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जलवायु आपदाओं के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया नाकाफ़ी

जलवायु-संबंधी आपदाओं की frequency अधिक होती जा रही हैं, और मानव हानि, आर्थिक और सामाजिक क्षति के मामले भी अधिक तेज़ होते जा रहे हैं।
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लीबिया के डर्ना का दृश्य। मूसलाधार बारिश के कारण लीबिया के उत्तरपूर्वी तट पर डर्ना के पास दो बांध टूट गए, जिससे शहर का अधिकांश हिस्सा नष्ट हो गया। फ़ोटो साभार : रॉयटर्स

13 और 14 सितंबर 2023 को दुनिया भर के टीवी चैनलों पर लीबिया के तटीय शहर डर्ना में बाढ़ पीड़ितों के हजारों शवों के सामूहिक दफन की वीभत्स छवियों ने वैश्विक चेतना को झकझोर कर रख दिया है। 2004 की सुनामी के बाद से दुनिया ने ऐसा दुखद व भयावह दृष्य नहीं देखा था।

11 सितंबर को हुई भारी बारिश और उसके बाद 12 सितंबर को अचानक आई बाढ़ से डर्ना में आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या पहले ही 11,000 से अधिक हो चुकी है। अब डर्ना के मेयर का कहना है कि यह संख्या 20,000 तक पहुंच सकती है क्योंकि 10,000 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। यद्यपि लीबिया एक तेल-समृद्ध देश है, गृहयुद्ध से टूट जाने के कारण वह इस तरह की जलवायु आपदा से निपटने की स्थिति में नहीं था, क्योंकि आवश्यक आपदा-शमन बुनियादी ढांचा अनुपस्थित था।

लेकिन हाल के दिनों में इतनी बड़ी जलवायु आपदा का सामना करने वाला अकेला देश लीबिया नहीं है।

  • 9-11, 2023 को अमेरिका के पेंसिल्वेनिया में आकस्मिक बाढ़ आई।
  • उसी दिन जापान में रिकॉर्ड बारिश के बाद भारी बाढ़ के कारण फुकुशिमा एक बार फिर डूब गया।
  • एक दिन पहले, 10 सितंबर 2023 को, ग्रीस में 720 वर्ग किलोमीटर में फैली कृषि भूमि बर्बाद हो गई थी, जिससे इसकी एक चौथाई कृषि उपज नष्ट हो गई।
  • एक सप्ताह पहले, 4 सितंबर 2023 को, भारी बाढ़ के बाद स्पेन के मैड्रिड में कारें पानी में तैर रही थीं।
  • उसी दिन, भारी बारिश के कारण, ब्राज़ील का दक्षिणी राज्य रियो ग्रांडे डो सुल अचानक आई बाढ़ के कारण पानी पर तैर रहा था। बीसियों लोग मरे।
  • अगस्त 2023 में भारी बारिश के कारण चीन के 16 शहरों में बाढ़ आ गई। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित चीन लगातार आ रही बाढ़ के प्रभाव को रोक न सका।
  • अगस्त 2022 में पाकिस्तान में भीषण बाढ़ में 2000 लोग मारे गए, तो अगस्त 2023 में फिर बाढ़ लौट आई, और अकेले पंजाब प्रांत के बाढ़ग्रस्त इलाकों से लगभग 1.5 लाख लोगों को निकालना पड़ा।
  • यदि अगस्त 2022 में अचानक बाढ़ और भारी बारिश ने श्रीलंका को परेशान किया, तो देश 2023 में बारिश न होने के कारण लंबे समय तक सूखे से पीड़ित है, और दोनों का कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को को बताया गया है।
  • बांग्लादेश में, अगस्त 2023 में ढाका में अचानक आई बाढ़ में 55 लोग मारे गए।
  • 2023 की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में फरवरी में भयानक बाढ़ आपदा के साथ हुई।
  • 5 फरवरी 2023 को न्यूजीलैंड में एक भीषण उष्णकटिबंधीय चक्रवात (tropical cyclone) ने कहर बरपाया। यहां तक कि राजमार्गों और रेल पटरियों का लंबा हिस्सा भी बह गया और देश के बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा।
  • 9 फरवरी 2023 को, उष्णकटिबंधीय चक्रवात उत्तर में क्वींसलैंड और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण में न्यू साउथ वेल्स से टकराए, जिससे सिडनी, कैनबरा और यहां तक कि मेलबर्न भी तबाह हो गया।
  • जलवायु-संबंधी आपदाओं की बारम्बारता (frequency) अधिक होती जा रही हैं, और मानव हानि, आर्थिक और सामाजिक क्षति के मामले भी अधिक तीव्र होते जा रहे हैं।

वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनडीआरआर) द्वारा 2020 में प्रकाशित “आपदाओं की मानव लागत-पिछले 20 वर्षों का एक सिंहावलोकन, 2000-2019” (Human Cost of Disasters—An overview of the last 20 years, 2000–2019 ) नामक एक रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले 20 सालों में जलवायु आपदाओं की संख्या दोगुनी हो गई है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसी तीव्र आपदाओं से कैसे निपट रहा है?

जलवायु आपदाओं पर वैश्विक प्रतिक्रिया

लीबिया आपदा के मद्देनजर, संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी पेटेरी तालास जो संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन के प्रमुख हैं, ने मीडिया से कहा, "अगर लीबिया के अधिकारियों ने प्रारंभिक चेतावनी जारी की होती और आपातकालीन प्रबंधन बलों ने लोगों को हटा दिया होता, तो अधिकांश मानव हताहत होने से बच सकते थे।" इस कथन में सच्चाई हो सकती है, लेकिन लीबियाई अधिकारियों पर दोष मढ़ना और आरोप-प्रत्यारोप में लगे रहना संयुक्त राष्ट्र का काम नहीं है। आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए व्यावहारिक वैश्विक हस्तक्षेप को आकार देने में संयुक्त राष्ट्र का अब तक का अपना रिकॉर्ड क्या रहा है?

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के लिए विश्व समुदाय से दो प्रकार की प्रतिक्रिया की आवश्यकता है:

एक, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए लंबी अवधि में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना ताकि तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री तक सीमित कर दिया जा सके। यह मध्यम और दीर्घावधि की प्रतिक्रिया है।

दो, अल्पावधि में, बादल फटने, अचानक बाढ़, भूस्खलन, गर्मी की लहरें, सूखा और जंगल की आग जैसी जलवायु आपदाओं का शमन।

मानवीय हस्तक्षेप के माध्यम से इन जलवायु-संबंधी आपदाओं का शमन संभव है, बशर्ते राष्ट्र इसके लिए संसाधन निर्धारित करें और अमीर राष्ट्र गरीब देशों को ऐसी आपदाओं से निपटने और उनके गरीब लोगों पर इनके विनाशकारी प्रभाव को कम करने में सहायता करने के हेतु एक वैश्विक कोष में उदारतापूर्वक योगदान करें।

चूंकि ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर के उत्सर्जन के लिए मुख्य रूप से विकसित देश जिम्मेदार थे, अमीरों द्वारा किया गया ऐसा योगदान अतीत में वैश्विक आबादी को हुए नुकसान के लिए एक न्यूनतम मुआवज़ा ही हो सकता है।

संयुक्त राष्ट्र ने लीबिया के लिए 10 मिलियन डॉलर का योगदान देने का वादा किया है। यह ऊंट के मुंह में ज़ीरा समान है! जबकि ऐसा कहा जा सकता है कि लीबिया के लिए मानवीय क्षति "जलवायु नरसंहार" के अनुपात में है। देश का आर्थिक नुकसान सैकड़ों अरब डॉलर में होगा। पेरिस समझौते के समय, अमीर देशों ने कम से कम 100 अरब डॉलर का जलवायु कोष बनाने में योगदान देने का वादा किया था। लेकिन वादा किया गया पैसा आज तक नहीं आया यदि ऐसा कोई फंड पहले से मौजूद होता, तो आपदा प्रभावित लीबियाई लोगों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में राहत सामग्री पहुंचती। कम से कम, ‘अर्थमूवर्स’ द्वारा बड़े-बड़े गड्ढों में सैकड़ों शवों को सामूहिक रूप से दफ़नाने के बजाय मृतकों को सम्मानजनक तरीके से दफ़नाया जा सकता था।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए धन के अलावा मजबूत संस्थागत व्यवस्था की भी आवश्यकता है। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र की क्या प्रतिक्रिया रही है?

संयुक्त राष्ट्र के दो निकाय, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR) वैश्विक शीर्ष निकाय हैं जो संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की वैश्विक प्रतिक्रिया का समन्वय करते हैं। बड़ी-बड़ी रिपोर्टें पेश करने के अलावा आपदा प्रबंधन और शमन के लिए व्यावहारिक वैश्विक प्रतिक्रिया को आकार देने में उन्होंने अब तक क्या किया है?

ऐसी आपदाओं से बेहतर ढंग से निपटने के लिए राष्ट्रों, विशेषकर गरीब और विकासशील राष्ट्रों को तैयार करने के लिए वे और क्या कर सकते हैं?

आपदा न्यूनीकरण में संयुक्त राष्ट्र की पहल

संयुक्त राष्ट्र ने 1990-1999 के दशक को प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दशक (IDNDR) घोषित किया।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) पर 20 जून 1992 को ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 165 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की स्थापना 1999 में की गई थी।

आईडीएनडीआर के उत्तराधिकारी के रूप में, आपदा न्यूनीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय रणनीति (ISDR) संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2000 में विकसित की गई थी। इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों, वैज्ञानिक और विशेषज्ञों के संस्थानों, निजी क्षेत्र की संस्थाओं और सरकारी अधिकारियों के नेटवर्क के माध्यम से काम करना था। मुख्य रूप से इसका मकसद था आपदा न्यूनीकरण के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना और सार्वजनिक अधिकारियों से प्रतिबद्धता को प्रेरित करना तथा प्राकृतिक खतरों और आपदाओं के कारणों पर वैज्ञानिक ज्ञान के सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए अंतर-अनुशासनात्मक और अंतर-क्षेत्रीय साझेदारी को प्रोत्साहित करना।

आईएसडीआर को और अधिक ठोस व्यावहारिक मज़बूती देने के लिए, "ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन 2005-2015: आपदा के प्रति राष्ट्रों और समुदायों के प्रतिरोध-क्षमता का निर्माण" को जनवरी 2005 में जापान के कोबे में विश्व आपदा न्यूनीकरण सम्मेलन में अपनाया गया था। इसने कार्रवाई के पांच क्षेत्र निर्धारित किए:

1. सुनिश्चित करें कि कार्यान्वयन के लिए मजबूत संस्थागत आधार के साथ आपदा जोखिम में कमी एक राष्ट्रीय और स्थानीय प्राथमिकता है।

2. आपदा जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन और निगरानी करना और पूर्व चेतावनी बढ़ाना।

3. सभी स्तरों पर सुरक्षा और प्रतिरोध-क्षमता निर्माण की संस्कृति विकसित करने के लिए ज्ञान, नवाचार और शिक्षा का उपयोग करें।

4. अंतर्निहित जोखिम कारकों को कम करें।

5. सभी स्तरों पर प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए आपदा तैयारियों को मजबूत करें। अधिक ठोस शब्दों में, यह सूखे और मरुस्थलीकरण पर केंद्रित था।

तब अमेरिका के विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNDP) द्वारा स्थापित जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल आईपीसीसी (IPCC) ने आपदा जोखिम में कमी का एजेंडा संभाला।

आईपीसीसी पहली बार 2012 में "जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को आगे बढ़ाने के लिए चरम घटनाओं और आपदाओं के जोखिमों के प्रबंधन पर विशेष रिपोर्ट" (“Special Report on Managing the Risks of Extreme Events and Disasters to Advance Climate Change Adaptation” ) लेकर आई थी। यह एक ऐतिहासिक रिपोर्ट थी जिसने आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए राष्ट्रों द्वारा जलवायु हस्तक्षेप के लिए एक रूपरेखा तैयार करने की कोशिश की थी।

यह रिपोर्ट चरम मौसम की घटनाओं और आपदाओं के जोखिमों के प्रबंधन के बारे में थी।

ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन 2005-2015 और आईपीसीसी 2012 रिपोर्ट के आधार पर, आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-2030 के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क को 18 मार्च 2015 को सेंदाई, जापान में तीसरे संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अपनाया गया था।

फिर, दुर्भाग्य से, आईपीसीसी जलवायु जोखिम और चरम जलवायु घटनाओं आदि को परिभाषित करने के लिए 2019 तक एक अकादमिक अभ्यास में लग गई।

इसके बाद, यह केवल आईपीसीसी 2022 रिपोर्ट थी जिसमें जलवायु अनुकूलन दृष्टिकोणों का ठोस विवरण दिया गया था। यदि उस रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को लीबिया में लागू किया गया होता, तो जानमाल का नुकसान काफी हद तक कम हो सकता था। केवल लीबिया ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देशों ने अभी तक इन सिफारिशों को नहीं अपनाया है, विशेष रूप से जलवायु प्रतिक्रिया बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के सवाल पर।

विशेष रूप से, 2021 और 2022 की आईपीसीसी रिपोर्ट ने झुग्गियों में रहने वाले शहरी अनौपचारिक समुदायों को जलवायु आपदाओं से बचाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, उनकी खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के उपायों की रूपरेखा तैयार की, सूखे से संबंधित मजबूर प्रवासन को कम किया, और भूमि-उपयोग परिवर्तन, आवास विखंडन और प्रदूषण पर कुछ सिफारिशें कीं। इसने तटीय समुदायों को समुद्र के स्तर में वृद्धि, तूफान और तटीय बाढ़ आदि से सुरक्षा का प्रस्ताव दिया। कई सामाजिक कार्यक्रमों की रूपरेखा के अलावा, 2022 की रिपोर्ट ने विशेष रूप से कृषि समुदायों में "पारिस्थितिकी-प्रणाली-आधारित" जलवायु अनुकूलन को भी रेखांकित किया, और शमन के लिए नई प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढांचे पर विस्तार से काफी कुछ बताया। लेकिन इन सबके लिए नकद पूंजी की आवश्यकता होगी!

जलवायु आपदा शमन हेतु वित्त पोषण

अपनी 2022 की रिपोर्ट में, आईपीसीसी ने पहली बार ठोस अनुमान लगाया कि 2030 और 2050 तक अकेले विकासशील देशों के लिए अनुकूलन आवश्यकताएँ (adaptation needs) क्रमशः 127 बिलियन डॉलर और 295 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष तक पहुँच जाएँगी। इसकी गणना के अनुसार, फिलहाल, अनुकूलन के मद में खर्च सभी देशों द्वारा खर्च किए जा रहे कुल जलवायु वित्त का केवल 4-8% हिस्सा है। शमन निधि के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा स्थापित कई बहुपक्षीय कोष हैं। इनमें से प्रमुख हैं:

क्योटो प्रोटोकॉल के मद्देनजर स्थापित जलवायु अनुकूलन कोष एक शमन परियोजना के लिए अधिकतम 10 मिलियन डॉलर की धनराशि प्रदान करता है; इस फंड की कीमत लगभग 300 मिलियन डॉलर है।

ग्रीन क्लाइमेट फंड की स्थापना 2010 में कैनकन यूएनएफसीसीसी बैठक में की गई थी। अब तक इसने विभिन्न परियोजनाओं के लिए $10.2 बिलियन का वादा किया है, लेकिन वास्तविक वितरण प्रति वर्ष प्रति देश $1 मिलियन तक सीमित है!

एक अल्प विकसित देश कोष (Least Developed Countries Fund) है जिसने एलडीसीज़ (Least Developed Countries ) को लगभग 628.15 मिलियन डॉलर का वितरण किया है।

एक विशेष जलवायु परिवर्तन कोष है जिसने 2002 से 242.26 मिलियन डॉलर का वितरण किया है।

एशियाई विकास बैंक ने एक जलवायु परिवर्तन कोष की स्थापना की है, जिसने 60 परियोजनाओं के लिए 50 मिलियन डॉलर देने का वादा किया, लेकिन 2012 से यह निष्क्रिय हो गया है!

प्रशांत द्वीप देशों के लिए विश्व बैंक और एडीबी सहित बहुपक्षीय बैंकों द्वारा स्थापित एक रणनीतिक जलवायु कोष है, और इसने अब तक समोआ को 30 मिलियन डॉलर, पापुआ न्यू गिनी को 30 मिलियन डॉलर और टोंगा को 15 मिलियन डॉलर वितरित किए हैं। इसमें वन निवेश कार्यक्रम के लिए $785 मिलियन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास के लिए $796 मिलियन हैं, और वितरण विवरण से पता चलता है कि सोलोमन द्वीप के लिए $14 मिलियन, वानुवातु के लिए $14 मिलियन और प्रशांत द्वीप समूह के लिए $1.92 मिलियन का मामूली आवंटन किया गया है।

5.3 बिलियन डॉलर का स्वच्छ प्रौद्योगिकी कोष है। लेकिन अभी तक उसने कोई पैसा आवंटित नहीं किया है।

और विश्व बैंक आपदा जोखिम प्रबंधन कोष, एशिया-प्रशांत आपदा प्रतिक्रिया कोष जैसे फंड हैं जो किसी आपदा की घटना के लिए $3 मिलियन आवंटित करने वाले हैं, और एक ओपेक फंड है और सामूहिक रूप से उन्होंने बहुत ही कम धनराशि वितरित की है, जो केवल कुछ मिलियन डालर है।

स्पष्ट रूप से, जलवायु आपदा शमन निधि अब तक कुछ अरबों तक को पार नहीं कर पाई है; यह नितांत अपर्याप्त है।

विडंबना यह है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने 2022 आईपीसीसी रिपोर्ट को "मानवीय पीड़ा का एटलस और असफल जलवायु नेतृत्व का एक गंभीर अभियोग" कहा है। "असफल जलवायु नेतृत्व" का गठन कौन करता है?

भारत की G20 की अध्यक्षता में, आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एक कार्य समूह (Working Group on Disaster Risk Reduction) का गठन किया गया है। 9-10 सितंबर, 2023 को आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन ने 37 पेज की घोषणा जारी की है जो केवल उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों से संबंधित था और इसमें आपदा कटौती या वित्त पोषण लक्ष्यों पर एक भी शब्द नहीं था। 2023 में ही उत्तराखंड और केरल में मूसलाधार बारिश होने के बावजूद आपदा न्यूनीकरण पर विश्व गुरु की क्या यही उपलब्धि है, जबकि जी20 कार्यशालाएं उस समय पूरे जोश में चल रही थीं!

उम्मीद है, लीबिया में जलवायु नरसंहार के बाद आपदा प्रभाव को कम करने के लिए अमीर देशों की तिजोरियां खुलेंगी।

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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