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जॉनसन, ट्रस, सुनक : क्या कुछ बदला ब्रिटेन में? कुछ भी नहीं!

ब्रिटेन में दिसंबर का महीना तमाम क्षेत्रों में कर्मचारियों की हड़ताल के साथ बीतने वाला है।
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ऋषि सुनक को ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बने 38 दिन हो चुके हैं। उनके पहले लिज़ ट्रस 44 दिन प्रधानमंत्री रही थीं। लेकिन बोरिस जॉनसन के समय से शुरू हुआ ब्रिटेन का संकट काल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद जमीन पर क्या कुछ बदला है? शायद कुछ भी नहीं।

महंगाई व जीवन-यापन की दुष्कर स्थितियों का आलम यह है कि वहां बेहतर वेतन की मांग को लेकर कई महीनों से चल रही हड़तालों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। उलटे उनका दायरा बढ़ता जा रहा है। अभी की स्थिति के हिसाब से मूल्यांकन किया जाए तो ब्रिटेन में दिसंबर के महीने में कई क्षेत्रों में हड़ताल रहने वाली है। कई हड़तालें तो क्रिसमस की छुट्टियों और जनवरी के महीने तक खिंचेंगी। बेहतर स्थितियों की मांग को लेकर बना औद्योगिक अशांति का दौर सुनक का कड़ा इम्तिहान लेने वाला है।

इधर चेस्टर शहर में हुए संसदीय उपचुनाव में लेबर पार्टी की जीत ने भी सुनक को इशारा कर दिया है कि हालात गंभीर हैं। हालांकि यह सीट पहले से लेबर पार्टी के पास ही थी, लेकिन सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहला उपचुनाव था। खास बात यह है कि लेबर पार्टी ने अपने वोट प्रतिशत में करीब 12 फीसदी का इजाफ़ा किया है। वोटों के रुझान में इतनी बड़ी तब्दीली होती है तो अगले आम चुनावों में लेबर पार्टी की सरकार बनना तय है। बोरिस जॉनसन के इस्तीफा देने से ठीक पहले भी जो तीन संसदीय उपचुनाव हुए थे- वेकफील्ड, टिवरटॉन और होनिटॉन में, उनमें कंजरवेटिव पार्टी को शिकस्त मिली थी। जबकि इनमें से दो सीटें तो कंजरवेटिव पार्टी का परंपरागत गढ़ मानी जाती थीं। यहीं से जॉनसन पर दबाव बनना शुरू हुआ था। 

ठीक इसी तरह सुनक पर दबाव उपचुनाव की हार के साथ तमाम हड़तालों का भी होगा।

ब्रिटन में रेलवे कर्मचारी तो पिछले कई महीनों से समय-सममय पर हड़ताल करते रहे हैं जिसकी वजह से वहां की रेलों का कई बार चक्का जाम हुआ है। अब यह वर्षांत की छुट्टियों में भी यात्रियों को तंग करेगा क्योंकि ब्रिटेन के दसियों हजार रेल कर्मचारी क्रिसमस के पहले और बाद और हड़तालों करने वाले हैं। वेतन व कार्यस्थितियों को लेकर ट्रेन ऑपरेटरों के साथ समझौता न हो पाने के कारण ब्रिटेन की नेशनल यूनियन ऑफ रेल, मेरिटाइम ऐंड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आरएमटी) ने कहा है कि उससे संबद्ध 40 हजार रेल कर्मचारी दिसंबर की 13-14 और 16-17 तारीखों को और फिर जनवरी की 3-4 व 6-7 तारीखों को हड़ताल करेंगे। आरएमटी के जो सदस्य समूचे ट्रांसपोर्ट नेटवर्क में क्लीसनर्स के तौर पर काम कर रहे हैं, वे भी हड़ताल पर जाने का फैसला कर चुके हैं।

एसोसिएटेड सोसायटी ऑफ लोकोमोटिव इंजीनियर्स ऐंड फायरमैन के सदस्य पहले ही बीती 26 नवंबर को वहां की 11 ट्रन ऑपरेटिंग कंपनियों में हड़ताल कर चुके हैं। हालांकि लंदन ओवरग्राउंड के लिए काम करने वाले ट्रेन ड्राइवर्स ने उस रोज अपनी हड़ताल स्थगित कर दी ताकि वे वेतन समझौते की पेशकश पर सदस्यों के बीच मतदान कर सकें। 

एक अन्य ट्रांसपोर्ट ट्रेड यूनियन – ट्रांसपोर्ट सेलेरीड स्टाफ एसोसिएशन के सदस्य भी फिलहाल हड़ताल पर जाने से पहले संभावित समझौते पर नेटवर्क रेल व ट्रेन ऑपरेटर्स से बातचीत कर रहे हैं।

परिवहन नेटवर्क के बाद हड़तालों का सबसे ज्यादा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) कोविड महामारी से पड़े असर के कारण पहले ही दबाव में है। वहां करीब 70 लाख मरीज अस्पताल में विभिन्न तरह के इलाज के लिए प्रतीक्षा सूची में बताए जाते हैं। स्थिति और गंभीर हो जाएगी क्योंकि रॉयल कॉलेज ऑफ नर्सिंग यूनियन ने कहा है कि सरकार द्वारा उनकी वेतन संबंधी मांगों को न मानने के कारण अब हजारों नर्स 15 व 20 दिसंबर को हड़ताल पर रहेंगी। 

इसी तरह डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाली ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन ने भी कहा है कि उसके जूनियर डॉक्टर सरकार द्वारा मांगें न माने जाने के बाद जनवरी में हड़ताल पर जाने के बारे में फैसला करेंगे। एसोसिएशन ने कहा है कि उससे संबद्ध डॉक्टरों के अन्य समूह भी सरकार से टकराव लेने के मूड में हैं और वे जल्दी ही अपने आगे के कदमों पर फैसला करेंगे।

अस्पतालों के अलावा आपात सेवाओं पर भी हड़तालों का असर रहेगा। समूचे इंग्लैंड व वेल्स में 15,000 एंबुलेंस कर्मचारी भी वेतन, स्टाफ की कमी व कार्यस्थिति को लेकर हड़ताल पर जाने का फैसला कर चुके हैं। ये हड़ताल 15 व 20 दिसंबर को होंगी और इंग्लैंड में एक-चौथाई फ्रंटलाइन आपात सेवाएं और वेल्स व उत्तरी आयरलैंड में तकरीबन सौ फीसदी इससे प्रभावित रहेंगी। इन यूनियनों का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण आपात सेवाओं की उपलब्धता में देरी हो रही है। इनका यहां तक आरोप है कि इस देरी के कारण मरीजों की जानें जा रही हैं। इस तरह से 15 व 20 दिसंबर को एनएचस के कर्मचारी और आपात सेवाओं के कर्मचारी, दोनों हड़ताल पर रहने वाले हैं जिसका खासा असर ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ सकता है। 

फायर ब्रिगेड यूनियनों ने भी सरकार की तरफ से आई 2 फीसदी वेतन वृद्धि की पेशकश को ठुकरा दिया है और अब वे भी हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं।

हालत यह है कि स्कॉटलैंड में वेतन समझौते पर बातचीत टूट जाने के बाद वहां के शिक्षकों ने करीब 40 साल में पहली बार हड़ताल पर जाने का फैसला किया और 24 नवंबर को कक्षाओं का बहिष्कार किया। अब वहां के सेकेंडरी टीचर्स एसोसिएशन से जुड़े अध्यापक 7 व 8 दिसंबर को हड़ताल पर रहेंगे।

इंग्लैंड व वेल्स में सैकड़ों हजार शिक्षक व अन्य शैक्षणिक स्टाफ अक्टूबर से ही इस बारे में मतदान कर रहे हैं कि क्या वेतन की मांगों को लेकर हड़ताल पर जाया जाए। यह मतदान जनवरी तक चलेगा। स्कूलों व कॉलेजों में काम कर रहे करीब 162,000 कर्मचारी इंग्लैंड व वेल्स में 2011 में इस तरह की पहली हड़ताल पर जाने के बारे में फैसला कर रहे हैं। ब्रिटेन की 150 यूनिवर्सिटियों के 70 हजार कर्मचारी 24, 25 व 30 नवंबर को बेहतर वेतन, पेंशन व कार्यस्थितियों की मांग को लेकर हड़ताल कर चुके हैं।

हड़तालों का असर डाक सेवाओं व दूरसंचार सेवाओं पर भी पड़ेगा। ब्रिटेन की एक सदी से भी ज्यादा पुरानी डाक व पार्सल कंपनी रॉयल मेल के डाक कर्मचारी इस साल कई बार हड़ताल कर चुके हैं। कम्युनिकेशंस एंड वर्कर्स यूनियन के सदस्य नवंबर में 10 दिन काम का बहिष्कार कर चुके हैं और दिसंबर में भी करेंगे। जाहिर है कि ब्लैक फ्राइडे व क्रिसमस से पहले होने वाली तमाम डिलीवरियों पर इसका असर पड़ेगा। यही हाल बाकी दूरसंचार क्षेत्र में भी रहेगा।

ज़ाहिर है कि ब्रिटेन में कंज़रवेटिव पार्टी का मुखिया बदलने से स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ा है। लोगों में असंतोष जस का तस है।

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