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अमेरिका की तर्ज़ पर मॉस्को ने की यूरोप में ‘रूल्स-बेस्ड ऑर्डर’ की तैयारी?

पश्चिमी देशों के लिए जो गतिविधियां पूरी तरह से स्वीकार्य मानी जाती है, वह रूस के लिए वर्जित हो जाती है।
nuclear missiles
परमाणु मिसाइलों का खौफ़ यूरोप को परेशान कर रहा है

बैरोनेस गोल्डी, एक अनुभवी स्कॉटिश राजनेता और लाइफ पीयर हैं, जिन्होंने 2005 से 2011 तक स्कॉटिश कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के रूप में काम किया और 2019 से यूके की रक्षा राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया है।

निश्चित रूप से, बैरोनेस गोल्डी ने 20 मार्च को हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक लिखित बयान में लॉर्ड हिल्टन के प्रश्न के उत्तर में एक लिखित बयान का मतलब बेहतरीन ढंग से समझ लिया था: और पूछा की क्या "महामहिम की सरकार वर्तमान में यूक्रेन को जिस गोला-बारूद की आपूर्ति कर रही है उसमें डिप्लेटेड यूरेनियम शामिल है। (वैसे, लॉर्ड हिल्टन, हाउस ऑफ लॉर्ड्स में चुने गए 92 वंशानुगत साथियों में से एक हैं; वे वर्तमान में 1968 से हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले क्रॉसबेंच सदस्य हैं, और शांति व कमज़ोर और वंचितों के हितों के एक धुरंधर प्रचारक भी हैं।)

बैरोनेस गोल्डी का जवाब था: "यूक्रेन को चैलेंजर-2 जैसे मुख्य युद्धक टैंकों के एक स्क्वाड्रन देने के साथ-साथ, हम कवच भेदी राउंड सहित गोला-बारूद भी देंगे, जिसमें डिप्लेटेड यूरेनियम मौजूद है। इस तरह के राउंड्स, आधुनिक टैंकों और बख्तरबंद वाहनों को मात देने में बेहद कारगर हैं।”

यह अनुमान लगाना उचित होगा कि ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट को इस बारे में सूचित किया था, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि, यूके सरकार ने उपरोक्त घोषणा से पहले, अपने अमेरिकी समकक्ष, रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ पूर्व परामर्श और सहमति ज़रूर ली होगी। 

वालेस और ऑस्टिन दोनों सेना से जुड़े रहे हैं और इस बात को समझते हैं कि यूक्रेन में छद्म युद्ध के वर्तमान चरण में " डिप्लेटेड यूरेनियम" से सुसज्जित गोला-बारूद की ज़रूरत क्यों है। वह इसलिए कि यदि कीव वसंत के मौसम में रूस के ख़िलाफ़ डोनाबास इलाके में विश्वसनीय हमला करना चाहता है - जबकि युद्ध स्पष्ट रूप से रूस के पक्ष में है - तो उसे इसकी ज़रूरत महसूस पड़ेगी।

समान रूप से, दोनों को अच्छी तरह से पता होगा कि यूगोस्लाविया में नाटो के हस्तक्षेप की वैधता अभी भी एक खुला मुद्दा है। नाटो के बमबारी अभियान के जवाब में, पूर्व यूगोस्लाविया ने 29 अप्रैल, 1999 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष कार्यवाही शुरू की थी, और दस नाटो सदस्यों के ख़िलाफ़ इस कार्यवाही को किया गया था, जिसमें बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्पेन, यूके और यूएस शामिल थे। दायर मामले में इन राष्ट्रों द्वारा कानून के उल्लंघन की एक बड़ी श्रृंखला का हवाला दिया गया था (जिसमें निषिद्ध हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने का दायित्व शामिल था।)

हालांकि इंटेरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अस्थायी उपायों के मद्देनज़र बेलग्रेड के अनुरोध को खारिज़ कर दिया था, फिर भी अपने निर्णय में, यूगोस्लाविया में पश्चिमी शक्तियों द्वारा किए गए बल के इस्तेमाल पर गहरी चिंता जताई गई थी, जिससे "वर्तमान परिस्थितियों में ...अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत गंभीर मुद्दे उठ रहे हैं।" यहां यह कहना काफ़ी होगा कि यूगोस्लाविया द्वारा नाटो प्रतिवादियों के ख़िलाफ़ तैयार किए गए मामले अभी भी आईसीजे के डॉकेट पर बने हुए हैं, हालांकि याचिकाकर्ता को बैठा दिया गया है।

बावजूद इसके, वाशिंगटन और लंदन जानबूझकर पूर्व यूगोस्लाविया में युद्ध अपराधों को दोहरा रहे हैं। एंग्लो-सैक्सन गुट का मुख्य उद्देश्य नपे-तुले प्रॉक्सी युद्ध को बढ़ाना था, लेकिन उन्हे शायद मालूम था कि मॉस्को इसका कड़ा जवाब देगा, ठीक वैसे ही जैसे दिन के बाद रात का अनुमान लगाया जा सकता है।

दरअसल, ठीक ऐसा ही हुआ जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शनिवार को घोषणा की कि रूस, बेलारूस में अपने सामरिक परमाणु हथियारों को तैनात करेगा। पुतिन ने इसे एक हफ़्ते पहले लंदन में बैरोनेस गोल्डी के बयान के जवाब में बेलारूस के अनुरोध से जोड़ दिया।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पुतिन ने कहा कि अमेरिका ने दशकों तक नाटो देशों के इलाकों में अपने परमाणु हथियार रखे।

पुतिन के खुलासे के बाद यूरोपियन यूनियन और नाटो ‘बैलिस्टिक’ हो गए। यूरोपियन यूनियन के मुख्य राजनयिक जोसेप बोरेल ने रविवार को कहा कि मास्को का निर्णय "एक गैर-ज़िम्मेदाराना टकराव बढ़ाना है और यूरोपीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है।" उन्होंने बेलारूस के ख़िलाफ़ 'और प्रतिबंध' लगाने का वादा किया।

नाटो की एक प्रवक्ता ने मास्को के निर्णय को "ख़तरनाक और गैर-ज़िम्मेदाराना" बताया है। दिलचस्प बात यह है कि, हालांकि, बाइडेन प्रशासन ने बड़े सलीके से इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया और इसके बजाय यह बयान दिया कि अमेरिका को इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि रूस ने परमाणु हथियार बेलारूस या कहीं और स्थानांतरित कर दिए हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि, “वास्तव में हमे ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि उनका (पुतिन) यूक्रेन के अंदर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का कोई इरादा है।"

लेकिन फिर, पुतिन ने भी यह स्पष्ट किया कि रूस सबसे पहले 1 जुलाई तक सामरिक परमाणु हथियारों को रखने के लिए बेलारूस में एक भंडारण सुविधा का निर्माण पूरा करेगा।

आख़िर क्या है गेम प्लान? सबसे पहले, एंग्लो-सैक्सन गुट को उम्मीद थी कि यह मुद्दा रूस की तुलना में यूरोप में अधिक बेचैनी और असुरक्षा पैदा करेगा और बाइडेन प्रशासन के पीछे यूरोपीय देशों को एक ऐसे समय में ला खड़ा करेगा, जब लंबे समय से यूरोप को ट्रान्साटलांटिक गठबंधन के भीतर दोष दिखाई दे रहे थे, कि यूक्रेन में युद्ध यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए विनाशकारी हो सकता है।

मामले का सार यह है कि, जैसा कि 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के समय हुआ था, बेलारूस में सामरिक परमाणु हथियारों पर रूस का निर्णय प्रतिशोधात्मक है, जिसने उनकी सीमाओं के क़रीब स्थित अमेरिकी मिसाइलों के ख़तरे की तरफ इशारा किया है। (अमेरिका के अनुमानित 100 परमाणु हथियार, पांच यूरोपीय देशों –यानि बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और तुर्की की तिजोरियों में बंद हैं।)

इससे भी बदतर बात यह है कि, अमेरिका कहता है कि वह "परमाणु साझाकरण" की व्यवस्था के तहत काम करता है जो विवादास्पद व्यवस्था है, जिसके तहत वह चुनिंदा गैर-परमाणु नाटो देशों के लड़ाकू विमानों में परमाणु उपकरण लगाता है और उनके पायलटों को अमेरिकी परमाणु बमों के साथ परमाणु हमले करने के लिए प्रशिक्षित करता है। यह तब हो रहा है, जब परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का पक्षकार होने के नाते अमेरिका ने दूसरे देशों को परमाणु हथियार न सौंपने का वादा किया है और नाटो की साझा व्यवस्था में गैर-परमाणु देशों ने परमाणु हथियार संपन्न राज्यों से परमाणु हथियार हासिल नहीं करने का वादा किया है।

नाटो ने पिछले साल घोषणा की थी कि सात नाटो देशों ने परमाणु साझाकरण मिशन में योगदान देने का निर्णय लिया है। माना जाता है कि ये देश अमेरिका, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, तुर्की और ग्रीस हैं और एनपीटी के सभी हस्ताक्षरकर्ता हैं।

"नियम-आधारित आदेश" में आपका स्वागत है! जो पश्चिम के लिए पूरी तरह से स्वीकार्य है लेकिन रूस के लिए प्रतिबंधित है!

अंत में, बैरोनेस गोल्डी का राजनयिक सहायक के रूप में एक और आयाम है: ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन को घटिया यूरेनियम हथियार भेजने का निर्णय, पूरे नाटो गठबंधन में उसे सबसे लापरवाह और बेईमान देश साबित कर रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि घटिया यूरेनियम वाले हथियार रेडियोधर्मी और जहरीले होते हैं और यूगोस्लाविया और इराक युद्धों में उनके बड़े इस्तेमाल से जन्म दोष और कैंसर के मामले पाए गए हैं। इराक के आक्रमण के दौरान और क्रूर अमेरिकी घेराबंदी के तहत फालुजा शहर पर भी इन्हे इस्तेमाल किया गया था और "इस पर किए गए अध्ययन से आबादी में आनुवंशिक क्षति की उच्चतम दर" का पता चला है।

कई नाटो देशों द्वारा घटिया यूरेनियम वाले गोला-बारूद की विषाक्तता को स्वीकार किया गया है और यूरोपीय संसद ने इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया था। पदार्थ से जुड़ी विषाक्तता के चलते 366 इटैलियन सैनिकों की मौत के बाद, इटली ने 2019 में क़ानून बनाया ताकि सेना के दिग्गजों के लिए जोखिम के नुकसान के ख़िलाफ़ मुकदमा करना आसान हो सके।

ब्रिटेन एक बाहरी व्यक्ति की तरह व्यवहार क्यों कर रहा है? ऐसा लगता है कि ब्रिटेन यूरोप में सफ़ोक के लेकनहीथ में परमाणु-सशस्त्र अमेरिकी बौम्बर्स के बेस को सही ठहराने के लिए स्थितियां बना रहा है, जिन्हें 1991 में इंटरमीडिएट न्यूक्लियर फोर्सेस संधि के अनुरूप हटा दिया गया था।

ब्रिटेन में शांति आंदोलन ख़त्म होने की स्थिति में है। जैसे को तैसा दिखाने के लिए बेलारूस में रूसी प्रतिशोध का जवाब देने के लिए ब्रिटेन में 'वॉरमौन्गर्स' और रसोफोबिक एलीट वर्ग पर भरोसा किया जा रहा है। इससे निकट भविष्य में अमेरिकी बौम्बर्स के लेकनहीथ लौटने की अपेक्षा की जा सकती है।

(एम.के. भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

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