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NFHS-5 : तक़रीबन 50 फ़ीसदी औरतें और बच्चे ख़ून की कमी की बीमारी से जूझ रहे हैं!

सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 78% महिलाओं का बैंक खाता है तो 50% महिलाएं ख़ून की कमी से जूझ रही हैं। साल भर काम और काम का नगद मेहनताना महज़ 23 प्रतिशत महिलाओं को मिल रहा है।
women and children are suffering from anemia
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

बढ़ती जनसंख्या भारत के दस बड़ी परेशानियों में से भी एक नहीं है। लेकिन फिर भी पिछले दिनों इस पर देशभर के कुछ लोगों की तरफ से ऐसी चर्चा हुई जैसी अगर जनसंख्या नियंत्रण का कानून लाकर जनसंख्या को नियंत्रित कर दिया जाए तो देश की पूरी परेशानियां खत्म हो जाएंगी। उनके समझ के अंधकार को दूर करने के लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवी किस्त से यह खबर आ रही है कि भारत की आबादी का प्रजनन दर रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से कम होकर 2 पर पहुंच गया है।

सरल शब्दों में समझे तो इस आंकड़े का अर्थ यह है कि अगर इसके बाद भी भारत की आबादी के साथ छेड़छाड़ करने की वकालत की जाएगी तो भारत की आबादी असंतुलित हो सकती है। बूढ़े लोगों की संख्या ज्यादा हो सकती है और नौजवानों की संख्या कम हो सकती है।

साल 1992-93 से नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े प्रकाशित होते आ रहे हैं। अब तक इसकी चार किस्त प्रकाशित हो चुकी हैं। यह सर्वे बहुत बड़े पैमाने पर होता है। इस बार के सर्वे में एनएफएचएस की टीम ने देशभर के 707 जिलों से  6.1 लाख परिवारों से बातचीत की। सवाल-जवाब का सिलसिला तकरीबन 7 लाख औरतों और 1 लाख मर्दों के साथ चला। इनसे मिले जवाबों के आधार पर एनएसएचएस की पांचवी किस्त के निष्कर्ष सामने आए हैं। एनएफएचएस के सर्वे में सबसे अधिक जोर आबादी, पोषण, स्वास्थ्य ,औरतों और बच्चों के हालात से जुड़ी जानकारियों को इकट्ठा करने पर दिया जाता है।

जैसा कि साफ है कि सवाल-जवाब का सिलसिला भारत की पूरी आबादी के साथ नहीं किया गया है, इसलिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे एक तरह का सैंपल सर्वे है। भारत की जमीनी तस्वीर साफ सुथरी करके दिखाता है लेकिन इतनी साफ-सुथरी नहीं जितनी साफ-सुथरी तस्वीर सेंसस के जरिए नजर आती है। लेकिन फिर भी नीति निर्माण और लोक विमर्श की दुनिया में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से मिले आंकड़ों का बहुत अधिक महत्व है। NFHS - 5 के मुताबिक:

भारत में 6 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 71 फ़ीसदी लड़कियां स्कूल पहुंच पा रही है। ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 66 फीसदी है तो शहरी इलाकों में यह संख्या 82 फ़ीसदी है।

पहले के मुकाबले लिंगानुपात बढ़ा है। 1000 मर्दों की आबादी पर 1020 औरतें हैं। ग्रामीण इलाके में 1000 मर्दों की आबादी पर 1037 औरतें हैं लेकिन शहरी इलाके की स्थिति ग्रामीण इलाके से कमजोर है। शहरी इलाके में 1000 मर्दों पर 985 औरतें हैं।

भारत की तकरीबन 58 फ़ीसदी आबादी खाना बनाने के लिए गैस चूल्हे का इस्तेमाल कर रही है। शहरों में यह संख्या तकरीबन 89% है तो गांव में यह संख्या महज 43 प्रतिशत है। यानी रसोई गैस की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी का साफ - साफ असर गांव में पड़ा है।

पिछले कुछ सालों से भारत सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे पर खर्च करने की बजाय बीमा क्षेत्र को स्वास्थ्य में एंट्री दिला कर स्वास्थ्य की परेशानियों से लड़ने की नीति बना रही है। इस मामले में भारत के 41% लोगों के पास किसी ना किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा है। शहरी इलाकों में यह संख्या 38% की है तो ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 42% की है।( ग्रामीण इलाकों में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना की वजह से थोड़ी सी बढ़ी हुई संख्या आई है). यह आंकड़े बता रहे हैं कि बहुतेरे लोगों के पास किसी तरह की स्वास्थ्य बीमा नहीं है।

* देशभर में केवल 33% महिलाएं और 57% पुरुष हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी ना कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। ग्रामीण क्षेत्र के यह आंकड़ा महिलाओं में केवल 24% और मर्दों में 48% का हो जाता है। यानी सूचना क्रांति के दौर में अभी डिजिटल डिवाइड खतरनाक तौर पर मौजूद है।

* 20 से 24 साल की औरतों में तकरीबन 23 प्रतिशत औरतों की शादी 18 साल से पहले हो गई। ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 27% और शहरी इलाकों में 14% है।

* 5 साल से कम उम्र के अब भी 41% बच्चों की मौत हो जाती है। ग्रामीण इलाके में यह आंकड़ा 45% का है तो शहरी इलाके में आंकड़ा 31% का है। यानी यह अब भी इस मामले में भारत को बहुत लंबी दूरी तय करने हैं।

* 15 से 49 साल की औरतों के बीच तकरीबन 66% औरतें परिवार नियोजन से जुड़ी किसी ना किसी तरीके को जरूर अपनाती है। ग्रामीण और शहर इलाके दोनों जगह यह संख्या देश के औसत के आस पास ही है। यह आंकड़ा भी बताता है कि भारत में आबादी के नियंत्रण से जुड़े कानून की जरूरत नहीं है। ऐसा कोई भी बहस महज फिजूल का बहस है।

* 15 से 49 साल की 57.2% गैर-गर्भवती महिलाएं खून की कमी वाली बीमारी से जूझ रहे हैं. शहरी इलाकों में इनका प्रतिशत 54.1 तो गांव-देहात में यह 58.7 प्रतिशत है. इस तरह इस वर्ग में एनीमिया की शिकायत 4 प्रतिशत बढ़ी है. सर्वे के मुताबिक, अगर 15-49 वर्ष की गर्भवती महिलाएं में रक्ताल्पता की बात करें तो इनकी संख्‍या 52.2% है. शहरों में यह आबादी 45.7% है तो गांवों में यह आबादी 54.3 प्रतिशत है।

* केवल 25% ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने पिछले साल भर काम किया और उन्हें नगदी भुगतान मिला। शहर और गांव में यह आंकड़ा भी देशभर के आंकड़े के बराबर ही है।

* देशभर में महज 43% ऐसी औरतें हैं जिनके पास जमीन या घर का एकल या संयुक्त तौर पर मालिकाना हक है।

* देश भर में तकरीबन 78% महिलाओं के पास बैंक खाता है। लेकिन अब भी 18 से 49 साल के बीच की 29% महिलाएं किसी ना किसी तरह के हिंसा का शिकार हुई हैं। गांव में यह आंकड़ा 31 प्रतिशत का है।

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