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बिहार के शिक्षा मंत्री के साथ आए कई जन संगठन, सांप्रदायिक तत्वों पर अंकुश लगाने की मांग

ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कॉन्सिल, केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान और अभियान सांस्कृतिक मंच, ने एक साझा बयान जारी कर शिक्षा मंत्री के ख़िलाफ़ हिंसा को उकसा रहे सांप्रदायिक व फासीवादी तत्वों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
Chandrashekhar

पटना: हाल में बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर द्वारा रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों और दिए गए बयान के बाद जिस ढंग से भाजपा, बजरंग दल के नेतृत्व में उन्मादी माहौल बनाया गया वह बेहद चिंताजनक हैं।

यह कहना है ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कॉन्सिल (एटक), केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान, पटना और अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना का। इन तीनों संगठनों ने एक साझा बयान ज़ारी कर ऐसे सांप्रदायिक व फासीवादी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

एटक के बिहार राज्य अध्यक्ष अजय कुमार, अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना के सचिव अनीश अंकुर और केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान, पटना के महासचिव नवीन चंद्र की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि शिक्षा मंत्री के विरुद्ध जिस हिंसक व धमकी भरी भाषा में बातें की गई हैं वे किसी भी सभ्य समाज व लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। प्रो. चंद्रशेखर का सर काटकर लाने वाले को लाखों रूपये देने की पेशकश जैसे मध्ययुगीन बर्बरता की घटना इस आधुनिक समय में देखने को मिल रही है। शिक्षा मंत्री के प्रति किये जा रहे ऐसे आपत्तिजनक बयानों की मंच कड़े शब्दों में निंदा करता है और ऐसे आसामाजिक तत्वों के प्रति कड़ी कार्रवाई की मांग करता है।

बयान के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में सत्तासीन हुए हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार हमले जारी हैं। कई लेखकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है। अपने विचारों के कारण कई कवि, लेखक जेलों में बंद है। पूरे भारत में स्वयंभू किस्म के साम्प्रदायिक-फासीवादी संगठन उग आएं हैं जो खुद तय करते हैं कि किस बात से हिन्दू समाज की धार्मिक भावनायें आहत होती हैं तथा किस बात से नहीं! जो बात विद्वानों व बौद्धिकों के बीच अकादमिक संवाद-विवाद का मामला रहता है वहां भी सत्ता की सरपरस्ती में चलने वालों संगठनों द्वारा तय करने की घातक प्रवृत्ति देश में बढ़ी है। बिहार के शिक्षा मंत्री ऐसे संगठनों के ताज़ा शिकार बने हैं।

रामचरित मानस के लेखक तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर इसकी टीका लिखी है। यह एक चर्चित साहित्यिक कृति है। हर साहित्यिक कृति पर उसके लिखें जाने के कई दशकों व सदियों के बाद टीका या व्याख्या की जाती है। उसके कुछ दोहों, चौपाइयों को लेकर भिन्न-भिन्न किस्म के मत व दृष्टिकोण रहे हैं। हिंदी साहित्य के विद्वानों के मध्य ऐसी बहसों की लम्बी परम्परा है। बाबा नागार्जुन, मुक्तबोध, रांगेय राघव, यशपाल, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह जैसे साहित्यकार तथा राम मनोहर लोहिया जैसे राजनेताओं ने रामचरितमानस पर विचार व्यक्त किये हैं। अलग-अलग विचारों के बदले किसी एक दृष्टिकोण को न मानने वालों के प्रति असहिष्णु व बर्बर किस्म के बयान देना भारत जैसे जनतांत्रिक देश में कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

कोई समाज विभिन्न किस्म के विचारों के फलने-फूलने के लिए स्पेस देने के कारण ही बढ़ता है। शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर के खिलाफ गाली गलौज की भाषा में बात करने वाले इस लोकतांत्रिक स्पेस को समाप्त कर देना चाहते हैं।

शिक्षा मंत्री का सर काटने की मांग करने वालों के पास धन कहाँ से आ रहा है? इसकी मुक़म्मल जांच केंद्रीय एजेंसियों द्वारा होनी चाहिए कि इस हत्यारी मुहिम के पैसा कौन मुहैया करा रहा है? आज भारत जिस किस्म के सामाजिक-आर्थिक संकट से गुजर रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, आसमानता बढ रही है। लेकिन दक्षिणपंथी संगठन लोगों के दुःख-दर्द को छूने वाले इन बुनियादी समस्याओं के बदले उनसे ध्यान भटकाने के लिए ऐसे नकली मुद्दों को खड़ा करते हैं। ऐसे संगठनों व लोगों का पर्दाफाश करने की जरूरत है।

साझा बयान में कहा गया है कि "हम बिहार सरकार से मांग करते हैं कि धर्म का मुखौटा पहने ऐसे सांप्रदायिक व फासीवादी तत्वों पर कड़ी कार्रवाई की जाये साथ ही इसकी समाज के प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष व जनतांत्रिक शक्तियों से प्रो. चंद्रशेखर के अपनी राय प्रकट करने की आज़ादी के समर्थन में आगे आने का आह्वान करते हैं।"

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