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कर्नाटक: हिजाब पहना तो नहीं मिलेगी शिक्षा, कितना सही कितना गलत?

हमारे देश में शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, फिर भी लड़कियां बड़ी मेहनत और मुश्किलों से शिक्षा की दहलीज़ तक पहुंचती हैं। ऐसे में पहनावे के चलते लड़कियों को शिक्षा से दूर रखना बिल्कुल भी जायज नहीं है।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: Hindustan

साल 2018 में जामिया मिलिया इस्लामिया की एक छात्रा उमैया ख़ान को सिर्फ इसलिए यूजीसी नेट-परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई थी क्योंकि उन्होंने हिजाब पहन रखा था। हालांकि तब ये शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कितनी मेहनत और मुश्किलों से उन्होंने इस परीक्षा की तैयारी की होगी, वो परीक्षा केंद्र तक पहुंची होंगी।

आज 5 फरवरी को जब देशभर में बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जा रहा है, ज्ञान और शिक्षा की देवी मां सरस्वती को पूजा जा रहा है। तभी कर्नाटक के कुछ कॉलेजों में हिजाब पहनने वाली लड़कियों के लिए गेट बंद किए जा रहे हैं, उन्हें हिजाब और पढ़ाई में से किसी एक को चुनने के लिए कहा जा रहा है। हमारे देश में शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो बिना किसी भेदभाव के सभी को पढ़ने और आगे बढ़ने का समान अवसर देता है। हालांकि इन दिनों कर्नाटक के इस मामले में ये चर्चा का विषय बना हुआ है।

बता दें कि कर्नाटक के उडुपी जूनियर कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर गहराए विवाद में कॉलेज प्रबंधन और मुस्लिम छात्राएं आमने-सामने हैं। दिन-प्रतिदिन उलझता ये विवाद अब उडुपी ज़िले के दो और कॉलेजों के साथ ही शिवमोगा ज़िले के भद्रावती तक फैल गया है। छात्रों के दो गुटों के बीच हिजाब और भगवा शॉल पहनने का मुक़ाबला भी शुरू हो गया है, जो कर्नाटक हाईकोर्ट तक पहुँच गया है, जिसकी सुनवाई 8 फरवरी को होनी है।

इस मामले में छात्र और मानव-अधिकार समूहों ने कॉलेज प्रशासन पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्वाग्रह का आरोप लगाया है। विपक्ष के कई नेताओं के साथ-साथ सिविल सोसायटी के सदस्‍यों ने भी प्रदर्शनकारी छात्राओं का समर्थन किया है। युवाओं और महिलाओं के लिए आवाज़ बुलंद करने वाला प्रगतिशील संगठन औरतें लाएंगी इंकलाब ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और कर्नाटक के गृह मंत्री को इस संबंध में चिट्ठी लिखकर छात्राओं के शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने की अपील भी की है।

संस्थान की फाउंडर अमीषा नंदा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हिजाब के चलते लड़कियों को शिक्षा से दूर करने वाला प्रशासन का ये रवैया संप्रदायिक सद्भाव के खिलाफ तो है ही साथ ही जेंडर भेदभाव को भी बढ़ावा देने वाला है। ये भारत की बेटियों को संविधान से मिले शिक्षा के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 27 दिसंबर, 2021 को उडुपी के एक सरकारी इंटर कॉलेज में 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कक्षा में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। अब महीना बीत जाने के बाद भी इन छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण क्लास में घुसने नहीं दिया जा रहा है। जिसके चलते इनकी पढ़ाई अटक गई है। बाहर खड़े होकर अपने अधिकार के लिए शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट करती येे लड़कियां दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है।

सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में प्रिंसिपल को स्टूडेंट्स को यह कहते हुए देखा जा सकता है कि उन्हें हिजाब के साथ कॉलेज में आने की इजाज़त नहीं है। इसी वीडियो में एक छात्रा उनसे गुहार लगा रही है कि इम्तेहान में सिर्फ़ दो महीने बचे हैं और उन्हें क्लास में जाने की इजाज़त दी जाए। उन लड़कियों में से एक प्रिंसिपल से कह रही हैं, "सभी को अपने रिवाज मानने की इजाज़त है, लेकिन हमें जो पहनने की इजाज़त है, उस हक़ से हमें क्यों रोका जा रहा है।"

इस विवाद के सुर्खियों में आते ही हिंदू संगठन भी इस मामले में कूद पड़े हैं। बीते दिनों राज्य के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में बजरंग दल ने मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के हिजाब पहनने के विरोध में कॉलेज के कुछ लड़कों को कथित तौर पर जबरन भगवा शॉल पहना दिया। हालांकि, बजरंग दल की इस हरकत का प्रिंसिपल ने विरोध किया और हिंदू संगठनों को स्कूल में भगवा कैंपेन चलाने से रोका है।


प्रदर्शन कर रही लड़कियों का क्या कहना है?

द न्यूज़ मिनट की खबर के अनुसार इन छात्राओं का कहना है कि उन्होंने बीते साल दिसंबर में ही हिजाब पहनना शुरू किया था। कॉलेज ज्वाइन करते वक्त उन्हें लगा था कि उनके अभिभावकों ने हिजाब न पहनने को लेकर कोई फॉर्म साइन किया है, इस वजह से वो हिजाब नहीं पहनती थीं। हालांकि, जो फॉर्म इन छात्राओं के पेरेंट्स ने साइन किया था उसमें हिजाब का कोई जिक्र नहीं था। पेरेंट्स ने इस बारे में स्कूल प्रबंधन से सवाल किया था, लेकिन स्कूल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया, इस वजह से उन्होंने हिजाब पहनना शुरू कर दिया।

लड़कियों का ये भी कहना है कि इंटर कॉलेज में बीते साल हिंदू त्योहार मनाए गए थे। हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से नहीं रोका जाता है, तो फिर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है? छात्राओं का कहना है कि दो महीने में उनकी परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी, उन्हें उसकी भी तैयारियां करनी हैं। लेकिन फिलहाल तो उन्हें पढ़ने से ही रोका जा रहा है।

इन छात्राओं ने ये भी कहा कि मामला मीडिया अटेंशन खींच रहा है, इसकी वजह से कॉलेज प्रबंधन उन पर माफी मांगने का दबाव बना रहा है। उनका ये भी कहना है कि उन्हें उर्दू में बात करने से भी रोका जाता है। इस मामले में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) और इस्लामिक स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन जैसे छात्र संगठन भी छात्राओं का समर्थन कर रहे हैं।

कॉलेज प्रशासन का क्या कहना है?

इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा ने स्थानीय मीडिया को बताया कि लड़कियां परिसर में हिजाब पहन सकती हैं, लेकिन कक्षाओं में नहीं। प्रिंसिपल गौड़ा ने कथित तौर पर दावा किया है कि छात्र पहले भी कक्षाओं में प्रवेश करने के बाद हिजाब और बुर्का हटाते रहे हैं। उनका कहना है कि यूनिफॉर्मिटी बनाए रखने के लिए छात्राओं को हिजाब पहनने से रोका जा रहा है।

इस मामले में स्थानीय विधायक और कॉलेज विकास समिति के अध्यक्ष रघुपति भट्ट ने कहा, “जो लड़कियां कॉलेज के बाहर बैठ कर हिजाब के लिए प्रोटेस्ट कर रही हैं वो कॉलेज छोड़कर जा सकती हैं। उन्हें किसी ऐसे कॉलेज में दाखिल ले लेना चाहिए जहां यूनिफ़ॉर्म के साथ हिजाब पहनने की इजाज़त हो। हमारे नियम स्पष्ट हैं कि उन्हें हिजाब पहनकर क्लास में बैठने की अनुमति नहीं मिलेगी।”

पक्ष- विपक्ष का क्या कहना है?

इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सीएम बसावराज बोम्‍मई और माध्‍यमिक शिक्षा मंत्री बीवी नागेश ने शुक्रवार, 4 फरवरी को एडवोकेट जनरल के साथ बैठक की। इसके बाद मंत्री बीवी नागेश ने कहा कि मामला पहले ही हाई कोर्ट के समक्ष है और सरकार फैसले का इंतजार कर रही है। तब तक सभी स्‍कूल और कॉलेजों को अपना यूनिफॉर्म कोड फॉलो करना चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्‍ट के तहत सभी शैक्षिक संस्‍थानों को अपना यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार दिया गया है। शर्त बस इतनी है कि यूनिफॉर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उसमें पांच साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए।

इससे पहले कर्नाटक के गृह मंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने कहा कि स्कूलों में न तो हिजाब पहनकर आ सकते हैं और न ही भगवा गमछा पहनकर। सरकार के मुताबिक इस संबंध में हाई कोर्ट के फैसला सुनाने तक सभी शैक्षणिक संस्थानों में जो यूनिफॉर्म है, वही जारी रखी जाए।

विपक्ष की ओर से कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया मुस्लिम छात्राओं का समर्थन करते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिमों का मौलिक अधिकार है। शिक्षा मौलिक अधिकार है। अगर उन्हें स्कूल आने से रोका जाता है उनके ये मौलिक अधिकार का हनन है।

वहीं शनिवार, 5 फरवरी को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड के सांसद राहुल गांधी ने बसंत पंचमी पर सरस्‍वती पूजा हैशटैग के साथ ट्वीट करते हुए लिखा, 'छात्राओं के हिजाब को उनकी शिक्षा के आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य लूट रहे हैं, मां सरस्वती सभी को ज्ञान देती हैं। वह भेद नहीं करती।'

हाईकोर्ट पहुंचा मामला

इस संबंध में छात्राओं की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में दो याचिकाओं पर सुनवाई होनी है, जो कि दोनों अलग-अलग मुद्दों पर आधारित हैं। दोनों याचिकाओं में केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ के फ़ैसले का हवाला दिया गया है, जिसने नीट परीक्षा में सिर पर स्कार्फ़ पहनने की अनुमति देने वाले एकल न्यायाधीश पीठ के फैसले को बरक़रार रखा था।

पहली याचिका में तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के तहत लिबास का चुनाव एक मौलिक अधिकार है। जिस ड्रेस कोड में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है, वह क़ानून-व्यवस्था या समाज की नैतिकता के लिए नहीं है।

दूसरी याचिका में कहा गया है कि 2021-22 की एकैडमिक गाइडलाइंस में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों के लिए कोई यूनिफ़ॉर्म तय नहीं की गई है। याचिका के अनुसार गाइडलाइंस में यहां तक कहा गया है कि अगर कोई कॉलेज यूनिफ़ॉर्म तय करता है तो उसके ख़िलाफ़ विभाग सख़्त कार्रवाई करेगा।

गौरतलब है कि हम में से बहुत सारे लोग किसी पहनावे के पक्ष या विपक्ष में हो सकते हैं। उसका सपोर्ट या विरोध कर सकते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद ये ज़रूरी नहीं कि हर बार उसका सहारा किसी को टारगेट करने के लिए ही किया जाए और वो भी तब जब उससे कोई बड़ा हित प्रभावित हो रहा हो। आप किसी के पहनावे की वजह से उसे शिक्षा से वंचित नहीं रख सकते। ये धर्म से पहले ये शिक्षा के अधिकार के ख़िलाफ़ है और आज उन लड़कियों की शिक्षा का सवाल सर्वोपरि है।

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