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Covid 19: कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर उठे सवाल, लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं

सोशल मीडिया में यह जो कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने कोविशील्ड लिया है, उन सब को ख़तरा है, ये बिल्कुल झूठ-मूठ और बेबुनियाद बात है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं।
Satyajeet

जबसे यह ख़बर बाहर आई है कि फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) ने ब्रिटेन की कोर्ट में यह स्वीकार किया है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन के कुछ साइट इफेक्ट हो सकते हैं, उसकी कोविशील्ड वैक्सीन (Covishield Vaccine) को लेकर कई तरह के सवाल और डर हमारे बीच फैल गए हैं। लेकिन इसकी सच्चाई क्या है। क्या यह वाकई नुकसानदायक है। हमने यही जानने की कोशिश की प्रख्यात इम्यूनोलॉजिस्ट (Immunologist) और Indian Institute of Science Education and Research, Pune (IISER) से जुड़े रहे प्रो. सत्यजीत रथ से।

कोरोना से जंग में लोगों को पहला हथियार ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के रूप में ही मिला था। भारत में इसे सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया।

इस पूरे मसले पर प्रो. सत्यजीत रथ से हुई वीडियो बातचीत के हम कुछ अंश आपके सामने रख रहे हैं।  

सवाल— कोविशील्ड को लेकर ये जो बातें उठ रही हैं। सवाल उठ रहे हैं। आशंकाएं और डर जताया जा रहा है। इस पर आपका क्या कहना है।

प्रो. रथ— इसमें कोई नई बात है नहीं। यह जितनी बातें हैं वे वैज्ञानिक क्षेत्र में जानी-सुनी बातें हैं। समझी बातें हैं। इसको लेकर दो साल पहले भी मीडिया और सोशल मीडिया में बातें हुईं हैं। आज का फ़र्क़ सिर्फ़ तकनीकी है कि ये बातें कंपनी ने स्वीकार की हैं, लेकिन यह सिर्फ़ एक क़ानूनी मुद्दा है। इसमें कोई नई बात नहीं है। इसमें कोई नए सबूत सामने नहीं आए। जो बात पिछले दो सालों से सारी दुनिया जानती है वो एस्ट्राजेनेका ने कोर्ट में कुबूल की है।

मुख्य बात है कि टीके को लेकर कोई नए सुबूत नहीं हैं, कुछ बदला नहीं है। वैक्सीन की जो सुरक्षिता है उसमें कोई बदलाव नहीं आया है।

कोविशील्ड के टीके की तकनीक को एडनोवायरल वेक्‍टर (Adenoviral Vector) की तकनीक कहते हैं। यानी टीके में एक एडनो वायरस है जिसमें कोविड के प्रोटीन का एक टुकड़ा डाला गया है जिसकी वजह से हम कोविड के वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी (antibody) बनाते हैं। ऐसी तकनीक वाली कई वैक्सीन हैं।

इस एडनोवायरल तकनीक वाली वैक्सीन को लेकर यह मुद्दा सामने आया है कि मस्तिष्क में ख़ून के थक्के जम सकते हैं। लेकिन यह बहुत रेयर यानी असाधारण घटनाएं हैं। जैसे एक-दो लाख में एक। हमारी नज़र में इसलिए आई क्योंकि हम इतनी बड़ी मात्रा में, वैक्सीन का प्रयोग कर रहे थे।

इसलिए सोशल मीडिया में यह जो कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने कोविशील्ड लिया है, उन सब को ख़तरा है, ये बिल्कुल झूठ-मूठ और बेबुनियाद बात है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं।

इसके अलावा यह जो रेयर असर देखा भी गया है एक-दो लाख में एक पर, वो भी वैक्सीन की डोज़ के चंद दिनों के भीतर ही देखा गया है। यानी बाक़ी 99 हज़ार 999 लोगों को उस समय अगर कुछ नहीं हुआ तो भविष्य में भी कुछ होने की गुंजाइश नहीं है।

इसलिए इस तरह की अफ़वाहों पर यक़ीन न करें और अपने आप न डरें, न दूसरों को डराएं।

सवाल— लोगों का यह भी कहना है कि कोविड होने या कोविड की वैक्सीन लेने के बाद उन्हें थकान रहने लगी है। वह जल्दी जल्दी बीमार होते हैं और बीमारी देर में जाती है। यही नहीं युवाओं में भी हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। और ये सब इसी वजह से हो रहा है। सोशल मीडिया पर ये सवाल आम हैं।

प्रो. रथ— जी, बिल्कुल नहीं। ऐसा कोई आंकड़ा या सुबूत नहीं है। लॉन्ग कोविड एक बात है, लेकिन इसकी मात्रा बेहद कम है। और इतने सालों बाद तो इसकी संभावना बिल्कुल नहीं। इसकी वजह कुछ और हैं। ऐसी बीमारियां कई अलग वजह से पैदा होती रहती हैं।    

जैसे आपके पास नौकरी का न होना। नौकरियां कम होने की वजह से भी लोग तनाव में बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा अब डायबटीज और ब्लड प्रेशर की बीमारी बढ़ती जा रही है। उन बीमारियों के दौरान भी ऐसे हादसे होते हैं। इसका कोविड या उसकी वैक्सीन से जुड़े होने का कोई आंकड़ा या वैज्ञानिक सुबूत हमारे पास नहीं है।

सवाल— हम भारतीयों को जो दूसरी वैक्सीन लगाई गई वो थी कोवैक्सीन (Covaxin)। जिसे भारत बायोटेक ने बनाया। क्या कोवैक्सीन को लेकर भी कोई सवाल या आशंका हो सकती है?

प्रो. रथ— कोवैक्सीन की तकनीक कोविशील्ड से कुछ अलग है। यह तकनीक किल्ड वायरस यानी निष्क्रय वायरस वाली (inactivated vaccine or killed vaccine) वाली। तो इसके अपनी ख़ासियत है, अपनी मर्यादाएं हैं।

कोविशील्ड का फ़ायदा यह है कि यह बनाने में आसान है। इसलिए हमारे देश में क़रीब नब्बे फ़ीसदी लोगों को कोविशील्ड लगी। कोवैक्सीन बनाना ज़्यादा मुश्किल है। इसलिए वह कम लोगों को मिल पाई। जिस TTS यानी थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम की हम बात कर रहे हैं, जो बहुत रेयर है, वो भी कोवैक्सीन के साथ नहीं है। कोविशील्ड से जो एंटी बॉडीज बनती हैं वो कोवैक्सीन से ज़्यादा मात्रा में बनती हैं। हर वैक्सीन के अपनी ख़ासियत, फायदे और मर्यादाएं हैं।

इसलिए चाहे हमें कोविशील्ड मिला है या कोवैक्सीन मिला है। सभी सुरक्षित हैं। सभी में कोविड के खिलाफ सुरक्षा प्रणाली बनी हुई है। और इतने महीनों-सालों बाद उसके रेयर साइट इफेक्ट उभर कर आने का कोई वैज्ञानिक सुबूत नहीं है।

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