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'स्वच्छ भारत' के ढोल के बीच मलेरिया से मरता भारत

इस साल एक तरफ तो मानसून की बारिश अच्छी हुई, वहीं दूसरी तरफ पूरे उत्तर भारत में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया तथा वायरल बुखार ने मानसून की खुशी मायूसी में बदल दी है।
malaria
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो-cdc.gov)

उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद ज़िले में अब डेंगू बुख़ार क़हर ढा रहा है। डेंगू मलेरिया का ही एक रूप है। आज तक हम लाख दावे करें लेकिन सच यह है कि मलेरिया आज भी प्रति वर्ष लाखों जानें लील लेता है। किंतु इन मौतों का कोई आँकड़ा कभी ज़ाहिर नहीं किया जाता। कोरोना से अधिक भयानक भारत में मलेरिया है।

भारत की ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु में मलेरिया के मच्छर न पनपने देना एक बड़ी उपलब्धि होती, लेकिन सरकारें मलेरिया को लेकर सदैव राम भरोसे रहीं। हालाँकि यह सच है कि 1972 तक भारत एक बार मलेरिया मुक्त हो गया था। मगर इसके बाद फिर मलेरिया के प्रति उदासीनता ने उसे इस स्थिति में ला दिया है कि साधारण मलेरिया से लेकर डेंगू, फाल्सी फेरम, चिकनगुनिया और काला जार हर वर्ष हज़ारों लोगों को सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही लील जाता है।

किंतु मलेरिया से मुक्त होना कोई कठिन नहीं है। हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका कब का मलेरिया मुक्त हो गया है। यह उस देश की बहुत बड़ी सफलता है। दक्षिण एशिया में जिस तरह की ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु है उसमें मलेरिया से निजात पाना सबसे बड़ी उपलब्धि है। वह दक्षिण एशिया का पहला ऐसा देश है जहां अब मलेरिया का खतरा नहीं होगा। इससे एक तो उसे अपने पर्यटन को बढ़ाने में मदद मिलेगी, दूसरे उस देश में स्वास्थ्य को लेकर एक नई जागरूकता आएगी। अंग्रेज जब भारत आए थे तो अधिकांश की मौत यहां की गर्मी और मलेरिया से ही हुई थी और खासकर तटवर्ती इलाकों और उत्तर पूर्व के जंगलों में। क्योंकि जहां-जहां वर्षावन हैं वहां पर मलेरिया के वीषाणुओं को पनपने से नहीं रोका जा सकता। इसीलिए जब भी भारत में मानसून बेहतर होने से खुशी की लहर दौड़ती है तत्काल मलेरिया का खतरा प्रकट हो जाता है। 

अब इस साल ही एक तरफ तो मानसून की बारिश अच्छी हुई, दूसरे तरफ पूरे उत्तर भारत में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया तथा वायरल ने मानसून की खुशी मायूसी में बदल दी है। आज उत्तर भारत के हर शहर व गांव में हालत यह है कि हर घर में कोई न कोई सदस्य या तो वायरल बुखार से पीड़ित है अथवा चिकनगुनिया या डेंगू से, इन बीमारियों के वीषाणु व्यक्ति को तोड़ देते हैं। और ठीक होने के बाद भी उसे कई दिनों तक चलने-फिरने में दिक्कत होती है।

ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में मलेरिया के वीषाणु कहीं बाहर से नहीं आते हैं वे वहां पर स्वत: ही पनपने लगते हैं। खासकर वर्षा वनों और तटीय व तराई के इलाकों में। वर्षा के बाद जहां कहीं भी गंदगी होती है वहां पर सूरज का पारा चढ़ते ही मलेरिया के कीटाणु पनपने लगते हैं। हालांकि प्रकृति स्वयं इन कीटाणुओं को नष्ट करने का भी उपाय बताते चलती है, मगर अब लोगबाग मनुष्य समाज के अनुभवजन्य ज्ञान को विस्मृत करते जा रहे हैं। तुलसी के पौधे और एलोवेरा स्वयं ही मलेरिया रोधक होता है इसलिए जहां-जहां भी मलेरिया के कीटाणु पनपने की आशंका होती है वहां पर ये पौधे भी पनपते हैं और उन कीटाणुओं की बढ़त रोक देते हैं। इसके अतिरिक्त नीम के पत्ते भी मलेरिया रोधक होते हैं इसीलिए नीम के पत्तों का धुआँ करने से मलेरिया के कीटाणु भाग जाते हैं।

किसी भी कीटनाशक से मलेरिया के कीटाणु नष्ट नहीं होते हैं बल्कि फौरी तौर पर वे या तो वहां से उड़ जाते हैं अथवा बेहोश हो जाते हैं और फिर जैसे ही ही हवा चली वे पुन: सक्रिय हो जाते हैं। यही कारण है कि हर साल मलेरिया रोधक दवाओं की मारक क्षमता बढ़ाई जाती है। मलेरिया का कीटाणु चूंकि एक निश्चित तापमान पर आद्रता के कारण गंदे स्थानों पर स्वत: पनपने लगता है इसलिए चाहे जितना ताकतवर कीटनाशक बनाया जाए उसे जड़ से खत्म करने से रहा।

मलेरिया को जड़ से निकाल बाहर करने का अकेला उपाय सफाई है। गंदगी रहेगी ही नहीं तो मलेरिया के कीटाणु पनपेंगे कहां से। इसलिए उन सारे मुल्कों ने जहां पर मलेरिया का खतरा रहता है और जहां का मौसम नम है, ने सफाई का पुख्ता इंतजाम कर रखा है। अगर गंदगी बिखरी न रहे और रहने की जगहें साफ-सुथरी रहें तो कोई शक नहीं कि मलेरिया जड़ से खत्म हो जाएगा। और इन सब कामों के लिए जरूरी है शिक्षा और साफ-सफाई रखने की चेतना। कुछ काम सरकार को अपने जिम्मे लेने होंगे जैसे कि हर एक को मकान स्वयं सरकार दे ताकि बेतरतीब ढंग से बनाए मकानों से निजात मिले। अथवा नगर पालिकाएं स्वयं इतनी सक्षम हों कि किसी मकान का नक्शा तब ही पास किया जाए जब उससे पानी कि निकासी की उत्तम व्यवस्था हो। इसी तरह नाली-नालों का पानी लगातार बहता रहे और इस पानी का निस्तारण भी होता रहे। अन्यथा और कोई चारा नहीं है मलेरिया से निजात पाने का। 

याद करिए कि आजादी के तत्काल बाद चुनी हुई सरकारों की पहली प्राथमिकता मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम था। मगर यह मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम महज डीडीटी के छिडक़ाव और मलेरिया इंस्पेक्टरों की मर्जी पर टिका था। इसलिए शुरू में तो इसका असर दिखा और साठ के दशक में मलेरिया गायब हो गया मगर सत्तर आते-आते मलेरिया फिर पांव पसारने लगा। मलेरिया की दवाएं एकतरफा काम करती हैं अर्थात मलेरिया का वायरस अगर पकड़ में आ गया तो उसे समाप्त कर देंगी और अगर वह पकड़ में नहीं आया तो शरीर के अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाएंगी। चिकित्सकों का कहना है कि मलेरिया का कीटाणु बहुत शातिर होता है और गजब का रक्षात्मक भी। मरीज यदि एंटीबायोटिक (वीषाणुरोधी) और जरूरत से कम मात्रा में मलेरिया की दवा ले भी ले, तो वह वीषाणु फौरन मरीज के पेट के नाजुक अंगों जैसे कि लीवर, किडनी या आंतों में जाकर छुप जाएगा और वहीं से मार करता रहेगा। इसीलिए उचित दवा न मिल पाने के कारण मलेरिया का मरीज महीनों बीमार बना रहता है। उसका बुखार उतरता है और फिर चढ़ता है।

मलेरिया से निजात पाने के लिए जरूरी है कि दवा आवश्यक मात्रा में दी जाए और उसकी जांच जरूरी है। यही कारण है कि आजकल डॉक्टर बिना जांच के मलेरिया की दवा नहीं देते और मरीज को सिर्फ सामान्य तौर पर बुखार उतारने की दवा देते रहते हैं। बुखार यदि सामान्य हुआ तो एकाध दिन में उतर ही जाएगा और नहीं उतरा तब मलेरिया की जांच से पता चलेगा कि मलेरिया है या नहीं और अगर है तो किस प्रकार का। डेंगू, फाल्सीफेरम आदि तो जानलेवा मलेरिया हैं और यदि मरीज बच भी गया तो उसके शरीर के किसी न किसी अंग में यह मलेरिया अपना प्रभाव छोड़ ही आएगा, इससे मधुमेह, हृदय रोग अथवा कोलोस्ट्रोल बढऩे की शिकायतें भी मिलने लगती हैं। 

जब भी मलेरिया फैलता है तो भयावह रूप से ही। आमतौर पर मानसून के बाद यह अगस्त के अंतिम सप्ताह से फैलना शुरू होता है और अक्तूबर तक चलता रहता है। चिकित्सकों का मानना है कि जब तक सामान्य तौर पर तापमान बीस डिग्री पर न आ जाए मलेरिया का वीषाणु रक्तबीज की तरह फैलता रहता है। इसलिए यह खुद ब खुद तो मरने से रहा। यह प्रकृति की देन है और इसे नष्ट करने का ज्ञान भी प्रकृति के पास है। हजारों साल से आदमी इस व्याधि से लड़ रहा है। वह अपने अनुभव जन्य ज्ञान से जानता है कि तुलसी, नीम और एलोवीरा इसकी दुश्मन हैं। और गंदगी इसे पनपने में सहायक है। 

इसलिए गंदगी दूर की जाए और तुलसी, नीम व एलोवीरा के पौधों को पनपाया जाए तो मलेरिया के वीषाणु से मुक्ति मिल जाएगी। आज भी मानव समाज के लिए सबसे बड़ी महामारी मलेरिया ही है इसलिए मलेरिया मुक्त भारत को बनाने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है स्वच्छता और गंदगी उन्मूलन, अशिक्षा से छुटकारा तथा स्वास्थ्य के प्रति चेतना।

शुरू में मोदी सरकार ने स्वच्छता पर खूब ज़ोर दिया था लेकिन गंदगी का बैताल उसी डाल पर आ गया। सार्वजनिक शौचालयों और चारों तरफ़ खुले में बिखरे गंदगी के ढेर मलेरिया को पनपा रहे हैं। ऐसे में फ़िरोज़ाबाद के लोग सिर्फ़ प्रकृति के भरोसे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उपरोक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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