NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन: सात साल में पहली बार सकारात्मक एजेंडा के साथ जनता आक्रामक है
देश के साथ ही किसान आंदोलन का तापमान बढ़ता जा रहा है। मई आते आते इसके और बढ़ने के आसार हैं। टकराव की लगातार खबरें आने लगी हैं। 
लाल बहादुर सिंह
07 Apr 2021
किसान आंदोलन
Image courtesy : Navbharat Times

गुजरात, उड़ीसा में राकेश टिकैत के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किए, राजस्थान के अलवर में उनके ऊपर हमला हुआ, उनकी गाड़ी क्षतिग्रस्त हुई। हमले के बाद राकेश टिकैत ने शांति बनाये रखने की अपील करते हुए कहा कि हम इस संघी षड्यंत्र से डरने वाले नहीं है और हमारे कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहेंगे। उन्होंने बीजेपी को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर संयुक्त मोर्चा के नेताओं के साथ सड़कों पर इस तरह की घटनाएं की गईं तो भाजपा के सांसद विधायक भी सड़क पर नहीं चल पाएंगे।

देश के साथ ही किसान आंदोलन का तापमान बढ़ता जा रहा है। मई आते आते इसके और बढ़ने के आसार हैं। टकराव की लगातार खबरें आने लगी हैं। 

तीन अप्रैल को खट्टर के विरोध में उतरे बुजुर्ग किसान की रक्तरंजित फोटो सोशल मीडिया पर  वायरल होती रही।

मेधा पाटकर के नेतृत्व में दांडी से चलकर मिट्टी सत्याग्रह यात्रा के सिरसा चौक पहुंचने पर किसानों ने जो शहीद चौक बनाया था, हरियाणा सरकार के प्रशासन और पार्टी ने उसे उजाड़ दिया। 

हरियाणा में खट्टर सरकार अपनी अथॉरिटी reassert करने का desperate attempt कर रही है। किसानों की निगाह में वह शासन का नैतिक प्राधिकार खो चुकी है, अब वे उसे बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। आये दिन खट्टर-चौटाला के कार्यक्रमों का किसानों द्वारा जुझारू विरोध और सरकार तथा किसानों के बीच बढ़ते टकराव की जड़ यही है।

दरअसल, 2 मई को आने जा रहे 5 विधान सभाओं, विशेषकर पश्चिम बंगाल के नतीजे तथा उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव परिणाम इस दृष्टि से निर्णायक होंगे कि वे किसान-आंदोलन के प्रति सरकार का रुख तय कर देंगे।

कृषि कानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय की 11 जनवरी को बनी कमेटी ने भी 3 महीने बाद अब अपनी संस्तुति सौंप दी है।

इसी पृष्ठभूमि में किसानों ने भी पेशबन्दी करते हुए मई के पहले पखवाड़े में संसद मार्च का ऐलान कर आंदोलन को और ऊंचाई पर ले जाने के अपने लौह-संकल्प का ऐलान कर दिया है।

विकल्प दो ही बचे हैं। या तो चुनाव परिणाम ऐसे आएं कि उसके बाद राजनैतिक फैसला लेते हुए सरकार पीछे हटने के लिए बाध्य हो जाये और किसानों से समझौता करे, अन्यथा किसान आंदोलन और सरकार के बीच बड़े स्तर का टकराव अपरिहार्य हो जाएगा। मुद्दा-आधारित आंदोलन से आगे बढ़ते हुए किसान आंदोलन अधिकाधिक राजनीतिक स्वरूप ग्रहण करता जाएगा और भाजपा के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी राजनैतिक अभियान में तब्दील होता जाएगा। 

यह भी याद रखना होगा कि यह संसदीय जनतंत्र की एक ही वर्ग की दो ताकतों के बीच की सामान्य राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता नहीं है, वरन दो विरोधी वर्गों- कॉरपोरेट बनाम किसान-के बीच जीवन-मरण की लड़ाई है। मोदी-शाह हुकूमत जब संसदीय विरोधियों से भी दुश्मन की तरह बर्ताव करती है और उन्हें कुचलने में कुछ भी उठा नहीं रखती, तो यह लड़ाई तो उससे उच्चतर स्तर की वर्गीय लड़ाई है, इसलिए अंतर्विरोध शत्रुतापूर्ण होते जाएंगे। 

प्रो. प्रभात पटनायक ने इस तथ्य को नोट किया है कि 3 कृषि कानूनों पर मोदी सरकार के अड़ियल रुख का कारण ही यह है कि इन्हें repeal करने का मतलब है नव-उदारवादी सुधारों से पीछे हटना, जो वित्तीय पूँजी और कॉरपोरेट के हित में लागू किये जा रहे हैं, भले ही वह एक सेक्टर -कृषि-में ही हो। इन कानूनों के सूत्रधार अशोक गुलाटी तो यहां तक कह चुके हैं कि यदि इन्हें रिपील किया गया तो सभी नव-उदारवादी सुधारों की वापसी के लिए दबाव बन जायेगा। इसलिए सरकार अनगिनत संशोधनों को तो तैयार है, पर कानूनों को repeal नहीं करना चाहती।

जाहिर है, अंततः, यदि सरकार  समग्र वर्गीय हित मे, राजनैतिक लाभ-हानि के मद्देनजर फिलहाल Tactical retreat नहीं करती, अपने कदम पीछे नहीं खींचती तो टकराव बढ़ना तय है। 

दरअसल, मोदी शासन के शुरुआती 7 वर्षों में सरकार एक से एक विनाशकारी नीतियां, काले कानून देश पर थोपती रही, नए नए विध्वंसकारी कदम उठाती रही, पर जनता उनके खिलाफ बस React करती रही, बेशक कई बार बेहद तीखे ढंग से और बहादुरी के साथ जैसे CAA-NRC पर, भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) जैसे मुद्दों पर सरकार को पीछे भी धकेलती रही, पर कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वे defensive लड़ाईयां थीं। यह पहली बार है कि जनता अब offensive पर है, एक सकारात्मक एजेंडा के साथ, और मोदी सरकार पहली बार defensive है। किसान अब कृषि क्षेत्र में नव उदारवादी सुधारों की वापसी के साथ अपने फसल की वाजिब कीमत, MSP की कानूनी गारंटी के सकारात्मक एजेंडा के साथ आक्रामक हैं।

यह अच्छा है, शायद, एक ऐतिहासिक अनिवार्यता की पैदाइश कि शासक खेमे के लिए भी कृषि क्षेत्र का पुनर्गठन अपरिहार्य हो गया है और किसान समुदाय के लिए भी। शासक रणनीति का प्रतिनिधित्व मोदी सरकार कर रही है, 3 कानूनों के माध्यम से। वे बार बार कह रहे हैं कि कृषि क्षेत्र के लिए नए विकल्पों की तलाश होनी चाहिये। पहले तो वे 2022 तक आय दोगुना करने का बड़बोला दावा करते रहे। अब जब 2022 आने में महज 1 साल बचा है और आय दोगुना करने के उनके दावे की पोल खुल चुकी है, तब नीति आयोग के उनके सलाहकार डॉ. रमेश चन्द फरमा रहे हैं कि 3 कानून लागू न हुए तो किसानों की आय दोगुनी नहीं हो पाएगी!

जाहिर है यह एक नया जुमला तो है ही, उनकी 7 साल से लागू अपनी मौजूदा नीतियों की विफलता की आत्मस्वीकृति (confession) भी है।

सरकार यह कहना और समझाना चाह रही है कि बिना बाजार की शक्तियों और कारपोरेट पूँजी के प्रवेश के कृषि का विकास नहीं हो सकता, बहरहाल ऐसी कृषि का जो मक्का/सर्वोच्च मॉडल है, अमेरिका, उसके कृषि मंत्री टॉम विलसैक ने इसी सप्ताह यह माना है कि अमेरिका के 90% किसानों की आमदनी का मुख्य हिस्सा कृषि से नहीं आता। उन्होंने कहा है कि समय आ गया है कि खाद्यान्न व कृषि व्यवस्था को बदला जाए। विलसैक की यह चेतावनी अमेरिका से ज्यादा भारत के लिए सच है

बहरहाल, किसानों ने पूरे समुद्र मंथन के बाद अब यह बात अच्छी तरह समझ ली है कि असली मामला यह है कि उन्हें अपनी फसल का वाजिब दाम, यहां तक कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP ) भी नहीं मिल पा रहा है। इसलिए अब वे MSP की कानूनी गारंटी के सवाल पर एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।

यह दरअसल ऐसा एजेंडा है, जो पूरी तरह unfold होने पर सरकार की कृषि विषयक नीतियों के समग्र दायरे को प्रभावित करने वाला है- WTO, IMF वित्तीय पूँजी, कॉरपोरेट सबको।

किसान आंदोलन ने इस वृहत्तर एजेंडा को गम्भीरता के साथ address करना शुरू कर दिया है।

5 अप्रैल को FCI दफ्तरों के घेराव के बाद जारी अपनी विज्ञप्ति में संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है,

" संयुक्त किसान मोर्चा और प्रदर्शनकारी किसान भी इस संकट के बारे में गहराई से जानते हैं कि भारत ने अपने उपभोक्ताओं और उत्पादकों को इस स्थिति में विश्व व्यापार संगठन के कठोर ढांचे के भीतर अपनी प्रतिबद्धताओं और कृषि पर अपने समझौते के कारण उतारा है।  सरकार द्वारा WTO से बातचीत में रखे गए प्रस्ताव में भोजन के अधिकार, संप्रभुता, खाद्य और पोषण सुरक्षा के ठोस तर्क व प्रस्ताव नहीं है। भारत के खाद्य भंडार कार्यक्रम को विश्व व्यापार संगठन में एक स्थायी समाधान के बिना खींचा गया है। विश्व व्यापार संगठन के समझौते में कृषि मॉडल को एक ऐसे रूप में बनाया गया है जो आम नागरिकों के हित के खिलाफ है और जो कृषि-व्यवसाय में कॉरपोरेट द्वारा मुनाफाखोरी को जगह देता है।"

दरअसल, WTO के माध्यम से अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अपनी कृषि के लिए ब्लू, ग्रीन बॉक्स के शातिर mechaniam की मदद से इतनी अधिक सब्सिडी का प्रावधान कर रखा है, भारत जैसे देशों के बाजार में अबाध प्रवेश का अधिकार हासिल कर रखा है तथा लगातार सब्सिडी घटाने का दबाव बना रखा है कि  उसकी प्रतियोगिता में अपने ही बाजार में हमारे किसानों का उत्पाद टिक पाने में असमर्थ है।

मोदी ने अपने 3 कृषि कानूनों की मदद से भारत के कृषि व्यापार को बाजार की शक्तियों अर्थात देशी-विदेशी कारपोरेट कम्पनियों के हवाले करने का फैसला करके रही सही कसर भी पूरी कर दी है और साम्राज्यवादी देशों तथा WTO जैसी एजेंसियों के सामने पूरी तरह से समर्पण कर दिया है। अपनी विराट आबादी के लिए खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक खाद्यान्न भंडारण खत्म करने का WTO का दबाव पहले से था, अब सरकार ने नए कानून द्वारा खाद्यान्न को Essential commodity से बाहर करके खुद ही उसे तिलांजलि दे दी है।

भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव एस पी शुक्ला ने, जो GATT वार्ताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, ने इसे शिद्दत से रेखांकित किया है-

"सरकार WTO की शर्तों को अपने कृषि कानूनों को बढ़ाने के लिए आखिरी तर्क के तौर पर इस्तेमाल करेगी। 

विश्व व्यापार संगठन ने भारत की खेती को वैश्विक बाजार के साथ जोड़ दिया है जिसमें खेती की बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों का दबदबा है। यह प्रक्रिया पूरी तरह अतार्किक, नाइंसाफी भरी और साम्राज्यवादी है। 

कृषि उत्पादों के भूमंडलीय बाज़ार कीमतों की घोर अनिश्चितता के लिए कुख्यात है। हमारे कृषि उत्पादन और विपणन को उस बाज़ार की कीमतों की उथल-पुथल से सीधे बाँध देने के परिणामस्वरूप कृषि पर निर्भर आबादी के बहुत बड़े  तबके पर अनियोजित ढंग से कृषि से बेदखल हो जाने का ख़तरा सदा बना रहेगा। सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए यह ज़रूरी है कि हम हमारी कृषि व्यवस्था को ऐसी उथल-पुथल और अव्यवस्था से बचाकर रखने की हरसंभव कोशिश करें। 

अमेरिका और यूरोप की कृषि व्यापार (एग्री-बिजनस ) लॉबी बहुत ताक़तवर और विश्वस्तरीय है। इसी लॉबी ने डब्ल्यूटीओ में शामिल कृषि समझौते (अग्रीमेन्ट ऑन एग्रीकल्चर) के तहत दो महत्त्वपूर्ण कामयाबियां हासिल कीं। एक तो उन्होंने अपने देशों की सरकारों को खेती के क्षेत्र को अंधाधुंध सब्सिडी देना सुनिश्चित कर लिया ताकि उनके देशों के कृषि उत्पाद सस्ते हों। साथ ही साथ उन्होंने विकासशील देशों के बाज़ारों को अपने देशों के सब्सिडी प्राप्त कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए खोलने में भी कामयाबी हासिल कर ली। इसके ठीक उलट विकासशील देश अब तक आयातों के हमले के खिलाफ डब्ल्यूटीओ के आकाओं से कुछ न्यूनतम सुरक्षात्मक प्रावधान के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। वे इस बात के लिए अभी लड़ रहे हैं कि अपने देश के ज़रूरतमंद लोगों के लिए सरकारी खर्चे से आवश्यक मात्रा में खाद्यान्न भंडारण करने का उनका अधिकार डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते (Agreement On Agriculture ) में कानूनन शामिल हो।"

उम्मीद है, किसान आंदोलन यह दबाव बढ़ाता जाएगा कि भारत सरकार नवम्बर 2021 में होने जा रही WTO की मंत्रिस्तरीय बैठक में अपनी  सम्प्रभुता assert करे और उनके dictates के आगे समर्पण से बाज आए।

समय आ गया है कि तीन दशक से लागू नव-उदारवादी सुधारों के समूचे जनविरोधी नीतिगत ढांचे को बदलने के लिए देश किसानों के साथ खड़ा हो। इस राजनैतिक जनांदोलन के गर्भ से एक नया राजनैतिक अर्थतंत्र सामने आएगा जो शेखर गुप्ता द्वारा गढ़ी गयी विचाधाराओं के मोर्चेबन्दी की नई binary- मोदी का निजीकरण बनाम राहुल का समाजवाद- के पार जाकर जनता के समग्र हित मे नई policy regime का आगाज़ करेगी तथा जो बड़ी कॉरपोरेट पूँजी के हितों एवं वैश्विक वित्तीय पूँजी के निर्देशों से संचालित नहीं होगी और हमारे लोकतंत्र को नवजीवन देगी।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

farmers protest
Farm Bills
Samyukt Kisan Morcha
AIKS
rakesh tikait
BJP
MSP

Trending

बंगाल चुनाव: सिलीगुड़ी में सीपीआई(एम) नेता अशोक भट्टाचार्य के समर्थन में उमड़ा नौजवानों का सैलाब
गोगोई की ज़मानत बरक़रार, कोरोना अपडेट और अन्य
शिवराज के राज में शवराज?
कोरोना के बदलते हुए चेहरे कितने खतरनाक? 
उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी के प्रचंड प्रकोप के बीच बृहस्पतिवार को पंचायत चुनाव के पहले चरण का मतदान
झारखंड उपचुनाव : बेकाबू होते कोरोना महामारी संक्रमण से मतदाता त्रस्त, चुनाव आयोग अपनी धुन में मस्त !

Related Stories

वाकई, कुंभ और मरकज़ की तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक भूल थी जबकि दूसरी जानबूझकर की गई ग़लती!
मुकुंद झा
वाकई, कुंभ और मरकज़ की तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक भूल थी जबकि दूसरी जानबूझकर की गई ग़लती!
14 April 2021
<
किसानों ने धूम धाम से मनाई बैशाखी
न्यूज़क्लिक टीम
किसानों ने धूम धाम से मनाई बैशाखी
13 April 2021
daily
न्यूज़क्लिक टीम
धरनास्थलों पर किसानों की बैसाखी, लगातार बढ़ते कोरोना के मामले और अन्य ख़बरें
13 April 2021

Pagination

  • Previous page ‹‹
  • Next page ››

बाकी खबरें

  • आख़िर औरतों का अपने ही शरीर पर अधिकार क्यों नहीं है?
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आख़िर औरतों का अपने ही शरीर पर अधिकार क्यों नहीं है?
    15 Apr 2021
    ‘माई बॉडी माई राइट्स’ को लेकर महिलाएं लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं। अब संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दुनिया में 50 प्रतिशत महिलाओं को अपने ही शरीर पर अधिकार नहीं है।
  • दिल्ली
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
    दिल्ली में वीकेंड कर्फ्यू; बंद रहेंगे मॉल, जिम और स्पा लेकिन खुले रहेंगे सिनेमा और रेस्तरांओं
    15 Apr 2021
    केजरीवाल ने कहा दिल्ली में कोविड-19 के मामले रोज बढ़ रहे हैं और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पाबंदियां लगानी जरूरी हैं।
  • कर्नाटक
    भाषा
    कर्नाटक : परिवहन कर्मचारियों की हड़ताल का नौवां  दिन, आज कर्मचारियों का मोमबत्ती जुलूस
    15 Apr 2021
    छठे वेतन आयोग के मुताबिक वेतन की मांग को लेकर राज्य में चार परिवहन निगमों के कर्मचारियों और सरकार के बीच गतिरोध जारी रहने से अधिकतर कर्मचारी काम पर नहीं आए।  प्रदर्शन तेज करते हुए हड़ताली कर्मचारियों…
  • भाषा सिंह
    न्यूज़क्लिक टीम
    बंगाल चुनाव: इच्छामती नदी की धार और बीड़ी मज़दूरिनों की इच्छा
    15 Apr 2021
    पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश सीमा से सटे सैकड़ों घरों में औरतें बीड़ी बनाती हैं। वे बीड़ी बनाते बनाते ये इच्छा करती हैं कि किसी तरह से उनकी ज़िंदगी में तब्दीली आए। चुनावी माहौल में वे चाहती हैं कि…
  • कोरोना
    आज का कार्टून
    शिवराज के राज में शवराज?
    15 Apr 2021
    मध्यप्रदेश के एक जिला अस्पताल में एक कोरोना मरीज की अस्पताल की लापरवाही के कारण जान चली गई। अस्पताल प्रशासन पर आरोप है कि उसने मरीज से ऑक्सीजन सिलिंडर हटा दिया जिससे वे तड़प-तड़प कर मर गया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें