1970-2021 के दौरान जलवायु परिवर्तन के कारण हुई मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर!
जलवायु परिवर्तन हमें उन कई तरीकों से प्रभावित करता है जो हमारे सामान्य ऑबज़रवेशन, भावना और ध्यान से बच जाते हैं। मौतों की सही संख्या, आर्थिक नुकसान की मात्रा, बेघर होने वाले लोगों की संख्या आदि के एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण से मानव निर्मित इस 'आपदा' के वास्तविक प्रभाव को समझने में मदद मिलती है।
विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस के क्वाड्रेनियल सत्र के दौरान एक रिपोर्ट पेश की गई थी जिसका शीर्षक था “मौसम, जलवायु और वाटर एक्सट्रीम (1970-2021) के कारण मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान की स्थिति”। यह रिपोर्ट एक्सट्रीम वेदर और जलवायु परिस्थितियों के प्रभाव का वैश्विक मूल्यांकन दर्शाती है।
1970 से 2021 तक, रिपोर्ट से पता चलता है कि 3,612 आपदाओं के साथ मौसम और जलवायु संबंधी मौतों की संख्या में एशिया सबसे अधिक पीड़ित था। इन आपदाओं के परिणामस्वरूप 9,84,263 मौतें (वैश्विक स्तर पर 47%) हुईं और 1.4 ट्रिलियन डॉलर (33%) का आर्थिक नुकसान हुआ।
एशिया में, विशेष रूप से, भारत 1,38,377 मौतों के साथ मृत्यु के मामले में दूसरे स्थान पर था, वहीं बांग्लादेश में सबसे अधिक 5,20,758 मौतें हुईं। इसके अलावा 2008 के चक्रवात नरगिस के कारण (मुख्य रूप से) हुई 1,38,666 मौतों के साथ म्यांमार तीसरे और 88,457 मौतों के साथ चीन चौथे स्थान पर है।
दिलचस्प बात यह है कि इन एशियाई देशों में आपदाओं की संख्या चीन में सबसे अधिक 740 थी और भारत 573 आपदाओं के साथ दूसरे स्थान पर था। भारत या चीन की तुलना में बांग्लादेश में कम आपदाएं, क़रीब 281, दर्ज की गईं।
वहीं कुल 1,839 आपदाओं में 7,33,585 मौतों और 43 बिलियन डॉलर के आर्थिक नुकसान के साथ अफ्रीका दूसरा सबसे बुरी तरह पीड़ित महाद्वीप था। रिपोर्ट की गई मौतों में से 95% मौतें सूखे के कारण थीं और एक्सट्रीम वेदर के कारण सोमालिया में सबसे अधिक 4,00,000 लोगों की मौत हुई थी।
नार्थ अमेरिका, सेंट्रल अमेरिका और कैरेबियाई में संयुक्त रूप से 2,107 आपदाएं हुईं, एशिया के बाद दूसरी, जिससे 77,454 मौतें हुईं और 2 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। विशेष रूप से, अकेले इन क्षेत्रों ने वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक 46% आर्थिक नुकसान साझा किया। इस अवधि के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका को 1.7 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
साउथ अमेरिका और साउथ-वेस्ट पैसिफिक क्षेत्र में क्रमश: 58,484 और 6,6951 लोगों की मौत हुई और 115.2 अरब डॉलर और 185.8 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। उष्णकटिबंधीय चक्रवात, साउथ-वेस्ट पैसिफिक क्षेत्र में सबसे अधिक मौतों की वजह बना और दक्षिण अमेरिका में सभी आपदाओं का 61% कारण बाढ़ बनी।
दूसरी ओर, यूरोप में कुल 1,784 आपदाओं में 562 अरब डॉलर के आर्थिक नुकसान के साथ 1,66,492 लोगों की मौतें रिपोर्ट की गईं। इस अवधि के दौरान वैश्विक मौतों का 8% हिस्सा यूरोप का था। यूरोप में मृत्यु का प्रमुख कारण अत्यधिक तापमान था, और बाढ़ ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया था।
रिपोर्ट की गई आपदाओं के लिए 71% विकासशील देश, 24% विकसित देश और 5% 'इकॉनमी इन ट्रांजिशन' ज़िम्मेदार थी।
फिर से, विकासशील देश, विश्व स्तर पर कुल रिपोर्ट की गई मौतों के 91% हिस्सेदार थे, जबकि विकसित देशों और 'इकॉनमी इन ट्रांजिशन' की हिस्सेदारी क्रमशः 6% और 3% थी। WMO ने बताया कि विकसित देशों में आर्थिक नुकसान 60% के साथ सबसे अधिक था, जबकि विकासशील देशों और 'इकॉनमी इन ट्रांजिशन' में क्रमशः 37% और 3% नुकसान हुआ था।
WMO के मुताबिक़, सभी दर्ज मौतों में से 37% (7,80,210) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के कारण हुई थीं और सभी आपदाओं के 45% के लिए बाढ़ ज़िम्मेदार थी। वहीं एशिया में बाढ़ की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई, जो बाढ़ से संबंधित सभी आपदाओं का 31% हिस्सेदार है।
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि हाल के दिनों में अर्ली वार्निंग सिस्टम के मजबूत होने से मृत्यु दर में कमी आई है। इसके अलावा क्वाड्रेनियल कांग्रेस, 2027 तक सभी के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम सुनिश्चित करने के प्रयासों को तेज़ कर रही है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
India Reported 2nd Highest Deaths Caused by Climate Change in 1970-2021
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