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हिमाचल प्रदेश: ज़िला परिषद कर्मचारी हड़ताल 11वें दिन भी जारी, CITU ने दी सड़कों पर उतरने की चेतावनी

सीटू के नेताओं ने मामले  को समझाते हुए कहा कि  तथाकथित ज़िला परिषद कैडर में आने वाले ये सभी कर्मचारी पिछले कई दिनों से कलम छोड़ हड़ताल पर हैं, जिससे प्रदेश में सभी पंचायतों, पंचायत समितियों, विकास खंडों तथा ज़िला परिषद के दफ़्तर बन्द हो गए हैं।
Himachal Pradesh
Image courtesy : The Tribune

हिमाचल प्रदेश के जिला परिषद कैडर कर्मियों की हड़ताल 11 वे दिन भी जारी है।  वो  पंचायतीराज या ग्रामीण विकास विभाग में समयोजन चाहते हैं, क्योंकि अभी जिला परिषद कैडर में होने की वजह से इन सरकारी विभागों के कर्मचारियों को समान वित्तीय लाभ नहीं मिल पा रहे हैं।

जिसकी वजह  प्रदेश के पंचायतों में बीते दस दिनों  ग्रामीणों के कोई काम नहीं हो रहे है। क्योंकि इनके कर्मचारी हड़ताल पर हैं। जिससे गर्मिणों को हर छोटे मोटे काम के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं। आज यानी गुरुवार को  इनकी हड़ताल को 11 दिन हो चुके हैं।  प्रदेशवासी  जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र, BPL, परिवार रजिस्टर की नकल, शादी के पंजीकरण, नवजात बच्चे के रजिस्ट्रेशन जैसे तमाम  अटक गए हैं। यही नहीं नरेगा मज़दूरों को भी उनका मेहनताना नहीं मिल पा रहा है।

केंद्रीय मज़दूर संगठन सीटू की हिमाचल प्रदेश  राज्य कमेटी ने हड़ताली कर्मचारियों के आंदोलन के  समर्थन करते हुए  प्रदेश सरकार से इनकी मांगों को पूर्ण करने की मांग की है। साथ ही सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने एक साँझा बयाना जारी कर सरकार को  चेताया है कि प्रदेश सरकार ने जल्दी ही इनकी मांगें नहीं मानी तो सीटू कार्यकर्ता भी हड़ताली कर्मचारियों के समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे।

हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग में साढ़े चार हज़ार से ज़्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं जिनमें 3226 पंचायत सचिव, 1081 तकनीकी सहायक व 237 कनिष्ठ अभियंता के अलावा डाटा एंट्री ऑपरेटर से लेकर अधिशासी अभियंता तक के कर्मचारी शामिल हैं। इन्हें प्रदेश सरकार ने कब ज़िला परिषद कैडर में तब्दील  कर दिया है इसकी जानकारी किसी के पास भी नहीं है।

सीटू के नेताओं ने मामले  को समझाते हुए कहा कि  तथाकथित ज़िला परिषद कैडर में आने वाले ये सभी कर्मचारी पिछले कई दिनों से कलम छोड़ हड़ताल पर हैं, जिससे प्रदेश में सभी पंचायतों, पंचायत समितियों,विकास खंडों तथा ज़िला परिषद के दफ़्तर बन्द हो गए हैं।

उन्होंने कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करते हुए मांग की है कि सरकार इन्हें जल्दी से जल्दी पंचायती राज या ग्रामीण विकास विभाग में शामिल करे।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 के बाद सरकार ने इन कर्मचारियों को ज़िला परिषद कैडर कहना शुरू किया जबकि इनकी नियुक्ति और वेतन सरकार के नियमानुसार हुई है। अब जब छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का मामला सामने आया तो वित्त विभाग ने इन कर्मचारियों को इस वेतन आयोग के लाभ देने से अयोग्य घोषित कर दिया। उसके बाद ही इस बात का पता चला कि ये जितने भी कर्मचारी जो तीन स्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में कार्यरत हैं ये किसी भी विभाग के अंतर्गत नहीं आते हैं।  

उन्होंने कहा कि इन कर्मचारियों को वेतन व भत्ते राज्य सरकार अपने विभागों के ज़रिये जारी करती है। ज़िला परिषदों को इसका कोई भी  बजट अलग से जारी नहीं किया जाता है और न ही ज़िला स्तर पर ट्रेज़री के माध्य्म से नंम्बर जारी किया गया है। सरकार ने बड़ी चालाकी से राज्य स्तर पर ही एक नंम्बर अलॉट किया है जहां से उनका वेतन जारी किया जाता है।

नेताओं ने आगे कहा कि यदि भविष्य में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू होती है तो ये कर्मचारी प्रदेश सरकार की गलत नीति के कारण उससे भी वंचित रहेंगे। उन्होंने कहा कि पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग ऐसे महकमे हैं जो प्रदेश की 95 प्रतिशत जनता के विकास के साथ जुड़े हैं लेकिन उनमें काम कर रहे कर्मचारियों को किसी भी विभाग के अंतर्गत न रखना सरकार की ग्रामीण इलाकों के साथ भेदभाव करने की सोच को ही दर्शाता है।

हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर के मुताबिक जिला परिषद केडर कर्मचारी महासंघ के महासचिव दिलीप शर्मा ने बताया कि 22 साल से जिला उन्हें सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर वित्तीय लाभ नहीं मिल रहे हैं। इस दौरान सैकड़ों बार विभिन्न सरकारों के समक्ष मांग उठाई गई। अब उन्होंने मजबूरी में पेन डाउन स्ट्राइक का निर्णय लिया है। विभाग उन्हें नोटिस देकर डराने की कोशिश कर रहा है, लेकिन नोटिस के डर से कोई भी जिला परिषद कर्मचारी काम पर नहीं लौटेगा।

मज़दूर संगठन सीटू का कहना है  कि वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री पूर्व में पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री भी रह चुके हैं और वे इस बात से अवगत भी होंगे तो फ़िर इन कर्मचारियों को विभागों से बाहर क्यों और कैसा किया गया। यह बहुत ही निंदनीय विषय है और मुख्यमंत्री को तुरंत इस मसले को सुलझाना चाहिए।  उन्होंने सरकार द्धारा हड़ताल पर गये कर्मचारियों पर सेवा शर्तों के नियमों के तहत कार्रवाई करने की धमकी देने की भी निंदा की है।

आपको बात दें कि हिमाचल सरकार के मंत्री ने कर्मचारियों की हड़ताल को अवैध बताया था और कार्रवाई की भी बात कही थी।  

उन्होंने सवाल खड़े किये हैं कि एक तरफ़ सरकार इन चार हज़ार कर्मचारियों को किसी भी विभाग का कर्मचारी घोषित करने से इंकार कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों के लिए बने सर्विस रूल इन पर लागू करके इन्हें दबाना चाहती है।

यह सरकार के दोहरेपन और तानाशाही वाली प्रवृति को ही उजागर करता है। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह जल्दी ही इन कर्मचारियों को विभागीय कर्मचारी घोषित करे अन्यथा मजदूरों और कर्मचारियों के अन्य संगठन भी इनके साथ आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर शामिल होने के लिए तैयार हैं।

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