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कर्नाटकः मज़दूरों की स्थिति बेहाल

कर्नाटक में मज़दूरों की स्थिति क्या है? क्या मज़दूर खुशहाल हैं? क्या किसान और मज़दूरों की स्थिति में कोई अंतर्संबंध है? आइये पड़ताल करते हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: Citizen Matters

कर्नाटक में चुनाव और मतगणना की तारीख तय हो चुकी हैं। चुनाव प्रचार तो बहुत पहले से ही चालू है। उपलब्धियों के प्रचार और शोर के बीच कर्नाटक की मेहनतकश जनता के मुद्दे और हालात दोनों ही गायब है। किसान और मज़दूर कर्नाटक की रीढ़ हैं। गौरतलब है कि कर्नाटक किसानों की आत्महत्या के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। कर्नाटक में प्रतिदिन तीन किसान आत्महत्या करते हैं। ये आंकड़ा बता रहा है कि किसानों की स्थिति कितनी बदतर है। लेकिन मज़दूरों की स्थिति क्या है? क्या मज़दूर खुशहाल हैं? क्या किसान और मज़दूरों की स्थिति में कोई अंतर्संबंध है? आइये पड़ताल करते हैं।

मज़दूरों की स्थिति

श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार के इश्रम पोर्टल के अनुसार कर्नाटक में 75,33,099 मज़दूर रजिस्टर्ड हैं।कर्नाटक में सबसे ज्यादा मज़दूर कृषि क्षेत्र में संलग्न हैं। पोर्टल के अनुसार 41,18,028 मज़दूर खेती कार्यों में लगे हैं। कुल रजिस्टर्ड मज़दूरों का लगभग 55% मज़दूर खेती पर निर्भर हैं। उसी खेती पर जो किसानों को आत्महत्या के लिए मज़बूर कर रही है। मज़दूरों का अजीब दुर्भाग्य है की जिस खेती के संकट के चलते प्रतिदिन तीन किसान आत्महत्या कर रहे हैं उसी क्षेत्र पर 55% मज़दूर अपनी आजीविका की आस लगाए हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि कर्नाटक में किसानों के साथ-साथ मज़दूरों की स्थिति भी बदहाल है। परिणामस्वरूप मज़दूर दूसरे राज्यों में पलायन को मज़बूर होते हैं।

काम के लिए पलायन

कर्नाटक में बड़े पैमाने पर देश के बाकी हिस्सों से लोग पलायन करते हैं। सबसे ज्यादा माइग्रेशन बैंगलोर में होता है। अनुमान है कि बैंगलोर की आधी से ज्यादा आबादी प्रवासी है। लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। कर्नाटक में एक ज़िला से दूसरे ज़िला और दूसरे राज्यों में भी मज़दूर पलायन करते हैं। ज्यादातर मज़दूर गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात राज्यों में काम की तलाश के पलायन करते हैं। पलायन करने वालों में बड़ी संख्या में दलित है। दलितों के पलायन का संबंध भी कहीं न कहीं खेती और ज़मीन से जुड़ा है। 

कर्नाटक के श्रम विभाग ने पलायन के मुद्दे पर एक अध्ययन कराया था। जिसमें बड़ी संख्या में कर्नाटक से बाहर पलायन करने वालों मज़दूरों से संपर्क किया गया और बाद में  रिपोर्ट प्रकाशित की गई। कर्नाटक से पलायन करने वाले मज़दूर ज्यादातर निर्माण कार्य, घरेलू कामगार और रेहड़ी-पटरी आदि पर निर्भर हैं। पलायन करने वालों में बड़ी संख्या दलितों की है। 

दलितों की आजीविका का संकट और पलायन

इस रिपोर्ट के अनुसार पलायन करने वाले में बड़ी संख्या में दलित हैं। जिनके पास औसतन 0.42 हैक्टेयर ज़मीन है। जिस प्रदेश में किसान बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं वहां 0.42 हैक्टेयर जैसी छोटी ज़मीन के साथ आजीविका चला पाना असंभव है। मजबूरन दलितों को पलायन करना पड़ता है।

 उच्च शिक्षा भी दलितों की स्थिति को बदल पाने में बहुत कारगर साबित नहीं हो पा रही है। सबसे पहली बात तो ये है कि उच्च शिक्षा में दलितों का इनरोलमेंट ही मात्र 7% है। अगर कोई दलित उच्च शिक्षा हासिल कर भी ले तो नौकरी की गारंटी नहीं है। पढ़े-लिखे दलित बेरोज़गारों का अनुपात अन्य जातियों की तुलना में कहीं अधिक है। कर्नाटक में विश्वविद्यालय की डिग्री लिए हुए 11.6% दलित बेरोज़गार हैं। सवर्ण कही जाने वाली जातियों में ये आंकड़ा मात्र 4% है। रिपोर्ट के अनुसार रूझान है कि सवर्ण जातियां आमतौर पर ग्रामीण से शहरी इलाकों में बेहतर शिक्षा या बेहतर रोज़गार की तलाश में पलायन करती हैं जबकि दलित तबका दैनिक मज़दूर के तौर पर पलायन करता है।

सूखा, कर्ज़ और बेरोज़गारी पलायन की बड़ी वजह

जहां एक तरफ साइबर सिटी बैंगलोर बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिए पढ़े-लिखे तबके को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी अनेक कारक हैं जो कर्नाटक की जनता को पलायन के लिए विवश कर रहे हैं। पलायन का प्रमुख कारण काम की अनुपलब्धता है। इसके अलावा फसल बर्बादी, सूखा और कर्ज़ भी बड़े कारण है। रिपोर्ट के अनुसार 64% मज़दूरों ने बताया कि उन्हें इस वजह से अपना गांव छोड़ना पड़ा कि वहां कोई काम ही उपलब्ध नहीं था। 87% मज़दूरों ने कहा कि उन्हें मनरेगा के तहत भी कोई काम नहीं मिला।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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