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हरियाणा चुनाव : बीजेपी को अपने काम से ज़्यादा विपक्ष के बिखराव का फायदा!

ग्राउंड रिपोर्ट: जनता की जबान पर विकास जैसे मुद्दे नहीं, राजनीतिक दलों में हो रही टूट और सियासी घरानों की चर्चा है।  
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हिसार:  हरियाणा के हिसार जिले में अगर आप किसी से बात करेंगे तो वह जिले की गौरवशाली परंपरा को बताता नजर आएगा। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल द्वारा शहर को लेकर किए गए कामों का हवाला भी देगा लेकिन अगर इस विधानसभा चुनाव की बात करें तो सब यही कह रहे हैं कि इस बार वो लहर नहीं बन पा रही है जो बाकी चुनावों में रहती है।

हरियाणा चुनाव को समझने के लिए हमने हिसार के पावड़ा गांव का सफर किया। पावड़ा जिले की उकलाना विधानसभा का एक गांव है, जिसकी आबादी 13 हजार से ज्यादा है। राज्य सरकार ने इसे महाग्राम का दर्जा दे रखा है। जाट बाहुल्य इस गांव में लगभग सभी धर्म और जाति के लोग रहते हैं। दो प्राइमरी स्कूल, लड़कियों के लिए दो स्कूल समेत इस गांव में कुल पांच स्कूल हैं। एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और दो बैंक इस गांव में विकास की कहानी बयां कर रहे हैं।
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 पावड़ा के राजेश ढिल्लो

गांव को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। यहां की सरपंच अंशू पावड़ा हैं। उनके पति राजेश ढिल्लो कहते हैं, 'इस सरकार के आने के बाद योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से हुआ है। ज्यादातर योजनाएं आनलाइन है तो करप्शन पर लगाम लगी है। ग्राउंड पर सरपंचों द्वारा जो काम किया गया है निसंदेह इसका फायदा राज्य की सत्तारूढ़ सरकार को मिलेगा।'

वो आगे कहते हैं, 'वैसे इस गांव का इतिहास हमेशा विपक्ष में रहने का रहा है। कभी इस गांव के ही प्रोफेसर छत्रपाल ने चौधरी देवीलाल को पटखनी दी थी। 1991 में देवीलाल इस विधानसभा सीट से हार चुके हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही परिणाम इस गांव से मिलेगा, लेकिन एक बात और साफ कर देना चाहता हूं कि विकास इस बार के चुनाव में मुद्दा नहीं है। ज्यादातर राजनीतिक दल भी विकास के वादे नहीं कर रहे हैं बल्कि भावनाओं के आधार पर जीत हासिल करना चाहते हैं।'
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पावड़ा के  मास्टर रामपाल

कुछ ऐसी ही बात इसी गांव के मास्टर रामपाल भी करते हैं। वो कहते हैं,'इस बार चुनाव में विकास जैसे मुद्दे नहीं, राजनीतिक दलों में हो रही टूट और सियासी घरानों की चर्चा है। कांग्रेस में टूट हो गई है। इनेलो में पहले ही फूट पड़ गई थी। बीजेपी ने बेहतर काम नहीं किया है लेकिन विपक्ष के बिखराव को उसको फायदा मिल रहा है। जीएसटी, नोटबंदी, किसानी, बिजली, मोटर व्हीकल एक्ट ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिनपर जनता और विपक्ष को बात करनी चाहिए थी लेकिन पहले तो बात ही नहीं हो रही है और अगर बात हो भी रही है तो जाति, धर्म, अनुच्छेद 370 जैसे मसलों की जिससे जनता को नहीं बीजेपी को फायदा होना है।'
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पावड़ा के संस्कार शाला में पढ़ाई करते बच्चे

उकलाना विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी आशा की खूब चर्चा हो रही है। बीजेपी ने उकलाना सीट (आरक्षित) के खेदड़ गांव की रहने वाली आशा (36) को अपना उम्मीदवार बनाया है। दलित मूल की आशा एक जाट बिजनसमैन की पत्नी हैं। आशा संस्कृत और अंग्रेजी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएट हैं और पुलित्जर विनर, बुकर फाइनलिस्ट जुंपा लाहिरी पर पीएचडी कर रही हैं।

हालांकि मास्टर रामपाल कहते हैं कि आशा की चर्चा तो है लेकिन उन्हें जेजेपी से कड़ी टक्कर मिलेगी। उनकी जीत इतना आसान नहीं है। सिर्फ उकलाना में ही नहीं पूरे हरियाणा के समीकरण को जाट समुदाय और किसान प्रभावित करेंगे। उन्हें महिला होने का फायदा मिलेगा लेकिन बाकी दल भी अब इसी रणनीति से चुनाव लड़ रहे हैं।

गौरतलब है कि कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो 24 घंटे में किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा। उन्होंने बिजली के दाम आधे करने और 300 यूनिट बिजली फ्री देने का भी वादा किया है।

पावड़ा गांव के ही एक युवा अमित कहते हैं, 'हमारे गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं। ऐसे में जो सरकार किसानों के लिए राहत लाएगी हम उसी को वोट करेंगे। मनोहर लाल खट्टर सरकार किसानों के लिए उतनी फायदेमंद नहीं रही है। एक तरह से किसान परेशान ही रहे हैं।

कपास का सरकारी दाम बहुत कम और खरीद नहीं है। सरसों की खरीद पर सरकार ने कैप लगा रखा है। सिर्फ गेहूं की खरीद सरकार ढंग से कर रही है। लेकिन ट्यूबवेल के लिए बिजली 6 घंटे से ज्यादा नहीं मिलती है। फसल बीमा का फायदा उसके वास्तविक हकदारों को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में लोग किसानी छोड़कर भाग रहे हैं। घाटे का सौदा होने के चलते युवा तो खेती करना ही नहीं चाह रहे हैं।'

वो आगे कहते हैं कि मुझे नहीं लगता है कि बीजेपी सरकार हरियाणा में दोबारा लौटने जा रही है। लेकिन विपक्ष की फूट का फायदा उसे जरूर हो सकता है। आपको बता दें हरियाणा ऐसा राज्य है, जहां 2014 में बीजेपी ने पहली बार अकेले चुनाव लड़ा था। उसे 90 में 47 सीटें मिलीं और वह अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही।

1966 में हरियाणा अलग राज्य बना था। तब से 2009 में भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस को छोड़कर अभी तक किसी भी पार्टी ने भी यहां लगातार दो बार सरकार नहीं बनाई है। हालांकि, 2014 में कांग्रेस 13 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर पहुंच गई और इंडियन नेशनल लोकदल को दूसरी पोजिशन मिली थी।
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पावड़ा बस स्टैंड के पास चुनावी चर्चा करते ग्रामीण

जानकारों का कहना है कि गैर-जाट समुदाय की कांग्रेस से नाराजगी और प्रधानमंत्री मोदी के कारण 2014 में राज्य में बीजेपी को शानदार जीत मिली थी। पिछले पांच साल में अपना जनाधार मजबूत करने के बजाय विपक्ष बिखरा हुआ नजर आया है।

कांग्रेस ने कुछ ही हफ्ते पहले कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष और हुड्डा को कैंपेन कमिटी का प्रमुख व विधायी दल का नेता बनाया है। हालांकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। तो वहीं इंडियन नेशनल लोकदल में फूट पड़ गई है। इंडियन नेशनल लोकदल के दो धड़े, अभय चौटाला और दिग्जविजय चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी, देवी लाल की विरासत पर दावा कर रहे हैं, जो अभी खतरे में दिख रही है।

आपको बता दें कि विपक्ष के लिए खतरे की घंटी पिछले साल जींद में हुआ उपचुनाव भी था।कांग्रेस के स्टार लीडर रणदीप सिंह सुरजेवाला इस सीट से चुनाव हार गए थे और वह तीसरे नंबर पर थे। लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर कब्जा किया था। तब उसका वोट शेयर 58 प्रतिशत हो गया था।  

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