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डिजिटल कॉमर्स के लिए ओएनडीसी क्यों असफल साबित हुआ?

इस प्लैटफ़ार्म के घोषित उद्देश्य क्या थे? हालांकि सरकार ने ठोस शब्दों में इसकी घोषणा नहीं की, लेकिन वाणिज्य मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने बयान में यह स्पष्ट कर दिया कि इससे कुछ बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा।
ONDC

ONDC डिजिटल कॉमर्स के लिए एक खुला (open) नेटवर्क है। इसे अप्रैल 2022 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPII) द्वारा बेंगलुरु में लॉन्च किया गया था, जब इसके माध्यम से पहला ई-कॉमर्स लेनदेन हुआ था। लेकिन यह सितंबर 2022 में ही पूरी तरह से चालू हो सका।

पेश किए गए उद्देश्य अच्छे थे

इस प्लैटफ़ार्म के घोषित उद्देश्य क्या थे? हालांकि सरकार ने ठोस शब्दों में इसकी घोषणा नहीं की, लेकिन वाणिज्य मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने बयान में यह स्पष्ट कर दिया कि इससे कुछ बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा।

औपचारिक रूप से, सरकार ने घोषणा की कि वह भारत में ई-कॉमर्स के "लोकतांत्रिकरण" और "विकेंद्रीकरण" का प्रतिनिधित्व करती है। यह घोषित किया गया कि ONDC खुदरा वाणिज्य के डिजिटलीकरण को बढ़ावा देगा, और वह भी समावेशी तरीके से।

दूसरे शब्दों में, कई खुदरा संगठन ओएनडीसी के माध्यम से उपभोक्ताओं तक ऑनलाइन पहुंच सकते हैं, और केवल सदस्यता शुल्क के रूप में एक छोटी राशि तथा बेचे गए प्रत्येक उत्पाद या सेवा के लिए ओएनडीसी को न्यूनतम कमीशन देकर अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेच सकते हैं। ये अन्य ई-कॉमर्स खिलाड़ियों द्वारा मांगे गए कमीशन की तुलना में बहुत कम है।

यद्यपि यह उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प देने वाला उपाय था, संचालन की काफी कम लागत के कारण इसमें उपभोक्ताओं को सस्ते दाम पर उत्पाद बेचने की क्षमता थी।

सिद्धांत रूप में तो ये प्रशंसनीय उद्देश्य हैं। लेकिन क्या व्यवहार में ओएनडीसी ने पिछले आठ महीनों में इन उद्देश्यों को पूरा किया है? इन उद्देश्यों पर ONDC के प्रदर्शन की जांच करने से पहले, बीजेपी सरकार द्वारा ओएनडीसी उद्यम के पीछे राजनीतिक उद्देश्य पर पहले कुछ बात कर लें।

राजनीतिक उद्देश्य पूरा नहीं होगा

यह हर कोई जानता है कि छोटे व्यापारी भाजपा के पारंपरिक मूल आधार हैं। वे संगठित रिटेल- विशेष रूप से अमेज़ॅन या फ्लिपकार्ट जैसे विशाल ई-कॉमर्स फर्मों के आक्रमण से काफी प्रभावित हो रहे थे। चुनावों में इस सामाजिक आधार के बीच निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने के लिए, भाजपा ने सबसे पहले खुदरा व्यापार में संगठित फर्मों के प्रवेश का विरोध किया। लेकिन बाद में उन्होंने समझौता कर लिया और बड़ी संगठित खुदरा कंपनियों को अनुमति दी ।लेकिन उन्होंने वादा किया कि वे बहु-ब्रांड खुदरा (multi-brand retail) की एन्ट्री को अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने इस वादे पर पुनः छोटे व्यापारियों को धोखा दिया और ई-कॉमर्स मार्ग से बहु-ब्रांड वैश्विक बड़ी कंपनियों अमेज़न और वॉलमार्ट (फ्लिपकार्ट के माध्यम से) को अनुमति दे दी।

छोटे व्यापारिक समुदाय में इसके खिलाफ तीव्र आक्रोश था। चूंकि इसका चुनाव पर नकारात्मक प्रभाव होगा, बीजेपी ने छोटे व्यापारियों के इस वर्ग को ओएनडीसी (ONDC) के माध्यम से रिझाने की कोशिश की। भाजपा सरकार ने छोटे व्यापारियों को ओएनडीसी के  ज़रिये समान अवसर का वादा किया और उन्हें अमेज़ॅन या स्विगी के साथ समान अवसर देने का वादा किया। क्या वे सफल हुए हैं?

कथनी और करनी में अंतर

यदि भाजपा सरकार बड़ी ई-कॉमर्स फर्मों के वर्चस्व और छोटे आपूर्तिकर्ताओं का उनके द्वारा शोषण को प्रतिबंधित करने की इच्छुक थी, तो उन्हें कानूनी रूप से उस मार्जिन को कम करना चाहिए था जो बड़ी कंपनियां अपने उत्पादों और सेवाओं को अपने प्लेटफार्मों के ज़रिये बेचकर छोटी कंपनियों से ले रही थीं। वैश्विक बड़े कारपोरेट की नाराज़गी से बचने के लिए भाजपा सरकार ने ऐसा नहीं किया।

यदि वे वास्तव में छोटे व्यवसायियों की सेवा करना चाहते थे, तो वे केवल छोटे व्यवसायों तक सीमित एक विशेष मंच शुरू कर सकते थे। उन्हें बड़े खिलाड़ियों को बाहर रखना चाहिए था। लेकिन उन्होंने एक खुला मंच लॉन्च कर दिया । खुले मंच का अर्थ है कोई भी व्यावसायिक संगठन या फर्म, बड़ा हो या छोटा, सदस्य बन सकता है। क्या गली-नुक्कड़ किराना और वैश्विक ई-कॉमर्स दिग्गजों के बीच कभी समान अवसरों की बात हो सकती है? उनके बीच समानता की बात करना बेमानी है। यह स्पष्ट है कि ऐसा मंच केवल दिग्गजों की सेवा करेगा। और ठीक ऐसा ही हुआ।

इसी तरह, 'समावेशी' शब्द अपने आप में एक भ्रम है। यदि आप छोटे को बड़े के साथ समान स्तर पर शामिल करते हैं, तो यह केवल बड़े का पक्ष लेगा और छोटे को उनके अधीन डाल देगा।

ONDC छोटी फर्मों तक ही सीमित नहीं रहा। हालांकि शुरुआत में बड़ी कंपनियां ओएनडीसी में शामिल नहीं हुईं, लेकिन वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें इसमें शामिल होने के लिए दबाव डाला। Amazon और Swiggy जैसी बड़ी ई-कॉमर्स फर्मों ने अब तक खुद को ONDC से दूर रखा है। हालाँकि ONDC की सदस्यता स्वैच्छिक मानी जाती है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि 16 दिसंबर 2022 को DPIIT (Department for promotion of Industry and Internal Trade, Government of India) सचिव अनुराग जैन ने खुले तौर पर Amazon और Flipkart को ONDC में शामिल होने के लिए प्रेरित किया पर दोनों आज तक शामिल नहीं हुए हैं। Zomato ने एक और कंपनी MagicPin बनाई, जिसमें उसकी 16% हिस्सेदारी है; वह ONDC में शामिल हो गई, लेकिन अपने दम पर Zomato सीधे शामिल नहीं हुई। बड़े ई-कॉमर्स खिलाड़ियों में स्नैपडील , ईकार्ट  और कोटक महिंद्रा जैसे कुछ ही ओएनडीसी में शामिल हुए। यदि प्लेटफॉर्म का उद्देश्य कथित रूप से छोटे फ़र्म्स की सेवा करना है तो बड़ी ई-कॉमर्स फर्मों को ONDC में शामिल करने की कवायद का क्या मतलब है?

ONDC ने न केवल बड़े खिलाड़ियों को नामांकित किया, इसने बड़े एग्रीगेटर्स को भी सूचीबद्ध किया। एक उदाहरण है मैजिकपिन। यह भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में संचालित 22,000 होटलों का एक समूह है और यह अब ओएनडीसी का हिस्सा बन गया है; और स्विगी और ज़ोमैटो की भांति उपभोक्ताओं को ओएनडीसी के माध्यम से भोजन बेच रहा है। यदि स्थानीय रेस्तरां को स्थानीय क्षेत्र में ऑनलाइन बिक्री करने में सक्षम बनाने का विचार है, तो एग्रीगेटर्स को ओएनडीसी के माध्यम से काम करने की अनुमति क्यों दी गई? इससे आखिर ऐग्रिगेटर का ही मुनाफा होगा। वाणिज्य मंत्रालय का ओएनडीसी उद्यम स्व-विरोधाभासी बन गया है!

 

ONDC का अब तक का खराब टेकऑफ़

Amazon और Flipkart जैसे ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों की तुलना में ONDC कितना बड़ा है? इस साल जनवरी में, लॉन्च के तुरंत बाद, केवल 700 ऑनलाइन विक्रेताओं ने अपने को ओएनडीसी पर नामांकित किया। 17 मई 2023 को ओएनडीसी के मुख्य व्यवसाय अधिकारी शिरीश जोशी ने एक समाचार-साइट को बताया कि उस तारीख तक 35,000 विक्रेताओं ने ओएनडीसी में नामांकन कराया था। इसके विपरीत, 15 लाख व्यावसायिक संस्थाएँ अपने उत्पादों और सेवाओं को Amazon और Flipkart के माध्यम से बेच रही थीं! और भारत में 1 करोड़ तीस लाख किराना स्टोर और 4 करोड़ पच्चीस लाख MSME हैं!

हालांकि ONDC ने खुद को सभी प्रकार के ई-कॉमर्स के लिए एक खुला मंच कहा है, व्यवहार में यह अभी तक केवल खाद्य और किराना मार्केटिंग के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के रूप में ही विकसित हो सका। पहले आठ महीनों में ओएनडीसी ने कितनी दूर उड़ान भरी है? 7 मई 2023 तक, ONDC के माध्यम से केवल 20,000 लेनदेन (transactions) किए जा सके, और वह भी रविवार को। सप्ताह के दिनों में, लेन-देन की संख्या भी कम होती रही है। इसके विपरीत, Amazon India अकेले एक दिन में 16 लाख पैकेज शिप करता है! और Flikart के प्रतिदिन के ऑर्डरों की संख्या 10 लाख अधिक है। खाद्य ई-कॉमर्स प्रमुख Swiggy और Zomato मिलकर प्रति दिन 20 लाख आपूर्ति कर रहे हैं। और इस तरह के प्रदर्शन के साथ, वाणिज्य मंत्रालय यह घोषणा कर रहा है कि "ओएनडीसी ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनियों के वचर्स्व को समाप्त कर देगा" और इजारेदारों के लिए विनाशकारी साबित होगा! कोरी बयानबाजी से कभी एकाधिकार खत्म नहीं हो सकता!

सस्ते भोजन की पेशकश के बावजूद ओएनडीसी का प्रदर्शन अब तक खराब क्यों रहा है? मोमोज़ का ही उदाहरण ले लेते हैं। ओएनडीसी पर मोमोज़ की एक प्लेट की कीमत 85 रुपये है क्योंकि वे छोटे रेस्तरां से खाना उठाते हैं, और जोमैटो और स्विगी पर इसकी कीमत (बेहतर गुणवतता के लिहाज से) 170 रुपये है।

इसके अलावा, स्विगी और ज़ोमैटो अपने माध्यम से खाना बेचने वाले रेस्तरां से 20-25% कमीशन लेते हैं जबकि ONDC केवल 2-4% कमीशन लेता है, जो नाममात्र का है। साथ ही पेटीएम व फ़ोनपे के माध्यम से ऑर्डर करने से डिस्काउंट भी मिलता है। यह स्वाभाविक रूप से ओएनडीसी के माध्यम से खरीदे गए उत्पादों की कीमत कम कर सकता है। फिर भी, उपभोक्ता केवल स्विगी और ज़ोमैटो से मंगाते हैं और छोटे रेस्तरां का विकल्प नहीं चुनते। क्यों?

यह विसंगति क्यों?

ऐसा इसलिए है क्योंकि ज़ोमैटो और स्विगी के पास बड़ी संख्या में डिलीवरी कर्मी हैं, जबकि ओएनडीसी में नामांकित छोटे रेस्तरां और मोमोज़ की आपूर्ति करने वाले दुकानों के पास अच्छी संख्या में डिलीवरी कर्मचारी नहीं हैं, या यूं कहें कि वे अपने मोमोज़ को 85 रुपये में बेचकर अधिक श्रमिकों को रोजगार नहीं दे सकते हैं। इसलिए, जबकि ONDC कम कीमत प्रदर्शित करता है, कई छोटी कंपनियां उस कीमत पर आपूर्ति करने के लिए आगे नहीं आती हैं।

इसके अतिरिक्त, ओएनडीसी ने एक प्रभावी शिकायत तंत्र स्थापित नहीं किया है, न ही डिलिवरी का समय उपभोक्ता से साझा करता है ।कई सारे उपभोक्ताओं ने अब इन छोटे फर्मों से किनारा करना शुरू कर दिया है।

अप्रासंगिक प्रोत्साहन और अनुत्पादक कैप

अपने कारोबार का विस्तार करने के लिए, ओएनडीसी ने प्रति ऑनलाइन बिक्री प्रति लेनदेन 75 रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की, लेकिन अब कई मामलों में इसे घटाकर 50 रुपये कर दिया गया है। इससे भी बुरी बात यह है कि ओएनडीसी ने इन प्रोत्साहनों की सीमा तय कर दी है। प्रतिदिन सभी ऐप्स के लिए अधिकतम इंसेंटिव 2,25,000 रुपये है और एक सेलर को प्रतिदिन मिलने वाला अधिकतम इंसेंटिव 3750 रुपये है। एक विक्रेता को रिकॉर्ड रखने, पैकिंग, लेबलिंग और डिलीवरी के लिए इस 3750 रुपये में से खर्च करना पड़ता है, भले ही वह पहली बार में ऐसी 50 वस्तुओं को बेचने का प्रबंध करता हो!

ओएनडीसी ने विक्रेताओं पर मूल्य सीमा भी लगा दी है। प्रयागराज में एक बेकरी के मालिक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि छोटे फ़र्म्स को फ़ायदा पहुँचाने की बात तो दूर, इस प्राइस कैप ने उन्हें नुकसान ही पहुँचाया है क्योंकि बड़े खिलाड़ी प्राइस कैप के बावजूद अपनी बिक्री की बड़ी मात्रा के कारण अधिक कमाई करना जारी रखते हैं। कम मार्जिन के साथ भी, वे लाभप्रद ढंग से काम करने में सक्षम हैं, लेकिन छोटे फ़र्म्स घाटे में चले जाते हैं। 

महत्वाकांक्षी लक्ष्य

ओएनडीसी का दावा है कि अगले पांच वर्षों में वह 90 करोड़ उपयोगकर्ताओं को बेचेगा और 12 लाख विक्रेताओं को नामांकित करेगा तथा आज की तुलना में 730 करोड़ अतिरिक्त आइटम बेचेगा व कुल 48 अरब डॉलर का कारोबार करेगा। खैर, पिछले आठ महीनों का प्रदर्शन इस तरह की महत्वाकांक्षी योजना की पुष्टि नहीं करता! दुर्भाग्य से, किसी भी मीडिया आउटलेट ने इस तरह के महत्वाकांक्षी दावे पर सवाल नहीं उठाया है।

ONDC द्वारा Amazon और Flipkart जैसी बड़ी कम्पनियों के, जो भारत में 90% से अधिक ई-कॉमर्स कारोबार करते हैं, एकाधिकार को नष्ट करना तो दूर, ONDC ही इनके द्वारा नष्ट हो जाएगा। ओएनडीसी वास्तव में एक अच्छा विचार है, लेकिन नौकरशाहों ने व्यवहार में इसे केवल बर्बाद ही किया है।

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