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एमपी : मौक़ा भुनाने में घिरी भाजपा, अब स्मृति ईरानी के कार्यक्रम को लेकर हंगामा

6 जुलाई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीधी पेशाबकांड के पीड़ित के पैर धोने के फोटो सार्वजनिक किए। फिर 9 जुलाई को भोपाल पहुंची केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ऑन कैमरा गोद लिए जाने वाले बच्चे व उनके अभिभावकों को गुलदस्ता देते समय मीडिया से फोटो खींचवाकर पहचान उजागर की।
madhya pradesh
भोपाल के रविंद्र भवन में 9 जुलाई को हुए कार्यक्रम में केंद्रीय स्मृति ईरानी गोद लिए जाने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों को गुलदस्ता देती हुईं।

मध्य प्रदेश में अगले 6 महीने के भीतर विधानसभा चुनाव होने हैं और इस चुनाव को जीतने के लिए सत्ता पर काबिज भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। दोनों ही पार्टी और इनके नेता हर एक मौके को भुना लेना चाहते हैं। ये स्वयं की और पार्टी की ब्रांडिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यदि ब्रांडिंग करने का तरीका सही और कानूनी दायरे में रहकर किया जाए तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है लेकिन कुछ नेता स्वयं की व पार्टी की ब्रांडिंग करने के लिए सही और गलत तरीकों की पहचान तक नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण बाद में आलोचनाओं का शिकार होते हैं।

यही नहीं, ऐसे नेताओं की अकेले आलोचना भर होकर रह जाए तो कोई बात नहीं लेकिन इनके द्वारा ब्रांडिंग के लिए अपनाए जाने वाले तौर तरीकों से भ्रम की स्थिति पैदा होती है और फिर कई तरह की चर्चाओं का जन्म होता है, जो लोगों को अनावश्यक प्रभावित कर रही हैं।

9 जुलाई की ही बात है केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंची। यहां उन्होंने बाल वत्सल संगोष्ठी में मुख्य अतिथि बतौर हिस्सा लिया। यह कार्यक्रम रविंद्र भवन सभागार में हुआ। बेबाक बोलने के लिए पहचान बना चुकी केंद्रीय मंत्री ने इस कार्यक्रम में इतनी बड़ी भूल कर दी कि उसे सुधारा जाना संभव ही नहीं है। उन्होंने यहां उन अभिभावकों को गुलदस्ते दिए, जिन्होंने अनाथ बच्चों को गोद लिया था। मंत्री ने सैंकड़ों की भीड़ में यह सबकुछ ऑन कैमरा किया। इस तरह गोद लिए जाने वाले बच्चे और गोद लेने वाले अभिभावकों की पहचान उजागर हो गई, जो कि कानूनन गलत है।

बाद में इस कार्यक्रम को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी संबोधित करती रही और ये फोटो—वीडियो सोशल मीडिया पर आ गए। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने इनमें से एक वीडियो ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा, स्मृति ईरानी मंत्री हैं और गोद लिये बच्चों और अभिभावकों की पहचान सार्वजनिक करने में उन्हें कोई झिझक नहीं हुई? कानून की धज्जियां उड़ाने में सब भाजपाई एक से हैं।

मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष के नाते भूपेंद्र गुप्ता ने रविवार शाम को ही एक प्रेसनोट भी जारी किया। जिसमें गोद लिए जाने वाले बच्चों व उनके अभिभावकों की पहचान उजागर करने के मामले की निंदा कर कानूनी कार्रवाई की मांग की।

यह भी कहा कि संवेदनशील संस्थाओं में बैठाये गये लोग वैधानिक मर्यादाओं की धज्जियां उड़ा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल आयोग को इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेना चाहिए और मंत्री को उचित चेतावनी जारी करनी चाहिए।

हकीकत में अनाथ बच्चों को आज सक्षम गोद की जरुरत है। इनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए बाल कल्याण समितियों द्वारा संचालित बाल गृहों से इतर भी सोचने की जरूरत है। सरकार की मंशा है कि इन गृहों में पल रहे बच्चों को सक्षम दंपति व लोग गोद लें, ताकि ये मुख्यधारा से जुड़ सकें।

इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने बाल अधिकार, बाल सुरक्षा और बाल कल्याण पर केंद्रित क्षेत्रीय संगोष्ठी 'बाल वत्सल' आयोजित की थी। इसमें मध्य प्रदेश के साथ—साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बाल अधिकार संरक्षण के लिए काम करने वाली सरकारी और निजी संस्थाओं के प्रतिनिधि को बुलाया गया था। इसी संगोष्ठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को मध्य प्रदेश सरकार ने बुलाया था।

इस संगोष्ठी का मकसद अनाथ बच्चों को सक्षम हाथों तक पहुंचाने की दिशा में एक अच्छा प्रयास है लेकिन इसको इस तरह पेश किया जैसे- यह भी एक ब्रांडिंग का जरिया हो। बकायदा गोद लेने वाले अभिभावकों को मीडिया और माइक के सामने लाया गया। उनके खूब फोटो खींचवाएं गए।

संगोष्ठी के अंत में जब मीडिया ने मप्र बाल संरक्षण अधिकार आयोग के अध्यक्ष दविंद्र मोरे से पूछा कि इस कार्यक्रम में बच्चों व उन्हें गोद लेने वालों की पहचान उजागर क्यों की गई तो उन्होंने सीधा जवाब देने की बजाए बातों को घूमा फिराकर कहा कि यह भावनात्मक पल था, इसमें कानूनी रूप से जो भी सुधार की गुंजाइश होगी, उसे सुधारा जाएगा। आयोग के अध्यक्ष ने यह नहीं कहा कि कुछ गलत हुआ है।

हालांकि जब आयोग के अध्यक्ष व अधिकारियों को इस बात का अहसास हो गया कि कार्यक्रम में बच्चों को बुलाना, गोद देने की प्रक्रिया के दौरान सार्वजनिक तौर पर फोटो खींचवाना, वीडियो बनवाना, ये सब कानूनन रूप से ठीक नहीं है तो उन्होंने डैमेज कंट्रोल करना शुरू कर दिया। शाम से लेकर रात तक कई मीडिया हाउस और उनसे जुड़े पत्रकारों के पास फोन गए। जिसमें कहा गया कि जो हुआ, वह ठीक नहीं था लेकिन आप थोड़ा संभाल लीजिए। सोमवार को जब भोपाल में अखबार प्रकाशित हुए दैनिक भास्कर को छोड़कर ज्यादातर ने इस विषय को गायब ही रहने दिया। दैनिक भास्कर ने शीर्षक दिया 'गोद लिए बच्चों की पहचान उजागर....’

यही नहीं, जब इस कार्यक्रम में बुलाए गए अभिभावकों को लगा कि यहां महज उन्हें उपयोग किया जा रहा है तो इनमें से कुछ नाराज होकर चले गए।

यह सबकुछ उसी मध्य प्रदेश बाल संरक्षण अधिकार आयोग के कार्यक्रम में हुआ, जो कई मौकों पर बच्चों से जुड़े संवेदनशील मामलों में प्रदेश के कुछ कलेक्टेरों से वैधानिक कार्यवाही से जुड़े पत्राचार कर चुके हैं। यही आयोग कई मौकों पर ऐसे बच्चों की निजता का उल्लंघन न करने की सलाह दे चुका है। जब कसौटी पर खरे उतरने की खुद की बारी आई तो नियमों को ताक पर रख दिया गया।

जैसे—जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे है, भाजपा प्रत्येक अवसरों को अपने पक्ष में भुनाने में कसर नहीं छोड़ रही।

जिस सीधी पेशाबकांड की चर्चा पूरे देश में है, उस पेशाबकांड में भी भाजपा बुरी तरह उलझी नजर आई। जानकारों की माने तो यह एक गंभीर घटना है लेकिन इसे पहले भाजपा और फिर कांग्रेस ने लपक लिया। कांग्रेस को मौके भाजपा ने दिए, ऐसा प्रतीत होता है। यही घटना चुनावी वर्ष से पहले हुई होती तो सच में यह एक घटना ही थी, जिसकी जांच दूसरी घटनाओं की तरह ही होती और पुलिस के चालान पेश किए जाने के बाद न्यायालय मामले में सुनवाई करता, गवाहों व सबूतों के आधार पर क्या गलत है यह तय होता। आगे भी यही होगा, लेकिन मामला न्यायालय तक पहुंचता, उसके पहले पेशाबकांड पर जमकर नौटंकी शुरू हो गई।

पीड़ित की पुलिस ने ऐसी घेराबंदी की जैसे आरोपियों की घेराबंदी की जाती हो। उसे कड़ी सुरक्षा में भोपाल लाया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसके पैर धोए।

मुख्यमंत्री के ट्विटर हैंडल से 6 जुलाई को दो तस्वीरें जारी की गईं। एक में पीड़ित कुर्सी पर बैठे हैं, उनके पैर कासे की बड़ी आकार की थाली में हैं, नजदीक में ही मुख्यमंत्री एक पीठे पर बैठे हैं, उनके एक हाथ में मग है और दूसरे हाथ पीड़ित के पांव पर हैं। वे पैर धो रहे हैं। दूसरी तस्वीर में पीड़ित कुर्सी पर बैठे हुए हैं, मुख्यमंत्री उनका शाल व श्रीफल देकर सम्मान करते नजर आ रहे हैं। ट्विटर हैंडल पर लिखा है— मन दु:खी है; ..... जी आपकी पीड़ा बांटने का यह प्रयास है, आपसे माफी भी मांगता हूं, मेरे लिए जनता ही भगवान है!

मुख्यमंत्री द्वार दशमत के इस तरह किए गए सम्मान पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस पार्टी के नेताओं की प्रतिक्रिया आई।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा, सीधी पेशाबकांड के पीड़ित के पैर धोना मुख्यमंत्री का ‘कैमरे के सामने किया जाने वाला नाटक है’ और इससे उनके कार्यकाल के दौरान किए गए पाप नहीं धुल जायेंगे। मुख्यमंत्री को लगता है कि आदिवासी समाज उन्हें माफ कर देगा। वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि यह किस तरह की घटना थी। यह भी कहा कि शिवराज सिंह चौहान जितनी नाटक-नौटंकी कर लें और अपना 18 साल का पाप धोने का प्रयास कर लें। पाप नहीं धुलता। अगर उनकी सच्ची आत्मा होती तो वह कैमरा बुलाकर नहीं दिखाते। उनको मतलब कैमरे से था। ये नौंटकी 18 साल कर ली है, अब नहीं चलेगी।

कमल नाथ से मध्य प्रदेश में हुई पुरानी घटनाओं का जिक्र करते हुए भी शिवराज सिंह चौहान व उनकी सरकार के कार्यकाल को याद किया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष अरुण यादव ने ट्विटर पर लिखा, पीड़ित को अगवा कर सीएम आवास लाया गया। मुख्यमंत्री आवास में उसका इवेंट बनाया गया। उसके परिवार व उसकी पत्नी तक को नहीं पता कि पीड़ित कहा हैं, यह निंदनीय है।

प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अपनी प्रक्रिया देते हुए कहा, प्रदेश में भाजपा के 18 साल के शासन में आदिवासियों पर अत्याचार के 30,400 मामले सामने आए हैं। भाजपा राज में आदिवासी हितों पर केवल कोरे दावे और कोरी बातें हैं। उन्होंने पूछा, आदिवासियों पर अत्याचार रोकने के असल कदम क्यों नहीं उठाती सरकार?

सरकारों के खिलाफ सीधे तौर पर बोलने से बच रहे मध्य प्रदेश के बड़े जानकार नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं भाजपा जैसी पार्टी व उसके नेताओं को यह शोभा नहीं देता कि एक अपराध के घटित होने के बाद उस अपराध के लिए पीड़ित से माफी भी उसके घर जाने की बजाए उसे अपने घर बुलाकर मांगी जाए। यह हमारा संस्कार ही नहीं है। एक घड़ी संस्कार भूल भी जाए तो कानून भी इस बात की इजाजत नहीं देता कि जिस पर पेशाब की गई हो उससे जुड़े लोगों को सरकार ही सार्वजनिक करें। आखिरकार कोई उस पीड़ित को इतना सबकुछ होने के बाद कोई भी ताने मार सकता है, इसे रोकने का एक ही उपाए था, आरोपी को कड़ी सजा दिलाना और पीड़ित व उससे जुड़े लोगों की पहचान को छुपाना। सरकार के मुखिया ने यह काम आगे रहकर किया है। इसे माफीनामा तो कह ही नहीं सकते, यह सरकार की धूमिल होती छवि के सामने ब्रांडिंग जैसा कदम लगता है।

जानकार कहते हैं, कानून सबके लिए सामान है इसलिए तो सीधी पेशाबकांड में पेशाब करने वाले प्रवेश शुक्ला ही नहीं, वीडियो बनाने वालों के खिलाफ भी कार्यवाही की गई। ऐसे में पीड़ित की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई बनती है।

(पूजा यादव स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।)

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