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न्यूनतम वेतन वृद्धि समेत कई मांगों को लेकर मिड डे मील वर्कर्स का प्रदर्शन

मिड डे मील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में देशभर से आए मिड डे मील वर्कर्स ने दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया।
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दिल्ली: देश भर की मिड डे मील वर्कर्स ने न्यूनतम वेतन वृद्धि, स्थायी नौकरी और पेंशन लाभ की मांग को लेकर सोमवार 3 दिसंबर को दिल्ली के संसद मार्ग स्थित जंतर मंतर पर जोरदार प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन सभा की अध्यक्षता मिड डे मील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा राय चटर्जी ने की। सभा को फेडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव मालिनी मेस्ता, उपाध्यक्ष जय भगवान, कोषाध्यक्ष हिम्मी देवी और देश भर से आए नेताओं ने संबोधित किया। 

मिड डे मील वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की महासचिव मालिनी मेस्ता की ओर से जारी बयान के अनुसार सभा में संगठन के नेताओं ने कहा कि  देश में 25 लाख के करीब मिड डे मील वर्कर काम कर रही हैं। जो देश के 12 करोड़ बच्चों के लिए दोपहर का भोजन बनाती हैं और देश के भविष्य को तैयार करने में लगी है।  यह बहुत दुखद है कि महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा करने वाली केन्द्र सरकार द्वारा पिछले 11 साल से मिड डे मील वर्कर्स के मानदेय में एक रुपये की भी बढ़ोतरी नहीं की है। 

केन्द्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी) -2020 लेकर आई है। उसमें कम बच्चों वाले स्कूलों को बंद किया जा रहा है और स्कूल मर्ज किए जा रहे हैं। देश भर में इसके चलते हजारों-हजार स्कूल बंद हो चुके हैं। इनमें अधिकतर लड़कियों के प्राथमिक स्कूल हैं। 

सरकार की इन्हीं नीतियों के चलते पिछले 10 साल में ही देश में करीब 2 लाख मिड डे मील वर्कर्स का रोजगार छीना गया है। 

वक्ताओं ने कहा कि 2013 में 45वें राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन ने मिड डे मील वर्करों सहित सभी स्कीम वर्कर्स को कर्मचारी/मजदूर का दर्जा देने, न्यूनतम वेतन सहित सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की सिफारिश की थी। इन्हें आज तक लागू नहीं किया गया। इसके खिलाफ मिड डे मील वर्कर्स में भारी रोष व्याप्त है।

संगठन नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार ने पिछले 15 साल से मिड डे मील वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी नहीं की। 1000 रुपये मानदेय केंद्र ने तय किया है वह भी लम्बे समय से नहीं मिल रहा। देश के लाखों मिड डे मील वर्कर्स जिनका बड़ा हिस्सा गरीब, दलित और आदिवासी महिलाओं का है, इतने कम मानदेय में काम करने को मजबूर है। मानदेय भी 10 महीने मिलता है जबकि काम तो तकरीबन 11 महीने करना पड़ता है। मिड डे मील वर्कर्स को भी शिक्षकों व अन्य स्टाफ की तरह 12 महीने वेतन मिलना चाहिए और यह 26000 रुपये से कम नहीं होना चाहिए। योजना में अधिक बजटीय प्रावधान किया जाए। करीब 30 साल से यह योजना जारी है लेकिन जिन वर्करों ने इस योजना में सालों काम किया उन्हें सेवानिवृति के समय एक रुपया तक नहीं मिलता। स्कूल में ड्यूटी के दौरान भोजन बनाते हुए दुर्घटनाओं में घायल हो जाते हैं, वर्करों की मौत हो जाती है लेकिन किसी प्रकार की आर्थिक मदद का प्रावधान नहीं है।

फेडरेशन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि आगामी केंद्रीय बजट में मिड डे मील वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी की जाए। यदि ऐसा नहीं किया तो 3 फरवरी 2025 को ब्लॉक/जिला स्तर पर प्रदर्शन किए जाएंगे। फेडरेशन ने फैसला लिया कि 20 दिसंबर से पहले देश भर में सांसदों को मांग पत्र दिए जाएंगे

सभा को सीटू महासचिव  तपन सेन, सचिव ए आर सिंधु, खेत मजदूर संगठन के नेता वेंकट  किसान सभा महासचिव बीजू कृष्णन, महिला समिति नेता आशा शर्मा, आशा फेडरेशन से सुरेखा आदि ने भी संबोधित किया।  

प्रमुख मांगें

1. 45वें श्रम सम्मेलन के निर्णय अनुसार मिड डे मील वर्कर्स को 26 हजार रुपये न्यूनतम वेतन दिया जाए। वेतन 12 महीने मिले।

2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 रद्द हो। किसी की छंटनी न की जाए। छंटनीग्रस्त वर्करों की बहाली की जाए।

3. सभी वर्करों को रिटायरमेंट पर लाख रुपये व सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान किए जाएं।

4. 12वीं कक्षा तक के सभी बच्चों को मिड डे मील योजना के दायरे में लाया जाए।

5. मिड डे मील योजना में कारपोरटस एनजीओ और केन्द्रीय रसोईघरों पर रोक लगे व निजीकरण बंद हो।

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