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क्या पर्यावरण राज्य मंत्री ने मसौदा ईआईए 2020 के बारे में संसद को गुमराह किया?

यह मसौदा मसौदा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह वर्तमान ईआईए अधिसूचना 2006 की जगह ले लेगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा इस मसौदे की भारी आलोचना की गई। मंत्रालय ने खुद स्वीकार किया कि इस मसौदे पर अगस्त 11, 2020 तक जनता द्वारा 17 लाख आपत्तियां दर्ज की गईं।
क्या पर्यावरण राज्य मंत्री ने मसौदा ईआईए 2020 के बारे में संसद को गुमराह किया?
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: The Leaflet

तीन अक्टूबर, 2020 को कुछ प्रमुख अखबारों ने पर्यावरण, जंगल और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (आगे इसे मंत्रालय कहा जाएगा) के द्वारा जारी किये गए एक सरकारी ज्ञापन के बारे में तथ्य छापे। इसमें कथित रूप से मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (UN High Commissioner for Human Rights Office) कार्यालय के विशेष दूत (Special Rapporteur)  द्वारा भारत की आलोचना का बिंदुवार खंडन किया गया था; यह आलोचना थी कि भारत मसौदा पर्यावरण संघात निर्धारण या ईआईए अधिसूचना 2020 (Draft Environmental Impact Assessment  [EIA] Notification) के माध्यम से परियोजना मंजूरी के लिए पर्यावरणीय विनियमन (environmental regulations) को कमजोर करना चाहता है।

मंत्रालय ने मसौदा ईआईए 2020 को 23 मार्च 2020 को सार्वजनिक पटल पर रखा और जनता से 60 दिनों के अंदर इसपर प्रतिक्रिया आमंत्रित की। एक बार यह मसौदा मसौदा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह वर्तमान ईआईए अधिसूचना 2006 की जगह ले लेगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा इस मसौदे की भारी आलोचना की गई। मंत्रालय ने खुद स्वीकार किया कि इस मसौदे या प्रारूप पर अगस्त 11, 2020 तक जनता द्वारा 17 लाख आपत्तियां दर्ज की गईं, जो कि प्रतिक्रिया जाहिर करने की आखिरी तारीख थी। यह एक रिकार्ड है! हजारों पर्यावरण कार्यकर्ताओं (green activists) ने मीडिया में भी अपनी अलोचना प्रकाशित की।

इस पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने मंत्रालय को 31 अगस्त 2020 के दिन एक सूचना भेजी जिसमें उन्होंने चिंता जाहिर की कि नया मसौदा ईआईए 2020 नई प्ररियोजनाओं (projects) के लिए पर्यावरणीय विनियमन को कमजोर करने का काम कर रहा है।

मसौदे में चिंता के चार बिंदुओं को इंगित किया गयाः 1. बहुत से बड़े औद्योगिक परियोजनाओं को सार्वजनिक या लोक परामर्श से मुक्ति दी जा रही है; 2. यदि कोई परियोजना बगैर पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी (environmental clearance) के शुरू कर दी गई है तो कार्योत्तर मंजूरी (post facto clearance) का प्रावधान रहेगा; आपत्ति दर्ज करने हेतु लोक परामर्श (public consultation) की अवधि को 30 दिन से घटाकर 20 दिन किया गया; और ‘‘रणनीतिक प्रकृति’’ “strategic nature” की परियोजनाएं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है, के विषय में पारदर्शिता का पूर्णतया अभाव।

कार्यालय-ज्ञापन या ऑफिस मेमोरैंडम, जो मंत्रालय के आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक नहीं किया गया, पर जिसके प्रमुख बिंदु 3 अक्टूबर 2020 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित किये गए, दावा करता है 1. “बड़े उद्योगों और परियोजनाओं को लोक परामर्श से किसी मायने में मुक्ति नहीं दी गई है।’’ कथित तौर पर छूट केवल परियोजनाओं की कुछ श्रेणियों को दी गईं, जो सूक्ष्म यानी माइक्रो, लघु व मध्यम अथवा मीडियम उद्यमों (MSMEs) हैं अथवा स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाते हों। 2.‘‘मसौदा ईआईए 2020 में उल्लंघन के मामलों के लिए कार्योत्तर मंजूरी (ex post- facto) का प्रावधान नहीं है। यदि परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दी गयी तो वह भावी होगी और जारी किये जाने की तारीख से प्रभावी हागी।’’ संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत द्वारा जाहिर की गई चिंताओं में से बिंदु तीन, यानी लोक परामर्श की अवधि को 30 दिन से घटाकर 20 दिन करने की बात पर अखबार की रिपोर्ट ने मंत्रालय के कार्यालय-ज्ञापन (Office Memorandum) द्वारा किसी प्रतिक्रिया के दिये जाने की चर्चा नहीं की बल्कि जानकर इसपर चुप्पी साधी। चौथा बिंदु, जिसमें रणनीतिक प्रकृति के प्रॉजेक्ट्स पर कार्यालय ज्ञापन ने तथाकथित रूप से स्पष्ट कर दिया था कि इसमें कुछ भी नया नहीं था और वर्तमान ईआईए 2006 के तहत भी यह प्रचलन में था।

सच कहिये तो मंत्रालय  (MoEFCC) के कार्यालय-ज्ञापन ने सिर्फ वही दोहराया है जो कि राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने संसद को 18 सितंबर 2020 को डीएमके सांसद कन्नीमोली करुणानिधि के एक प्रश्न के जवाब में बताया। यदि यह गलत साबित होता है, सुप्रियो गलत सूचना देकर संसद को गुमराह करने के विशेषाधिकार के मुद्दे (privilege issue) का सामना करेंगे।

तो, हो क्या रहा है? क्या संयुक्त राष्ट्र के दूत गलत थे? क्या हजारों ग्रीन ऐक्टिविस्ट द्वारा मसौदा ईआईए की अप्रत्याशित आलोचना भी गलत थी? या कि मोदी सरकार केवल यूएन को ही नहीं, बल्कि संसद को भी झूठ बोलकर ‘पोस्ट ट्रूथ ईरा’ (post truth era) में प्रवेश  कर गई है?

चलिये हम इस संदर्भ में जरा अपने स्तर पर क्रास-चेकिंग करें। पर इससे पूर्व कुछ शब्द ईआईए के मतलब पर और यह भी कि मसौदा ईआईए जो बदलाव लाना चाहता है उसके क्या परिणाम होंगे।

वर्तमान समय में सभी अधिसंरचनात्मक विकास (infrastructural development) के प्रॉजेक्ट, जैसे हाईवे, विद्युत संयंत्र या पावर प्लांट, विद्युत संचार, बांध व अन्य सिंचाई परियोजनाएं, खनन और गैस परियोजनाएं, सीमेंट, ऐस्बेस्टॉस व अन्य रसायनिक संयंत्र, भट्टियां या डिस्टिलरीज़ और चीनी उद्योग, बंदरगाह और हवाई अड्डे तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र या एसईजेड यहां तक कि बस्तियां और प्रमुख निर्माण परियोजनाओं को सबसे पहले सक्षम एजेंसी द्वारा तैयार की गई ईआईए रिपोर्ट के आधार पर पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करनी चाहिये। यह जन सुनवाई और सार्वजनिक परामर्श के बाद होना चाहिये। इन ईआईए रिपोर्टों को पहले एक परियोजना मूल्यांकन समिति या पीएसी द्वारा जांचा जाना चाहिये। यदि वे सही पाए गए और निर्धारित पर्यावरणीय मानदंडों का पालन करते रहे, तो वह पीएसी (Project Approval Committee [PAC]) प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Pollution Control Board) जैसे संबंधित राज्य या केंद्रीय पर्यावरण अधिकारियों द्वारा पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी के लिए सिफारिश करेगा।

हमारे समक्ष राजपत्र (Gazette) में अधिसूचित प्रारूप ईआईए 2020 की प्रति है।

मसौदा ईआईए परियोजनाओं को विभिन्न श्रेणियों में विभक्त करता है, जैसे क, ख1 और ख2 आदि। मसौदा ईआईए का बिंदु 13(11) साफ कहता है कि ‘‘श्रेणी ख2 (पृष्ठ 108) के अंतरगत सूचिबद्ध परियोजनाओं के लिए किसी ईआईए रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं होगी। मसौदा ईआईए के पृष्ठ 119-121 में बिंदु 26 में ऐसे 40 किस्म के परियोजनाओं को सूचिबद्ध किया गया है जो पूर्व पर्यावरणीय अनुमति (prior-EP) या पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी (prior-EC)से मुक्त रखे गए हैं। इनमें शामिल हैं कुम्हारों द्वारा मिट्टी की खुदाई, बाढ़ के पश्चात किसानों द्वारा अपने खेतों से रेत के जमाव को हटाना, सामुदायिक काम, जैसे मनरेगा के तहत गाद निकालना, 500 एकड़ से कम के औद्योगिक क्षेत्रों का निमार्ण, खनिज पूर्वेक्षण, लघु सिंचाई परियोजनाएं, जिनका कमांड एरिया 2000 एकड़ तक हो, थर्मल विद्युत संयंत्र जो अपशिष्ट ऊष्मा बॉयलर का प्रयोग करते हैं, फाउंड्री इकाइयां और री-रोलिंग मिलें, जिनकी क्षमता एक निश्चित सीमा तक हो, पुनःईंधन भराई के बिना हवाई पट्टियां आदि।

36वां बिंदु रक्षा मंत्रालय के अंतरगत आने वाले मैनुफैक्चरिंग इकाइयों या विस्फोटक, डेटोनेटर और फ्यूज़ बनाने वाली रणनीतिक इकाइयां को छूट देता है। इन सभी छूटों के अलावा बिंदु 40 कुछ परियोजनाओं, जो पहले से सूचिबद्ध आइटमों (पृष्ठ 121) के तहत हैं, सूक्ष्म व छोटे उद्यमों को छूट देता है। पर कार्यालय-ज्ञापन, जो संयुक्त राष्ट्र के दूत के आलोचना पत्र के जवाब के रूप में जारी किया गया, बेशर्मी से दावा करता है कि कोई बड़ा उद्योग पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी से मुक्त नहीं किया गया है, बल्कि केवल सूक्ष्म व छोटे उद्यमों को छूट दी गई है!

मसौदा ईआईए 2020 पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी के दायरे से नदी परियोजनाओं या रिवर प्रॉजेक्ट्स को बाहर रखता है। इस तरह इन्लैंड वॉटरवे वर्क्स (inland waterway works) भी पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी से मुक्त होंगे। क्या ऐसे संक्रम सूक्ष्म व छोटे उद्यमों में आते हैं? कार्यकर्ता इस प्रावधान से भी नाराज हैं जो परियोजनाओं के विस्तार व आधुनिकीकरण को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी से मुक्त करता है। दुष्ट पार्टियां किसी अहानिकर परियोजना के लिए मंजूरी ले सकते हैं और अगले ही वर्ष वे उसका विस्तार कर सकती हैं, और उसमें कई पर्यावरणीय उल्लंघन हो सकते हैं, जो मूल आवेदन में मंजूरी नहीं प्राप्त किये हों।

यदि परियोजनाओं की कुछ श्रेणियां पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी या पूर्व पर्यावरणीय अनुमति से मुक्त हो गए, इसके मायने यह नहीं है कि वे किसी पर्यावरणीय अनुमति या नियंत्रण के बिना काम कर सकते हैं। उन्हें केवल पूर्व मंजूरी या पूर्व अनुमति से मुक्ति मिलेगी पर उन्हें कार्य प्ररंभ करने के बाद निर्धारित प्रपत्र पर फिर भी अनुमति लेनी ही होगी। इससे यह बात भी साफ हो जाती है कि कार्यालय-ज्ञापन में झूठ कहा गया कि मसौदा ईआईए में पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी का प्रावधान नहीं है। यह शायद शब्दों में इस तरह न कहा गया हो। वर्तमान समय में परियोजनाओं को शुरू करने की अनुमति होती है पर एक बार वे स्थापित हो जाए, वे उस आधार पर पर्यावरणीय मंजूरी मांगते हैं और उन्हें मंजूरी मिल भी जाती है। 2006 की ईआईए अधिसूचना जो अभी जारी है, में इसके लिए प्रावधान है। इस प्रावधान को नेशनल ग्रीन ट्राइब्युनल ने खारिज कर दिया था पर मद्रास उच्च न्यायालय ने उसपर स्टे लगा दिया।

परंतु इस वर्ष मई में सर्वोच्च न्यायालय ने अम्बेलिक फार्मास्युकल्स बनाम रोहित प्रजापति व अन्य के केस में, जिसकी पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूढ़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने एक आदेश में कहा,‘‘एक्स-पोस्ट फैक्टो पर्यावरणीय मंजूरी कानून के तहत अरक्षणीय है’’। क्योंकि मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन था, मसौदा ईआईए ऐसे ही इसे मंजूरी नहीं दे सकता है। पर वह आधिकारिक रूप से एक्स-पोस्ट फैक्टो मंजूरियों से मना भी नहीं करता है ताकि वर्तमान समय में जो परिपाटी चल रही है, उसका अन्त हो सके। जब आधिकारिक रूप से पुरानी पद्धति को रद्द नहीं किया जाता, तो जाहिरा तौर पर पर्यावरण कार्यकर्ता और संयुक्त राष्ट्र के दूत इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि ईआईए 2006 की भांति मसौदा ईआईए 2020 भी एक्स पोस्ट फैक्टो पर्यावरणीय मंजूरी (post-facto environmental clearance) को अनुमति देता है।

यद्यपि मसौदा ईआईए 2020 पर आपत्ति दर्ज करने की आखिरी तारीख 11 अगस्त 2020 को समाप्त हो गई थी, आज तक उसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है। तो मंत्रालय ने कौन सी आलोचनाएं स्वीकार कीं और क्या परिवर्तन किये गए, इसपर अस्पष्टता (ambiguity) है। यानी ईआईए को अंतिम रूप नहीं दिया गया है और ईआईए 2006 को ही माना जा रहा है।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं की प्रमुख चिंता थी मसौदा ईआईए में लोक परामर्श की अवधि को 30 दिन से घटाकर 20 दिन कर देना। इसकी वजह से प्रभावित लोगों और हितधारकों को पर्याप्त समय नहीं मिलेगा कि वे परियोजना की बारीकियों का अध्ययन कर सकें और धारणीय अपत्तियों (sustainable objections) को सूत्रबद्ध कर सकें। स्वाभाविक तौर पर संयुक्त राष्ट्र दूत ने अपने आपत्ति-पत्र में इस बिंदु को उठाया था। परंतु इस पहलू पर मंत्रालय के कार्यालय-ज्ञापन ने पूरी तरह मौन साध लिया है। इसके बावजूद मंत्रालय और मंत्री जी भी दावा कर रहे हैं कि उन्होंने हज़ारों पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संयुक्त राष्ट्र के दूत की आपत्तियों का बिंदुवार खंडन किया है। और यह सब संसद में होता है, जिसके कारण यह विशेषाधिकार का मुद्दा बन जाता है।   

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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