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इंडिया लीगल : दूसरों को कानूनी सहायता और अपनों के लिए?, कर्मचारियों ने लगाए गंभीर आरोप

‘इंडिया लीगल’ में काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें पिछले महीने का वेतन नहीं मिला है और जबकि मार्च के महीने में भी वेतन में भारी कटौती हुई थी। इसपर सवाल उठने वाले कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया या फिर उनके सवालों का जवाब नहीं मिला। इसके साथ यहाँ के कर्मचारियों ने कंपनी में सुरक्षा और कार्यप्रणाली को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए। हालांकि कंपनी ने इन सब आरोपों को बेबुनियाद बताया है।
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देशभर में लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव कामकाजी लोगों पर ही पड़ा। सरकार के आदेश के बाद भी कंपनियों ने बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छँटनी और वेतन में कटौती की। इस कारण देश के करोड़ों श्रमिक वर्ग पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, इससे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला मीडिया और कोरोना योद्धा जैसे विश्लेषण से अलंकृत मीडियाकर्मी और पत्रकार भी नहीं बचे। देशभर से खबरें आ रही की बड़े बड़े मीडिया संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को या तो बिना वेतन के छुट्टी पर भेजा, या वेतन कटौती की, और कई जगह मीडिया संस्थानों ने तो बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छँटनी कर दी या ऐसी परिस्थिति बनाई कि उन्हें खुद ही इस्तीफ़ा देना पड़ा।

ताज़ा मामला इएनसी नेटवर्क का है, इसका एक वेबपोर्टल इंडिया लीगल है। यहां काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें पिछले महीने का वेतन नहीं मिला है और जबकि मार्च के महीने में भी वेतन में भारी कटौती हुई थी। इसपर सवाल उठने वाले कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया या फिर उनके सवालों का जवाब नहीं मिला। इसके साथ यहाँ के कर्मचारियों ने कंपनी में सुरक्षा और कार्यप्रणाली को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए।

आपको बता दें कि इस मीडिया संस्थान की मालिक राजश्री  राय हैं, इनके पति प्रदीप राय सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं, वो लोगों की क़ानूनी मदद करने का भी दावा करते हैं। इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब प्रदीप राय ने एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा ट्वीटर पर कोरोना महामारी के दौरान पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई और मालिकों के रवैये पर भी सवाल किया और कहा कि पत्रकारों के सुरक्षा के लिए कड़े क़ानूनी प्रावधानों की आवश्यकता है।

इस ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रदीप राय ने भी रिट्वीट किया और मालिकों के रवैये को लेकर उन्होंने कहा कि “.... अगर किसी मीडिया कर्मी को कोई भी समस्या हो तो वो उनकी मुफ़्त में क़ानूनी मदद करने के लिए तैयार हैं।”

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बस फिर क्या था, इसके तुरंत बाद इंडिया लीगल के कर्मचारियों और पूर्व कर्मचारियों ने प्रदीप राय को उनके इस ट्वीट के बाद घेरना शुरू कर दिया। जिसके जवाब में प्रदीप राय ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए न केवल अपने कर्मचारियों को, बल्कि रीट्वीट करने वाले इन कर्मचारियों को ट्वीटर पर ब्लॉक किया।

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इंडिया लीगल के कर्मचारी विकास जो वहां एक पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे। उन्होंने ट्वीट करते हुए सवाल किया कि प्रदीप राय मैं आपका पूर्व कर्मचारी हूँ, जिसे इस लॉकडाउन में ऑफिस नहीं आने के कारण वेतन नहीं दिया गया है। क्या आपकी यह मुफ़्त कानूनी सेवा का अवसर हमें भी मिलेगा? आपके स्वामित्व वाली कंपनी ने हमे रोज़ाना रिपोर्ट करने के लिए कहा, अगर आपको यह याद न हो तो मैं वो मेल भी दिखा सकता हूँ... ".

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इसके साथ ही इंडिया लीगल के कई अन्य पूर्व कर्मचारियों ने भी ट्वीट करना शुरू कर दिया। द हिन्दू, हिंदुस्तान टाइम्स और epw के डिजिटल एडिटर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार सुभाष जो कुछ महीने पहले तक इंडिया लीगल के भी मुख्य संपादक थे। उन्होंने ट्वीट किया कि “यह दुर्भाग्य है की मैंने विकास सहित तमाम लोगों की एक बेहतरीन टीम की नियुक्ति की थी। इनकी समस्याओं का हल आप (प्रदीप) ही कर सकते हैं। आपको इनकी समस्याओं का निदान करना चाहिए। अगर आप पत्रकारों की मदद करना चाहते हैं तो आपको इसकी शुरुआत अपने घर से करनी चाहिए।”

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इस पूरे मसले पर हमने विकास से बात की और इस पूरे मसले को समझने की कोशिश की। न्यूज़क्लिक से बातचीत में उन्होंने कहा कि इंडिया लीगल में तो लॉकडाउन से पहले ही स्थिति बहुत ख़राब थी। वहां किसी भी तरह के भी श्रम क़ानूनों का पालन नहीं किया जाता था यहाँ तक कि काम करने वाले कर्मचारियों को किसी भी किसी तरह के कोई भी लिखित कागज़ नहीं दिए जाते हैं-न कॉन्ट्रैक्ट लेटर, न सैलरी स्लिप और न ही अन्य प्रकार के कोई भी दस्तावेज़ और मांगने पर सिर्फ टाल-मटोल किया जाता था।

विकास ने बताया कि उनकी और उनके साथ करीब 5 अन्य लोगों की नियुक्ति सुभाष ने दिसंबर 2019 में की थी लेकिन तभी से वहां दिक्क्त शुरू हो गई थी। कभी भी हमारा वेतन समय पर नहीं मिला, इसके साथ ही बिना किसी कारण बताए हमारे वेतन में मनमर्जी से कटौती की जाती थी। इसके बाद एक दिन अचानक एडिटर सुभाष को निकाल दिया जाता है। उसके बाद से ही स्थिति और ख़राब हो जाती हैं। इसके बाद भी हम काम करते रहे, बिना किसी आर्थिक सुरक्षा के यहाँ तक की कई महीने बीत जाने के बाद भी हमे कोई ज्वाइनिंग लेटर नहीं दिया गया है।

आगे उन्होंने कहा कि इसके बाद लॉकडाउन हो गया उसके बाद से हमने मैनजमेंट को कई बार संपर्क किया कि इस दौरान कैसे काम करना है, इसको लेकर क्या कोई पॉलिसी है। क्योंकि पूरे देश में लॉकडाउन है सभी सार्वजनिक परिवहन बंद है, अगर ऑफिस आना है तो उसके लिए गाड़ी का इंतज़ाम है क्या? इन सभी मुद्दों को लेकर एचआर से कई बार संपर्क किया गया, कई मेल भेजे लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया। जब एक मेल में कर्मचारियों ने कंपनी पर आरोप लगाए तो मामले को रफा-दफा करने के लिए 15 अप्रैल को मार्च महीने का आधा वेतन दे दिया गया। कर्मचारियों ने फिर सवाल किया कि बिना आधिकारिक नोटिस या पूर्व सूचना के किस आधार पर कटौती की गयी।
 1_19.jpgआगे उन्होंने कहा कि इसके कुछ दिनों बाद चोरी चुपके से 20 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया जाता है कि ऑफिस नहीं आने वालों को वेतन नहीं दिया जाएगा। इसकी भी आधिकारिक जानकारी प्रबंधन की तरफ से किसी को नहीं दी गई। एक और कर्मचारी ने बताया कि जो कर्मचारी “वर्क फ्रॉम होम” कर रहे हैं, उन्हें सिर्फ आधा वेतन दिया जा रहा है।
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एक अन्य कर्मचारी ने बताया कि स्थिति इतनी खराब कर दी गई की सभी कर्मचारियों को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया। परन्तु विकास ने चौंकाने वाला खुलासा किया और कहा कि अभी तक उनका इस्तीफ़ा भी मंज़ूर नहीं किया गया है। इसको लेकर भी उनके साथियों ने मेल किया कि अगर आपको यदि हमारी सेवा नहीं चाहिए तो हमे हमारा बकाया वेतन देकर हमारा इस्तीफ़ा मंज़ूर करिए।
 
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कर्मचारियों के मुताबिक अगर जबतक कंपनी इस्तीफ़ा मंजूर नहीं करती तब तक हम कहीं और काम भी नहीं कर सकते हैं।

एक अन्य कर्मचारी दीक्षा जिन्होंने फरवरी में ऑफिस ज्वाइन किया था, एक कोर्ट रिपोर्टर के तौर पर लेकिन इस लॉकडाउन में उन्हें ऑफिस आकर काम करने को कहा गया। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में जब “वर्चुअल सुनवाई” हो रही है तो न उनका कोर्ट में फिलहाल काम है, न ऑफिस में इसलिए उनका जो काम है, वो उसे घर से कर सकती हैं।

इसको लेकर उन्होंने अपने एडिटर से बात की थी उन्होंने कहा था कि वो घर से काम कर सकती हैं। इसके बाद भी उन्हें मार्च का वेतन नहीं दिया गया, इसके बाद जब उन्होंने प्रबंधन से बात की तो उन्हें बताया गया कि उन्हें ऑफिस नहीं आने के कारण वेतन काटा गया है।

दीक्षा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि उन्होंने प्रबंधन को बताया कि लॉकडाउन में बिना किसी सार्वजनिक यातायात के ऑफिस कैसे आएं तो कंपनी ने बहुत मशक्कत के बाद एक गाड़ी भेजी, उसमें भी इतनी परेशानी कि ड्राइवर को लकेर 5 सीटर गाड़ी में पांच-छह लोगों को भरकर लाया गया, जबकि सरकार के साफ निर्देश थे की एक गाड़ी में सिर्फ दो लोग ही जा सकते हैं क्योंकि इससे कोरोना संक्रमण फैलने का डर होता है। इसके बाद भी कर्मचारियों की जान को खतरे में डाल कर सरकार के सारे दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ायी गयीं।

इसके बाद उन्होंने एक और चौंकाने और डराने वाली बात बताई ,उन्होंने कहा कि सरकार का साफ आदेश था कि सभी ऑफिस में साफ सफाई और सैनिटाइजेशन का पूरा ध्यान रखा जाएगा लेकिन यहाँ इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी, बस कोरोना के रोकथाम के लिए हर डेस्क पर नीम की पत्तियां लगा दी गईं थी। यह आश्चर्य की बात है कि एक मीडिया संस्थान जिस की ज़िम्मेदारी है कि इस महामारी के समय वो कोरोना के इर्द-गिर्द तमाम भ्रांतियों को वैज्ञानिक तथ्यों से दूर करे, वही अपने परिसर में नीम को ‘मिरेकल जड़ीबूटी’ के तरह इस्तेमाल कर रहा था जैसे कोरोना वायरस नहीं एक मच्छर की प्रजाति है। इसके अलावा वहां दो साल पहले खराब हो चुकी सैनिटाइजर के बोतल रखी हुईं थी और उनमें भी साबुन का पानी घोल कर रखा गया था। इसके साथ ही वहां पीने के लिए भी पानी की व्यवस्था नहीं थी, किसी भी तरह के सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया जा रहा था।"
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उन्होंने कहा वहां काम करने की बात छोड़िए वहां रुकना भी खतरे से ख़ाली नहीं था। इसके बाद मैंने भी ऑफ़िस जाना बंद कर दिया। इसके बाद उन्हें भी वेतन नहीं दिया गया हैं, हालांकि इस दौरान उन्होंने लगातर फोन करके अपने लिए काम मांगती रही लेकिन मैनेजमेंट की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।

 इस पूरे मसले पर कंपनी का पक्ष जाने के लिए न्यूज़क्लिक ने कंपनी से संपर्क किया। हमारी बात कंपनी की मुखिया  राजश्री राय से हुईं। उन्होंने इन सभी आरोप को ग़लत बताया और कहा कि उनकी कंपनी में सभी तरह के नियमों का पालन किया जा रहा है।

उन्होंने यह माना की कभी-कभी वेतन देने में देरी ज़रूर हो जाती थी लेकिन साथी ही कहा कि सभी को उनका पूरा वेतन दिया जाता रहा है।

उन्होंने कहा कि "यह सभी लोग जो आरोप लगा रहे हैं, इनमें काम को लेकर गंभीरता नहीं थी, हमने लॉकडाउन के दौरान सभी कर्मचारियों के आने-जाने का इंतज़ाम किया था, यहाँ तक कि जो लोग घर में अकेले हैं, उनके रुकने के लिए ऑफिस के पास ही इंतज़ाम किए गए थे। लेकिन इनमें से किसी ने भी काम को लेकर रूचि नहीं दिखाई। हमने इस लॉकडाउन के दौरान ऑफिस के सैनिटाईजेशन का पूरा ध्यान रखा और सरकार के सभी आदेशों को पालन किया। कई बार दिक्कतें आईं क्योंकि यह लॉकडाउन अचानक हुआ।"

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमने अपनी तरफ से विकास या किसी और को नहीं निकाला। इन सभी लोगों ने अपना इस्तीफ़ा दिया था। यहाँ तक की सुभाष को भी हमने कहा था कि आप देख लीजिए आगे क्या करना है, इसपर उन्होंने खुद कहा मैं अपने काम को पूरा नहीं कर सका इसलिए मुझे छोड़ना चाहिए और उन्होंने कंपनी छोड़ दी।

 राजश्री  ने कहा कि " उनके यहाँ काम का बहुत ही खुला वातावरण है, कोई किसी को भी अपनी शिकायत बता सकता है लेकिन इनमें से किसी ने भी बिना किसी जानकारी के काम करना बंद कर दिया।"

अंत में उन्होंने कहा “अगर किसी को कोई शिकायत थी तो मुझसे बता सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब सोशल मीडिया पर जाकर मेरी और कंपनी की छवि को ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं। जहाँ तक ट्विटर पर प्रदीप को ट्रोल करने का सवाल है तो मैं आपको बता दूँ कि उनका हमारे संस्थान से कोई लेना देना नहीं है, वो सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं, वो कभी हमारे कंपनी के निर्णय के बारे में नहीं पूछते हैं।"

राजश्री राय ने जो भी बातें न्यूज़क्लिक से बातचीत में कही उसपर कंपनी के कर्मचारियों का कुछ और ही कहना था। राजेश्वरी ने कहा कि उनके पति प्रदीप का उनकी संस्था से कोई हस्तक्षेप नहीं है, जबकि कर्मचारियों ने बताया कि प्रदीप का पूरा हस्तक्षेप था यहाँ तक कि वो एडिटर की मीटिंग में भी रहते थे और कंपनी के सभी वाट्सएप ग्रुप और सोशल मीडिया एकाउंट्स का भी हिस्सा थे। सभी निर्णय में उनकी पूरी भागीदारी रहती थी। इसीलिए जब ट्विटर पर कर्मचारियों ने सवाल किया तो तुरंत ही न केवल प्रदीप ने अपने अकाउंट से ब्लॉक किया बल्कि इंडिया लीगल के अकाउंट से भी ब्लॉक कर दिया गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कंपनी का ये कहना कि कोरोना को लेकर पूरी एतिहयात थी जबकि सच यही है कि वहां बीमारी से रोकथाम के लिए बेसिक सुविधाएं भी नहीं थीं।

यह सिर्फ़ इस एक कंपनी की कहानी नहीं है। आज देश में इस लॉकडाउन के दौरान कई बड़े बड़े मीडिया हाउस से इसी तरह की ख़बरें आ रही है। हाल ही में ज़ी मीडिया संस्थान से जो खबरें आईं वो चौंकाने वाली रहीं कि कैसे कर्मचारियों और उनके परिवारों की जान के साथ खिलवाड़ किया गया। इसके साथ वेतन कटौती, नौकरी से निकला जाना तो अब सामान्य घटना बन गई है। और छंटनी के आरोप न लगे इसके लिए कंपनियां कर्मचारियों के लिए मुश्किल हालात बना कर उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर रही हैं। 

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