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झारखंड: कोरोना महासंकट से बचाव के लिए सक्रिय होता गांव–समाज!

गांव समाज के लोग अब अपने स्तर से सामुदायिक बचाव कार्य शुरू कर दिये हैं। बाहर से आ रहे प्रवासी मजदूरों की कहीं कोई प्राथमिक जांच तक नहीं होने के कारण उन्हें गांव के बाहर वाले स्कूल–पंचायत भवन में रखने का फैसला लिये हैं।
coronavirus

देशवासियों के नाम प्रधानमंत्री जी के सम्बोधन में 21 दिन के लॉकआउट की घोषणा को लेकर झारखंडी गांव–समाज में बहुत सकारात्मक भाव नहीं है। राजधानी रांची से सटे बुण्डू स्थित गीतिलडीह निवासी आदिवासी समाज के सवालों पर सक्रिय रहने वाले सामाजिक संस्कृतिकर्मी गौतम मुंडा बताते हैं कि मोदी जी ने जैसे बिना युद्धस्तर की तैयारी के नोटबंदी घोषित की थी, कोरोना महामारी से बचाव के नाम पर वैसे ही समाजबंदी लॉक आउट बंदी घोषित कर दी। महामारी फैलाने वाले वायरस की जांच की समुचित व्यवस्था समेत गरीबों की रोजी–रोटी के वैकल्पिक व्यवस्था को लेकर कोई जवाबदेही नहीं ली। सबको घरों में बंद रहने का फरमान देकर छोड़ दिया अपने हाल पर।
 
गौतम मुंडा ने यह भी बताया कि गांव समाज के लोग अब अपने स्तर से सामुदायिक बचाव कार्य शुरू कर दिये हैं। बाहर से आ रहे प्रवासी मजदूरों की कहीं कोई प्राथमिक जांच तक नहीं होने के कारण उन्हें गांव के बाहर वाले स्कूल–पंचायत भवन में रखने का फैसला लिये हैं। गांव में बाहरी प्रवेश से लेकर गांव से बाहर आने जाने पर रोक के लिए बैरिकेटिंग कर स्वतः लॉक डाउन किया जा रहा है। एक खबर यह भी है सिल्ली गाँव की गूंज सामाजिक संस्था से जुड़ी सिलाई प्रशिक्षित महिलाएं खुद के प्रयासों से गाँव के लोगों की लिए मास्क तैयार कर रहीं हैं।

गत 22 मार्च को ‘ताली पीटो’ अभियान पर अपने गाँव समाज के लोगों की प्रतिक्रिया बताते हुए बुण्डू के हुमटा पंचायत की पूर्व मुखिया लखिमुनी मुंडा न कहा कि जाने किसने बुण्डू शहर में यह अफवाह फैला दी थी कि उस दिन किसी को इसलिए बाहर नहीं निकलना है क्योंकि मोदी जी केरोना मिटाने के लिए दर्जनों प्लेन से दवा का छिड़काव करवाएँगे। ताली–थाली बजाने को लेकर बताया कि उनके क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीणों को मोदी जी को झूठ बोलने वाला नेता मानते हैं इसलिए उनके किसी बात पर भी भरोसा नहीं करते हैं। इसलिए किसी ने भी ताली-थाली नहीं बजाई।

ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य–उपचार संबंधी स्थितियों पर कहा कि सामान्य दिनों में जब अस्पताल में ज़रूरी दवाएं नहीं मिलतीं हैं तो इस महामारी के समय में बचाव के संसाधन कहाँ से उपलब्ध रहेंगे। भाजपा–रघुवर दास शासन में तो कुछ नहीं हुआ अब देखना है कि हेमंत शासन क्या करता है।
       
26 मार्च तक की मीडिया खबरों के अनुसार 20 हज़ार सभी अधिक प्रवासी झारखंडी मजदूर काम बंद होने के कारण मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे महानगरों में आज भी फंसे हुए हैं। बिस्किट खाकर जैसे तैसे गुज़ारा कर रहें और वापस लौटने के लिये जहां–तहां भटक रहें हैं। खबर यह भी है कई इलाकों के मजदूर 50 से 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपने गाँव पहुँच रहें हैं।
 
एक चिंताजनक खबर आ रही है कि राजधानी रांची में पुलिस–प्रशासन के पास लगातार शिकायत आ रही है कि लोगों की स्वास्थ्य सेवा में लगे कर्मियों को मकान मालिक व सोसाइटी के लोग बाहर निकाल रहें हैं। कई डॉक्टरों तक को इसका अल्टीमेटम दिया जा रहा है। हालांकि प्रशासन द्वारा ऐसा करनेवालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने की हिदायत दे दी गयी है।

सोशल मीडिया के जरिये कई सामाजिक संगठनों व कार्यकर्ताओं–आम लोगों के लिए निःशुल्क मास्क व सेनेटाइजर तथा कोरोना जांच के लिये पर्याप्त टेस्ट किट तत्काल उपलब्ध कराने के साथ साथ पीड़ितों की लिये व्यापक स्तर पर उपचार केन्द्र बनाने की मांग की है। साथ ही सभी गरीबों व मनरेगा मजदूरों के लिये अविलंब भत्ता व राशन उपल्ब्ध कराने कि भी मांग की है।
     
कोरोना संकट व लॉकडाउन के कारण गत सोमवार को झारखंड विधान सभा बजट सत्र के स्थगित होने के पूर्व भाकपा माले विधायक द्वारा प्रवासी मजदूरों की सकुशल घर वापसी के लिये तत्काल कारगर कदम उठाने की मांग की। मुख्यमंत्री ने सकारात्मक जवाब देते हुए संबन्धित राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित कर संकट समाधान के लिए आश्वस्त किया। साथ ही लॉक डाउन के दौरान सभी ग्रामीण गरीबों के लिए समुचित भोजन उपलब्धता की मांग पर सरकार के ज़रूरी उपायों कि भी जानकारी दी।
 
खबर है कि मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी नवोदय विद्यालयों को आइसोलेशन सेंटर बनाने का निर्देश जारी करते हुए अपने सभी विभागों के उच्चाधिकारियों से कहा है कि सिर्फ 21 दिन नहीं बल्कि पूरे दो माह का बैकअप लेकर कार्य करे हैं। इस बीच विभिन्न पार्टियों की सांसद व विधायक अपने जनप्रतिनिधि निधि से सहयोग राशि देने की लगातार घोषणाएँ कर रहें हैं।

माले विधायक विनोद सिंह ने अपना पूरा वेतन कोरोना से निपटने के उपायों के लिए देने की घोषणा करते हुए कहा है कि ज़रूरत पड़े तो सभी विधायकों का वेतन खर्च किया जाये। वहीं, प्रदेश भाजपा से नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रस्तावित अपनी पूरी पार्टी का भाजपा में विलय करनेवाले बाबूलाल मरांडी जी ने प्रदेश के सीएम को पत्र लिखकर दिहाड़ी मजदूरों को राज्य सरकार कि ओर से सहायता देने की मांग की है। जिसकी प्रतिक्रिया में कहा जा रहा है कि कितना पुनीत कार्य होता यदि वे अपनी वर्तमान पार्टी की केंद्रीय सरकार से झारखंड प्रदेश के गरीब गुरबों के लिए विशेष आर्थिक सहयोग मांगते।
 
वर्तमान के हलाते–हाज़रा के साथ साथ विभिन्न राज्यों में फंसे हजारों झारखंडी प्रवासी मजदूरों की स्थिति अभी भी सबसे संकटपूर्ण बनी हुई है। जो रेल–बस के बंद हो जाने के कारण भूख–प्यास का सामना करते हुई जहां–तहां भटकने को मजबूर हो गए हैं।

मांग की जा रही है कि उन राज्यों की सरकारें जल्द इस संदर्भ में कोई विशेष कार्य निर्देश जारी कर आपदा प्रबंधन विभाग को सक्रिय कर फंसे हुए लोगों को तत्काल राहत उपलब्ध कराये। समय रहते यह सब न करके इस मामले में सिर्फ ट्वीट करना अथवा कोरा आश्वासन देना गंभीर मानवीय अपराध करने जैसा ही होगा ।

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