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भारत को COP27 के लिए अधिक मज़बूत रणनीति की ज़रूरत है

27वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, जिसे COP27 के नाम से जाना जाता है, मिस्र के शर्म अल शेख में 6-18 नवंबर 2022 को होने वाला है।
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Image courtesy : ET

27वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, जिसे COP27 के नाम से जाना जाता है, मिस्र के शर्म अल शेख में 6-18 नवंबर 2022 को होने वाला है। पिछली COP26 बैठक नवंबर 2021 में ग्लासगो, स्कॉटलैंड में आयोजित की गई थी।उसमें व्यक्तिगत रूप से प्रधान मंत्री मोदी ने भाग लिया था और राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों की घोषणा की थी। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार ने अपनी पीठ भी थपथपाई।

देखना है इस बार भारत क्या भूमिका निभाएगा? मिस्र के शर्म अल शेख में मंत्रालय क्या रुख अपनाने जा रहा है, इस मामले में कोई पारदर्शिता नहीं है । आखिर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट में COP27 का एक भी उल्लेख क्यों नहीं है?

नीति-निर्माण के लिए कोई सहभागी दृष्टिकोण नहीं है और सरकार विपक्ष, जलवायु अनुसंधान में लगे पेशेवर निकायों, जलवायु गैर सरकारी संगठनों और अन्य नागरिक समाज के व्यस्त निकायों (busybodies) और विशेषज्ञ व्यक्तियों के साथ कोई परामर्श नहीं कर रही है।

अधिक मौलिक स्तर पर, जलवायु विमर्श उत्सर्जन-नियंत्रण केंद्रित और उत्सर्जन लक्ष्य-उन्मुख बन गया है। हालाँकि, जलवायु प्रतिक्रिया दो व्यापक श्रेणियों में आती है- 1) जलवायु परिवर्तन प्रभाव शमन (impact mitigation) और 2) जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (adaptation)। कार्बन उत्सर्जन, जो मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है, में कमी पहली श्रेणी में आता है। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन से तात्पर्य उन कार्यों से है जिनका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन आपदाओं के प्रतिकूल प्रभावों- जैसे गर्मी की लहरों, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, दावानल, समुद्र के स्तर में वृद्धि, समुद्री जीवन का विनाश, और प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव आदि से निपटना है।

COP26 में, भारत ने दीर्घकालिक उच्च जलवायु लक्ष्यों की घोषणा की, जिसके लिए राजनेताओं की वर्तमान पीढ़ी जवाबदेह नहीं रहेगी। अभी तक कोई वार्षिक लक्ष्य और उपलब्धियों का रिकॉर्ड नहीं है।

फिर, जलवायु जोखिम शमन (climate risk mitigation) की तैयारी पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है? वर्ष 2020 में चरम मौसमी घटनाओं की एक श्रृंखला देखी गई है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) की सहायता से प्रकाशित, हरित मुद्दों पर विशेषज्ञता रखने वाली, डाउन-टू-अर्थ (Down-to-Earth) पत्रिका ने जनवरी से सितंबर 2022 तक चरम मौसम की घटनाओं का दस्तावेजीकरण करते हुए क्लाइमेट इंडिया 2022 शीर्षक एक विशेष अंक प्रकाशित की है। यह अध्ययन दर्शाता है कि भारत ने वर्ष के पहले नौ महीनों में 273 दिनों में से 241 दिनों में किसी न किसी हिस्से में चरम मौसम की घटनाओं को देखा है - यानी 88% दिनों में ऐसा हुआ है। इन मौसमी घटनाओं ने 2755 लोगों की जान ले ली है और 18 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र को प्रभावित किया है।

इन घटनाओं को संबोधित करने में भारत का रिकॉर्ड कतई वांछित नहीं है। भारत इस संबंध में अपनी उपलब्धियों के आधार पर कुछ भी दावा करने की स्थिति में नहीं है।

 लेख इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि अगले कुछ दशकों में दीर्घकालिक उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने की तैयारी करते हुए भी वर्तमान दौर की चुनौतियों से निपटने हेतु और क्या किया जा सकता है।

2022 में भारत में जलवायु परिवर्तन की घटनाएं

पहले से ही, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के चलते, असामान्य अजीब मौसम की घटनाएं (freak weather events) भारत में नया सामान्य (new normal) बन गई हैं। बाढ़ और गर्मी की लहरें भारत के लिए कोई नई बात नहीं हैं; नई बात है ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में उनकी बढ़ी हुई गंभीरता और उच्च आवृत्ति (frequency)। नीचे दिए गए कुछ तथ्य इस पर प्रकाश डालते हैं:

* 1956 के बाद, अक्टूबर 2022 में भारत में सबसे अधिक वर्षा हुई।

* इससे पहले, 1901 के बाद से भारत का आठवां सबसे गर्म सितंबर 2022, ग्यारहवां सबसे गर्म अगस्त, 121 वर्षों में सबसे गर्म जुलाई, तीसरा सबसे गर्म अप्रैल और अब तक का सबसे गर्म मार्च था। ये सभी चरम मौसम, 1901 के बाद, 2022 में अब तक के सबसे गीले जनवरी के बाद आए।

नौ महीने के भीतर एक चरम से दूसरी और वापस- इस तरह के स्विंग (swing) में स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन की छाप है। आइए हम चरम जलवायु घटनाओं और सरकारों की कठोर उदासीनता या असहायता की प्रमुख अभिव्यक्तियों को देखें।

भारत के तैरते महानगर

* यहां तक कि जब यह लेख लिखा जा रहा है, चेन्नई 2015 की बाढ़ के दुःस्वप्न को फिर से देख रहा है जब एक लाख से अधिक लोगों को उनकी छतों से शारीरिक रूप से उठवाकर बचाया गया था। चेन्नई के बड़े हिस्से में सिर्फ दो दिन की भारी बारिश के बाद अब पानी भर गया है। चूंकि प्रशासन ने अत्यधिक प्रवाह के कारण मेट्रो को पीने के पानी की आपूर्ति करने वाले जलाशयों को खोलने का फैसला किया, कई निचले इलाकों में पानी भर गया। ऐसा लगता है कि 2015 की आपदा से कुछ भी नहीं सीखा गया और न ही इसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए खास कुछ  किया गया।

* अक्टूबर 2022 के तीसरे सप्ताह में, 19 अक्टूबर को एक दिन की भारी वर्षा के बाद पूरा आईटी सिटी बेंगलुरु पानी के नीचे था। समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद, बेंगलुरु साल-दर-साल वेनिस जैसे तैरते हुए शहर में बदल जाता है क्योंकि तथाकथित हाई-टेक शहर के सभी जल निकासी चैनल बंद रहे। सितंबर 2022 में भी 3 दिन लगातार बारिश के बाद शहर में भारी बाढ़ आई थी। बारिश का पानी लाखों घरों में घुस गया, यहां तक कि पीने का पानी भी नहीं मिल रहा था, और लोग घरों के छतों पर जाकर बैठे रहे। बोम्मई सरकार पिछली सरकारों को दोष देने के अलावा कुछ नहीं कर रही थी, हालांकि भाजपा पिछले 4 वर्षों से सत्ता में बनी हुई है। वह बाढ़ की समस्या को हल करने के लिए बहुत कम काम कर रही है जबकि जल्द ही चुनावों का सामना करने वाली है।

* अक्टूबर 2022 के पहले सप्ताह में, लगातार बारिश के कारण मुंबई के विशाल क्षेत्र पानी से भरे थे। व्यस्त शहरी जीवन पूरी तरह से ठप्प पड़ गया था। एक तटीय शहर होने के बावजूद - जहां सैद्धांतिक रूप से बारिश का पानी कुछ घंटों के भीतर समुद्र में बह कर जाना चाहिए था - वहां इतना जल भराव था कि लोगों को कूल्हे तक गहरे पानी से गुजरना पड़ा, क्योंकि अपर्याप्त जल निकासी चैनल बंद रहे। नई शिंदे सरकार बारिश के पानी को जमा करने की खातिर टैंकरों के लिए टेंडर जारी करने में व्यस्त थी, क्योंकि इन ठेकों से अच्छा कमीशन मिलने की उम्मीद थी ; बारिश के पानी की निकासी की समस्या को दूर करने के प्रयास और एक दीर्घकालिक समाधान खोजने की कोशिश को इस कारण वरीयता नहीं दी गई।

* अक्टूबर 2022 के पहले सप्ताह में, दिल्ली में भी भारी बारिश के कारण भारी जलभराव हुआ था । दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और सीएम अरविंद केजरीवाल बदहाली झेल रहे लोगों को राहत पहुंचाने के बजाय आरोप-प्रत्यारोप में फंसे रहे।

शेष भारत में बाढ़

महानगरों के अलावा, कई राज्यों में कई अन्य शहर और ग्रामीण इलाके बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।

* सिलचर में अगस्त 2022 में पूरी तरह से बाढ़ आ गई थी। गुवाहाटी में जुलाई 2022 में बाढ़ आई थी, और असम के 35 में से 30 जिलों में जून-जुलाई में बाढ़ आई थी।

* मराठवाड़ा में मूसलाधार बारिश से फसल को भारी नुकसान हुआ है । फसल खराब होने से जून में मराठवाड़ा में 108 किसानों की आत्महत्या से मौत हो गई। जुलाई में 83 आत्महत्याएं हुईं, जबकि अगस्त में सबसे ज्यादा, 114 आत्महत्याएं और सितंबर में 90 ऐसी घटनाएं हुईं। 

* इस अगस्त में केरल में 2018 की बाढ़ जैसी स्थिति थी और राज्य की राजनीति राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच चल रहे युद्ध से ग्रस्त थी और राज्यपाल ने संघीय मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन किया था।

* पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में मूर्तियों को विसर्जित करने के दौरान 9 लोग बाढ़ में बह गए।

* जुलाई 2022 में राजस्थान में 70 वर्षों में सबसे अधिक वर्षा हुई, जबकि राज्य अशोक गहलोत के विद्रोह से ग्रस्त रहा।

* गुजरात के 14 जिलों में आठ लाख किसानों को 2022 में मानसून की बारिश के कारण फसल के नुकसान के मुआवजे के रूप में 630 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। यह चुनाव से पहले किसानों को भुगतान की गई एक छोटी सी रकम थी, लेकिन मुआवजे के रूप में 6800 रुपये प्रति हेक्टेयर-या मात्र 2833 रुपये प्रति एकड़ मानो ऊंट के मुंह में जीरा था। कोई आश्चर्य नहीं कि गुजरात के किसान कथित तौर पर असंतुष्ट हैं।

* जहां एक तरफ मध्य प्रदेश को बाढ़ का कहर झेलना पड़ा, वहीं योगी अक्टूबर 2022 में यूपी में बाढ़ वाले इलाकों का हवाई सर्वेक्षण करने में व्यस्त थे।

2022 में भारत में सूखा

भारत में उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार में वर्षा की कमी देखी गई। इसलिए, इन राज्यों को सूखाग्रस्त क्षेत्र के अंतरगत आना चाहिए था, लेकिन किसानों को मुआवजा देने से बचने के लिए सरकारों ने आधिकारिक तौर पर सूखे की घोषणा नहीं की। 1997 के बाद से भारत के सूखा-प्रवण (drought-prone) क्षेत्र में 57% की वृद्धि हुई है।

ओडिशा , छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में विदर्भ और मराठवाड़ा, और तेलंगाना , पश्चिमी आंध्र प्रदेश, गुजरात में काठीवाड़ और कच्छ क्षेत्र तथा उत्तरी कर्नाटक आमतौर पर सूखा प्रभावित क्षेत्र रहे हैं।

यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) ने हाल ही में ड्राउट इन नंबर्स -2022 (Drought in Numbers-2022) नामक एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लगभग दो-तिहाई हिस्से को 2020 से 2022 के दौरान किसी न किसी अवधि के लिए सूखे का सामना करना पड़ा और भारत के कुल जिलों में से एक तिहाई को पिछले एक दशक में 4 बार सूखे का सामना करना पड़ा।

केंद्र की ओर से आपदा राहत राशि

2020 में, केंद्र ने राज्य आपदा राहत कोष से केंद्र के हिस्से के रूप में बाढ़ राहत के लिए 27 राज्यों को कुल 8068.33 करोड़ रुपये जारी किए। लेकिन विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एशिया की अपनी रिपोर्ट में, भारत को 2020 में 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर (7,13,400 करोड़ रुपये) के कुल नुकसान का अनुमान लगाया है। इसका मतलब है कि राज्यों को केंद्र की बाढ़ सहायता जमीन पर हुए कुल नुकसान का महज 1.13% है।

वित्तीय वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार ने 28 राज्यों को एसडीआरएफ (disaster relief funds) में कुल 17,747.20 करोड़ रुपये की आपदा राहत निधि (बाढ़, सूखा सहायता और अन्य आपदाओं सहित ओलावृष्टि के लिए आपदा सहायता) जारी की है। हालांकि, एशिया और प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक आयोग ने 2020 के बाद हर साल भारत को 225 अरब डॉलर का वार्षिक नुकसान होने का अनुमान लगाया है। अगर यह अनुमान सही है, तो आपदा सहायता के लिए राज्यों को केंद्र का हिस्सा लगभग 0.8% के बराबर होगा। उत्कृष्ट टोकनवाद !

भारत को कुछ अत्यावश्यक जलवायु प्रतिक्रिया उपायों की सख्त जरूरत है

* अब तक भारतीय लोगों को जलवायु आपदाओं से राहत पाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह उचित समय है जब भारत अपने नागरिकों को आपदाओं के लिए राहत के स्वत: अधिकार देने वाला एक कानून पारित करे।

* वर्तमान में सूखे की घोषणा मनमाने ढंग से होती है। वर्षा की कमी पर मौसम संबंधी आंकड़ों के आधार पर सूखे की स्वत: घोषणा के लिए एक कानून होना चाहिए।

* COP26 के तुरंत बाद, भारत को अपने उद्योगों को शुद्ध शून्य (net-zero) उत्सर्जन रूट मैप प्रस्तुत करने का निर्देश देना चाहिए था। भारत सरकार को कम से कम अब तो यह करना ही चाहिए।

* वर्तमान में, नगर निगमों और अन्य शहरी नगर पालिकाओं और ग्रामीण पंचायतों के पास विकेंद्रीकृत जलवायु शमन (mitigation) और जलवायु अनुकूलन (adaptation) उपायों को करने के लिए केंद्र से जलवायु निधि के हस्तांतरण का कोई प्रावधान नहीं है। केंद्र से वर्तमान आपदा निधि को दोगुना कर लगभग 40,000 करोड़ रुपये किया जाना चाहिए और इसका आधा हिस्सा इन निकायों में प्रवाहित होना चाहिए।

उचित जलवायु प्रतिक्रिया के लिए, ये कदम अपरिहार्य हैं।

आप जो उपदेश देते हैं उसका अभ्यास तो करें!

मंत्रालय सूत्रों से अनौपचारिक जानकारी का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि भारत COP27 के एजेंडे में जिन दो मुद्दों को लाने की तैयारी कर रहा है, वे हैं 1) जलवायु वित्त और 2) जलवायु आपदा क्षति आकलन।

100 बिलियन डॉलर के वैश्विक कोष के लिए अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करने हेतु विकसित दुनिया को मजबूर करने के लिए भारत के पास सौदेबाजी का कोई लीवर नहीं है। भारत, दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, पर अगर विकसित राष्ट्र, जो इतिहास में सबसे बड़े उत्सर्जक हैं, अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करने में विफल रहते हैं, तो भारत को जलवायु वार्ता से बाहर निकलने की धमकी देनी चाहिए।

दूसरे, दुनिया को यह उपदेश देने से पहले कि जलवायु की घटनाओं के कारण होने वाले आर्थिक व अन्य नुकसानों का आकलन कैसे किया जाए, भारत को अपनी सांकेतिकता को त्यागना चाहिए और जलवायु के नुकसान के अधिक ईमानदार और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन तथा जलवायु के लिए एक अधिक प्रभावी ढांचे (framework) के अपने स्वयं के मॉडल के साथ आगे आना चाहिए। अगर वे ऐसा करेंगे तो ही वे जुमलों के अंतर्राष्ट्रीयकरण से बच सकते हैं !

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