हरियाणा: आंगनवाड़ी, मिड-डे मील और आशा वर्कर्स ने मनाया काला दिवस, सरकार पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप
हरियाणा में बीते लंबे समय से आंगनवाड़ी, मिड-डे मील और आशा कार्यकर्ता सहायिका अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। पिछले कई महीनों से इन कार्यकर्ताओं ने सड़क पर प्रदेश की मनोहर लाल खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है। इसी कड़ी में मंगलवार, 17 अक्तूबर को रोहतक, भिवानी, हिसार, सोनीपत, पानीपत और करनाल समेत कई जिलों में इन कार्यकर्ताओं ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया और विरोध में काला दिवस मनाया। इस दौरान सभा वर्कर्स ने सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी और प्रदर्शन भी किया।
बता दें कि आठ अक्टूबर को प्रदेश स्तर की भिवानी में हुई हुंकार रैली ये फैसला लिया गया था कि 17 अक्टूबर को तीनों स्कीम वर्कर्स, काली चुन्नी या काला बैज लगाकर अपना विरोध ज़ाहिर करेंगी। एआईयूटीयूसी से संबंधित आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका यूनियन के बैनर तले आयोजित इस प्रदर्शन में हरियाणा के अलग-अलग जिलों में बड़ी संख्या में आशा कार्यकर्ता, मिड डे मील वर्कर्स और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिकाओं की भागीदारी देखने को मिली।
आशा कार्यकर्ताओं का जारी है संघर्ष
ध्यान रहे कि इससे पहले भी अलग-अलग संगठनों से जुड़ी ये कार्यकत्रियां सिलसिलेवार तरीके से विरोध प्रदर्शन और हड़तालें करती रही हैं, लेकिन इनका आरोप है कि सिवाय आश्वासन के अब तक इनकी मांगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। मौजूदा समय में खबर लिखते वक्त भी हिसार में आशा वर्कर्स का प्रदर्शन देखने को मिल रहा है, जहां वो निकाय मंत्री कमल गुप्ता के आवास पर जाने के लिए एकत्रित हुई थीं। लेकिन पुलिस ने आवास के 100 मीटर दूर ही इन आशा कर्मियों को रोक दिया है।
न्यूज़क्लिक से बातचीत में संगठन की प्रदेश महासचिव पुष्पा दलाल ने बताया कि "ये काला दिवस सरकार की वादाखिलाफी के विरोध में मनाया गया क्योंकि हरियाणा सरकार ने बीते साल 2022 में आंदोलन के दौरान जिन मांगों को माना था, उनमें से अधिकांश को अब तक लागू ही नहीं किया। ऐसे में मजबूरन इन कार्यकर्ताओं को सड़कों पर उतरना पड़ा है। ताकि शासन-प्रशासन नींद से जागे और इन मेहनतकश वर्कर्स की मांगें सुने।
"काम का बोझ बढ़ रहा है, लेकिन मानदेय नहीं"
पुष्पा दलाल बताती हैं कि "सरकार ने हड़ताल की अवधि के मानदेय में मात्र 100 रुपये कटौती की बात कही थी, लेकिन बड़े अधिकारियों ने चार महीने के मेहनताने में से जोर जबरदस्ती 75 प्रतिशत की कटौती कर ली है। इसके अलावा आंगनवाड़ी कर्मियों पर विभिन्न तरीकों से काम का बोझ बढ़ाया जा रहा है। मानदेय समय पर नहीं मिलता, केंद्रों का किराया नहीं मिलता, कार्यकर्ताओं को स्वयं अपने पैसों से गैस सिलेंडर भरवाना पड़ता है।"
संगठन के मुताबिक, "स्कीम वर्कर औरतें तमाम समस्याओं से जूझ रही हैं। आंगनवाड़ी विभाग में करीब 5,000 वर्कर व हेल्पर्स के पद खाली पड़े हुए हैं, लेकिन इन पर नियुक्ति नहीं हो रही है, जिससे उनके कार्य का बोझ भी मौजूदा कार्यरत वर्कर्स व हेल्पर्स पर डाला जा रहा है। इसके अलावा विभाग से बाहर के कार्य भी इन्हीं वर्कर-हेल्पर से लिए जाते हैं। वर्कलोड लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन मानदेय नहीं। कई कार्यकत्रियां अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं, उन्हें कंप्यूटर के काम देकर उन पर मानसिक दबाव बनाया जा रहा है, जिसके लिए उन्हें किसी और की सहायता लेनी पड़ती है और उसे पैसों का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ता है। विभाग द्वारा बिना किसी सुविधा और स्मार्टफोन के ही वर्कर्स से ऑनलाइन काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।"
बीते लंबे समय से जारी है संघर्ष
ध्यान रहे कि ये सभी कार्यकत्रियां बीते लंबे समय से मानदेय बढ़ोत्तरी, महंगाई भत्ता, वर्दी का पैसा, एरियर, केंद्रों का किराया, पीएफ और रिटायरमेंट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ आदि की मांग कर रही हैं, आरोप है कि राज्य सरकार लगातार नज़रअंदाज़ करती नज़र आ रही है। इनका कहना है कि "बीते सालों में सरकार ने काम का बोझ लगभग दोगुना कर दिया है, लेकिन इंसेंटिव वही पुराना दिया जा रहा है। ऐसे में इस महंगाई के दौर में इस मानदेह से क्या खाएं और क्या बचाएं। सभी पर परिवार की ज़िम्मेदारी भी है।"
हरियाणा विधानसभा चुनावों में अब अधिक समय नहीं बचा। ऐसे में कई कर्मचारी संगठन, युवा, महिलाएं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार के ख़िलाफ़ पहले ही मोर्चा खोले हुए हैं। सभी सरकार पर अनदेखी और वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में खट्टर सरकार के लिए इन कार्यकर्ताओं का ये आंदोलन निश्चित तौर पर एक चुनौती जरूर दिखाई देता है।
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