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हिजाब मामला: सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में बंटे जज, अब बड़ी बेंच निपटाएगी मुद्दा?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, तो वहीं दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हिजाब पहनना चॉइस यानी पसंद का मामला है और कुछ नहीं।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

कर्नाटक हिजाब मामले में कई दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद आज गुरुवार, 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने विभाजित फैसला सुनाया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ इस मामले पर एकमत नहीं हो पाई और अब ये मामला बड़ी बेंच के पास जाएगा। फैसला सुनाते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमारे अलग-अलग विचार हैं इसलिए ये मामला चीफ जस्टिस के पास भेजा जा रहा है ताकि वह बड़ी बेंच का गठन करें। मामले पर 11 सवाल तैयार करते हुए जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इसे 9 जजों की बेंच के पास भेजने की राय दी है। फिलहाल मामले पर कोई ठोस फैसला ना आने के चलते इस दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट का फ़ैसला जारी रहेगा।

बता दें कि बीते महीने इस मामले में 22 सितंबर को सुनवाई पूरी हो गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हिजाब विवाद में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कर्नाटक सरकार ने इस साल पांच फरवरी को एक आदेश दिया था, जिसमें स्कूल-कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुंचाने वाले कपड़ों को पहनने पर बैन लगाया गया था। हाई कोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन हटाने से इनकार करते हुए कर्नाटक सरकार के इस आदेश को कायम रखा था।

फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 11 मुद्दों को तय किया और अपील के खिलाफ सभी सवालों के जवाब दिए। वहीं दूसरे जज जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया। जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि हिजाब पहनना चॉइस यानी पसंद का मामला है और कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि विवाद के समाधान के लिए धार्मिक प्रथाओं के आकलन का मुद्दा जरूरी नहीं था। कर्नाटक हाई कोर्ट ने वहां गलत रास्ता अपनाया। ये मामला अनुच्छेद 14, 15 और 19 से जुड़ा है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया ने आगे कहा, "मेरे लिए सबसे ऊपर लड़कियों की शिक्षा है। सभी को पता है कि लड़कियों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। वो स्कूल जाने से पहले घर के काम में मदद करती हैं। कई अन्य मुश्किलें भी हैं। क्या हम उसके जीवन को बेहतर बना रहे हैं?”

ध्यान रहे कि 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्लासरूम में हिजाब पहनने की मांग को खारिज कर दिया था। जिसके बाद मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। शीर्ष अदालत में दलीलों के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश कई वकीलों ने जोर देकर कहा था कि मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से रोका गया तो उनकी शिक्षा खतरे में पड़ जाएगी क्योंकि वो कक्षाओं में जाना बंद कर सकती हैं। उस वक्त कुछ अधिवक्ताओं ने यह भी तर्क दिया था कि मामले को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए।

अब तक क्या-क्या हुआ?

हिजाब विवाद बीते साल जुलाई के महीने में शुरु हुआ था, जब कर्नाटक के उडुपी ज़िले में एक जूनियर कॉलेज ने छात्राओं पर स्कूल में हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी थी। लेकिन जब लॉकडाउन खुलने के बाद छात्राओं को पता लगा कि उनकी सीनियर्स हिजाब पहना करती थीं तो उन्होंने इस आधार पर कॉलेज प्रशासन से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी। लेकिन उन्हें क्लास के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति नहीं मिली। मालूम हो कि उडुपी ज़िले में सरकारी जूनियर कॉलेजों की ड्रेस को कॉलेज डेवलपमेंट समिति तय करती है और स्थानीय विधायक इसके प्रमुख होते हैं।

इसके बाद छात्राओं ने हिजाब पहनकर कैंपस में घुसने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बाहर ही रोक दिया गया था। इन लड़कियों ने इसके बाद कॉलेज प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया था और जनवरी 2022 में उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका दायर कर दी थी। ये मामला शुरू तो उडुपी ज़िले से हुआ था लेकिन जल्द ही जंगल की आग की तरह बाक़ी ज़िलों में भी फैल गया। शिवमोगा और बेलगावी ज़िलों में भी हिजाब पहनकर कॉलेज आने वाली मुसलमान छात्राओं पर रोक लगा दी गई। भगवा गमछा पहने छात्रों ने हिजाब पहने छात्राओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी। कोंडापुर और चिकमंगलूर में प्रदर्शन और प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ हिंदू और मुसलमान छात्रों के प्रदर्शन शुरू हो गए।

इस दौरान सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें हिजाब पहने कॉलेज जा रही छात्रा मुस्कान ख़ान के ख़िलाफ़ भगवा गमछा डाले युवा छात्रों की भीड़ नारेबाज़ी कर रही थी। ये घटना कर्नाटक के मंड्या ज़िले में हुई थी लेकिन जल्द ही हिजाब बनाम भगवा गमछे की लड़ाई पूरे कर्नाटक में शुरू हो गई। हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई शुरू होने के तीन दिन पहले मुख्यमंत्री बसावराज बोम्मई की सरकार ने एक आदेश जारी करके सभी छात्रों के लिए कॉलेज प्रशासन की तरफ़ से तय यूनिफॉर्म को पहनना अनिवार्य कर दिया। इस आदेश के दो दिनों के भीतर ही प्रदर्शन राज्य भर में फैल गए और कई जगह हिंसक घटनाएं भी हुईं।

8 फरवरी 2022 को उडुपी के एमजीएम कॉलेज में सैकड़ों छात्रों की भीड़ ने हिजाब पहने लड़कियों के ख़िलाफ़ जय श्री राम का नारा लगाया। कर्नाटक के कई इलाक़ों में हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस छोड़नी पड़ी। मुख्यमंत्री को एहतियात के तौर पर कई दिनों तक सभी स्कूलों को बंद रखने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद मामला कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच में पहुंचा। जिसने सरकार के फैसले का समर्थन किया था।

कर्नाटक से लेकर ईरान तक हर तरफ़ हिजाब-ए-इख़्तियारी

गौरतलब है कि इस समय कर्नाटक से लेकर ईरान तक हर तरफ़ हिजाब-ए-इख़्तियारी का नारा बुलंद है। इसका मतलब साफ है कि एक महिला की हिजाब को चुनने की पसंद और आज़ादी होनी चाहिए, फिर वो इसे पहनना चाहें या उतार कर फेंकना चाहें। ये उसकी अपनी मर्जी हो, किसी का थोपा हुआ फैसला नहीं। एक महिला के पास हमेशा ये अधिकार होना चाहिए कि वो तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है। उसे अपने जिस्म के साथ क्या करना है ये अधिकार उसके पास होना चाहिए।

बहरहाल, महिलाओं के कपड़े हमेशा से पितृसत्तात्मक समाज के निशाने पर रहे हैं। ईरान में आज महिलाएं विरोध स्वरूप हिजाब जला रही हैं, तो उनकी भी मंशा यही है कि उनके पहनावे पर क्यों पाबंदी ना हो, वो अपनी पसंद के लिए आज़ाद हो। भारत में भी इसी इरादे से जब हिजाब का मामला विवादों में आया, तो कई सामाजिक और नागरिक संगठन न चाहते हुए भी इसकी ओर कदम बढ़ाने लगे, वो इसके हिमायती नहीं थे लेकिन वो इसे जबरन उतरवाने के ख़िलाफ़ थे। उन्हें डर था कि इसके चलते कहीं मुस्लिम लड़कियां शिक्षा से दूर न हो जाएं और शायद यही वजह है कि विरोध में और ज़्यादा महिलाओं ने हिजाब की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो उसका व्यापक असर देखने को मिलेगा क्योंकि ये मुद्दा अब धर्म और शिक्षा से काफी आगे चला गया है।

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