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कृषि क़ानूनों की वापसी, किसानों की लंबित मांगें और सरकार का रवैया!

किसानों की कोई भी मांग नयी नहीं है। वे अपनी पुरानी मांगों को ही दोहरा रहे हैं जिन पर वे सरकार के साथ अनेकों बार बातचीत कर ज्ञापन दे चुके हैं। अभी किसान और मज़दूर संगठन भी एक साथ आ गए हैं।
Farmers Protest
फ़ोटो: PTI

संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) 50 किसान संगठनों का मोर्चा है। इस मोर्चा के घटक संगठन भी संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा रहे हैं, जो कि 380 दिनों तक दिल्ली के बॉडरों पर डटे रहे थे। 700 से अधिक किसानों को शहादत देनी पड़ी थी। 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री ने किसान आंदोलन के दबाव और कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव के चलते सुबह के समय राष्ट्र के नाम संबोधन करते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी। प्रकाश पर्व पर कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा पंजाब के किसानों को एक तरह से ये दिलासा देने की कोशिश थी कि वह पंजाबी समुदाय का बहुत ही सम्मान करते हैं। मोदी की घोषणा के बाद भी किसान लिखित में यह गारंटी चाहते थे कि उनकी फसलों की खरीद के लिए MSP पर सरकार कानून लाये। वे नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनावों की याद दिला रहे थे, जब उन्होंने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट की लागू करने की बात कही थी। 9 दिसंबर, 2021 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव संजय अग्रवाल द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा को 5 बिन्दुओं में एक लिखित पत्र दिया गया, जिसका विषय था ‘‘वर्तमान गतिशील किसान आंदोन के लंबित विषयों के संबंध में समाधान की दृष्टि से भारत सरकार की ओर से प्रस्ताव”। इसमें पहला बिंदू ही था कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और कृषि वैज्ञानिकों को शामिल कर एक कमेटी बनाई जायेगी। कमेटी का एक मैनडेट यह होगा कि देश के किसानों को MSP मिलना किस तरह सुनिश्चत किया जाए।

केंद्र सरकार ने 18 जुलाई, 2022 को एक कमेटी का गठन किया, आरोप लगे इसमें उन लोगों को शामिल कर लिया गया जो तीन कृषि कानूनों के समर्थक थे और उन किसान नेताओं को शामिल किया गया, जो आंदोलन के दौरान भी सरकार के साथ थे। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस कमेटी को मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि उनका आरोप था कि सरकार ने जान-बूझकर ऐसे लोगों को कमेटी में रखा है, जो MSP कानून को बहुमत के आधार पर रद्द कर देगी। सरकार इसको कमेटी का निर्णय मान कर लागू नहीं करेगी।

सरकार, पूंजीपति पक्षीय मीडिया और बुद्धिजीवियों से प्रचारित करवा रही है कि MSP का बोझ देश सहन नहीं कर पायेगा। पूंजीपतियों को लाखों करोड़ रूपये की छूट दी जाती है; उनको सस्ती दर पर जमीनें आवंटित की जाती हैं और 25 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का बैंक लोन को माफ (बट्टे खाते में डाल दिया गया) कर दिया जाता है। दूसरी तरफ किसानों को सब्सिडी वाला खाद भी नहीं मिल पाता है और उनको महंगे दाम पर यूरिया, पोटाश और डीएपी बाजार से लेने पड़ते हैं। उन्हें खाद पाने के लिये और फसल का उचित दाम मांगने पर भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ रही है। चंडीगढ़ के बातचीत में भी केंद्रीय मंत्रियों ने MSP पर सभी फसलों की खरीद की मांग को नहीं माना।

दूसरे बिंदू में कहा गया था कि किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार के संबंधित विभाग और एजेसियों तथा दिल्ली सहित सभी राज्यों और संघ शासित राज्यों में आंदोलनकारियों और समर्थकों पर आंदोलन संबंधित किए गए सभी केस भी तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाएगा। यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्ण सहमति दी थी। लेकिन आरोप है कि आज तक किसानों के केस वापस नहीं लिये गये और अभी भी उनके घरों पर नोटिस आ रहे हैं। बीकेयू के एक नेता कान्फ्रेंस में हिस्सा लेने बाहर जा रहे थे तो उनको एयरपोर्ट पर यह कहकर रोक दिया गया कि आप पर केस हैं, आप नहीं जा सकते हैं।

तीसरे बिंदू में सरकार द्वारा शहीद किसानों को मुआवजा देने की बात कही गई थी और कहा गया था कि हरियाणा और यूपी सरकार ने मुआवजा देने के लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है। इसके लिए पंजाब सरकार ने सार्वजनिक घोषणा भी की है। शहीद किसानों को मुआवजा देने के वादे को पंजाब को छोड़कर किसी राज्य ने पूरा नहीं किया है।

चौथे बिंदू में सरकार द्वारा बिजली बिल पर आश्वासन दिया गया था (जिसकी रजामंदी 30 दिसंबर 2020 की वार्ता में सरकार ने किसानों से की थी) कि वह बिजली संशोधन बिल, 2020 संसद में नहीं लायेगी और एनजीटी द्वारा पराली जलाने के मामले पर किसानों को बाहर रखा जाएगा। 9 दिसंबर 2021 के पत्र में सरकार ने लिखित रूप में किसानों को दिया था कि बिजली बिल के किसानों पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स/संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जायेगा। सरकार ने अपनी बातों से मुकरते हुए 8 अगस्त2022 को ‘विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 को लोकसभा में पेश कर दिया।

पांचवें बिंदू में कहा गया कि पराली मुद्दे पर धारा 14 एवं 15 में अपराधिक दायित्व से किसानों को मुक्ति दी गई है।

इस तरह के आश्वासन के बाद किसानों ने अपने आंदोलन को स्थगित कर दिया और 11 दिसंबर, 2022 को अपनी 'लंबित मांगों' के साथ धरनास्थल छोड़ दिया। अपनी मांगों और आश्वासनों को हल करने के लिए सरकार के साथ बातचीत के लिए ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया।

‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने एक माह बाद समीक्षा के लिए किसान संगठनों की मीटिंग हुई जिसमें इस कमेटी ने बताया कि सरकार की तरफ से उनके फोन को रिसीव नहीं किया जा रहा है और कोई मीटिंग नहीं की जा रही है।

‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने इसके बाद अपने लंबित मुद्दों और सरकार द्वारा दिये गए लिखित आश्वासनों को लेकर कई बार देश की राजधानी, प्रदेश की राजधानी, जिला स्तर पर धरना-प्रदर्शन कर सरकार तक बात पहुंचाने की कोशिश की। अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों, विधायकों द्वारा अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल महोदय के समक्ष अपनी बात रखने की कोशिश की। किसानों ने 31 जनवरी, 2022 को देश भर में 'विश्वासघात दिवस' मनाया गया। 3 फरवरी, 2022 को प्रेस क्लब में प्रेस के सामने अपनी समस्याओं को रखने और सरकार तक बात पहुंचाने की कोशिश की। 25 मार्च, 2022 को राष्ट्रपति को 9 सूत्री मांगों का ज्ञापन दिया। 31 जुलाई, 2022 को शहीद उधम सिंह की शहादत दिवस पर MSP की कानूनी गारंटी, विघुत अधिनियम के खिलाफ, किसानों पर दर्ज मामलों की वापसी, गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी पर कार्रवाई समेत अन्य मुद्दों पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन और चक्का जाम आयोजित किया। 18 अगस्त, 2022 को लखीमपुर खीरी में 75 घंटे का धरना दिया, 3 अक्टूबर 2022 को लखीमपुर घटना के एक साल पूरा होने पर देश भर में सांसदों को मांग पत्र सौंपा।

26 नवंबर, 2022 को चंडीगढ़ में पंजाब के 33 किसान संगठनों ने राज्यपाल से मिलकर 9 सूत्री मांग पत्र रखा:

1. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर सभी फसलों के लिए C2+50% के फार्मूले के तहत MSP की गारंटी का कानून बनाया जाये।
2. केंद्र सरकार द्वारा MSP पर गठित समिति को रद्द कर, MSP पर सभी फसलों की कानूनी गारंटी के लिए किसानों के उचित प्रतिनिधित्व के साथ, केंद्र सरकार के वादे के अनुसार एसकेएम के प्रतिनिधियों को शामिल कर, MSP पर एक नई समिति का पुनर्गठन किया जाये।
3. खेती में बढ़ रहे लागत के दाम और फसलों का लाभकारी मूल्य नहीं मिलने के कारण 80 फीसदी से अधिक किसान भारी कर्ज में फंस गए हैं, और आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे में सभी किसानों के सभी प्रकार के कर्ज माफ किए जाएं।
4. बिजली संशोधन विधेयक, 2022 को वापस लिया जाए।
5. (क) लखीमपुर खीरी जिला के तिकोनिया में चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल में बर्खास्त किया जाए और गिरफ्तार करके जेल भेजा जाए।
(ख) लखीमपुर खीरी हत्याकांड में जो निर्दोष किसान जेल में कैद हैं, उनको तुरंत रिहा किया जाए और उनके ऊपर दर्ज फर्जी मामले तुरंत वापस लिए जाएं। शहीद किसान परिवारों एवं घायल किसानों को मुआवजा देने का सरकार अपना वादा पूरा करे।
6. सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि, फसल संबधी बीमारी, आदि तमाम कारणों से होने वाले नुकसान की पूर्ति के लिए सरकार सभी फसलों के लिए व्यापक एवं प्रभावी फसल बीमा लागू करे।
7. सभी मध्यम, छोटे और सीमांत किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए 5,000 रूपये प्रतिमाह की किसान पेंशन की योजना लागू की जाए।
8. किसान आंदोलन के दौरान भाजपा शासित प्रदेशों व अन्य राज्यों में किसानों के ऊपर जो फर्जी मुकदमें लादे गए हैं, उन्हें तुरंत वापस लिया जाए।
9. किसान आंदोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों के परिवारों को मुआवजे का भुगतान और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए, और शहीदों किसानों के लिए सिंघु बॉर्डर पर स्मारक बनाने के लिए भूमि का आवंटन किया जाए।

इसके साथ ही किसानों ने निर्णय लिया गया कि वे 1 दिसंबर से 11 दिसंबर 2022 तक एमएलए एवं एमपी के निवास स्थान पर जाकर अपनी मांगों का ज्ञापन देंगे। इसके अलावा उन्होंने समय-समय पर दिल्ली के प्रेस क्लब, जंतर-मंतर और रामलीला मैदान में आकर भी सरकार के सामने अपनी बात रखने की कोशिश की।

किसानों की कोई भी मांग नई नहीं है, वे अपनी पुरानी मांगों को ही दोहरा रहे हैं, जिन पर सरकार के साथ अनेकों बार बातचीत कर ज्ञापन दे चुके हैं। अभी किसान और मजदूर संगठन भी एक साथ आ गये हैं तो उन दोनों की मांगें एक साथ जुड़ गई हैं, जिसमें ग्रामीण मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत 200 दिन की मजदूरी और 700 रूपये प्रतिदिन मजदूरी देने की बात कही गई है। साथ ही न्यूनतम मजदूरी लागू करने और श्रम संहिताओं को रद्द करने की बात कही गई है।

सरकार और मीडिया का रोल

सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि हम कमेटी बनाकर किसान संगठनों पर बातचीत करेंगे। जिस पर कई सालों से बात हो रही है उस पर कमेटी बनाने की बात कही जा रही है। यह बात उसी समय कही जाती है जब किसान खेत से सड़क पर आ जाते हैं। जब वे अपनी मांगों का ज्ञापन देकर और प्रेस को सम्बोधित करके बताने की कोशिश करते हैं उस समय न तो सरकार और न ही मीडिया उनकी बात को सुनती है। सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि हम तो चंडीगढ़ में उनसे बात करने गये; हम तो बात करने को राजी हैं। पूंजीपतियों के पक्षधर मीडिया लगातार शोर मचा रही है कि ‘संयोग है या प्रयोग’ है, ‘किसान पार्ट 2’, ‘विपक्ष के मोहरे’ इत्यादि, इत्यादि। यह आंदोलन न तो किसान पार्ट 2 है और न ही विपक्ष के मोहरे। किसानों का यह आंदोलन मंदसौर गोलीकांड के बाद से शुरू हुआ आंदोलन है, जिसको मीडिया और सरकार जनता के नजरों से दूर रखना चाहती है और उनकी खबर से लोगों को गुमराह करती हैं।

शंभू बॉर्डर पर जिस तरह की कवरेज मेनस्ट्रीम मीडिया दिखाती है उसमें किसानों को विलेन बनाया जा रहा है। मीडिया सरकार से सवाल करती नजर नहीं आ रही है कि किसानों के साथ सरकार ने जो वादा किया था उसका क्या हुआ? 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने की बात की थी उसका क्या हुआ? आंदोलनकारी किसानों पर से केस वापस क्यों नहीं लिया गया? अजय मिश्र टेनी के गृह राज्य मंत्री रहते किसानों को कैसे न्याय मिलेगा? किसानों के रास्ते में बैरीकेड क्यों लगाया जा रहा है, उनके ऊपर रबड़ की गोली और ड्रोन से आंसू गैस से क्यों हमले किए जा रहे हैं? क्या वे इस देश के नागरिक नहीं है उनसे सरकार दुश्मन सेना की तरह कैसे व्यवहार कर रही है? इन सब प्रश्नों पर सरकार की मुनादी करने वाली मीडिया चुप है वह किसानों पर ही सवाल खड़ी करती नजर आ रही है। मेनस्ट्रीम मीडिया किसान विरोधी होकर जनता को गुमराह करने का काम कर रही है, वह मजदूरों की पेरशानी को दिखा रही है जबकि मजदूर से कभी यह बात नहीं करती कि उनको न्यूनतम मजदूरी मिलती है कि नहीं, उनको लेबर कानून की सुविधाएं दी जाती है कि नहीं। दिल्ली के बॉर्डरों पर जब किसानों का एक साल का प्रदर्शन था, सभी मजदूर खुश थे और वह किसान आंदोलन में भागीदारी भी कर रहे थे।

किसानों ने रास्ता बंद नहीं किया है, रास्ता बंद सरकार ने किया है। किसानों का हरियाणा सरकार के साथ कोई भी वास्ता नहीं था। वे अपनी बात रखने के लिए केंद्र सरकार के पास आ रहे थे। वे उन मजदूरों के लिए काम की मांग कर रहे थे जिसको 365 दिन में 100 दिन का काम मिलता था, वे उसको 200 दिन काम देने की मांग कर रहे थे। वे न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और मजदूरों की सुरक्षा की बात कर रहे हैं, वे अपने बच्चों के लिए रोजगार की बात कर रहे हैं। जिस दिन देश के प्रधानमंत्री का फूलों से स्वागत किया जा रहा था उसी दिन देश के अन्नदाता का सड़क पर रबर बुलेट, वाटर केनन और आंसू गैस के गोले से स्वागत किया जा रहा था।

एक तरफ सरकार 5 और 7 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की बात कर रही है और दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीट रही है वही सरकार किसानों के सभी फसल को MSP पर नहीं खरीदना चाहती है, जिस पर अधिक से अधिक 30-40 लाख करोड़ रूपये का खर्च आ सकता है। MSP पर खरीद को सरकार पर बोझ बता रही है, जिससे देश की 70 प्रतिशत जनता को लाभ होगा। लेकिन पूंजीपतियों के 25 लाख करोड़ रूपये के लोन माफ कर दिए जाते हैं। उनको हर साल करीब लाखों करोड़ रूपये की छूट दे दी जाती है, जिससे कि कुछ सौ या हजार लोगों को लाभ होता है। भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाये या पहले इससे आम जनता और पीसी जायेगी। इसका लाभ 1-2 प्रतिशत लोगों को ही मिलेगा। जनता को कुछ राहत देने को देश की केंद्र सरकार, पूंजीपति घराने और मीडिया रेवड़ी बांटने का नाम देते हैं, जबकि पूंजीपतियों को लाखों करोड़ रूपये की छूट देना प्रोत्साहन समझा जाता है।

स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया जायेगा, लेकिन उनकी रिर्पोट को मान्यता नहीं दी जायेगी!यह तो किसी की आत्मा को मार कर उसका गुणगान करने जैसा है। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न इसलिए दिया जा रहा है कि वो किसान नेता थे। क्या आज चौधरी चरण सिंह रहते तो किसानों के साथ हो रहे व्यवहार पर क्या कहते? क्या वह भारत रत्न को स्वीकार करते? किसान इस देश के अन्नदाता है या देश के अर्थव्यवस्था का दुश्मन-यह बात देश की जनता को अच्छी तरह समझ लेना है। इसी तरह सरकार को भी समझना होगा की यह जनता की हितैषी है या पूंजीवादी हितैषी। यह तय करने का समय आ गया है नहीं तो बहुत देर हो जायेगी और हमारे अधिकार पूंजीवादी बूटों तले रौंद दिया जायेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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