Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है: डॉ. कफ़ील ख़ान

उत्तर प्रदेश पुलिस ने डॉ. कफ़ील ख़ान और पांच अज्ञात लोगों पर समाज में विभाजन पैदा करने और लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़काने के आरोप में मुक़दमा दर्ज किया है।
kafil

उत्तर प्रदेश पुलिस ने रविवार, 03 दिसंबर 2023 को बीआरडी अस्पताल, गोरखपुर से निलंबित, बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफ़ील ख़ान पर, लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़काने और समाज में विभाजन पैदा करने के आरोप में मुक़दमा दर्ज किया है। राजधानी के कृष्णा नगर पुलिस थाने में दर्ज मामले में पांच अज्ञात लोगों को भी आरोपी बनाया गया है, जिनपर आरोप है कि वे लोग डॉ. कफ़ील ख़ान द्वारा लिखित किताब ‘The Gorakhpur Hospital Tragedy: A Doctor's Memoir of a Deadly Medical Crisis’ को समाज में विभाजन के उद्देश्य से प्रसारित कर रहे थे।

कृष्णा नगर स्टेशन हाउस ऑफिसर जितेंद्र प्रताप सिंह ने बताया, "डॉ. कफ़ील ख़ान पर मुक़दमा तब दर्ज किया गया जब एक स्थानीय कारोबारी मनीष शुक्ला ने आरोप लगाया कि, लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़काने और समाज में विभाजन पैदा करने के लिए डॉ. कफ़ील ख़ान द्वारा लिखी गई किताब वितरित की जा रही है।"

लखनऊ पुलिस का कहना है कि इस मामले की जांच शुरू कर दी गई है और अन्य आरोपियों की पहचान करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि पुलिस अधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि अभी तक किताब में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला है।

डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153-बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक दावे), 143 (ग़ैर-कानूनी जनसमूह का सदस्य), 465 (जालसाजी), 467 (किसी मूल्यवान सुरक्षा को बनाने या स्थानांतरित करने या धन प्राप्त करने के लिए जालसाजी), 471 (जाली को असली के रूप में उपयोग करना), 504 (शांति भंग करने के लिए अपमान), 505 (शरारत पैदा करने वाले बयान), 295 (किसी धर्म का अपमान करने के लिए पूजा स्थल को अपवित्र करना), 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत मामला दर्ज हुआ है। इसके अलावा मुक़दमे में प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1867 की धारा 3 और 12 भी लगाई गई है।

एफआईआर में मनीष शुक्ला ने दावा किया है कि ये लोग चुनाव से पहले किताब को प्रसारित करने और इसे और अधिक लोगों को पढ़ने की ज़रूरत के बारे में बात कर रहे थे। शुक्ला ने यह भी आरोप लगाया कि डॉ. कफ़ील ख़ान किसी 'गुप्त योजना' के लिए किताबों की बिक्री से पैसे इकट्ठा कर रहे है।

एफआईआर में मनीष शुक्ला के आरोप के मुताबिक़ उन्होंने 1 दिसंबर को एलडीए कॉलोनी के पास बातचीत सुनी, जिसमें "कुछ लोग डॉ. कफ़ील ख़ान की किताब का स्पष्ट संदर्भ दे रहे थे और सरकार को उखाड़ फेंकने और विभाजन की साज़िश रच रहे थे।"

इस सिलसिले में हमने डॉ. कफ़ील ख़ान से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि न तो सरकार और न ही पुलिस ने उनसे इस बारे में कोई संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि उनकी जिस किताब को लेकर मुक़दमा दर्ज किया गया है वह आज भी 'अमेज़न' पर बिक्री के लिए उपलब्ध है।

फ़ोन पर बातचीत में डॉ. कफ़ील ख़ान ने बताया, "इस किताब का विमोचन 02 साल पहले 17 दिसंबर, 2021 को दिल्ली में हुआ था, और तब से ही दुकानों में पुस्तकों की बिक्री हो रही है। मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखी इस किताब का कुछ लोगों ने हिंदी, उर्दू, तमिल, मराठी, और बंगाली आदि भाषाओं में अनुवाद किया है। इस पुस्तक का एक आधिकारिक 'आईएसबीएन' नंबर है और इसे सभी नियमित मानदंडों और नियमों का पालन करते हुए स्वयं सरकार द्वारा जारी किया गया है।"

डॉ. कफ़ील ख़ान ने बताया कि वे जेल से छूटने के बाद से पिछले 03 साल से उत्तर प्रदेश के बाहर रहते हैं और बीआरडी अस्पताल से निलंबित होने के बाद उन्होंने प्रदेश के बाहर, दक्षिण भारत के एक अस्पताल में नौकरी भी शुरू कर दी है।

इसके अलावा उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि इस मुक़दमे का कारण शाहरुख़ ख़ान की फिल्म 'जवान' हो सकती है क्योंकि इसमें 'गोरखपुर त्रासदी' मामले से प्रेरित दृश्य हैं। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उनको बली का बकरा बनाया जा रहा है क्योंकि सरकार शाहरुख़ ख़ान का तो कुछ कर नहीं सकती है।"

गौरतलब है कि डॉ. कफ़ील ख़ान साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई त्रासदी के बाद सुर्खियों में आए थे, जहां 'ऑक्सीजन सिलेंडर' की कमी के कारण कई बच्चों की मौत हो गई थी। ख़ान को आपातकालीन ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए मिडिया ने एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया था, लेकिन बाद में उन्हें अपने 'काम में अनियमितताओं' के आरोप में कार्रवाई का सामना करना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा था। फ़िलहाल वे ज़मानत पर रिहा हैं।

उल्लेखनीय है कि सितंबर 2020 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत आरोप रद्द कर दिए थे और उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था। वह लगभग छह महीने तक मथुरा जेल में बंद थे। जेल से रिहा होकर वह अपने घर गोरखपुर नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य राजस्थान चले गए थे।

डॉ. कफ़ील पर दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था। उनके ख़िलाफ़ कथित तौर पर 'सार्वजनिक व्यवस्था में खलल डालने' के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।

डॉ. कफील ख़ान ने शाहरुख़ ख़ान को एक पत्र लिखकर दावा किया था कि 'जवान' फिल्म का एक दृश्य उनसे मेल खता है। उन्होंने बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख ख़ान और फिल्म डायरेक्टर से मिलने की भी इच्छा ज़ाहिर की थी। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि "मैं जानता हूं कि 'जवान' फिल्म एक कल्पना है मगर इसमें गोरखपुर अस्पताल की घटना से काफी समानता है।"

यह पत्र डॉ. कफ़ील ख़ान ने शाहरुख़ ख़ान के बांद्रा, मुंबई स्थित उनके घर 'मन्नत' के पते पर भेजा था। पत्र में उन्होंने लिखा था कि "फिल्म में तो असली अपराधी को पकड़ लिया गया लेकिन असल ज़िंदगी में असली अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। मैं अभी भी अपनी नौकरी वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा हूं।"

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest