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भारत में प्रदूषित हवा हर साल की कहानी

हमें सबसे बड़ी चिंता इस बात की होनी चाहिए कि भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में एक्यूआई 200-250 के स्तर पर रह रहा है। 
delhi air
मंगलवार, 7 नवंबर, 2023 को राजधानी दिल्ली में घनी धुंध छा गई। आसपास के राज्यों में पराली जलाने के कारण दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ना शुरू हो गया था। छवि सौजन्य: पीटीआई फोटो/अरुण शर्मा

तो एक बार फिर, हम मौसम की नियमित मार को झेल रहे हैं, दिल्ली से पश्चिम बंगाल से लेकर सिंधु-गंगा के मैदान प्रदूषणकारी ग्रे/ स्लेटी धुंध में डूबे हुए हैं, जैसा कि अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरों में साफ दिखाई देता है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों या कस्बों में से 13 शहर भारत में हैं, जिनमें दिल्ली, सेटेलाइट शहर और उत्तरी और पूर्वी भारत के अन्य शहरी केंद्र शामिल हैं। अब यह इतनी कठोर और हर बार आने वाली वार्षिक विशेषता बन गई है कि इसे अब एक और त्योहार घोषित किया जा सकता है, हालांकि देश में में पहले से ही त्योहारों की संख्या बहुत अधिक हैं।

अन्य भारतीय त्योहारों की तरह, अब तक इसने भी पारंपारिक आकर्षण हासिल कर लिया है। प्रेस अक्सर रोजाना इसके पहलुओं पर दैनिक लेख प्रकाशित करती है, लेकिन हक़ीक़त में केवल जानकारी के कुछ हिस्से ही छापती है, जिसमें बहुत कम या कोई सार्थक विश्लेषण नहीं होता है, और इसलिए कोई नीति नहीं बन पाती है। मीडिया की चर्चा ने मुद्दों को पूरी तरह से भ्रमित किया हुआ है, और वायु प्रदूषण के इतने ऊंचे स्तर और इसके प्रमुख स्रोतों के पीछे के मूल कारणों को बोझिल सा कर दिया है, जिससे समस्या की स्पष्ट समझ और दीर्घकालिक और स्थायी समाधान के लिए एक केंद्रित नीति दिशा नहीं बन पा रही है।

स्थापित राजनीतिक दलों का भी यही सच है। केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल, जो दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण करने के लिए रोजाना शोर मचाते हैं, अब केवल एक अध्ययनशील चुप्पी बनाए रखते हैं, चीजों को एक समिति और विभिन्न राज्यों पर छोड़ देते हैं, जबकि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों पर कटाक्ष करते रहते हैं।

दिल्ली सरकार और उसकी सत्ताधारी पार्टी, जो पड़ोसी राज्यों, विशेषकर पंजाब और हरियाणा, जो पहले क्रमशः कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित थे, के खिलाफ चिल्लाती थी, अब वह केवल हरियाणा से आने वाले प्रदूषण के खिलाफ बोलती है, ज़ाहिर है क्योंकि पंजाब में अब आम आदमी पार्टी का शासन है!

यहां तक कि प्रतिष्ठित सर्वोच्च न्यायालय भी, जो अक्सर उन महत्वपूर्ण निर्णयों से कतराता रहा है, जिनके बारे में उसका कहना है कि वे उसे कार्यकारी या विधायी क्षेत्राधिकार से अलग करने वाली रेखा को पार कर सकते हैं, अब विभिन्न कार्यकारी निर्णयों के आधार पर सवाल उठाता है, लेकिन फिर खुद इस या उस नीति या नीति को निर्देशित करने वाले आदेश पारित करता रहता है। यदि कार्यकारी कार्रवाई को ले तो उसका खुद विज्ञान या प्रयोगसिद्ध साक्ष्य वाला आधार नहीं है!

मार्क्स ने कहा था कि इतिहास खुद को दोहराता है, पहली बार त्रासदी के रूप में और अगली बार ढोंग के रूप में दोहराता है। लेकिन जब एक दुखद इतिहास हर साल खुद को दोहराता है तो कोई इस पर क्या कह सकता है?

दिल्ली में वायु प्रदूषण की मूल बातें (और अन्य भारतीय शहर)

आइए सबसे पहले भारत के शहरी केंद्रों में वायु प्रदूषण की समस्या की बुनियादी समझ हासिल करते हैं।

मौसमी या अन्य विविधताओं, मौसम की स्थिति, हवा के प्रवाह, एक या दूसरे प्रदूषण स्रोत में मौसमी या अन्य उछाल की बहुत चर्चा की जाती है, लेकिन प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों की स्पष्ट रूप से पहचान नहीं की जाती है। उत्तर-पश्चिमी राज्यों में पराली जलाने के बारे में व्यापक चर्चा होती है, सर्दियों में व्युत्क्रमण घटना जिसमें ठंडी हवा जमीन के करीब रहती है, और उसमें फंस जाती है, जिससे ऐसा लगता है जैसे प्रायद्वीप और दक्षिणी भारत की तुलना में उत्तर भारत में समस्या अधिक गंभीर है। मुंबई, चेन्नई और यहां तक कि कुछ हद तक कोलकाता जैसे प्रमुख तटीय शहरों में, समुद्री हवाएं नियमित रूप से इन शहरों में वायु प्रदूषकों को बहा ले जाती हैं, जिससे कम प्रदूषण और आश्चर्यजनक रूप से कम वायु गुणवत्ता सूचकांक सुनिश्चित हो जाता है।

इसे स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है कि हवा में छोड़े गए कुल प्रदूषक, विशेष रूप से शहरों में, विशिष्ट स्रोतों से काफी मात्रा में आते हैं जिन्हें वैज्ञानिक अध्ययन और मॉडल द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। भारत में किसी भी शहरी केंद्र में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में ज्यादातर वाहनों की आवाजाही, कोयले से चलने वाले आस-पास के बिजली संयंत्र, इलाके में ईंट और अन्य भट्टियां, निर्माण कार्य और उसके परिवेश की धूल, घरेलू, औद्योगिक या वाणिज्यिक ठोस ईंधन जलाना शामिल है। इसके साथ कोयला और जलाऊ लकड़ी का इस्तेमाल, कूड़े या कचरे को खुले में जलाना, औद्योगिक वायु प्रदूषण जिसमें विशेष रूप से बॉयलर या अन्य उपकरणों के द्वारा यह पैदा होता है, डीजल जनरेटर और कुछ अन्य स्रोतों में रबर और खराब ग्रेड के फर्नेस ऑयल आदि जैसे अत्यधिक प्रदूषणकारी ईंधन को जलाने से होता है।

इन सभी में से, जैसा कि कई अध्ययनों से भी पता चला है, वाहन प्रदूषण, निर्माण और परिवेश की धूल, और औद्योगिक प्रदूषण प्रमुख स्रोत हैं जो लगभग सभी भारतीय शहरों में अधिकांश आधारभूत या समान, अंतर्निहित वायु प्रदूषण के जिम्मेदार हैं।

हालाँकि, यहाँ मुख्य बात यह है कि, इन विविधताओं और मौसमी कारकों के अलावा, किसी भी शहर में या उसके आस-पास इन स्रोतों से प्रदूषकों की एक सीमित और निर्धारित मात्रा उत्सर्जित होती है। प्रदूषकों की इस कुल मात्रा में से, कुछ इन शहरी केंद्रों और उनके आसपास के इलाकों से होंगी, जबकि कुछ वर्षा, हवाओं, गर्मी और सर्दियों आदि सहित मौसमी और दैनिक बदलावों के कारण उड़ कर आती है या हवा में फैल जाती है। 

वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) शहर में विभिन्न बिंदुओं पर लगाए गए सेंसर द्वारा निर्धारित प्रदूषकों का एक माप है, और अक्सर स्थितियों को "अच्छी", "खराब" या "गंभीर" के रूप में वर्गीकृत करने के लिए उद्धृत और इस्तेमाल किया जाता है। एक्यूआई मौसमी और मौसम के पैटर्न से प्रभावित वर्तमान परिस्थितियों में वायु प्रदूषण का एक अच्छा संकेतक है, और अतिरिक्त मौसमी या अन्य परिवर्तनशील प्रतिक्रियाओं को निर्देशित करने में मदद कर सकता है। लेकिन हमें स्थायी आधार पर वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों को निर्धारित करने, योजना बनाने और लागू करने के लिए शहर और उसके आसपास उत्सर्जित होने वाले मुख्य, या आधारभूत, कुल वायु प्रदूषकों पर करीब से नज़र डालने की ज़रूरत है।

इसलिए, यदि कोई संख्याओं पर नजर डाले, तो दिल्ली, आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या एनसीआर और अन्य इंडो-गैंगेटिक बेल्ट शहरों में पराली जलाने से आग और सर्दियों की स्थितियों में मौसमी बढ़ोतरी के कारण 500 के करीब एक्यूआई संख्या से दहशत फैल जाती  है। हालाँकि खेतों में पराली जलाने से निपटा जा सकता है, लेकिन सभी प्रमुख शहरों में वास्तविक चिंता लगभग 200-250 की उच्च आधारभूत एक्यूआई होनी चाहिए।

बिना सोची-समझी प्रतिक्रियाएँ और झूठे समाधान

निश्चित रूप से ऐसा ऐसा किसी भी शहर या पूरे देश में नहीं किया जा रहा है, या यहां तक कि समस्या को संबोधित भी नहीं किया जा रहा है।

देश के भीतर एक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) है जिसका लक्ष्य पीएम 2.5 और पीएम 10 (2.5 या 10 माइक्रोन या एक मिलीमीटर आकार के हजारवें हिस्से के कण) में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है, जिनमें से पहला विशेष रूप से खतरनाक है चूंकि यह 2017 के स्तर की तुलना में आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर सकता है और गंभीर सांस संबंधी रोगों का कारण बन सकता है। इन संकेतकों पर सुई बमुश्किल ही आगे बढ़ी है और धनराशि ज्यादातर विभिन्न शहरों में सेंसर उपलब्ध कराने पर ही खर्च की गई है। ऐसी कोई रणनीति दिखाई नहीं देती है, और कोई प्रभावी अंतर-विभागीय समन्वय तंत्र स्थापित नहीं किया गया है।

इसके बजाय, देश में जो दिखाई दे रहा है वह घबराहट से भरी प्रतिक्रियाएं हैं और इस पर विविध लोगों द्वारा झूठे समाधान पेश किए जा रहे हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, इसके अलावा, अन्य देशों में वैज्ञानिक आधार या सबूत-आधारित तर्क के आधार पर जो मूल्यवान अनुभवों पर आधारित हैं, जिन्होंने वायु प्रदूषण से सफलतापूर्वक निपटा है और दशकों से शहरों में वायु प्रदूषण स्थिर रहा और लगातार कम हो रहा है से सीखने की जरूरत है। इनके बारे में हम अगले भाग में जानेंगे।

दिल्ली में वर्तमान दुखद-कॉमेडी यह है कि, पंजाब और हरियाणा में खेतों में पराली जलाने पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिस पर इन स्तंभों सहित, अनायास ही चर्चा की गई है। बेशक, पराली जलाना चिंताजनक है, लेकिन यह समस्या उच्च लागत और दो-तीन सप्ताह की बेहद कम अवधि की है, क्योंकि इसी कम सामय में सर्दियों के गेहूं की बुआई के लिए खेतों में मौजूद भूसे को तुरंत हटाने के लिए इसे जलाया जाता है। विभिन्न यूजर्स को मशीनें और सब्सिडी प्रदान करने वाले हस्तक्षेपों ने वास्तव में कुछ परिणाम दिखाए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं।

केंद्र के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने 15 सितंबर से 29 अक्टूबर के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में क्रमशः लगभग 56 प्रतिशत और 40 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी दर्ज की है। फिर भी, जैसे-जैसे फसल का समय नजदीक आया, यह फिर से बढ़ गया और बढ़ता गया।

स्पष्ट रूप से, राज्य सरकारों को केंद्र के सक्रिय समर्थन और समन्वय के साथ अधिक समग्र, अंतिम समाधान की जरूरत है, जिसे केवल बाजार की ताकतों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह निरर्थक है कि वह संबंधित राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दे कि सभी खेतों में पराली जलाने को तुरंत रोका जाए, जैसा कि उसने इस सप्ताह की शुरुआत में किया था।

इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने सड़कों पर वाहनों की आवाजाही को कम करने के लिए "ओड़-इवन" (अब स्थगित) योजना शुरू करने का निर्णय लिया था, जिसके तहत ओड़-इवन संख्या से समाप्त होने वाली नंबर प्लेट वाले वाहन केवल वैकल्पिक दिनों में चलेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस विचार पर व्यंग्य जताया, और इस बात को साबित करने के लिए सबूत मांगे कि ऐसी योजना काम करती है, और इसे तीखे शब्दों में "सरासर ओपटिक" समाधान बताया। लेकिन निश्चित रूप से, सैद्धांतिक तौर पर भी देखा जाए तो यह योजना जो दिल्ली की सड़कों पर वाहनों को आधा कर देगी और वायु प्रदूषण में भारी कमी लाएगी। यह कोविड महामारी प्रेरित लॉकडाउन के दौरान स्पष्ट रूप से प्रमाणित हुआ था, जब वाहनों की आवाजाही में कमी के कारण, भारतीय शहरों में हवा की गुणवत्ता कई दशकों की तुलना में बेहतर थी!

मेक्सिको, चीन और ब्राज़ील के अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से पता चला है कि सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने की ऐसी योजनाएँ वास्तव में काम करती हैं, लेकिन " ओड़-इवन योजना को धता बताने के लिए अलग-अलग नंबर प्लेटों वाले अतिरिक्त वाहन खरीदने की चालाक मानसिकता से यह विफल हो जाती है। दिल्ली में दोपहिया वाहनों को छूट दी गई है, जिनकी संख्या लगभग 70 लाख है!

उसी समय, सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से ऐप-आधारित टैक्सियों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने को कहा, बाद में राज्य के बाहर की टैक्सियों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने का प्रस्ताव दिया गया। इससे दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले दस लाख वाहनों के एक छोटे से हिस्से पर ही अंकुश लगेगा! माननीय न्यायालय के पास क्या सबूत है कि यह योजना काम करेगी?

यही बात कुख्यात "स्मॉग टावर्स" पर भी लागू होती है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न एजेंसियों और शैक्षणिक संस्थानों की साक्ष्य-आधारित अनिच्छा के बावजूद 2020 में स्थापित करने का आदेश दिया था। फिर भी, पिछले कुछ दिनों में, सुप्रीम कोर्ट ने कनॉट प्लेस में अब तक खराब पड़े स्मॉग टावरों को फिर से शुरू करने का आदेश दिया, हालांकि अध्ययनों से पता चला है कि टावर केवल कुछ दस मीटर की दूरी पर ही प्रभावी रहते है।

और अब दिल्ली सरकार बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग की तैयारी कर रही है! जोकि एक और खवाब है। 

अंतरराष्ट्रीय अनुभव

भारत के ठीक विपरीत, पूरे यूरोप ने ठोस और समग्र प्रयासों के चलते पिछले दो दशकों में अपनी वायु गुणवत्ता में काफी सुधार किया है, जिसमें खाना पकाने और हीटिंग ईंधन विशेष रूप से कोयले द्वारा औद्योगिक, वाहन और घरेलू वायु प्रदूषण के उच्च मानकों को सख्ती से लागू करना शामिल है। इन उपायों को यूरोपीयन यूनियन और राष्ट्रीय कानून, सख्त समयसीमा वाली राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और प्रदूषण के सभी स्रोतों और सभी प्रमुख प्रदूषकों से निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण का समर्थन हासिल है।

परिणामस्वरूप, यूरोपीयण यूनियन के आधे से अधिक देशों, ज्यादातर पश्चिमी यूरोप में, ने औसत पीएम 2.5 के स्तर को यूरोपीयन यूनियन के मानक 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के नीचे ला दिया है, जबकि भारत का औसत 100 से भी अधिक है, और जबकि लक्ष्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के पदार्थ का मानक, विशेषकर पीएम 2.5 हासिल करना है। 

यूरोपीयन यूनियन ने मुख्य रूप से वाहनों और थर्मल पावर प्लांटों से निकलने वाले खतरनाक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सतह के स्तर पर ओजोन, एक प्रमुख कैंसरजनक गॅस, और जहरीले कार्बन मोनोऑक्साइड पर भी तेजी से ध्यान केंद्रित किया है, जिसका भारत में चर्चा में शायद ही कोई उल्लेख मिलता है। भारत में बिजली उत्पादन और प्रदूषणकारी उद्योगों से निपटने के बाद, अधिकांश ध्यान वाहन प्रदूषण पर है।

एक और उत्कृष्ट उदाहरण बीजिंग है, जिसका संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने व्यापक रूप से अध्ययन किया और सराहना की है। लगभग एक या दो दशक पहले, बीजिंग को लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर का दर्जा हासिल था, जहां पीएम 2.5 100 से भी अधिक था। इसका धुआं कुख्यात था, कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों और राजनयिक मिशन इस बात पर गंभीर विचार करने लगे थे और सार्वजनिक तौर पर बोलने लगे थे कि उन्हे बीजिंग से बाहर जगह दी जाए।   

भले ही चीन पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय प्रदूषण रैंकिंग में काफी खराब स्थान पर खड़ा है, लेकिन इसने बीजिंग में वायु प्रदूषण से निपटने में बड़े तौर पर अधिक प्रयास किए हैं। इसने सभी कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों और उद्योगों को शहर से बाहर स्थानांतरित कर दिया है, पुराने और अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया है और शहर में कम उत्सर्जन वाले इलाके बनाए हैं जहां केवल सबसे स्वच्छ या इलेक्ट्रिक वाहनों को अनुमति दी गई है, यही नीति लंदन में भी लागू की गई और अन्य यूरोपीय शहर में भए ऐसे लागू किया गया।  

बीजिंग को एक कार-केंद्रित शहर से बदलकर शहरी रेल, साइकिल और पैदल यात्री वाल शहर बना दिया है जिसे एजेंसियों ने टिकाऊ गतिशीलता का एक उदाहरण बताया है। उत्तरी इलाकों में भी एक वनीकरण का बड़ा प्रयास किया गया, जो बीजिंग में बार-बार आने वाली धूल भरी आंधियों पर अंकुश लगाता है।

घरेलू कोयला जलाने वाले स्टोव के व्यापक इस्तेमाल पर भी अंकुश लगा दिया गया है। इन सभी उपायों के परिणामस्वरूप, बीजिंग के वायु प्रदूषण का स्तर इसके पहले के स्तर से लगभग आधा कम हो गया है, जिससे विशाल विस्तारित त्रि-शहर "मेगापोलिस" इलाके में प्रदूषण भी कम हो गया है।

ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत इन अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों का अनुकरण क्यों नहीं कर सकता है। लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, योजना और कार्यान्वयन की जरूरत होगी... और पवन चक्कियों पर झुकाव बंद करना होगा!

लेखक दिल्ली साइंस फोरम और ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क से जुड़े हैं। व्यक्त विचार निजी हैं। 

अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

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