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कोरोनावायरस महामारी से सबसे घटिया तरीके से निपटते हुए ट्रम्प दुनिया का नेतृत्व कैसे कर पा रहे हैं ?

एक बर्बाद हो चुकी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और फेल साबित हो चुके निजी क्षेत्र के टेस्टिंग प्रतिष्ठान के ऊपर ट्रम्प प्रशासन की अक्षमता ने अमेरिका के लाखों लोगों को रोगों से खुद को संक्रमित करने और दूसरों को इस बीमारी से संक्रमित करने की तोहमत डालने तक खुद को सीमित करके रख दिया है।
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तस्वीर साभार : फ्लिकर

आज से छह माह पूर्व 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनोम घेब्रेयियस ने अन्तराष्ट्रीय दुश्चिंता के साथ एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (पीएचईआईसी) की घोषणा की थी। इसके दस दिन पहले ही चीनी सरकार ने इस खतरे के प्रति आगाह करते हुए बताया था कि कोरोनावायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में संचरित हो सकता है। इस वायरस के तेजी से संक्रामकता ने डब्ल्यूएचओ को घोषण करने के लिए प्रेरित किया, जिसकी घोषणा चीनी रोग नियन्त्रण और बचाव केंद्र की ओर से अपने अमेरिकी समकक्ष को इस वायरस के बारे में बताने के एक महीने के बाद की गई थी। जिस दिन डब्ल्यूएचओ ने इसे पीएचईआईसी घोषित किया था, ट्रम्प ने उस दिन एक प्रेस कांफ्रेंस में चहकते हुए कहा था “हम समझते हैं कि हम इसे काफी अच्छे से नियन्त्रण में रख सकते हैं।” उस 30 जनवरी के बाद से वायरस को लेकर ट्रम्प प्रशासन की ओर से ली गई पहलकदमी असंगत और पूरी तरह से अक्षम साबित हुई थी।

डब्ल्यूएचओ की अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्थापन (2005) की आपातकाल समिति ने 31 जुलाई के दिन अपनी बैठक की थी और इसके अगले दिन सरकारों से दिशानिर्देशों के पालन को बदस्तूर जारी रखने और अपनी आबादी में इसके बारे में शिक्षण के कार्य को पहले से तेज करने के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी बेसिक नियमों के प्रति सचेत रहने (मास्क पहनने, हाथों को लगातार साफ रखने) के निर्देश दिए गए थे। डब्ल्यूएचओ ने सरकारों से “सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी, टेस्टिंग और कांटेक्ट ट्रेसिंग की क्षमता में वृद्धि” पर लगातार बल दिए जाने के सुझाव दिए थे। ये सिफारिशें जब पहली बार 29 जनवरी को जारी किये थे, और बाद के दौर में 5 जून को इसमें संशोधन किया गया था, तो क्यूबा, वियतनाम, लाओस, वेनेजुएला, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण कोरिया और भारतीय राज्य केरल में इसका तत्काल पालन किया गया। लेकिन इन नियमों की जबरन उपेक्षा करने वाले भी कुछ देश थे, जिनमें ब्राज़ील, भारत, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका प्रमुख थे।

आश्चर्यचकित

30 जुलाई को डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपातकाल कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइक रयान ने प्रेस कांफ्रेंस में अपनी बात रखते हुए कहा कि वे “कांटेक्ट ट्रेसिंग, क्लस्टर जाँच, टेस्टिंग, [और] सम्पूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति के लिए आवश्यक कदमों के प्रति आमतौर पर मौजूद धीमी प्रगति” को देखकर “निश्चित तौर पर हैरान” थे। उनके अनुसार डब्ल्यूएचओ ने जनवरी के बाद के पहले महीने में उन देशों को तकनीकी और परिचालन सहायता दी थी “जिनके बारे में हमें परम्परागत तौर पर लगा था कि उन्हें सहायता की जरूरत पड़ सकती है।” लेकिन यह हमारी भूल साबित हुई। कई देशों जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश, जिनके बारे में हम मानकर चल रहे थे कि ये देश महामारी से प्रभावी ढंग से निपट लेंगे, लेकिन पता चला कि यहाँ तो समूची व्यवस्था ही ध्वस्त हो चुकी थी।

डॉ. रयान के अनुसार “मैं सोचता हूँ हम सभी लोग इससे सबक सीख रहे हैं। वह यह कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के ढाँचे में इस दौरान बेहद मामूली निवेश किया जा रहा था।” इसे एक यूएन अधिकारी का अतिशय विनम्र बयान समझा जाना चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय कुलमिलाकर यह निकलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में सरकारों ने सार्वजनिक व्यवस्था को विफल कर दिया है।

आज दुनिया में 1.8 करोड़ से अधिक सक्रिय मामले चल रहे हैं, जिसमें से 48 लाख से अधिक सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका में ही हैं। अमेरिका में प्रतिदिन लगभग 59,000 से लेकर 66,000 मामले सामने आ रहे हैं, जोकि एक भयावह संख्या है। खासतौर पर जब आप इन आंकड़ों की तुलना लाओस और वियतनाम से करते हैं, जहाँ पर एक के यहाँ एक भी केस नहीं है और दूसरे के मामले में कुछ हताहत होने की खबर है (लाओस में एक भी नहीं, वियतनाम में छह)। ऐसे में ट्रम्प प्रशासन की संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ पाने में पूर्ण नाकामी को किस प्रकार से समझा जाए?

मितव्ययिता का दौर  

2010 से 2019 के बीच में अमेरिकी रोग नियन्त्रण एवं रोकथाम केंद्र के बजट में 10 प्रतिशत की कटौती कर दी गई थी। फरवरी में पीएचईआईसी की घोषणा के बाद ट्रम्प प्रशासन की ओर से डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज के फण्ड में 9.5 बिलियन डॉलर की कटौती को प्रस्तावित किया गया था। इसमें सीडीसी में 15% कटौती (1.2 बिलियन डॉलर) और और इन्फेक्शस डिजीज रैपिड रेस्पोंस रिज़र्व फण्ड में भारी कटौती की गई थी। मार्च में ट्रम्प की बजट टीम ने इन कटौतियों का बचाव किया था।

अमेरिकी सरकार ने न सिर्फ सीडीसी और अन्य फ़ेडरल एजेंसी के सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजट में कटौती की बल्कि इसने राज्य और स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों की फंडिंग में भी कमी करने को सुनिश्चित किया है। 2009 में ट्रस्ट फॉर अमेरिका हेल्थ की रिपोर्ट में पाया गया कि “सारे राज्यों, स्थानीय और संघीय सरकार के महत्वपूर्ण अमेरिकी सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्मों में वार्षिक आधार पर 20 बिलियन डॉलर की सालाना कमी कर दी गई है।” एक अन्य हालिया अध्ययन के दौरान जिसे ट्रस्ट फॉर अमेरिका हेल्थ ने किया था, इसमें पाया गया है कि स्थानीय सरकारों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट में 2019 में इसे “9/11 के बाद से 1 बिलियन डॉलर से इसे 650 मिलियन डॉलर से भी कम कर दिया गया है।” एसोसिएटेड प्रेस की एक शानदार जांच में पाया गया कि “काउंटीज में रहने वाले लगभग दो तिहाई अमेरिकी गैर-स्वास्थ्य देखभाल सेवा के तौर पर अपनी सुरक्षा पर दुगुने से अधिक खर्च करते हैं, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य भी शामिल है।”

2008 और 2017 के बीच में मितव्ययिता के उपायों के नाम पर राज्य और स्थानीय स्वास्थ्य महकमों के 55000 लोगों की नौकरियों से छंटनी कर दी गई थी, यह संख्या हर पांच स्वास्थ्य कर्मियों में से एक के बराबर है। 2008 में एसोसिएशन ऑफ़ स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ ने सूचित किया था कि 2020 तक “देश में 2,50,000 से भी ज्यादा सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।” लेकिन इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था।

परीक्षण की हकीकत  

मार्च में ट्रम्प के दामाद जारेड कुशनर के जिम्मे महामारी से निपटने के लिए एक कमेटी बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। इस समिति में कुशनर के ही खासमखास लोग थे, जिनमें उसके कालेज के दिनों के रूममेट तक शामिल थे। कुलमिलाकर माना जाता है कि “एक ऐसे लोगों की टीम थी जिन्होंने सब गुड़ गोबर कर डाला था।” इस समिति से अनुपस्थित रहने वालों में अमेरिकी सरकार में महत्वपूर्ण विभागों में कार्यरत छोटी के लोग, जिनमें एडमिरल ब्रेट गिरओइर भी शामिल थे, जिन्हें 12 मार्च को कोविड-19 के नैदानिक परीक्षण के समन्यव हेतु नियुक्त किया गया था (जून में उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था।)

समिति के भीतर क्रोनीवाद की मौजूदगी के बावजूद कहा गया कि एक ऐसी योजना निर्मित की गई थी जिसमें "राष्ट्रीय निरीक्षण और समन्वय की प्रणाली को स्थापित करना और आपूर्ति में वृद्धि के लिए समन्यव करने, परीक्षण किट आवंटित करने, विनियामक और अनुबंध संबंधी बाधाओं को दूर करने और व्यापक वायरस निगरानी प्रणाली की स्थापना का काम शामिल है।" राष्ट्रीय परीक्षण योजना के बारे में कहा गया था कि अप्रैल की शुरुआत में राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा इसकी घोषणा की जायेगी। जोकि कभी नहीं हुई।

इसके बजाय ट्रम्प की ओर से अपने प्रशासन की और से ली जा रही पहलकदमियों के बारे में डींगें मारने में कोई कमी नहीं आई, जोकि ना के बराबर ली जा रही थीं। 27 अप्रैल के दिन व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ क्वेस्ट डायग्नोस्टिक्स एंड लैबकॉर्प के सीईओ ने भेंट की, और उन दोनों ने ही ऊँची-ऊँची डींगे हाँकी कि उनकी कम्पनियाँ टेस्टिंग को सफलता के साथ संचालन करने में सक्षम हैं। क्वेस्ट डायग्नोस्टिक्स के स्टीव रस्कोव्स्की ने ट्रम्प-शैली में घोषणा करते हुए कहा था "हमने इस बीच जोरदार प्रगति की है।" हकीकत ये है कि तब तक वे एक दिन में 50,000 टेस्टिंग कर रहे थे, जोकि वर्तमान में अब जाकर एक दिन में लगभग 150,000 टेस्टिंग कर रहे हैं।

लेकिन मुद्दा प्रति दिन लिए गए टेस्टिंग के नमूनों की संख्या तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जिस आदमी से सैंपल लिया गया है, मुद्दा उसके रिजल्ट में लगने वाले वक्त से जुड़ा है। जुलाई के मध्य में रॉकफेलर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राजीव शाह ने कहा था कि वे निजी क्षेत्र की टेस्टिंग सिस्टम को देखकर बेहद निराश हैं। शाह ने कहा "किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि टेस्टिंग के परिणाम में लगने वाला समय एक या दो दिन से लेर सात दिनों तक हो सकता है, और कुछ मामलों में तो यह 14 दिनों तक खिंच रहा है।" "यदि सात दिनों की समय सीमा रखी जाती है तो मूल रूप से कह सकते हैं कि आप परीक्षण का काम ही नहीं कर रहे हैं, इस ढाँचे में किया जाने वाले परीक्षण शून्य परीक्षण के समकक्ष हैं।" ये प्रभावशाली शब्द किसी और के नहीं बल्कि यूएसएआईडी के पूर्व प्रमुख के हैं, जिनके फाउंडेशन की ओर से 16 जुलाई को एक "राष्ट्रीय कोविड-19 परीक्षण कार्य योजना" को जारी किया गया था। मूल रूप से इसे मार्च महीने में ही अमेरिकी सरकार द्वारा तैयार किया जाना चाहिए था, और इसके फौरन बाद इस पर काम भी शुरू हो जाना चाहिए था। ट्रम्प प्रशासन ने न तो मार्च से व्हाइट हाउस समिति की योजना को अपनाया, और न ही उन्होंने रॉकफेलर की योजना को ही अपनाया है। वास्तव में देखें तो उन्होंने किसी भी प्लान की घोषणा नहीं की है।

रॉकफेलर फाउंडेशन की ओर से योजना को जारी किये जाने के तीन दिन बाद ही ट्रम्प ने एक बार फिर से अजीबोगरीब बयान दे डाला। फॉक्स न्यूज के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने बताया कि "मामलों की संख्या इसलिए बढ़ रही है क्योंकि हमारे पास दुनिया में सबसे अच्छी टेस्टिंग सुविधा मौजूद है, और हम सबसे अधिक टेस्टिंग कर रहे हैं।" उनके इन दोनों ही दावों में कोई सच्चाई नहीं है। जून माह में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक रॉबर्ट रेडफ़ील्ड ने कहा था कि अमेरिका में मौजूद कुल मामलों में से 90 प्रतिशत टेस्टिंग के अभाव में छूट जा रहे हैं। इसलिए संभवतः 23 लाख पुष्ट मामलों के बजाय कुल संक्रमित लोगों की संख्या 2 करोड़ के आसपास होनी चाहिए। यदि ज्यादा टेस्टिंग हो तो ज्यादा संख्या में लोग संक्रमित पाए जायेंगे।

टेस्टिंग और कांटेक्ट ट्रेसिंग के जरिये आबादी में से सटीक तौर पर उन लोगों को अलगाव में रखा जा सकता है जो दूसरों में इस संक्रमण को पहुंचा सकते हैं। लेकिन इसमें से कुछ भी नहीं किया जा रहा है। जब एडमिरल गिरओइर से 31 जुलाई को एक कांग्रेस की सुनवाई में पूछा गया कि क्या 48 से 72 घंटों के भीतर टेस्टिंग के परिणामों को प्राप्त कर पाना संभव है, तो उनका जवाब था "मांग और आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए, आज के दिन हम इस लक्ष्य को हासिल कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।"

ट्रम्प प्रशासन की यह घोर अक्षमता-ब्राजील के जेर बोल्सोनारो और भारत के नरेंद्र मोदी की खतरनाक अक्षमता को ही प्रतिबिम्बित करती है – जिसमें इसके शीर्ष में बर्बाद कर दी गई सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और निजी क्षेत्र के फेल हो चुके टेस्टिंग प्रतिष्ठान ने अमेरिका के लाखों लोगों को रोगों से खुद को संक्रमित करने और दूसरों को इस बीमारी से संक्रमित करने के लिए आलोचना करने तक खुद को सीमित कर डाला है। और इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका में संक्रमण की श्रृंखला के टूटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है।

इस लेख को इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के एक प्रोजेक्ट ग्लोबट्रोटर द्वारा निर्मित किया गया था।

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। आप इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं। आप लेफ्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। आपने 20 से अधिक किताबें लिखी हैं, जिनमें द डार्कर नेशंस और द पुअरर नेशंस शामिल हैं। आपकी नवीनतम पुस्तक वाशिंगटन बुल्लेट्स है, जिसकी प्रस्तावना ईवो मोरालेस आयमा द्वारा लिखी गई है।

सौजन्य: इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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