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जम्मू-कश्मीर: विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट, गुपकार गठबंधन आया साथ

जैसा तय था कि परिसीमन के बाद चुनाव होगा, फिलहाल इसकी सुगबुगाहट तेज़ हो गई है, जिसके लिए गुपकार गठबंधन भी साथ आ गया है।
UMAR

जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है, अगर समय रहते सभी तैयारियां कर ली गईं तो साल 2023 के शुरूआती महीनों में यहां चुनाव कराए जा सकते हैं। लेकिन ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इस बार के चुनाव कुछ अलग होंगे, क्योंकि पहली बार जम्मू-कश्मीर में तब चुनाव होंगे जब अनुच्छेद 370 का फिलहाल कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर भी कश्मीरी पंडितों समेत जम्मू की हिंदू आबादी के वोट रहने तय हैं।

दरअसल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह ने राज्य में चुनाव करवाने और अनुच्छेद 370 बहाल करने की मांग उठाई थी, जिसको लेकर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि जैसे ही मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी जाएंगी और समय आने पर अनुच्छेद 370 भी बहाल किया जाएगा। इस दौरान मनोज सिन्हा ने परिसीमन का काम पूरा हो जाने का भी ज़िक्र किया।

ख़ैर... इधर विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हुई उधर राज्य की क्षेत्रीय पार्टियां सक्रिय हो गईं और एक बड़ा ऐलान हो गया। ये ऐलान था कि गुपकार गठबंधन यानी फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी। इससे पहले भी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने संकेत दिए थे कि गठबंधन में शामिल दल मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं और अब इस पर मुहर लग गई है। इससे पहले इन दलों ने डीडीसी का चुनाव भी मिलकर लड़ा था।

आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद कुछ विपक्षी दलों ने मिलकर पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन यानी गुपकार गठबंधन बनाया था। इसमें पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कॉन्फ्रेन्स, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स और सीपीआई-एम शामिल थे। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स इससे अलग हो गई है।

फारूक़ अब्दुल्ला ने पीपल्स कॉन्फ्रेन्स के नेता सज्जाद लोन को लेकर सवाल उठाए हैं और कहा है कि उनकी पार्टी का गुपकार गठबंधन में शामिल होना एक साजिश थी। महबूबा मुफ्ती ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग चाहते हैं कि हम साथ रहें और अपने खोए हुए सम्मान को वापस लाएं।

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि गुपकार गठबंधन के मिलकर मैदान में उतरने के बाद भाजपा और कांग्रेस के लिए तो यह गठबंधन एक बड़ी चुनौती बनेगा ही, यह राज्य की छोटी पार्टियों जैसे अपनी पार्टी और पीपल्स कॉन्फ्रेन्स की भूमिका को भी बहुत हद तक सीमित कर देगा। लेकिन गुपकार गठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा करना भी आसान नहीं होगा।

आपको बता दें कि परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या को 83 से बढ़ाकर 90 की है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जम्मू-कश्मीर में 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं। वहीं कई मीडिया रिपोर्टस के अनुसार 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर की फाइनल मतदाता सूची प्रकाशित हो सकती है।

अगर राजनीतिक दलों की तैयारियों की बात करें तो गुपकार गठबंधन की ओर से फारुख अब्दुल्ला का एक बयान उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। जिसमें उन्होंने कहा है कि अमरनाथ यात्रा का कश्मीर के लोग ने वर्षों से पूरे दिल से स्वागत करते आए हैं। गुफा की खोज करने वाला व्यक्ति पहलगाम का रहने वाला मुसलमान था। कभी भी मुसलमान ने किसी धर्म के खिलाफ उंगली नहीं उठाई है, वे भाईचारे में रहे। 90 के दशक में वह हवा आई, पर वह हमारी हवा नहीं थी। वह कहीं और से आई थी और उसका खामियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं।

फारुख अब्दुल्ला के इस बयान से साफ है कि वो सिर्फ मुस्लिम पॉलिटिक्स पर ध्यान नहीं देगें, बल्कि कश्मीरी पंडितों की हमदर्दी हासिल करने की भी कोशिश करेंगे। क्योंकि पिछले दिनों जिस तरह से एक के बाद एक कश्मीर में लोगों की हत्याएं हो रही हैं, और कश्मीरी पंडित सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी और प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे साफ है कि कहीं न कहीं कश्मीरी पंडितों का एक तबका सरकार के प्रति गुस्से से भरा है। इसके अलावा देश में फैल रही मुसलमानों के खिलाफ अराजकता को सवाल बनाकर भी गुपकार गठबंधन भाजपा पर हमला बोलने की पूरी कोशिश करेगा। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले में कांग्रेस भी गुपकार गठबंधन का साथ दे सकती है। हालांकि अभी ऐसा कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है।

हम कांग्रेस द्वारा गुपकार गठबंधन को समर्थन दिए जाने की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि जो फारुख अब्दुल्ला अभी तक कश्मीर की स्वायत्तता की मांग करते आए हैं, उन्होंने ही कहा है कि उन्हें कोई आपत्ति नहीं कि कश्मीर के हर एक घर में तिरंगा हो, लेकिन ये हर एक की ख़ुद की सहमति से होना चाहिए। बल्कि ज़बरदस्ती नहीं। और फिर पिछले दिनों हुई हत्याओं को कांग्रेस साल 1990 पर हावी करने का मुद्दा ज़रूर बनाएगी।

वहीं दूसरी ओर बात भाजपा की करें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किला से साफ कहा था, कि पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होगा फिर चुनाव। ऐसे में ये समझना ज़रूरी है कि परिसीमन में सीमाएं निर्धारित कर दी जाती हैं, और सीटों को आबादी के हिसाब से घटाया बढ़ाया जाता है, जैसा कि तय था कि अगर जम्मू में 6-7 सीटों की बढ़ोत्तरी होती है तो भाजपा को फायदा मिल सकता है और उसकी सरकार भी बन सकती है। और हुआ भी यही, परिसीमन के बाद जम्मू में 6 सीटें और कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाई गई। यानी जम्मू में 37 से बढ़ाकर 43 और कश्मीर में 46 से बढ़ाकर 47 विधानसभा सीटें कर दी गई हैं।

जम्मू क्षेत्र के 6 जिलों- किश्तवाड़, सांबा, कठुआ, डोडा राजौरी और उधमपुर जिलों में एक-एक नई सीट जोड़ी जानी है, जबकि एक सीट कश्मीर क्षेत्र के कुपवाड़ा में जोड़ी गई है।

हालांकि कांग्रेस समेत बाकी विपक्षी पार्टियों ने इसपर सवाल खड़े किए और कहा कि जब पूरे देश के बाकी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है, तो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है।

अब इसे राजनीतिक ढंग से देखें, पार्टियां जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर में कम सीटें बढ़ाने और हिंदू बहुल जम्मू में ज्यादा सीटें बढ़ाने के कदम की आलोचना कर रही हैं। क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसार, कठुआ, सांबा और उधमपुर हिंदू बहुल हैं। कठुआ की हिंदू आबादी 87%, सांबा और उधमपुर की 86% और 88% है। किश्तवाड़, डोडा और राजौरी जिलों में भी हिंदुओं की आबादी 35 से 45% है।

2008 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 87 में से 11 सीटें जीती थीं, लेकिन 2014 में हुए अगले चुनावों में भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। 2014 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपनी सभी 25 सीटें जम्मू क्षेत्र से ही जीती थीं, जबकि कश्मीर में उसका खाता तक नहीं खुला था।

ऐसे में माना जा रहा है कि परिसीमन में जम्मू में 6 सीटें और जुड़ने से भाजपा और मजबूत होगी। वहीं इससे पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान होने की संभावना है।

यानी सीधे तौर लीग से हटकर भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में जो परिसीमन करवाया वो सीधे तौर पर राजनीतिक था, और ऐसे में अगर जम्मू की हिंदू आबादी ने साल 2014 की तरह उसे वोट किया तो कश्मीर के किसी छोटे दल का समर्थन लेकर भाजपा सरकार बना सकती है।

इसके अलावा भाजपा कश्मीरी पंडितों को लुभाने के लिए किस तरह सिनेमा समेत तमाम चीज़ों का प्रयोग कर रही है साफ दिखाई दे रहा है।, उन कश्मीरी पंडितों के लिए फिल्म भी बनाई गई, जिसमें ऐसे दृश्यों की प्रयोग किया गया जिसे देख किसी का भी गला रूंध जाए, फिल्म के दृश्यों को लोगों के भीतर सच बनाकर थोपा जा रहा था, लेकिन धीरे-धीरे ही सही देश को पता चला कि ये महज़ एक फिल्म है, और 1990 में जो कश्मीरी पंडितों के साथ हुए उससे बिल्कुल अलग है। लेकिन इतना साफ है कि भाजपा इन्हें अपने वोटों के लिए ज़रिया ज़रूर बनाएगी। देखना ये होगा कि उसे इसका कितना फायदा होगा।

इसके अलावा कश्मीर में तो नहीं लेकिन जम्मू में भाजपा अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर खुद का गुणगान ज़रूर करेगी। वहीं कश्मीर में सुरक्षा की दुहाई देकर वोट ज़रूर मांगेगी।

यानी साफ है कि भाजपा के मुकाबले फिलहाल विपक्षियों के पास जीत के तरीके कम हैं, लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है, इसलिए अभी कुछ भी ठोस तरीके से कहना संभव नहीं है।

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