को गेहूं, चना, मसूर की कटाई और बिक्री में ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही क्योंकि आधे से ज्यादा कटाई का काम कोरोना का कहर बढ़ने से पहले ही हो गया था।  लेकिन सब्जी और फूलों की खेती के मामले में उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। सब्जी वाली फसलें बहुत डाउन जा रही हैं। टमाटर, बैंगन, तरबूज को रेट नहीं मिल रहे। कई जगह लॉकडाउन के चलते मंडी (सरकारी) बंद होने के बाद ज्यादा असर पड़ा है।

महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश  राजस्थान समेत कई राज्यों में पूर्ण लॉकडाउन है तो वहीं उत्तर प्रदेश में फिलहाल कुछ दिनों का आंशिक कर्फ्यू और साप्ताहिक बंदी है। इसका सीधा असर गेहूं, चना समेत कई अनाजों के खुले रेट और सब्जी, फल जैसे खराब होने वाले उत्पादों पर पड़ रहा है। किसान हताश, निराश होकर खेतों में ही सब्जियों को सड़ने के लिए छोड़ दे रहे हैं। कई जगह माल बाज़ार तक पहुंच भी जा रहा है तो खरीदार नहीं मिल रहे और जहां खरीदार मिल रहे हैं, वहां सप्लाई अधिक मात्रा में होने के कारण दाम औने-पौने मिल रहे हैं।

शादी समारोहों में पाबंदी भी कर रही आमदनी पर असर

उत्तर प्रदेश की बात करें तो खीरा और तरबूज जैसी गर्मियों में किसानों की कमाई करने वाली फसलों के रेट काफी नीचे चले गए हैं। मंडियों में 15 दिन पहले तक 14-18 रुपए किलो बिकने वाला तरबूज 4-6 रुपए किलो तक में मांगा जा रहा है। 30 से 40 रुपए किलो टमाटर बेचने वाले किसानों को इस साल पांच रुपये किलो में टमाटर बेचना पड़ रहा है।

यूपी में हर साल इस समय शादी समारोहों के चलते सब्जी किसानों की अच्छी-खासी आमदनी होता थी। लेकिन बीते एक साल से उन्हें घाटा का सौदा करना पड़ रहा है। गांव के सब्जी किसानों का कहना है कि शादी समारोहों के लिए गाइडलाइन जारी होने के बाद बाजार में महंगी सब्जियों के दाम घट गए हैं। परवल, टमाटर, गोभी, बीन्स, हरा धनिया मानों कोई पूछने वाला ही नहीं है।

बलिया जिले के तालिबपुर गांव के स्थानिय किसान राम किशन न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहते हैं, “बंदी के कारण लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं, न ही माल बाज़ार तक पहुंच पा रहा है। शादियों में जहां पांच सौ तक की भीड़ आम होती थी, वह अब 50-100 तक सीमित रह गई। ऐसे में अब ऐसे हालात हैं कि टमाटर जैसी अच्छी फसल से भी मुनाफा नहीं घाटा ही मिल रहा है। किसान खेत में मेहनत से टमाटर तोड़ रहे हैं और फिर वाजिब दाम न मिलने पर बाकी बची फसल को सड़ने के लिए ही छोड़ दे रहे हैं,  अब लगता है यही शायद किस्मत को मंजूर है।”

गर्मियों में किसानों की कमाई वाली फसलें खेतों में सड़ने को मजबूर

मध्य प्रदेश की तस्वीर भी उत्तर प्रदेश से अलग नहीं है। यहां सिवनी जिले में पारसपानी गांव के किसान राहुल दत्ता बताते हैं कि उनके बीते दो महीने से करीब 10 एकड़ के खेत में तरबूज लगा है लेकिन कोई खरीदार नहीं मिल रहा है, जो मिल रहे हैं वो आधे से भी कम दाम में खरीदना चाहते हैं। अगर आगे भी यही हाल रहा तो पूरी फसल खेत में ही सड़ सकती है।

राहुल बताते हैं, "कर्ज लेकर लाखों की लागत से तरबूज लगाया था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि अगर फसल नहीं बिकी तो पूरा पैसा डूब जाएगा। कोरोना महामारी का तो पता नहीं लेकिन अगर हालात नहीं बदले तो लॉकडाउन हमें जरूर मार डालेगा।"

महाराष्ट्र के किसानों की हालत भी इस संकट की घड़ी में खस्ता ही है। यहां मशहूर अल्फांसो और रत्नागिरी आम की हालत खराब हो गई है। आलम ये है कि न कोई इन्हें लोकल में पूछने वाला है और नाही माल ग्लोबल में एक्सपोर्ट ही हो पा रहा है। ट्रक और गोदामों में माल सड़ रहा है।

सप्लाई चेन में दिक्कत के चलते किसानों को मिल रहा सस्ता दाम

रत्नागिरी के आम कारोबारी मानस पाटिल के अनुसार लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों में सप्लाई चेन में दिक्कत के चलते किसानों को मिलने वाला दाम सस्ता होता जा रहा है और रिटेल यानी आम उपभोक्ता को फुटकर पर महंगा मिल रहा है। सब्जी, फल और पोल्ट्री सभी के साथ यहां लगभग यही पैटर्न देखने को मिल रहा है। ऐसी परिस्थितियों में किसान और उपभोक्ता दोनों को नुकसान हो रहा है। इस दौरान किसान के मोलभाव की क्षमता कम होती जा रही है, बीच के लोग उसका फायदा उठा रहे हैं।

लखनऊ जैसे शहर में तरबूज फुटकर 20 रुपए किलो तक बिक रहा है लेकिन किसान को चार रुपए किलो का रेट मुश्किल से मिल रहा है उसमें भी प्रति क्विंटल 5 किलो कर्दा (एक कुंटल पर 5 किलो ज्यादा देना होता है) लिया जा रहा है। दिल्ली मुंबई समेत कई शहरों के लोगों ने ट्वीट पर लिखा कि वो मिर्च 20 रुपए की 200 ग्राम तक, आम 80 रुपए किलो तो टमाटर 30 रुपए किलो से ज्यादा में खरीद रहे हैं।

राजस्थान में सूरतगढ़ जिले के किसान अनिल सोलंकी कहते हैं, "रबी फसल की कटाई पर कोरोना या लॉकडाउन का ज्यादा असर नहीं पड़ा था लेकिन बाजार पर पूरा असर देखने को मिल रहा है। बंदा के चलते कारोबारी आ नहीं पा रहे, और जो आ रहे हैं वो फसलों के आधे दाम दे रहे हैं, साथ ही छोटे किसानों को आगे और रेट गिरने को लेकर डरा भी रहे हैं। उनका कहना है कि अगर अभी फसल नहीं बेची तो आगो कोई खरीदार नहीं मिलेगा, फिर आपकी फसल के साथ आगे कुछ भी हो सकता है। इसलिए कई फसलों को किसान कम रेट पर बेच देने को मजबूर हैं।"

किसान फल-सब्जी तो उगाएं, लेकिन उसके घाटे को कौन झेले?

गौरतलब है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मार्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में सब्जियों का उत्पादन बढ़कर 193.61 मिलियन टन होने का अनुमान जताया था। जबकि साल 2019-20 में ये उत्पादन 188.91 मिलियन टन था। कुल बागवानी फसलों (फल-सब्जी) की उपज 326.58 मिलियन टन रहने का अनुमान है। आंकड़ों के अनुसार देश के सभी राज्यों में 2020-21 (प्रथम अनुमान) के मुताबिक 10.71 मिलियन हेक्टेयर में सब्जियों की खेती हो रही है, जिससे 193.61 मिलियन टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि 2019-20 में 10.30 हजार हेक्टेयर रकबे में 188.91 मिलियन टन उत्पादन हुआ था वहीं 2018-19 में 10.07 हजार हेक्टेयर रकबे में 183.17 मिलियन टन सब्जी का उत्पादन हुआ था। वहीं फलों की बात करें तो 2020-21 प्रथम अनुमान के मुताबिक 6.96 मिलियन हेक्टेयर में खेती हो रही है और 103.23 मिलियन टन उत्पादन का अनुमान है।

केंद्र सरकार चाहती है कि किसान धान-गेहूं, गन्ना से हटकर फल-सब्जियों की खेती करें। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के बजट सत्र के दौरान देश के 86 फीसदी छोटे और मझोले किसानों से धान-गेहूं छोड़कर मांग के अनुसार नकदी फसल लेने की कह चुके हैं। पीएम का इशारा फल और सब्जियों की खेती की तरफ था, उन्होंने स्ट्रॉबेरी से लेकर चेरी टमाटर तक का बकायदा उदाहरण दिया था।

कैसे पूरा होगा 2022 तक किसानों की दोगुनी आमदनी का वादा?

ऑपरेशन ग्रीनरी के तहत सब्जियों की खेती को बढ़ावा देना, फसल उपरांत होने वाले नुकसान से बचाने और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए प्याज,टमाटर और आलू के बाद 22 फसलों को योजना में शामिल किया गया है। लेकिन बाजार में ये योजनाएं जमीन पर आम किसानों के बीच नजर नहीं आ रही हैं। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा कर रही मोदी सरकार क्या वाकई अपना वादा पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम उठाती है या ये बात भी ‘15 लाख’ की तरह ही एक जुमला साबित होती है।

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