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सेप्टिक टैंक-सीवर में मौतें जारी : ये दुर्घटनाएं नहीं हत्याएं हैं!

बड़ा सवाल यह है कि जिलाधिकारी और अन्य संबंधित सरकारी अधिकारी इन मौतों को गंभीरता से लेते हुए कानून का सख्ती से पालन करवाएंगे? कौन दिखाएगा इतनी संवेदनशीलता कि कोई व्यक्ति सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान न मरे? हमारा सभ्य समाज? सरकारें? प्रधानमंत्री?
सेप्टिक टैंक
दिल्ली के बदरपुर में सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान दो लोगों की मौत। फोटो साभार : Times of India

सेप्टिक टैंक/सीवर में देश भर में मौतों का सिलसिला निरन्तर जारी है। हाल ही में बदरपुर के मोलरबंद में सेप्टिक टैंक साफ़ कर  रहे एक सफाईकर्मी और बाद में उसे बचाने के लिए टैंक में उतरे मकान मालिक की जहरीली गैस की चपेट में आने से मौत हो गई। मरने वालों में 60 वर्षीय सतीश चावला (मकान मालिक) और 40 वर्षीय देवेन्द्र (सफाईकर्मी) हैं।

सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) के अनुसार अब तक सेप्टिक टैंकों/सीवर में करीब  दो हजार लोगों की मौतें हो चुकी हैं।

यह दुर्घटनाएं नहीं हत्याएं हैं, जिम्मेदार कौन?

सेप्टिक टैंको/सीवर की सफाई करने वाले दलित होते हैं और ये दलित गरीब होते हैं। इन्हीं का फायदा उठाकर ठेकेदार इन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सेप्टिक टैंकों और सीवर में सफाई के लिए उतार देते हैं। ये अपनी मर्जी से नहीं उतरते बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और जाति व्यवस्था इन्हें बाध्य कर रही है। सेप्टिक टैंकों/सीवर में होने वाली ये मौतें कोई अनजाने में होने वाली दुर्घटना नहीं, बल्कि ये हत्याएं हैं। इन हत्याओं का जिम्मेदार कौन है? और कब तक चलेगा यह सिलसिला?

हर दूसरे दिन देश में कहीं न कहीं एक सेप्टिक टैंक/सीवर साफ करने वाले की जहरीली गैस से दम घुटने की वजह से मौत हो रही है। भले ही संविधान हमें गरिमा से आजीविका कमाने और जीने का हक देता हो लेकिन वास्तविकता इसके एकदम ही विपरीत है। हमारी सरकारें अपनी जातिवादी मानसिकता के कारण एक जाति विशेष के लोगो को लगातार मौत के मुँह में धकेल रहीं हैं। सीवर और सेप्टिक टैंक  हमारे लिए रोजी रोटी का जरिया नहीं, बल्कि मौत के कुएं बन गए हैं।

सेप्टिक टैंक/सीवर की सफाई के बारे में क्या कहता है क़ानून

कानून सीवर वर्कर को सीवर में घुसकर सफाई करने की इजाजत ही नहीं देता। आपाताकालीन परिस्थितियों में भी बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर/सेप्टिक टैंक के अन्दर जाने की अनुमति नहीं देता। पर कड़वी सच्चाई ये है कि सेप्टिक टैंक/सीवर क्लीनर वर्कर को बिना सुरक्षा उपकरणों के उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है।

कानून के अनुसार मैला प्रथा या मानव मल सफाई का कार्य दण्डनीय अपराध है। जो भी इस कार्य को करने के लिए बाध्य करता है उस पर जुर्माना और उसके जेल भेजने का प्रावधान है। इसके लिए अधिकतम सजा पांच साल की जेल या पांच लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते है। पर देखिए कि ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुर्नार्वास अधिनियम 2013’ (जिसे संक्षेप में एम.एस. एक्ट 2013 कहा जाता है) को बने और लागू हुए सात साल हो गए पर किसी भी उस व्यक्ति को सजा नहीं हुई जो सफाई कर्मचारियों से मैला ढुलवाने या सेप्टिक टैंक/सीवर साफ़ करवाते हैं।

एम.एस.एक्ट 2013 में सरकार सजा को और अधिक सख्त करने की बात तो करती है पर अधिनियम का क्रियान्वयन सख्ती से नहीं करवाती फिर सजा सख्त करने से भी क्या लाभ?

एम.एस. एक्ट 2013 के कानून के विभिन्न अनुच्छेदों के अनुसार –

  • कोई भी सरकारी अधिकारी या प्राइवेट ठेकेदार सफाई कर्मचारियों से किसी भी रूप में मैला साफ नहीं करवा सकता। ऐसा करने के लिए वह अधिकारी सजा का पात्र होगा और अगर वो ऐसा करता है तो उसे सफाई कर्मचारी को उस काम से तुरंत रिहा करना होगा।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियो के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 के अनुच्छेद 6 के अनुसार सीवर सफाई के लिए किसी भी प्रकार का ठेका या एग्रीमेंट अमान्य है।
  • अनुच्छेद 7 के अनुसार सीवर एवं सेप्टिक टैंक में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से (खतरनाक सफाई) रोजगार निषेध है।
  • अनुच्छेद 8 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अनुच्छेद 6 का उल्लंघन पहली बार करता है उसको एक वर्ष की कैद या पचास हजार रूपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। दुबारा या बार-बार ऐसा करने पर सजा को बढ़ाकर दो वर्ष या एक लाख जुर्माना या दोनों किये जा सकते हैं।
  • अनुच्छेद 9 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अनुच्छेद 7 का उल्लंघन पहली बार करता है तो उसे दो वर्ष की कैद या दो लाख रूपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। दूसरी बार या बार-बार करने पर इसकी सजा बढ़ाकर पांच वर्ष कैद या पांच लाख जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • अनुच्छेद 14-1(अ) के अनुसार सफाई कर्मचारी की पहचान के बाद उसे तुरंत 40,000 रुपयों की नकद सहायता दी जाए पुनर्वास के लिए।

क्यों नहीं होता कानून का पालन

एम.एस. एक्ट 2013 के कानून को लागू करने की पूरी जिम्मेदारी जिलाधिकारी को दी गई है। इसके सन्दर्भ में सभी फैसले जिलाधिकारी ही लेता है। अगर आपसे कोई जबरदस्ती सेप्टिक टैंक या सीवर की सफाई करवाता है या आप ऐसा किसी को करते हुए देखते हैं तो इसकी शिकायत जिलाधिकारी के पास दर्ज करा सकते हैं। या फिर आप इसकी शिकायत नजदीकी पुलिस थाने में प्रीवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटी एक्ट के अंतर्गत भी करवा सकते हैं।

बड़ा सवाल यह है कि जिलाधिकारी और अन्य संबंधित सरकारी अधिकारी इन मौतों को गंभीरता से लेते हुए कानून का सख्ती से पालन करवाएंगे? कौन दिखाएगा इतनी संवेदनशीलता कि कोई व्यक्ति सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान न मरे? हमारा सभ्य समाज? सरकारें? प्रधानमंत्री?

सरकार और समाज दोनों कर रहे उपेक्षा

सफाई कर्मचारी आन्दोलन इन ‘हत्याओं’ को रोकने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर, मुख्यमंत्री, संबंधित मंत्रालयों, जिला अधिकारियों, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सभी को ज्ञापन देता है, पर कहीं से कोई जवाब नहीं आता। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही हैं।

हमारी सरकारें गौरक्षा के प्रति जितनी संवेदनशील हैं उतनी दलित इंसानों के लिए नहीं हैं! दूसरी ओर हमारा कथित सभ्य समाज भी इसकी उपेक्षा कर रहा है। देश में हजारों लोग सीवर/सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मर रहे हैं। पर इस मुद्दे पर लोग ‘देशभक्ति’ क्यों नहीं दिखा रहे हैं? इन मौतों को न तो सरकार गंभीरता से ले रही है और न ही समाज।

स्पष्ट है कि ये राजनीतिक हत्याएं हैं। प्रधानमंत्री इस बात की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते कि इस देश में एक भी व्यक्ति सीवर या सेप्टिक टैंक में नहीं मरेगा। इसके लिए प्रधानमंत्री कोई एक्शन प्लान क्यों नहीं बनाते?

देश की राजधानी दिल्ली में जब सेप्टिक टैंक और सीवर में सफाई कर्मचारियों की मौतें हो रही हैं तो मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इन्हें रोकने का कोई गंभीर एक्शन प्लान क्यों नहीं बनाते?

वर्ष 2017-18 में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अखबारों में कुछ विज्ञापन देकर अपने कर्तव्य की खानापूर्ति कर दी थी कि बिना सरकार की अनुमति के कोई मकान मालिक अपने घर के सेप्टिक टैंक की सफाई नहीं करवा सकता। सफाई के समय सरकार के संबंधित विभाग  का प्रतिनिधि भी मौजूद रहेगा और आपातकालीन स्तिथि में पूरे सुरक्षा उपकरणों के साथ ही किसी व्यक्ति को सेप्टिक टैंक या सीवर में उतारा जाएगा अन्यथा मशीन से सफाई की जायगी। पर इसका इतना प्रचार-प्रसार नहीं किया गया कि हर व्यक्ति को इसकी जानकारी हो। दूसरी ओर क़ानून का सख्ती से पालन नहीं किया गया। इस तरह का काम करवाने वाले किसी भी व्यक्ति को जेल नहीं भेजा गया।

सेप्टिक टैंक/सीवर साफ़ करने वाले वर्कर जागरूक हों

ऐसे में जरूरी है कि सफाई कर्मचारी सीवर/सेप्टिक टैंक साफ़ करने वाले वर्कर जागरूक बनें और अपने हक को पहचानें। वे ये जाने कि इस देश में उनके लिए कोई कानून भी है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है। गौरतलब है कि मैला ढोने वालों से संबंधित पहला कानून 1993 में आया था। उसके ठीक 20 साल बाद 2013 में भी दूसरा कानून आया जिसका नाम है- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों का नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013। इसके अलावा 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी आया। हमें इस कानून और आदेश की जानकारी होना जरूरी है। इन कानूनों और आदेशों के अनुसार यदि इमरजेंसी की स्थिति में सेप्टिक टैंक/सीवर की सफाई के लिए अन्दर उतारना  हो तो बिना पूरे सुरक्षा उपकरणों के नहीं उतारा जा सकता। आप भी जागरूक बने और बिना सुरक्षा उपकरणों के सेप्टिक टैंक और सीवर में उतरने को कभी हाँ न करें। जान है तो जहान है। जानकार बनिए और सुरक्षित रहिए।

मशीन से क्यों नहीं हो सकती सफाई?

भारत विश्व में महाशक्ति होने का दावा करता है तो क्या सीवर एवं सेप्टिक टैंक की सफाई का मशीनीकरण नहीं कर सकता? क्या हमारी सरकार इस काम को इंसानों को उसमें अन्दर उतारे बिना साफ कराने की तकनीक इजाद नहीं कर सकती? ऐसा करने से सेप्टिक टैंक/सीवर में मरने वालों कि जान बचाई जा सकती है।

यक्ष प्रश्न यही है कि क्या सरकार हम सफाई कर्मचारियों की जान की कीमत समझेगी और और गंभीर रूप से ऐसा कोई ठोस कदम उठाएगी जिससे किसी भी व्यक्ति की सेप्टिक टैंक/सीवर की सफाई के दौरान मौत न हो?

लेखक सफाई कर्मचारी आन्दोलन के कार्यकर्ता हैं। विचार निजी हैं।

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