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दिल्ली: सेप्टिक टैंक सफ़ाई के दौरान जान गंवाते मज़दूर, 15 दिन के भीतर दूसरा हादसा

दिल्ली के आज़ादपुर इलाके में सेप्टिक टैंक में उतरे दो मज़दूरों की मौत हो गई। ये मज़दूर सुरक्षा उपकरण नहीं पहने हुए थे और 400 रुपये की दिहाड़ी के लिए सेप्टिक टैंक में उतरे थे।
सेप्टिक टैंक
Image Courtesy: NDTV

दिल्ली: उत्तर पश्चिम दिल्ली के आजादपुर इलाके में सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान जहरीली गैस से दो लोगों की मौत हो गई है। जबकि एक की हालत स्थिर बनी हुई है।

पुलिस ने सोमवार को बताया कि रविवार शाम उसे सूचना मिली की आजादपुर के जी ब्लॉक में स्थित गोल्ड फैक्टरी में सेप्टिक टैंक साफ करते वक्त तीन मजदूर बेहोश हो गए हैं।

अग्निशमन सेवा के अधिकारियों के मुताबिक सूचना रविवार की शाम करीब 6.45 बजे मिली और इसके बाद बचाव कार्य के लिए चार दमकल वाहन मौके पर भेज गए। पुलिस ने बताया कि बड़ा बाग स्थित जीडी करनाल रोड औद्योगिक क्षेत्र की फैक्टरी में सोने और चांदी की जंजीर बनती हैं।

उन्होंने बताया कि फैक्टरी में रसायनों का इस्तेमाल गहनों को बनाने में इस्तेमाल होता है और सेप्टिक टैंक का इस्तेमाल उन्हें साफ करने में किया जाता है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि फैक्टरी मालिक राजेंद्र सोनी ने टैंक को साफ करने का ठेका नजफगढ़ निवासी प्रमोद डांगी (35) को दिया था।

उत्तर पश्चिम दिल्ली के पुलिस उपायुक्त विजयंता आर्या ने बताया, ‘टैंक को साफ कर रहे सात लोगों में से छह की तबीयत बिगड़ गई, जिनमें से तीन बेहोश हो गए। सभी को बीजेआरएफ अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल पहुंचने पर दो लोगों- इदरीस (45) और सलीम (45) को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। दोनों उत्तर प्रदेश के खुर्जा के रहने वाले थे। एक अन्य इस्लाम (40) का अस्पताल में इलाज चल रहा है और उसकी हालत स्थिर है। जबकि अब्दुल सद्दाम (35), सलीम (35) और मंसूर (38) को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।

उपायुक्त ने बताया कि फक्टरी मालिक और ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। मजदूर सुरक्षा उपकरण नहीं पहने हुए थे और 400 रुपये की दिहाड़ी के लिए सेप्टिक टैंक में उतरे थे।

गौरतलब है कि इससे पहले राजधानी दिल्ली के बदरपुर के मोलड़बंद में 10 अक्टूबर, शनिवार शाम चार मंजिला बिल्डिंग में रह रहे 18 परिवारों के लिए बनाए गए सेप्टिक टैंक की सफाई करने उतरे तीन में से दो लोगों की जहरीली गैस की वजह से मौत हो गई थी। मृतकों का नाम देवेंद्र और सतीश चावला था।

आपको बता दें कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल नवंबर में सेप्टिक टैंकों की सफाई मुफ्त में सुनिश्चित करने की घोषणा की थी और कहा था कि वह इस पर 150 करोड़ रुपये की राशि खर्च करेंगे लेकिन जानकारों का दावा है कि यह योजना अब तक लागू नहीं हुई।

हादसों पर लगाम नहीं

वैसे सीवर और सेप्टिक टैंक को लेकर हादसे केवल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही नहीं बल्कि देशभर में हो रहे हैं। इसी साल अगस्त महीने में झारखंड के देवघर जिले में एक निर्माणाधीन सेप्टिक टैंक के भीतर उतरे छह लोगों की जहरीली गैस के कारण मौत हो गई थी।

इस साल मानसून सत्र में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने बताया कि पिछले तीन वर्षों के दौरान देश में सीवर और या सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय कुल 288 लोगों की मौत हो गयी है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि राज्यों से मिली रिपोर्टों के अनुसार 31 अगस्त 2020 तक पिछले तीन वर्षों के दौरान सीवर या सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय 288 कर्मियों की मौत हो गयी।

आठवले ने कहा कि 18 राज्यों के 194 जिलों में 2018-19 के दौरान मैला ढोने वाले लोगों का एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया गया था। उन्होंने बताया कि आंकड़ों के अनुसार सर्वेक्षण में 51,835 मैला ढोने वाले लोगों की पहचान की गई। जिनमें से 24,932 लोगों की उत्तर प्रदेश में पहचान की गई थी।

इस आंकड़े पर प्रतिक्रिया देते हुए मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने की दिशा में काम करनेवाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा था कि, कानून सही तरीके से लागू नहीं होने से सफाई कर्मी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित कार्यकर्ता ने कहा, 'मैला ढोना रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम के तहत किसी एक भी व्यक्ति को अब तक सजा नहीं मिली है। अधिनियम चुनावी घोषणा पत्र के वादों की तरह झूठे वादे नहीं होने चाहिए।'

प्रतिबंधित है मैनुअल स्कैवेंजिंग

आपको बता दें कि 2013 में बने कानून के मुताबिक मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी हाथ से मैला ढोना प्रतिबंधित है। बिना किसी सुरक्षा के साधनों के लोगों को सीवर या सेप्टिक टैंक में उतारकर सफाई करवाना मैनुअल स्कैवेंजिंग के तहत आता है। लेकिन इसके बावजूद पूरे देश से इस तरह की खबरें आती रहती हैं। अगर इनके आंकड़ों पर जाएं तो यह सूरत और भयावह नजर आती है।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 में सीवर में दम घुटने से 172 लोगों की मौत हुई थी। वहीं साल 2017 में इस तरह के 323 मौत के मामले सामने आए। तो वहीं राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग यानी एनसीएसके के मुताबिक 2017 के शुरुआत के बाद हर पांचवें दिन एक सफाईकर्मी सेप्टिक टैंक सफाई करते हुए मर रहा है।

हालांकि इस मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है लेकिन पिछले दिनों मैला ढोने की प्रथा खत्म करने के लिए काम करने वाले नागरिक समाज संगठनों के गठबंधन राष्ट्रीय गरिमा अभियान द्वारा 11 राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया कि ज्यादातर मामलों में न तो एफआईआर दर्ज की गई है और न ही पीड़ित के परिजनों को कोई मुआवजा दिया गया था।

रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के 59 प्रतिशत मामलों में कोई भी एफआईआर दायर नहीं की गई है। वहीं 6 प्रतिशत मामलों में परिजनों को ये जानकारी नहीं है कि एफआईआर दायर हुई है या नहीं। कुल मिलाकर सिर्फ 35 प्रतिशत मामलों में ही एफआईआर दायर की गई है। वहीं सिर्फ 31 प्रतिशत मामलों में पीड़ित को मुआवजा दिया गया।

सरकारों का संवेदनहीन रवैया

सफाई कर्मचारियों को लेकर सरकार का रवैया भी असंवेदनशील रहा है। 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि 1993 से लेकर अब तक सीवर में दम घुटने की वजह से मरे लोगों और उनके परिवारों की पहचान की जाए और हर एक परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चार साल बीत जाने के बाद भी अभी तक आयोग के पास सिर्फ मृतकों की संख्या की ही जानकारी है। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के पास यह जानकारी भी नहीं है कि देश में कुल कितने सफाईकर्मी हैं।

आपको बता दें कि यूरोप और दूसरे विकसित देशों में सफाई के लिए आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल होता है और ऐसे में वहां सफाईकर्मियों की मौत की घटनाएं न के बराबर होती हैं। लेकिन हमारे यहां ‘स्वच्छ भारत’ का नारा तो है मगर केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक किसी को सफाई कर्मियों की चिंता नहीं है, जिसके चलते ऐसे हादसे लगातार हो रहे हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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