Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ग्राउंड रिपोर्ट: क्यों नेपाल-भारत में रोटी-बेटी का रिश्ता ख़त्म होने के कगार पर है?

“...जैसे भारत में मुसलमानों को कहा जाता हैं कि पाकिस्तान चले जाओ उसी तरह हम लोगों को भी भारत भेजा जाता है। ... भारतीय राष्ट्रवाद की तरह नेपाली राष्ट्रवाद भी बहुत मज़बूत हो रहा है।”
india nepal

विश्वभर में अधिकांशत दो पड़ोसी देशों के बीच रिश्ते कारोबारी और कूटनीतिक होते हैं। भारत और नेपाल के बीच रिश्ता केवल दो देशों की सीमा के बीच नहीं है बल्कि यहां रहने वाले लोगों से जुड़ा है। इन दोनों देशों के बीच रोटी के साथ-साथ बेटी का भी रिश्ता है। लेकिन चंद वर्षों के दौरान नक्शा विवाद और भाषा विवाद के बाद भारत-नेपाल के कूटनीतिक रिश्तों में दरार पड़ गई है। साथ ही दोनों मुल्कों के बीच रहने वाले लोगों में भी दूरियां बढ़ गई हैं।

भारत के मुसलमानों से तुलना क्यों?

"जैसे भारत में मुसलमानों को कहा जाता हैं कि पाकिस्तान चले जाओ उसी तरह हम लोगों को भी भारत भेजा जाता हैं क्योंकि भारत में हमारे सगे संबंधी हैं और हम पहाड़ियों से अलग दिखते हैं। भारतीय राष्ट्रवाद की तरह नेपाली राष्ट्रवाद भी भारत और हिन्दी विरोधी भावना की वजह से बहुत मजबूत हो रहा है।" काठमांडू विश्वविद्यालय में पढ़ रही श्वेता (बदला हुआ नाम) बताती हैं। 

वे कहती हैं, "नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के बाद जैसे भारत को हिंदुत्व राष्ट्र बनाने की घोषणा की गई थी। उसी तरह नेपाल में एक देश एक नरेश' का नारा पहले से ही रहा है। बस फर्क इतना है कि वहां नेपाल में या नारा कुछ ज्यादा ही मजबूत हो रहा है।"

नए संविधान में भेदभाव का आरोप

2015 में जारी नए संविधान के अनुसार वंशानुगत नागरिकता को फोकस पर रखते हुए भारतीय महिलाओं के नेपाल में शादी करने के बाद नागरिकता के पुराने प्रावधान को खत्म कर दिया गया था। मतलब पहले अगर भारतीय महिला की शादी नेपाल में हो तो उन्हें सारे अधिकार भी मिलते थे। लेकिन 2015 के बाद जिस भारतीय महिला की शादी नेपाल में हुई है, तो उसे वैवाहिक संबंध के अधार पर नागरिकता तो मिली है लेकिन उसे सारे अधिकार नहीं मिलते। इस नियम के अनुसार कोई भारतीय महिला जिसकी शादी नेपाल में हुई है वह नेपाल की प्रधानमंत्री नहीं बन सकती हैं। साथ ही सवाल यह भी उठता है कि जिन बच्चों के पिता का पता नहीं हैं, उनका क्या होगा? 

नेपाल और भारत की सीमा पर बसे बाल्मीकि नगर में पत्रकारिता कर रहे अभिषेक गुप्ता के अनुसार 2015 में नेपाल के नए संविधान के तहत सात राज्य बनाए गए थे और इसके जरिए मधेशी समुदाय को हाशिए पर डाल दिया गया था। साथ ही भारत से जो 'रोटी-बेटी के रिश्ते' की बात कही जाती थी, अब वह ख़बरों में ही है। ज़मीन पर अब यह ख़त्म हो चुका है। 

मधेशियों पर संदेह किया जाता है?

नेपाल में तराई इलाकों में रहने वाले ज्यादातर मधेशी भारत से मूल रिश्ता रखते हैं। भारत देश के कई क्षेत्रों में उनके वैवाहिक संबंध भी हैं। इस सबके अलावा दोनों देशों के रिश्तों को खुली सीमा अद्वितीय बनाती रही है। यहीं खुली सीमा के वजह से रोटी और बेटी का संबंध और भी मजबूत हुआ हैं। 

"भारत में मुसलमान को जिस तरह पाकिस्तानी होने की नजर से देखा जाता है उसी तरह नेपाली राष्ट्रवाद से प्रभावित लोग हम सीमावर्ती इलाक़ों में रहने वाले मधेशियों को उपेक्षापूर्ण और संदेह की नजर से देखते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश से सटे इलाके में मधेशी लोग रहते हैं। वहीं सिक्किम और उत्तराखंड से सटे इलाकों में पहाड़ी लोग रहते हैं। जो नेपाल में बहुसंख्यक हैं। इसीलिए जब भी भारत के साथ संबंधों की बात आती है तो हम लोगों को शंका की नज़र से देखा जाता है।" बिहार के पटना में पीएमसीएच में पढ़ रहे राजन बताते हैं। राजन नेपाल के औरही ईटाटार के रहने वाले है।

कहानी सीमा पर रह रहे लोगों की

नेपाल की सियासत में इन दिनों माओवादी दल भी हैं, इसका भी प्रभाव भारत-नेपाल के रिश्तों पर है। नेपाल ने कुछ वर्ष पहले नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में दिखाया था।  जिसके बाद से भारत और नेपाल के बीच कड़वाहट शुरू हुई थी।

नेपाल से आकर बाल्मीकि नगर में दवाई का दुकान खोलें सत्यम चौधरी बताते है, "सीमा पर बसे घर और बस्तियों को देखकर आपको पता नहीं चलेगा कि कौन किस देश में हैं। एक देश के नागरिक दूसरे देश जाकर व्यापार और नौकरी करते थे। कोरोना के वक्त जब दोनों देशों के लोग एक-दूसरे देशों फंस गए। तब दोनों देशो ने सीमा बंद कर दी थी। फंसे लोगों में कई लोगों ने जंगल और नदियों से सीमा पार की। नेपाल में भारतीय को और भारत में नेपाली लोगों को कोरोना के लिए दोषी बताया जा रहा था।"  

भारत नेपाल की सीमा यानी बाल्मीकि नगर में पत्रकारिता कर रहे अभिषेक गुप्ता बताते हैं कि, "नेपाल से आ रहे लोगों को भारत में कोई चालान नहीं कटाना पड़ता है। लेकिन नेपाल जाने के बाद हम लोगों को चालान कटाना पड़ता है। 2015 के बाद भारतीय नागरिकों के लिए वर्क परमिट अनिवार्य कर दिया गया था। 2019 में नेपाल के श्रम और व्यावसायिक सुरक्षा विभाग ने देशभर में सारे दफ्तरों को भारतीय कामगारों की वास्तविक संख्या बताने को कहा था। कई राजनीतिक हस्तक्षेप के बावजूद कोरोना के वक्त और बाद में व्यवसायिकों और कामगारों का आना- जाना कम रहा लेकिन फिर से पेट के लिए व्यवसाय पहले जैसे ही चल रहा है। लेकिन पहले की तुलना में दोनों देशों के बीच शादी का संबंध ना के बराबर हो रहा है।"

मधेशियों का आंदोलन

"संविधान निर्माण के समय मधेशियों ने बलिदान दिया। लेकिन आज वो नेपाल में दोयम दर्जे के व्यक्ति बन चुके हैं।  हमारी मांग रहीं हैं कि राज्य की संरचना समावेशी हो, यहाँ की भाषा को मान्यता हो और नागरिकता की प्रक्रिया सहज हो।" जनमत पार्टी के रोतहट क्षेत्र के जिला सचिव विकास कुमार यादव बताते है। जनमत पार्टी नेपाल में मधेशी समुदाय की मांग को लेकर चुनाव में उतरती है। 

2008 में नेपाल पहली बार संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बना। इस गणतांत्रिक नेपाल के पहले उपराष्ट्रपति परमानंद झा बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताते हैं कि, "हमारा हाल भारत के मुसलमानों से भी गया गुज़रा है। भारत में आप मुसलमान को दो नंबरी नागरिक तो नहीं बोलते हैं।  लेकिन नेपाल में मधेसी दो नंबरी नागरिक हैं। अब भी नागरिकता को लेकर विवाद है। राष्ट्रपति जी ने बिल को वापस कर दिया है।" 

मोदी के बारे में क्या सोचते हैं नेपाली हिंदू?

"मोदी भारत और वहां के हिंदू के लिए अच्छे हो सकते हैं। हमलोगों के लिए नहीं। कोरोना के वक्त नाकाबंदी के कारण हमने बहुत दुख उठाया था। 2014 के बाद मोदी हम लोगों को अच्छे लगते थे लेकिन अब मोदी का नेपाल के हिंदुओं में क्रेज कम हुआ है।" जनकपुर में रह रही रूपम बताती है। वो बेटी सुपौल के कुनौली गांव की है और बहू नेपाल की। 

वहीं जनमत पार्टी जो नेपाल में मधेशी समुदाय की मांग को लेकर चुनाव में उतरती है। वहां के स्थानीय नेता नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, "भारत को कोई काम करवाना है तो वह कम्युनिस्ट नेताओं से करवाता है। जो पहाड़ी समुदाय से आते हैं। जबकि भारतीय से नजदीकी की वजह से नुकसान हम लोग झेल रहे हैं। डर से अब कोई नेपाली भारत में शादी नहीं करता है।  नरेंद्र मोदी के भारत में आने से नेपाल से रिश्ते सुधरने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आप ही बताइए कि उन्होंने मधेसियों के लिए क्या किया?''

पूरे मामले पर पहाड़ियों और कम्युनिस्ट नेताओं का क्या कहना है?

जेएनयू से पढ़े नंददेव यादव बिहार नेपाल सीमा पर बसे सुपौल जिले के कम्युनिस्ट नेता हैं। वो बताते हैं कि, "नेपाल के एक मधेस नेता हैं राजेंद्र महतो! जिन्होंने चुनाव हारने के बाद बयान दिया था कि हमारी हार भारत की हार है। मुझे वह मैच याद आ जाता हैं, जब पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक ने टी-20 वर्ल्ड कप में हार के बाद दुनिया के मुसलमानों से माफ़ी मांगी थी‌। आप खुद समझिए शोयब मलिक खुद को पाकिस्तानी से ज्यादा मुसलमान मानते हैं। क्या उसी तरह राजेंद्र महतो क्या ख़ुद को भारत का मानते हैं? नेपाल के मधेसी अपनी समस्या के लिए भारत की ओर न देखकर नेपाल की ओर देखे तो शायद समस्या सुलझ सकती हैं।"

नंददेव यादव आगे बताते हैं कि "2015 में नेपाल के संविधान के बनने वक्त भारत के विदेश सचिव एस जयशंकर नेपाली नेतृत्व के सामने जिस तेवर से पेश आए थे। या फिर नेपाल हिंदू राष्ट्र रहना चाहता हैं या सेक्युलर स्टेट ! इन सारे मुद्दे पर भारत जिस तरह हस्तक्षेप करता है। इसके बाद नेपाल में भारत विरोधी भावना पनप रही हैं।"

नेपाल देश के पहाड़ी इलाकों में स्थित सामाजिक संस्था "नारायणस्थान समाजिक सेवा प्रतिष्ठान" के उपाध्यक्ष प्रदीप पौडेल बताते हैं कि, "भारत के खिलाफ इस विरोध की सबसे मुख्य वजह नाकेबंदी है। 2015 में भारत की अघोषित नाकेबंदी के वक्त काठमांडू की सड़कों पर दिन में सन्नाटा पसरा रहता था और रसोई गैस के लिए कई किलोमीटर की लंबी लाइन लगती थी। जहां तक मधेसियों से नफ़रत या भेदभाव की बात है तो भारत को लेकर नेपाल के बहुसंख्यक लोगों में एक अलग नजरिया है कि वह नेपाल के साथ मनमानी करता है। ऐसे में अगर कुछ मधेसी नागरिक भारत से सहानुभूति रहते हैं तो वे भी निशाने पर आ जाते हैं।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest