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मणिपुर पर यूरोपीय संसद ने चर्चा की, लेकिन प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला : राहुल

‘‘मणिपुर जल रहा है। यूरोपीय संघ की संसद ने भारत के आंतरिक मामले पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला। इस बीच, राफ़ेल के जरिए बैस्टिल दिवस परेड का टिकट मिल गया।’’
rahul gandhi
फ़ोटो : PTI

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यूरोपीय संघ की संसद में भारत के आंतरिक मामले मणिपुर पर चर्चा हुई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक शब्द नहीं बोला।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मणिपुर जल रहा है। यूरोपीय संघ की संसद ने भारत के आंतरिक मामले पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहीं बोला। इस बीच, राफेल के जरिये बैस्टिल दिवस परेड का टिकट मिल गया।’’

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी मणिपुर की स्थिति को लेकर सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि लोगों के बुनियादी मुद्दों का समाधान करने का प्रयास नहीं किया जा रहा है।

भारत ने मणिपुर की स्थिति पर यूरोपीय संघ की संसद में पारित किए गए एक प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ से प्रेरित करार देते हुए खारिज कर दिया था।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत के आंतरिक मामलों में इस तरह का हस्तक्षेप अस्वीकार्य है।

ज्ञात हो कि 28 जून से 1 जुलाई तक हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा करने वाली तीन सदस्य वाली फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम पर मणिपुर में मामला दर्ज किया गया है। इस टीम में भारतीय महिला फेडरेशन ( National Federation of Indian women ) से जुड़ी एनी राजा (जनरल सेक्रेटरी), निशा सिद्धू ( नेशनल सेक्रेटरी) और दिल्ली की एक वकील दीक्षा द्विवेदी शामिल थीं।

दिल्ली लौटने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम ने मणिपुर में हिंसा प्रभावित महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में बताया था साथ ही रिलीफ कैंप में लोगों की आपबीती को बयां किया था। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मणिपुर हिंसा को 'राज्य प्रायोजित हिंसा' ( state sponsored violence ) बताया गया था। इसी बयान पर मामला दर्ज किया गया है।

बता दें कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा करने के बाद दावा किया था कि प्रदेश में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का बने रहना सबसे बड़ी बाधा है।

दोनों वामपंथी दल ने एक बयान में कहा था कि राज्य की स्थिति को पटरी पर लाने के लिए सभी समुदायों और सामाजिक समूहों को साथ लाकर सार्थक संवाद करना होगा।

प्रतिनिधमंडल में माकपा के राज्यसभा सदस्य विकास रंजन भट्टाचार्य और जॉन ब्रिटास और भाकपा सांसद विनय विश्वम, संदोष कुमार पी और के. सुब्बा रयान शामिल थे।

इस प्रतिनिधिमंडल ने छह जुलाई से तीन दिनों के लिए मणिपुर का दौरा किया था।

ध्यान रहे कि उच्चतम न्यायालय ने गत सोमवार को कहा कि मणिपुर में हिंसा बढ़ाने के मंच के रूप में शीर्ष अदालत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

साथ ही उसने स्पष्ट किया कि वह हिंसा खत्म करने के लिए कानून एवं व्यवस्था के तंत्र को अपने हाथ में नहीं ले सकता है।

गौरतलब हो कि मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है। 

ज्ञात हो कि मणिपुर में मेइती और कुकी समुदाय के बीच मई की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं।

(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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